Saturday, December 26, 2020

दयालबाग़ सतसंग सुबह 26/12

 **राधास्वामी!! 26-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                     

(1) नाम निर्णय करूँ भाई। दुधाबिधी भेद बतलाई।। सुरत ले गगन चढवावें। पिंड में सार बतलावें।।-(कहूँ क्या खोल राधास्वामी। सैन यह समझ परमानी।।)              (सारबचन- शब्द-पहला-पृ.सं.230-231)                                                     

(2) चरन गुरु हिये में रही बसाय।।टेक।। जग की आस बासना त्यागी। सतसंगत में रही चित लाय।।-(राधास्वामी महिमा किस बिधि गाऊँ। मुझ अनाथ को लिया अपनाय।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-9-पृ.सं.374)   

                                              

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-रोजाना वाक्यात- 30 मार्च 1933 -बृहस्पतिवार:-


लाहौर से एक मेहरबान लिखते हैं कि लोगों को नाहक राधास्वामी मत पर हमले करते देखकर तबीयत जोश में आ जाती है।  इसलिए इरादा किया है कि अवतार के दर्शन से वाकफियत पैदा करके उन लोगों का मुनासिब सुधार करूँ। मैंने जवाब में इनायत के लिए शुक्रिया अदा करते हुए दरख्वास्त की है अपनी वाकफियत के लिए आप बखुशी अवतार के फलसफा का मुतालआ करें लेकिन हमले करने वालों के समझाने और उन्हें सीधे रास्ते पर लाने की फिक्र छोड़ दें । क्योंकि मुमकिन है आप धोकर कोयले को सफेद कर दें मगर इन उलट बुद्धि वालों को रहे रास्ते पर लाना संभावना से बाहर है। दिल्ली से खत प्राप्त हुआ है ।

जिसमें लिखा है कि कुछ रोज हुए आर्य समाज( कॉलेज सेक्शन) के एक उपदेशक साहब ने लेक्चर देकर साबित किया कि राधास्वामी मत वाले नास्तिक है। मेरा जवाब यह है कि आर्य समाज के उपदेशक महाशय जो कुछ भी साबित कर दें कम है। इन बेचारों का न सच से वास्ता है न  जाँच से। इनका काम सिर्फ स्वार्थ के अनुसार बातें साबित करना है सो करते हैं। नास्तिक वह होता है जो मालिक की हस्ती से इनकार करने वाला हो।

 क्या हम मालिक की हस्ती से इंकार करें, जो लोग सच्चे मालिक के साक्षात्कार के लिए नित्य साधन करें, जो लोग मालिक के दर्शन की प्राप्ति अपनी जिंदगी का उद्देश्य कायम करें, और जो सब मजहबो  के रहनुमाओं को मुनासिब महत्व दें, ऐसों को नास्तिक करार देना बहादुरी का काम है:- ईं कार अज तो आयदोमर्दाने चुनीं कुनन्द- यह( अच्छा) कार्य तुम से आया और ऐसे ही मर्द लोग करते हैं।                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-【 शरण आश्रम का सपूत】

 कल से आगे

- प्रेमबिहारी-( मुस्कुरा कर)  मैंने " मैंने " कहा "तुमने" नहीं कहा। " तुमने" आपने कहा। गौहरे मकसूद मैंने पाया इसलिए मैंने "मैंने" कहा-" तुमने" नहीं कहा। 

काउन्टेस- इसी लिये लफ्जबन्दी सूझ रही है।

  प्रेमबिहारी-( डर कर)  क्या आपने बुरा माना?  मैं सच्चे दिल से माफी माँगता हूँ।

काउन्टेस- मैं हरगिज माफ न करूँगी। अच्छा देखो मैं अपना नाम बदला चाहती हूँ। क्या आप इसमें मेरी मदद करेंगे?

  प्रेमबिहारी- दिल व जान से ।क्या नाम रखना चाहती हैं ?

