Friday, March 26, 2021

सतसंग सुबह RS 27/03

 **राधास्वामी!! 27-03-2021- आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-                                       

(1) दुल्हनी करो पिया का सँग।।टेक।।

दुलहा तेरा गगन बसेरा। तू बसे नइहर अंग।।-

(राधास्वामी पता बताया। चढ चल पकड तरंग।।)

(सारबचन-शब्द-25-पृ.सं.399,400:- तिमरनी ब्राँच-53 उपस्तिथि!)      

                                              

 (2) गुरु प्यारे सुनो फरियाद मेरी।।टेक।।

इस मन से मैं हार गई अब। बचन सुने नहिं चित्त धरी।।-

(राधास्वामी बिन कोई नाहिं सहाई।

उनके चरन लग आज तरी।।)

 (प्रेमबानी-3-शब्द-8-पृ.सं.16)                             

 सतसँग के बाद:-                                                 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                  

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                 

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन अहा हा हा ओहो हो हो।।

 (प्रे.भा. मेलारामजी)                                           

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -

भाग 1- कल से आगे :-

दूसरी शिक्षा हमारे लिए बहुत फायदेमंद है। वह यह है कि जब कोई सुरत हमसे विदा हो रही हो तो बजाय इसके कि हम उसके विदा होते समय शोर व गुल व रो धो करके उसकी अंतिम घडियों में उसे परेशान करें और अपने ,दिमाग और सेहत पर उस रंज व शोक का बुरा असर आने दें l

हमको तो सत्संग के दृष्टिकोण से खुश होना चाहिए कि अब वह सूरत जिसकी देखभाल व जिम्मेवारी अभी तक हमारे सुपुर्द की गई थी , विदा होकर हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में जा रही है । इसके बाद हमको इसकी कोई चिंता नहीं करनी पड़ेगी। इसलिए आप लोगों को अपने घर के किसी शख्स या अजीज के मरने पर रंज व अफसोस नहीं करना चाहिए ।

इसके बाद हुजूर ने प्रेमी भाइयों और प्रेमिन बहनों से बारी-बारी से पूछा कि आप लोगों में से कौन ऐसे बहादुर हैं जो सत्संग के इस लक्ष्य को अपने सामने रखकर अपने अजीज या रिश्तेदार के मरने पर रंज या अफसोस नहीं करेंगे?

इस समय स्त्रियों व पुरुषों ने बड़ी तादाद में हाथ उठाकर प्रकट किया कि वे सतसँग की इस शिक्षा को समझ गए हैं और इस पर अमल करेंगे। फरमाया -जो समझौती आपको मुद्दत से मिली है उसको अगर आपने अभी तक नहीं समझा या समय आने पर उस पर चलना नहीं सीखा तो फिर आप काहे के सत्संगी हैं।

 केवल उपदेश ले लेने, भेंट करने और सतसँगियों की फेहरिस्त में नाम लिखाने से आप सच्चे सत्संगी नहीं हो सकते ।आप भेंट न करें लेकिन आप का ढंग सत्संग की शिक्षा के मुताबिक होना चाहिए।

 यदि आप का ढंग सत्संग की इस पवित्र शिक्षा के मुताबिक नहीं है, तो फिर आपके सुमिरन, ध्यान, और भेंट की रत्ती भर भी कदर नहीं हो सकती। इसके बाद हुजूर ने पुरुषों व स्त्रियों से दोबारा पूछा कि अगर आपकी कोई संतान ,आपका प्यारा ,स्त्री या पुरुष अचानक मर जाय तो आप लोगों में से कौन लोग ऐसे हैं जो इसको प्रसंता के साथ बर्दाश्त कर लेंगे और तबीयत पर जहाँ तक हो सकेगा मलाल नहीं आने देंगे? लोगों ने बड़ी तादाद में हाथ उठाया ।                          

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]-

कल से आगे:-              

 उनके आत्मा के अंदर निवास करता हुआ केवल उन पर तरस खाकर मैं ज्ञान के दीपक से उनका अज्ञान से पैदा होने वाला अंधेरा नष्ट कर देता हूँ।                                        

   अर्जुन ने कहा -महाराज ! आप परब्रह्म है, परमधाम है, परम पवित्र है, सनातन, अजायब पुरुष है, आदि देव है, अजन्मा सर्वव्यापक है-सब के सब ऋषियों ने आपकी स्तुति इन्हीं विशेषताओं द्वारा की है। देवर्षि नारद, असित, देवल और व्यास भी यही कहते हैं और अब आप भी श्रीमुख से ऐसा ही वर्णन करते हैं।

हे केशव! मैं आपके वचनों का हर एक शब्द सही मानता हूँ। आपकी व्यक्ति (शख्सियत) को न देवता समझते हैं न दानव। हे पुरुषोत्तम! सच तो यह है कि आप स्वयं अपने आपको जानते हैं। आप भूतों के भंडार हैं और मालिक हैं, आप देवताओं के देवता और जगत् के स्वामी हैं।

【15】                                      

  क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-(५) -

 मुद्राओं का साधन करने वालों से बर्ताव:-                                              

 इन लोगों में से दृष्टि और शब्द का साधन करने वाले बेहतर हैं, पर उनका भी अभ्यास सहसदलकँवल के नीचे खत्म हो जाता है और आइंदा का भेद और पता उनको मालूम नहीं है।

और शब्द और स्वरूप का अभ्यास इन्होंने सिर्फ मन के एकाग्र करने और ठहराने के वास्ते जारी रक्खा है, चढ़ाई बिल्कुल नहीं है। और न शब्द और शब्दी का भेद बयान करते हैं और न उसका खोज और तलाश है। इस वास्ते इन लोगों के साथ भी राधास्वामी मत के अभ्यासियों का मेल नहीं हो सकता।

 यह सब लोग थोड़ा थोड़ा आनंद पाकर और कुछ प्रकाश देख कर तृप्त हो गये और बसबब न मिलने पूरे गुरु के इतने ही में इस कदर अहंकार इनको हो जाता है कि इससे ज्यादा कभी सुनना और समझना और उसके मुआफिक करनी करना नहीं चाहते । और जो ऊँचे का भेद मुआफिक संत मत उनको सुनाया जावे, तो हँसी करने को तैयार हो जाते हैं ।

 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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