Monday, December 14, 2020

प्रणाम और आशीर्वाद

  🙏प्रणाम एवं आशीर्वाद का महत्वः🙏🌹


प्रस्तुति  - शैलेन्द्र  जारूहार

 इंसान..!  चाहता तो बहुत कुछ है किन्तु अधिकतर लोग "दुःख"  करमो अनुसार फल भोगते है उनके दुखों का कोई निवारण नहीं होता है, 

वो चाहते हैं कि बिना किसी पुरुषार्थ के ही, उन्हें "सबकुछ" प्राप्त हो, 

कोई भी  उपाय सफल नहीं होतें, क्योंकि  इन उपायों को लम्बे समय तक पूरी श्रद्धा-विश्वास और धैर्य के साथ करना पडता है..."भवानी शंकरौ बंदे श्रद्धा विश्वास रुपिणो.." तभी कल्याणकारी होता है.., फलदायी होता है। लेकिन एक अकर्मण्य, आलसी और पुरुषार्थहीन व्यक्ति के पास न तो धन होता है..न धैर्य होता है..न ही श्रद्धा  एवं न ही  विश्वास, किन्तु हमारे सस्कारो में  बडो़ का आशीर्वाद सदेव फलिभुत होता है जो उनको"प्रणाम कर प्राप्त किया जा सकता है, 

जिस से आई हुई आपदाये एवं सकट टल जातें हैं, 

महाभारत का युद्ध चल रहा था -

एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -

"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"

उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ जाती है।भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो जाते हैं      

तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से जा कर कहा कि तुम मेरे साथ चलो..

श्रीकृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर पर पहुँच गए -

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया, तो उन्होंने - 

"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया !!

फिर भीष्म ने पुछा- तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्रीकृष्ण यहाँ लेकर आये हैं?

द्रोपदी ने कहा-हां, वे कक्ष के बाहर खड़े हैं। 

भीष्म बाहर आए और दोनों ने एक दूसरे को प्रणाम  कर अभिवादन किया।

भीष्म ने कहा -मेरे ही एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं, अन्य कोई दूसरा नहीं कर सकता, 

फिर उन्होने अपने वध का उपाय भी खुद ही बताया..!

शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि- "तुम्हारे एक बार प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है! अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती "

तात्पर्य्...

वर्तमान में हमारे घरों और जीवन में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -

जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों बुजुर्गों की उपेक्षा हो जाती है...

यदि प्रतिदिन हम सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो।

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता।

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