Monday, March 29, 2021

सतसंग RS सुबह 30/03

 **राधास्वामी!! 30-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-                                   

(1)  प्रेमी सुनो प्रेम की बात।।

 सेवा करें प्रेम से गुरु की।

 और दर्शन पर बल बल जात।।

-(राधास्वामी कहत सुनाई।

 अब सतगुरु का पकडो हाथ।।)

(सारबचन-शब्द-10-पृ.सं.190,191)                                                     

(2) गुरु प्यारे चरन रचना की जान।।टेक।।

आदि धार चेतन जो निकसी। उसने रची सब रचना आन ।।-

(राधास्वामी मेहर करें जब अपनी।

निज सरुप घट में दरसान।।)

 (प्रेमबानी-3-शब्द-10-पृ.सं.17)                        

  सतसँग के बाद:-                                             

(1) राधास्वामी मूल नाम।                                     

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                        

  (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

 (प्रे.भा. मेलारामजी)                                          

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरू हुजूर मेहताजी महाराज

- भाग 1- कल से आगे :-

 फरमाया - यदि इस शब्द के तीसरे व चौथे हिस्सों को सातवें के साथ मिला कर पढ़ा जाय तो आपकी समझ में आ जायगा कि ये ममता और मोह क्या है जिनसे नाता तोड़ने और छुटकारा प्राप्त करने के लिए सत्संग में शामिल हुए और सत्संग में शामिल होने से कौन से बँधन टूटते हैं । यदि सब टूट जायँ तो सच्चे सत्संग की महिमा समझ में आ जाय।

इस समय यही बातें हमारी परेशानी और दुःख का कारण बन रही है। ये ही बातें हैं जिनकी याद आ जाने पर मनुष्य राधास्वामी धाम की ओर जाने से रुक जाता है । अगर औरतों व मर्दो के जीवन का एक लक्ष्य हो कि वह शीघ्र से शीघ्र संसार से छुटकारा प्राप्त करके राधास्वामी धाम में पहुंचे तो उनके इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और आपस में यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए यदि उनमें से कोई राधास्वामी धाम जाने की तैयारी करें या रवाना होने लगे तो दूसरा उसको प्रसन्नता से जाने दे बल्कि उसको यह भरोसा दिलाये कि घर की जिम्मेदारी और घर के दूसरे कामों की देखभाल बाकी बचे हुए कुटुंबी कर लेंगे।

विदा होने वाली सुरत उसकी कोई चिंता न करें और धैर्य से यहाँ से रवाना हो। क्या ये अच्छा हो कि अगर इस तरह से मनुष्य एक दूसरे को जाने की आज्ञा खुशी से दे दे और इतमीनान से जाने का प्रबंध कर दें।

 आप लोगों के दिल में असली हमदर्दी हो और यह विचार हो तो जितनी ही जल्दी हो दूसरे को छुटकारा मिल जाए तो क्या ही अच्छा हो। फिर आपके दिल मैं बंधन क्यों रहे और इस विश्वास के अनुसार विदा करने में क्या हर्ज है। तब बिनती पढी जाने लगी:-                                                        

 दया धार अपना कर लीजे।                             

 काल जाल से न्यारा कीजे।।                     

सतजुग त्रेता द्वापर बीता।                       

   काहू न जानी शब्द की रीता।।                     

 कलयुग में स्वामी दया बिचारी।                   

  परघट करके शब्द पुकारी।।                 


फरमाया- तीन युगों के बीत जाने के बाद इस युग में यह प्रबंध हुआ कि जीव संसार के बंधनों को तोड़कर मुक्ति प्राप्त करें। जब तक बंधन है उस समय तक कष्ठ है, परंतु यह बंधन ही न रहे तो फिर कोई जहाँ भी चाहे चला जाय। चाहे परदेश जाय चाहे कोई और, कोई चिंता और दुःख नहीं होगा।

 जब काल के जाल से न्यारा होने और मालिक के हुजूर में अपनाए जाने की प्रार्थना की जाती है तो फिर ऐसे समय आने और विदा होने के समय हम को प्रसन्नता से एक दूसरे को विदा करना चाहिए।।                                          

