Sunday, March 28, 2021

फागुन मास रँगीला आया.........

 *🌹🌹फागुन मास रँगीला आया। घर घर बाजे गाजे लाया।।

 यह नरदेही फागुन मास। सुरत सखी आई करन बिलास।।

तुझ को फिर कर फागुन आया। सम्हल खेलियो हम समझाया।।


होली के पावन अवसर पर समस्त सतसंग जगत  प्राणी मात्र को अनेकानेक बधाई।

हुजूर राधास्वामी दयाल समस्त जीवों को स्वार्थ व परमार्थ की तरक्की की दात बख्शे। यही प्रार्थना उन दयाल के चरन कमलों में हम सब तुच्छ जीव पेश करते है। राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय!                                        

 स्मारिका:-

परम गुरु हुजूर सरकार साहब- (23)- एक बार होली के त्यौहार पर सरकार साहब अपने साथ एक छोटी सी चांदी की पिचकारी और चांदी का  एक कटोरा लेते गए। उन्होंने केसर  को पानी में घोलकर रंग बनाया और उससे कटोरा भर लिया और उसको श्री प्रेम प्रसाद सेक्रेटरी की मार्फत महाराज साहब की खिदमत में इस प्रार्थना के साथ पेश किया कि यह रंग सत्संगियों पर छिडका जाए।

महाराज साहब ने वह रंग कुछ सतसंगियों पर छिड़का और फिर फरमाया- "अरे! मेरी उंगलियों में तो दर्द होने लगा" और पिचकारी को रख दिया ।सतसंगियों ने इसे मजाक समझा और हंसने लगे परंतु महाराज साहब के इस कथन पर सरकार साहब दुखी हुए। जब वे रात को आराम कर रहे थे, गाजीपुर के एक सतसंगी ने सरकार साहब से पूछा- "क्या वास्तव में छोटी सी पिचकारी से रंग फेंकने से महाराज साहब को दर्द मालूम होने लगा?"

सरकार साहब ने इस प्रश्न की ओर कुछ ध्यान नहीं दिया परंतु जब उस सतसंगी ने जवाब देने के लिए जोर दिया तो सरकार साहब ने फरमाया यह छोटी बात नहीं है।  जब संतों की तवज्जो की धार पूरी तरह से ऊपर की जानिब उलट जाती है, उनका शरीर बहुत कोमल और नाजुक हो जाता है।निस्संदेह जब उनकी तवज्जुह बाहर की जानिब रवाँ होती है तब वे सख्त काम कार्य करते हुए भी कभी दर्द महसूस नहीं करते।।**                                                                           

  *🌹परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज की डायरी -भाग 1- 5 मार्च 1931- बृहस्पतिवार:-

दयालबाग में होली का त्यौहार हस्बेमामूल प्रेम वह उत्साह के साथ मनाया गया। दोपहर को मुख्तसर भंडारा हुआ जिसका सर्फा का सत्संगियान हाजिरुलवक्त से अदा किया।

 रात के सत्संग में बयान किया गया कि दुनिया के इंतजामात इस किस्म के हैं कि उनसे इंसान के दिल में खुदगर्जी व तकक्बुर पैदा होते हैं। मसलन हर शख्स अपने जिस्म ,अपने मकान ,अपनी आमदनी, अपनी जायदाद, अपनी बीवी, अपने बच्चे, अपने खानदान ,अपने शहर अपने सूबे, अपने मुल्क वगैरह वगैरह के मुताल्लिकक जज्बात उठाता है।

यह जज्बात उसके दिल को तंग करते हैं और उसे मिलकर काम करने के नाकाबिल बनाते हैं नीज हर शख्स को अपने जिस्म इल्म दौलत वगैरह का अहंकार हो जाता है। जिससे और भी जिंदगी बिगड़ जाती है। इसलिए हमेशा से यह दस्तूर रहा है कि हर एक कौम के बुजुर्ग त्योहारों के जरिए इन जज्बात के जहरीले असरों को दूर करते आए हैं।

 त्योहार के दिन बड़े छोटे, अमीर गरीब, पढे अनपढ़, गोरे व काले हर किस्म की तफरीक़ को भुला कर एक खानदान के मेंमबरों की तरह मिलकर खुशी मनाते हैं जिससे लोगों के दिलों में खुदगर्जी ब खुदपरस्ती के बजाएं कौम परस्ती का जज्बा पैदा होता है।

चुनाँचे सत्संग मंडली के अंदर भी त्यौहार मनाने का रिवाज इसी गरज से जारी किया गया है।                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

*【होली】      

                                            

   परमपिता स्वामीजी महाराज की बानी में आया है :-                                             

'फागुन मास रंगीला आया।' 'घर घर बाजे गाजे लाया।'                                            

