Thursday, December 24, 2020

दयालबाग़ सतसंग सुबह 24/12

 **राधास्वामी!! 24-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    


 (1) नाम निर्णय करूँ भाई। दुधाबिधी भेद बतलाई।। बर्ण-धुन भेद दोउ बरना। वाच और लक्ष इन कहना।।-(तिमिर संसार नहिं जावे। मोह मद काम भरमावे।।) (सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं.228,229)                                                

(2) जगत सँग मनुआँ सदा मलीन।।टेक।। काम क्रोध मद नित भरमावें। कुमत साथ करे किरत कमीन।।-(राधास्वामी मेहर करें जब अपनी। भौसागर से सहज तरीन।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-7-पृ.सं.372,373)                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात-

28, 29 मार्च 1933 -मंगलवार व बुधवार:-

एक जर्मन ने कमरे के अंदर चारा बोने का नया तरीका निकाला है। कमरे के अंदर एक लोहे की अलमारी है जो 7 फीट ऊँची है और जिसके 10 खाने हैं। हर एक खाने में एक नल लगा है जिसकी मार्फत दिन में 3 मर्तबा में पानी में घुली हुई खाद दी जाती है । खानों में मिट्टी भरकर मकई बोई गई है जो 10 दिन में काटने के लायक हो जाती है और हर खाने से 550 पाउण्ड चारा निकल आता है जो बयान किया जाता है कि 20 मवेशियों के लिए काफी है।  अगर यह खबर सही है फिर तो शहरों में गायों का पालना बिल्कुल आसान हो गया । जर्मन की कामयाबी का राज नई खाद है।  वह खाद स्पष्ट रूप से निहायत शीघ्र पच जाने वाला व ताकतवर है।  हिंदुस्तान में आम तौर मकई के लिए गोबर की खाद दी जाती है।  काश भारत वालों को इस खाद का पता चल जाये! दयालबाग डेरी में करीब 70 एकड़ रकबा में हरा चारा बोया जाता है। जिस पर काफी रकम खर्च होती है । मई व जून व जुलाई के महीनों के लिए जब चारे की सख्त अभाव होती है एक पक्का कोठला जिसमें हरा चारा संरक्षित किया जा सकता है बनाकर जो 32 फीट ऊंचा है 24 फीट व्यास का है।  इस साल कोशिश की जा रही है साइलो का चारा रिजर्व में अतिरिक्त रखा जावे और गायों को 12 महीने हरा चारा दिया जावे। फार्म में सैंजी, कलोवर, लोसरन और दो अफ्रीकन घासें बोई गई है।  एक अफ्रीकन घास ज्वार के पौधे से सदृश है। लेकिन उसकी एक एक जड़ से दस दस शाखें निकलती है।  दूसरी घास गर्मी के मौसम में तेजी से उगती है । अभी अंतिम वर्णित घास सिर्फ 15 एकड़ में लगी है लेकिन साल आयन्दा 45 एकड़ रकबे में फैलाने का इरादा है । अगर इस इरादे में कामयाबी हो गई तो डेरी के मवेशियों के लिए चारा का सवाल हल हो जायेगा। लेकिन जर्मन अविष्कारक की सुझाव के अनुसार सिर्फ पाँच अलमारियों में काश्त करने से यही नतीजा निकल सकता है। मुनासिब है कि हम जल्द खाद के मजबून जानिब तवज्जुह दें।  अखबार में जर्मन अविष्कारक की अलमारी व चारा के दिन ब दिन  उगने की तस्वीरें दिखलाई गई है जिससे साबित होता है कि खबर महज अखबारी गप्प नहीं है। क्रमशः                                          🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-【 शरण आश्रम का सपूत】

 क ल से आगे:-

काउन्टेस- मेरा दिल इंडिया की सैर को चाहता है। अगर आप इजाजत दें तो मैं आपके हमराह चलूँ। प्रेमबिहारी- आप शौक से तशरीफ़ ले चले। बम्बई पहुंचने तक यह खादिम आपकी हर खिदमत करेगा लेकिन जाँबाद यह  नाचीज़ शरण- आश्रम की सेवा के सिवाय और किसी जानिब तवज्जुह न दे सकेगा।  काउन्टेस-मैं आपसे कोई खिदमत नहीं कराना चाहती।  मुझे तो यह ख्याल है कि आप अभी बीमारी से उठे हैं इसलिए आपको एक ऐसे रफीक की जरूरत है जो आपकी तबीयत को खुश रक्खे और आपकी जरूरियात का ख्याल करता रहे। प्रेमबिहारी- मैं एक गरीब घर का लड़का हूँ। मैं इस किस्म की तकलीफ किसी को नहीं दिया चाहता। अलावा इसके मुझे शरण- आश्रम में दोबारा पहुँचने ,अपनी प्यारी बहन शोभावंती से मिलने और शरण- आश्रम की सेवा करने के ख्यालात हमेशा बश्शाश रखते हैं । काउन्टेस- इसलिए तो मैंने कहा था कि मर्द औरतों की मुरव्वतें जल्द भूल जाया करते हैं।  प्रेमबिहारी- आपके एहसानात मेरे लौहे के दिल पर मुनक्कश- वह कभी फरामोश नहीं हो सकते । काउन्टेस- आप एहसानात को फरामोश कर दीजिए । स्पंज के टुकड़े से अपने लोहे दिल को इन नापाक नक्शों से साफ कर लीजिये। क्रमशः                                            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र- भाग 1-

 कल से आगे-( 46)

【 जो सवाल कि दफा 5, बचन 38 प्रेमपत्र में लिखे हैं उसके जवाब खुलासा तौर पर वास्ते समझाने सत्संगियों के लिखे जाते हैं】                                           (1) सवाल- यह दुख सुख की सृष्टि किसने करी और क्यों करी उसका क्या फायदा है?                                       जवाब-यह रचना काल पुरुष ने करी ।उसकी ऐसी चाह थी कि मैं भी सत्तलोक के मुआफिक दूसरी रचना करूँ और उसका राज भोगूँ। सो सत्तपुरुष से आज्ञा माँग कर नीचे के देश में ,जहाँ कि चैतन्य निर्मल और मलीन माया के साथ मिला हुआ था, आन कर तीन लोक की रचना करी। और यहाँ माया यानी तमोगुण की मिलौनी के सबब से ( जिसके मसाले से जीवो की देह तैयार हुई है) दुख सुख अवश्य भोगना पड़ता है और अच्छे कर्म और कुकर्म जीवों से बनते हैं और उसी के मुआफिक फल मिलता है , क्योंकि पिंड में बैठकर जीव कर्म करने से बाज नहीं रह सकता और अपनी-अपनी चाह और जरूरत के मुआफिक रजोगुण और तमोगुण के चक्र में कर्मो के करने में संग और सोहबत के असर की भलाई और बुराई का फर्क करता है। क्रमशः            

                                                     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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