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -[भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे :- 

                                                              

 पेडों में मैं पीपल हूँ, देवर्षियों में नारद हूँ, गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्धों यानी कामिल पुरुषों में मैं कपिल मुनि हूँ।

मुझे घोडों में अमृत से पैदा हुआ उच्च:श्रवा और टावर और महाकाय हाथियों में एरावत जानो। इंसानों में राजा हूँ, शास्त्रों में वज्र हूँ, गौओं में कामधेनु हूँ और संतान उत्पन्न करने वाला कामदेव हूँ। साँपो में वासुकि हूँ, नागों में मैं अनंत नाग हूँ, जलचरों में वरुण हूँ, और पितरों में अर्यमा हूँ। दंड  देने वालों में यमराज हूँ, दैत्यों में प्रहलाद हूँ और गिनती करने वालों में कार (क्षण वगैरह) हूँ। जगंली जानवरो में शेर हूँ और परिन्दो में गरूड हूँ।

【30】                                               

       शुद्ध करने वालों में हवा हूँ, और शास्त्रधारियों में राम हूँ। मछलियों में मगरमच्छ और नदियों में गंगा हूँ। सृष्टियों का मैं ही आदि, अंत और मध्य हूँ। विद्याओं में आत्मविल्या हूँ और वक्ताओं में मैं वाक्शक्ति   हूँ। अक्षरों हर्फों में मैं अकार हूँ  और सब समासों में द्वन्द समास हूँ। मैं ही अखंड (अटूट)  काल (जगत् का समेटने वाला) हूँ  और मैं ही चारों तरफ (निगाह) रखने वाला सब का सहारा हूँ।

 सबको हडप कर जाने वाली मृत्यु मैं हूँ, सब प्रकट होने वाली वस्तुओं का स्रोत( निकास) मैं हूँ। स्त्रीवर्गी गुणों में से कीर्ति, लक्ष्मी , वाणी , स्मृति , बुद्धि ,घृति और क्षमा हूँ। सामों मै मै वृहत् साम हूँ, छन्दों में गायत्री हूँ, महीनों में अगहन और मौसिमों में बसंत हूँ।

【 35】                   

क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज-प्रेम पत्र - भाग-1-

 कल से आगे:-( 8)-

वाचक ज्ञानी और सूफी:-                                                                        

इन लोगों से भी राधास्वामी मत के अभ्यासियों को मेल रखना मुनासिब नहीं है, क्योंकि इन साहबो ने बचन सच्चे पूरे ज्ञानियों के पढ़ कर और अपनी एकता ब्रह्म के साथ बुद्धि से मान कर अभ्यास छोड़ दिया। और जो कोई इनको मिलता है उसको एक ताई के बचन सुना कर सबको समझा कर ब्रह्म बना देते हैं और चौरासी और नरकों के डर से आजाद कर देते हैं ।                                                   

(9)- जो कोई संतमत के मुआफिक इनसे अभ्यास की निस्बत चर्चा करें और दरियाफ्त करें कि तुमको ब्रह्म पद की प्राप्ति किस तरह हुई , तो जवाब देते हैं कि जाना आना कहाँ है, ब्रह्म सब जगह व्यापक है और देह और जिस कदर नाम रूप की चर्चा रचना नजर आती है सब मिथ्या और भरम है । सिर्फ इसी कदर काम करना है कि ज्ञान के बचन को अच्छी तरह से समझ कर अपने तई ब्रह्म मानना, इसी निश्चय को पकाना और मजबूत करना और मन और इंद्री और देही और सब पदार्थों को जड़ समझना।।                                   

  इन सबसे ब्रह्म न्यारा है और निर्लेप है और पाप और पुन्य उसको नहीं लगते या छू सकते हैं। और जब ऐसा निश्चय पुख्ता हो गया, तब विदेह मुक्ति का अधिकारी हो गया, यानी जब देह छूटेगी तब अपने निश्चय के मुआफिक जीव चैतन्य देही वगैरह के बंधन से छूट कर व्यापक चैतन्य से मिल जावेगा।

 क्रमशः                                                        

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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