Wednesday, December 9, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 09/12

 **राधास्वामी!! 09-12-2020-

 आज शाम सतसंग में पढे जाने वाले पाठ:-   

                     

  (1) भागो रे जग से अब भागो।।टेक।। भूल भरम गफलत अब छोडो। जागो रे गुरु से मिल जाग़।।-(राधास्वामी दया संग ले अपने। सूरत शब्ल अधर में राखो।।(प्रेमबानी-4-शब्द-2-पृ।सं.48,49)                                                    

 (2) साँईं मोहि नाम लगा भल तेरा जिन मन बस कीन्हा मेरा।।टेक।। दिन केते और मुद्दत केती जतन किये मैं साझँ सवेरा। कोइ बिधि यह मन तज बिषयि रस निज घट करे बसेरा।।-(पट खोले बन से चल आये जब बीती कुछ देरा। यह चँचल सब कौल भुलाना भोगन का हुआ चेरा।।) (प्रेमबिलास- शब्द-106-पृ.सं.152-153)                                                 

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।                        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!-    

                                      

  09- 12- 2020- आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन -कल से आगे-( 79)- जब गुरु अर्जुन साहब ने बाल्यावस्था में लाहौर से गुरु रामदास साहब को निम्नलिखित कड़ियाँ लिख कर भेजी थी उस समय आपके हृदय में गुरु रामदास साहब की अनन्यभक्ति ही की ज्वाला प्रचण्ड हो रही थी । आप पहले मूल शब्द पढें पीछे उसके अर्थ पर विचार करें।                                ●●शब्द●●                                            

   मेरा मन लोचे गुरु दर्शन ताईं। बिलप करें चातृक की न्याईं। तृखा न उतरे शांति न आवे। बिन दर्शन संत पियारे जीउ। हौं घोली जीउ घोल घुमाई। गुरु दर्शन संत पियारे जीउ।।१।।                                                  तेरा मुक्ख सुहावा जीउ, सहज धुन बानी। चिर होया देखे सारंग पानी। धन सो देस जहाँ तू वस्या। मेरे सज्जन मीत मुरारे जीउ। हौं घोली हौं घोल घुमाई। गुरु सज्जन मीत मुरारे जीउ।।२।।                                                        एक घड़ी न मिलते ताँ कलजुग होता । हुण कद मिलिये प्रिय सुध भगवंता । मोहि रैन न बिहावे नींद न आवे। बिन देखे गुरु दरबारे जीउ। हौं घोली जीव घोल घुमाई। तिस सच्चे गुरु दरबारें जीउ।।३।।                                भाग होया गुरु संत मिलाया।  प्रभ अविनाशी घर में पाया। सेव करी पल चसा न बिछडा। जन नानक दास तुम्हारे जीउ। हौं घोली जीउ घोल घुमाई । जन नानक दास तुम्हारे जीउ।।४।।                                                                  भावार्थ :- मेरा मन गुरु महाराज के दर्शन के लिए तड़पता है । जैसे चातक या पपीहा स्वातिबूँद के लिए बिलाप करता है ऐसे ही मेरा मन गुरु- दर्शन के लिये पुकारता है।  बिना प्यारे संत सद्गुरु का दर्शन प्राप्त किये न मेरी प्यास बुझ सकती है न मुझे शांति प्राप्त हो सकते हैं । मैं बलिहार हूँ, मैं प्यारे संत सतगुरु के दर्शन पर बलिहार हूँ।।१।।                                           आपका मुखारविंद अत्यंत सुंदर है। आपके अमृतमय वचन परम शांतिदायक है। मुझ सारंग को जलरूपी गुरु महाराज का दर्शन किये बहुत समय बीत गया है । धन्य है वह देश जहाँ आप बसते हैं । हे मेरे सतगुरु, मित्र और प्रभु ! मैं बलिहार हूँ, मैं अपने सतगुरु, मित्र और प्रभु पर बलिहार हूँ।।२।।                                        आपसे एक घड़ी का वियोग कलियुग के समान है। हे मेरे प्यारे प्रभु!  अब आपके चरणों का दर्शन कब प्राप्त होगा? मेरी रातें नहीं कटती है। आपके दरबार का दर्शन किये बिना एक क्षण के लिए नींद नहीं आती।  मैं बलिहार हूँ मैं सतगुरु के दरबार पर बलिहार हूँ।।३।।                                                            आज मेरा बड़ा भाग जागा है कि मुझे संत सतगुरु के दर्शन प्राप्त हुए और घर ही में अविनाशी प्रभु मिल गया । अब अभिलाषा यह है कि मैं दिन रात आपकी सेवा करूँ। और आपके पवित्र चरणों से एक क्षण के लिए पृथक न होऊँ। मैं आपका दास हूँ, मैं बलिहार हूँ, मैं आप पर बलिहार हूँ। मैं आपका दास हूँ।।४।।     

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

 -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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