Monday, December 14, 2020

 **राधास्वामी!! 14-12-2020-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

(1) मेरे प्यारे बहन और भाई। क्यों गफलत में रहो सोते। गुरु लेव सम्हारी।।टेक।। -(वहाँ से चल पहुँची निज धामा। प्यारे राधास्वामी दरश लखा री। उन चरनन पर बलिहारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-2-पृ.सं. 53,54)                                                        

 (2) स्वामी तुम अचरज खेल दिखाया।।टेक।। आगे बिथा कहूँ कस मुख से अचरज कल की माया। देख देख जग का ब्योहारा सरवन हाथ धराया।। -(लिपट रहूँ चरनन में तुम्हरे राधास्वामी जिन सरनाया। तुम बिन मीत न देखा जग में आँखू ढोल बजाया।।) (प्रेमबिलास-शब्द-107-पृ.सं.158,159)                                                 

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।                          🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!                                                   14- 12- 2020 -आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन -कल से आगे-( 85) इसी प्रकार एक और स्थान पर फरमाया है:-                                                            मैं तो चकोर चन्द राधास्वामी। नहीं भावे सतनाम अनामी।१२।                                  बिन जल मछली चैन न पावे। कवँल बिना अलि क्यों ठहरावे।१३।                           स्वाँति बिना जैसे पपिहा तरसे। सुतबियोग माता नहीं सरसे।१४।                                       अस अस हाल भया अब मेरा । कासे बरनूँ कोई न हेरा।१५।                                        दान देयँ तो दें राधास्वामी। और न कोई ऐसा अंतरजामी।१६।                                       ऐसी भक्ति होय इकरंगी। काटे बन्धन मन बहुरंगी।१७।                                     राधास्वामी राधास्वामी नित गुन गाऊँ। चरनसरन पर हिया उमगाऊँ।१८।                       भावार्थ- मेरा प्रेम राधास्वामी दयाल के चरणों में इस प्रकार का है जैसे चकोर का चंद्रमा से होता है । राधास्वामी कुलमालिक के अतिरिक्त और जितने चेतनमंडलों के धनी सत्तनाम, अनामी आदि है उनके लिए मेरे हृदय में कोई प्रीति नहीं रही। जैसे पानी के बिना मछली तड़पती है और जैसे कमल के बिना भँवरे को शांति नहीं आती है, जैसे स्वाति- बूँद के लिए पपीहा तरसता है और जैसे बच्चे के पृथक होने पर माता का चित्त व्याकुल रहता है, ऐसे ही राधास्वामी दयाल के दर्शन के बिना मैं भी व्याकुल और बेहाल हूँ।  मैं अपनी व्यथा का वर्णन किससे करूं? कोई इस व्यथा की यथार्थता समझने वाला दृष्टिगत नहीं होता। राधास्वामी दयाल ही अनुग्रह करें तो मेरा निर्वाह हो अन्यथा दूसरा कोई मेरी दशा को समझ नहीं सकता। ऐसी एकरंगी अर्थात अनन्यभक्ति करके मैंने अपने बहुरंगी (भाँति भाँति के रंग धारण करने वाले)  मन के बंधन काट डाले हैं। अब मैं दिन-रात राधास्वामी नाम की रटना करता हूँ और हृदय में उनकी चरण- शरण के संबंध में भाव उठाकर मग्न और प्रफुल्लित होता हूँ।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                              यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहिबजी महाराज!**

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