Saturday, December 12, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 12/12

 **राधास्वामी!! आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) धाओ रे गुरू सरन सम्हारी।।टेक।। घट में निरख बहार नवीना। सुरत शब्द मत धारी।।-(अचरज रूप निरख मगनानी। वाह वाह प्रीतम बलिहारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.50,51)                                                        

  (2) स्वामी तुम अचरज खेल दिखायि।।टेक।। प्रेमी प्यारे देख भक्तजन मनुआँ बहु हुलसाया। सुन सुन बड सतसँगियन महिमा सेवा को चित चाया।।-(पिछली प्रीति किया चित जोरा उनको लिख जतलाया। भाग बिन कोई करे कहा कहो। चित म़े नाहिं समाया।।)  (प्रेमबिलास-शब्द-107-पृ.सं.156,157)                                                  

(3) यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा-कल से आगे।।      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


 शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे -(82 )

अनन्यभक्ति के संबंध में उदाहरण के रूप में एक शब्द कबीर साहब का भी यहाँ उपस्थित किया जाता है।यह शब्द बेलवेडियर प्रेस में मुद्रित 'कबीर साहब की शब्दावली' के पृष्ठ 67 में आया है।।                                       

  ●● शब्द●●                                               

साईं बिन दर्द करेजे होय।                                 

दिन नहीं चैन रैन नहिं निंदिया, कासे कहूँ दुख रोय।१।                                                          

 आधी रतियाँ पिछले पहरवाँ , साईं बिन तरस तरस रही सोय।२।                                           

 पाँचों मार ,पचीसो बस कर , उनमें चहे कोई होय।३।                                                       

कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरु मिले सुख होय ।४।  ll                                            

ll  (83) ll


यहाँ यह लिखने की आवश्यकता नहीं है कि यह शब्द स्त्रियों के लिए विशेष रूप से नहीं है। केवल विरह- वेदना को एक उत्कट रूप में प्रकाशित करने के लिए इसमें स्त्रीलिंग का प्रयोग किया गया है। 

प्रेमीजन रात्रि के समय संसार के काम-काज से निवृत्त होकर अपने भगवंत के स्मरण में प्रवृत्त होता है और अंतरी दर्शन के लिए तड़पता है। दर्शन प्राप्त न होने पर उसके कलेजे में वेदना उठने लगती है। इसी वेदना की दशा का इस शब्द में वर्णन है।                                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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