और भी फरमाया है:-                               

'यह नर देही फागुन मास। सुरत सखी आई करन बिलास ।।'                                      

उसी शब्द में आगे यों भी फरमाया है:- 'तुझ को फिर कर फागुन आया। सम्हल खेलियो लिए हम समझाया।।'                                     

  गोया संतो ने फागुन मास नर-देह से उपमा देकर उसकी खास महिमा फरमाई है और निहायत मुनासिब, क्योंकि इस परम उत्तम देह में, जिसमें आदि से अंत तक के द्वारे मौजूद हैं और जिसमें अनन्त शब्द झंकार कर रहे हैं और नित्य आरती हो रही है और जिसमें बैठकर सुरत पर बिलास को प्राप्त हो सकती है , ऐसी महा अचरजी और सुखदायक वस्तु की उपमा साल के सबसे बढ कर आनंद और बिलास भरे मास से ही दी जा सकती थी।

 इससे बेहतर उपमा का अनुमान भी नहीं हो सकता। मगर साथ ही साथ जैसा कि तीसरी कड़ी मजकूराबाला में फरमाया है यह हिदायत की कि ऐसी उत्तम देह पाकर सम्हलल के इस संसार में खेलना, तब निर्मल विलास प्राप्त हो सकता है।

मतलब यह कि जो देह धारण करके संसार के कीचड़ व गलीज में ऐसी उत्तम अवस्था को खो देते हैं, वे अंत को महा दुःख को प्राप्त होते हैं जैसा कि उसी शब्द बारहमासा में फरमाया है :-                  "

धूल उड़ाई छानी खाक। पाप पुण्य सँग हुई नापाक।।७।।                                                

   इच्छा गुन सँग मैली भई । रंग तरंग बासना गही।।८।।                                                  

  फल पाया भुगती चौरासी  काल देश जहाँ बहु तरासी।।९।।                                      

आस तिरास माहिं अति फँसी।-देख देख तिस माया हँसी।।१०।।                                  

हँस-हँस माया जाल बिछाया। निकसन की कोई राह न पाया।।११।।                             

तब संतन चित दया समाई। सत्यलोक से पुनि चली आई।।१२।।                                   

 ज्यों त्यों चौरासी से काढा। नरदेही में फिर ला डाला।।१३।।                                                   

चरन प्रताप सरन में आई। तब सतगुरु अतिटर समझाई।।१४।।                           

   तुझको फिर कर फागुन आया। सम्हल खेलियों हम समझाया ।।१५।।                     

 लेकिन अगर ऐसे समय में मालिक की भजन बन्दगी,सेवा, सत्संग, गुरु -भक्ति वगैरह का रंग खिले और जीव इस तरह पर अपनी अनमोल देह को सफल करें, तो यहाँ भी आनंद और अंत को चरणों का परम बिलास पाकर अमर सुख को प्राप्त हो जावे।।                                                               

  यह तो वर्णन जीवो की अंतरी कार्रवाई का हुआ। इस नवीन उपमा के अनुसार स्वभाविक ऐसा ही होना चाहता था कि जहाँ संसारी जीव इस उत्तम समय होली को महा अपवित्र और नीरस कामों में आमतौर पर खोया करते हैं, उस समय पर भक्तजन अपने परम हितकारी संत सतगुरु के हुजूर में बैठ कर नवीन रस आनंद और बिलास करें।

चुनाँचे मौज से ऐसा ही सदा से राधास्वामी पंथ में होता आता है, यानी तातील होने के सबब प्रेमीजन जहाँ-तहाँ से हमेशा से हुजूरी दरबार जमा होकर चरणों का रस और आनंद लेते आये हैं। चुनाँचे इस साल भी होली तारीख 23 मार्च सन 1913 ईस्वी को वाकै हुई। दूर दराज के करीब पाँच छः सौ के प्रेमिजन बड़े उमंग और उत्साह से दरबार में हाजिर होकर मालिक की भजन- बन्दगी और सत्संग में मशरूफ रहे।

जो छबि सत्संग में उन वक्त मालिक ने दया करके पर प्रगट फरमाई और जो आनंद और सरूर पाठ में निहायत गैरमामूली बख्सा उसकी कैफियत हाजरीन दरबार ही जानते हैं, वर्णन नहीं हो सकती।

 हजारहा हजार शुक्र उस मालिक का है कि ऐसे समय पर, जबकि संसारियों की तवज्जुह मुजिर जानिब होती है, हम भक्त जनों को अपने चरणों में खींच कर अपार दया मेहर फरमाकर अपूर्व आनंद और रस से सरशार और माला माल फरमा दिया।( प्रेमसमाचार-परम गुरु हुजूर सरकार साहब!)                                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

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