काउन्टेस- देखो तुमने वादा किया है -भूल मत जाना।

प्रेमबिहारी- हरगिज़ नहीं। 

काउन्टेस- मेरा क्रिस्चियन नाम "रीटा" है , मैं इसे 'रीटालाल' में बदलना चाहती हूँ। प्रेमबिहारी- इसमें कौन सी मुश्किल हायल है- मेरा नाम भी पहले                                          "

बिहारी" था।  शरण- आश्रम के मुन्तजिमान ने उसे "प्रेमबिहारीलाल" में तब्दील कर दिया।

  काउन्टेस-  यहाँ शरण- आश्रम कहाँ से आवे जो मेरा नाम तब्दील करें - यहाँ तो गिर्जाघर है- अगर तुम हस्बवादा मदद करो और मेरे हमराह गिर्जाघर चलो तो मेरा नाम बदल सकता है।

  प्रेमबिहारी - मैं हाजिर हूँ  हर तरह खिदमत करने को।

काउन्टेस- देखो! दोबारा झूठे न बन जाना।  प्रेमबिहारी- में पहले कब झूठा बना हूँ? काउन्टस- लो सुनो- थोड़ी देर हुई तुमने कहा था कि तुम्हें मेरी लुत्फभरी निगाहें बखूबी याद है और तुम मेरा समुंदर के किनारे वाले एहसान कभी नहीं भूलोगे।  प्रेमबिहारी- मैंने जरूर कहा था और फिर भी कहने के लिए तैयार हूँ। काउंन्टेस- क्या यही इंडियन शिवेलरी है कि एक शख्स तो तुम्हारी तरफ लुत्फभरी निगाहें मुखातिब करें और उसकी मदद से तुम्हारा गौहरे मकसूद तुम्हारे हाथ आ जाय और उस बेचारे का दामनेउम्मीद खाली रहे - क्या उसका कुछ हक नहीं है- और यही तुम्हारी याद है ? प्रेमबिहारी-(घबरा कर) वह बेचारा कौन है जिसके साथ मैंने ऐसी नाशायस्तगी से बर्ताव किया और उसका गौहरे - मकसूद क्या था? काउन्टेस-(आहिस्ता से आंखों में आँसू लाकर)  वह बेचारा शख्स रीटा है और उसका गौहरे मकसूद सीनियर प्रेमबिहारीलाल है।(काउन्टेस ने प्रेमबिहारीलाल का हाथ में हाथ पकड़ लिया। प्रेमबिहारी समझ गया काउन्टेस उसके साथ शादी किया चाहती है) क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज

-प्रेम पत्र- भाग 1-

 कल से आगे-

 इस रचना के होने में यह फायदा हुआ कि जो चैतन्य इस देश में माया से ढका हुआ अचेत पड़ा था, उसको सत्तलोक से जो धारे आई, उन्होंने तहों से जुदा करके और उसी तह यानी माया के मसाले का गिलाफ, जिसको देह कहना चाहिए, तैयार करके उसमें बिठाया और उसकी चैतन्य शक्ति को जो सोई पड़ी थी जगा कर उससे काम लेना शुरू किया। 

इस तरह जीवो को अपने निज भंडार यानी कुल मालिक की कुदरत का तमाशा देखने और जो जो सामान उसने पैदा किया उसके भोगने और रस लेने और फिर अपने मालिक की पहचान करने और उसका दर्शन हासिल करने का मौका मिला, यानी सतगुरु के वसीले से नीचे देश से ऊँचे देश में जाकर वहाँ के महाआनंद को प्राप्त होने का मौका और जरिया हासिल हुआ। जो काल पुरुष और माया प्रकट न होते तो सत्तलोक के नीचे त्रिलोकी की रचना भी कभी नहीं होती और यहाँ का चैतन्य सदा अचेत रहता। क्रमशः                           

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



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