Monday, December 21, 2020

जबतक दवाई नहीं तबतक ढीलाई नहीं

 सभी मित्रों से निवेदन है कि इस कहानी को एक बार अवश्य पढ़ लेवें :

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*एक कहानी ओशो कहते हैं कि ---*

एक व्यक्ति एक ऊंचे पेड़ से उतर रहा था।  नीचे एक फकीर बैठा देख रहा था।

उसे ऊंचाई से उतरते देख फकीर चुप रहा। जब ऊंचाई खतरनाक नहीं रही तो फकीर उसे सावधान रहने की नसीहत देने लगा।

नीचे उतरे हुए व्यक्ति ने फकीर से कहा जब ऊंचाई खतरनाक थी, आप चुपचाप निहारते रहे और जब खतरा टल सा गया है आप चेता रहे है।

*फकीर ने बोला* तब तुम  खतरा देख सावधान थे, पर अब तुम खतरे से बेपरवाह हो, यही वास्तव में सावधान रहने की घड़ी है ।

*अतः मैं तुम्हे सजग कर रहा हूं।*


*यही अब 'कोरोना' की कहानी है ।*

            इस बीमारी के हम अभ्यस्त होते जा रहे है, और इसका खेल बखूबी चल रहा है।

*हमारी लापरवाही इसके लिए वरदान हो रही है।*


*अगले तीन महीने :*

*हम सब पर बेहद भारी हैं, बीमारी हमें पहचानी सी लगने लगी है,*

*यही समय संभल कर चलने का है ।*

            मित्रों आज हमारे आस पड़ोस या जान-पहचान वालों में न जाने कितने लोग करोना से पीड़ित हैं ...

           कइयों ने अपनो को खो दिया है। हम उनसे सहानुभूति तो रखते है, लेकिन खुद गलतफहमी रखतै हैं कि हम तो बेहद सावधान हैं और हमें कुछ नहीं होने वाला ! यही हमारी

*सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है।*


कहते है हम सबके अवचेतन में एक प्रबल भाव हमेशा बना रहता है कि प्रलय क्यों न आ जाए कोई चमत्कार होगा और मुझे कुछ नही होगा।

यह समय भ्रम में रहकर नुकसान उठाने का नहीं बल्कि,

                  *सावधान रहने का है ।*


*हमारे आसपास जो ठोकर खा चुके है, उनसे सीख लीजिए !*

*खतरे की आहट पहचानिए खुद सतर्क एवं सावधान रहिए और अपनों को भी सुरक्षित रखिए ।*

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