Sunday, December 13, 2020

सुबह सतसंग 14/12

**राधास्वामी!! 14-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                 

 (1) धुन सुन कर मन समझाई।।टेक।। कोटि जतन से यह नहिं माने। धुन सुन कर मन समझाई।।-( पंडित पढ पढ वेद बखाने। बिद्या बल सब जाई।।) (सारबचन-शब्द-9वाँ-पृ.सं. 223)                                                             

 (2) आज घिर आये बादल कारे। गरज गरज घन गगन पुकारे।।-(सत्तपुरूष के चरन परस कर। राधास्वामी अचरज दरस निहारे।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-27-पृ.सं.366-367)                                 

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

 

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -रोजाना वाकिआत- 20 मार्च 1933-सोमवार:-

डॉक्टर चटर्जी देहली से मिलने के लिये आये। आप बड़े काबिल केमिस्ट है । एक घंटा गुफ्तगू रही ।आपने अनेक लाभकारी मशवरे दिये। अंततः निश्चय पाया कि वह 1 माह के अंदर दयालबाग के लिए एक नई स्कीम तैयार करके भेजेंगे।                               हिंदुस्तान में त्याग, संस्कृत से वाकिफियत और परमार्थ समानार्थी समझे जाते हैं। लेकिन दरअस्ल परमार्थ एक जुदा ही बात है। इंसान गृहस्थआश्रम में रहकर अपने सब कर्तव्यों का पालन करता हुआ भी सच्चा परमार्थी हो सकता है । परमार्थ में कामयाब होने के लिए जाहिरी त्याग या किसी विद्या की जरूरत नहीं है। 

जरूरत है तो दुनिया की चीजों से लाग यानी मोहब्बत छोड़ने की। जो शख्स दुनिया की चीजों से मोहब्बत करता है वह परमार्थ में कामयाब नहीं हो सकता। फल की आशा छोड़कर कर्म करना और अपने धर्म पालन के लिए हमेशा तैयार रहना सच्चे परमार्थियों के लक्षण है। सुबह कॉरस्पॉडेंस के वक्त देहली के एक जिज्ञासु के समझाने के लिए इस विषय पर लंबी बातचीत हुई ।।                                        

 तीसरे पहर डेरी जाकर सालाना  हिसाब देखा। गत साल में 80000 का दूध मक्खन वगैरह डेरी ने मुहैया किया। लेकिन अगर इससे तिगुना काम हो तो डेरी का पूरी तरह पेट भरे। जब दयालबाग की आबादी 10000 व्यक्तियों की हो जाएगी तभी डेरी का पेट भरेगा और डेरी कद्र होगी ।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 शरण आश्रम का सपूत】

कल से आगे:-【 दूसरा दृश्य)]-

{रोमा में एक बाग } :-                     

 (प्रेमबिहारी रोमा में काउन्टेस की बहिन के यहाँ मुलाजिम हो जाता है। शाम को बाग में सैर को जाता है।  एक मेम भागी आती है। पीछे पीछे एक बदमाश तआक्कुब करता है। छूरा हाथ में लिये है।

 प्रेमबिहारी लपक कर आदमी को पकड़ लेता है, नीचे गिराता है, आदमी छुरा मारता है, लोग आ जाते हैं, मेम भी लौट आती है । बदमाश को गिरफ्तार कर लिया जाता है।

एक कॉन्स्टेबल प्रेमबिहारी का नाम पता नोट कर लेता है।  सुबह को काउन्टेस की बहिन अखबार खोलकर पढने लगती है )  काउन्टेस की बहिन -प्रेमबिहारीलाल!  प्रेमबिहारी- हाजिर हुआ। बहिन -अखबार में तुम्हारी तस्वीर कैसे?  प्रेमबिहारी -आपकी दुआ का नतीजा है। बहिन- (अखबार पढ़कर) हैं!  तुमने कल पार्क में एक नौजवान लेडी की जान बचाई ।तुमने हिम्मत करके बदमाश को, जो लेडी का तआक्कुब करता था , पकड़ लिया और नीचे दे मारा।  उस कमबख्त ने तुम्हारे छुरा मारा। तुमने मुझसे जिक्र तक नहीं किया किया, क्या जख्म गहरा लगा है, यह देखो तो अखबार में क्या क्या लिखा है?  प्रेमबिहारी- जो कुछ आपने बयान किया वह बिल्कुल दुरुस्त है। मैने जनाबा को तकलीफ देना मुनासिब न समझा इसलिए जिक्र नही किया । अलावाबरी मैंने महज अपना फर्ज अदा किया।किसी पर एहसान नहीं किया। बहिन- तुमने कुल इटली पर एहसान किया। आफरी  है मुल्क हिंदुस्तान पर जिसके नौजवान गैरमुमालिक की मस्तूरात की हिफाजत के लिए अपनी जान  बेधड़क खतरे में डालते हैं और जख्म खा कर उफ नही करते । आफरी सद आफरी- प्रेमबिहारी! तुमने कमाल कर डाला है ।मैं अपनी किस्मत को मुबारकबाद देती हूं कि तुम्हारे जैसा नेकनिहाद नौजवान मेरी सरविस में आया ।क्रमशः                            🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-

कल से आगे-(3)

जब मन में कोई तरंग उठती है यानी चाह पैदा होती है तो पहले हिलोर अंतर में होती है और फिर वह तरंग रूप खड़ी होकर जिस इंद्री के द्वारा उस चाह की कार्रवाई होनी चाहिए उसी इंद्र की तरफ धार रूप होकर चलती है ।

और इंद्री के स्थान से जिस काम यह पदार्थ की चाह है वह धार बाहर निकल कर उसी काम या पदार्थ में लग जाती है । इसी तरह से कुल कार्यवाही देह और दुनियाँ के कामों की धारों के जरिए से जारी है ।

 देह के अंतरी कामों के वास्ते वह काम करने वाली धारे देह के अंग अंग में फैलती है, और बाहर के कामों में वह धारे इंद्री के द्वारा बाहर फैलती है। यह सब धारें खर्च में लिखी जाती है, क्योंकि कोई भी इनमें से उलट कर अपने भंडार में नहीं आती है। क्रमशः                         🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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