Monday, March 15, 2021

सतसंग सुबह RS-DB 16/03

 **राधास्वामी!!16-03-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-       

                               

(1) घामर घूमर करुँ आरती। स्वामी हुए दयाल जी।।-(खफा होव तो रुसूँ नाहीं। चरन तुम्हारे पकड रहूँगी।।) (सारबछन-शब्द-14-पृ.सं.581,582-नोयडा ब्राँच-199 उपस्थिति)                                    

(2) ज्ञान तज भक्ति पंथ सम्हार।।टेक।। बाचक ज्ञान कुछ काम न आवे। मन में बढे थोथा अहंकार।।-(मन इंद्री की गति नहिं जानी। भरम रहे वे माया लार।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-12-पृ.सं.9)                                                                 

  सतसंग के बाद:-                                            

   (1) राधास्वामी मूल नाम।                              

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                            

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।                             

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-

 भाग 1- कल से आगे:-


 इसके बाद मौज से शब्द निकलवा कर पढवाये गये। शब्द ये हैं :-     

आज मैं देखूँ घट में तिल को। लगीं यह बतियाँ प्यारी दिल को।।( सारबचन, वचन 34, शब्द-8,)                                         सतगुरु प्यारे ने निभाई खेप हमारी हो।                                                    

 (प्रेमबानी, भाग-3,- वचन 12 शब्द 31)                                                               

देखन चली बसंत अगम घर । देख देख अब मगन भई ।।

 (सारबचन ,वचन 39, शब्द 4)


मौज से निकले हुए शब्दों के बाद हुजूर ने डिप्टी साहब से पूछा कि 'कहिए, आपकी घबराहट अब दूर हुई या नहीं।' डिप्टी साहब ने कहा ,अब मेरे हृदय में बहुत धैर्य व संतोष है।'  इस पर हुजूर ने डिप्टी साहब को खड़ा करके फरमाया कि आप तमाम सत्संग में जोर से आवाज देकर  कहें। कि' अब मेरी घबराहट दूर हो गई।' डिप्टी साहब ने ऐसा ही किया। हुजूर ने  दया करके डिप्टी साहब से हाथ मिलाना चाहा परंतु उन्होंने आग्रह करके हुजूर के चरण छूने की फिर आज्ञा मांगी। हुजूर पुरनूर ने इस पर यही फरमाया कि आपसे हाथ मिला कर मुझे जो प्रसन्नता होती उससे आपने मुझको महरूम कर दिया। इस समय जो बचन निकला उसमें लिखा था- जो लोग इस तरह भटक रहे हैं और बेचैन हैं उसकी वजह यही है कि उनको सच्चे सतगुरु नहीं मिले यानी सतगुरु के चरणों में हाजिरी देते हुए भी उनके ऊपर पूरा विश्वास नहीं आया।

क्रमशः                            

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

[भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे :-                

   इसी गुप्त अवस्था को अक्षर (अविनाशी) कहा गया है और इसी को परमगति( सबसे ऊँची मंजिल) कहते हैं ।जो यहाँ पहुँच जाते हैं फिर संसार में वापस नहीं आते और यही मेरा परमधाम है। इस परम पुरुष तक रसाई उस ही की अनन्य भक्ति से हासिल होती है।

 सब सृष्टि उसी में कायम है और वह इस कुल जगत के अंदर व्यापक (फैला हुआ) है । अब मैं यह बयान करता हूँ कि किस मौके पर मरने से योगी वापिस नहीं आते और किस मौके पर मरने से वापस आते हैं । जब ब्रह्मज्ञानी मर कर आग, रोशनी , दिन, शुक्लपक्ष और सूर्य के उत्तरायण रहने के छः महीने वाले रास्ते से जाता है तो ब्रह्म ही में पहुँचता है।

 और जब धुएँ,रात, कृष्णपक्ष और सूर्य के दक्षिणायन रहने के 6 महीने वाले रास्ते से जाता है तब योगी चंद्रलोक की ज्योति को प्राप्त हो कर संसार में वापिस आता है।

【 25】                                     

  शुल्क (रोशन) और  कृष्ण (तारीक) से ये जगत् के दो सनातन रास्ते माने जाते हैं। एक से जो जाता है वापस नहीं आता। और दूसरे से जो जाता है वापिस आता है। इन रास्तों को जानने के बाद योगी कभी गलती नहीं करता, इसलिये तुम्हें हर वक्त योगयुक्त (होशियार) रहना मुनासिब हैं।।

                         

 इस उपासना को जान कर योगी वेदों में पुण्य- कर्मों ,यज्ञ, तप और दान के संबंध में बयान किये हुए सब फलों को ठुकरा कर परम और आद्य( सबसे ऊँचे और सबसे अव्वल) स्थान में पहुंच जाता है ।

【28】 क्रमशः                             

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-

कल से आगे:-  

                                         

 (2)-सुरत शब्द मार्ग के अभ्यासी को घबराहट के साथ जल्दी करना या निराश होकर अभ्यास छोड़ देना, किसी सूरत में मुनासिब नहीं है।।                                        

 देखो दुनियाँ में जिस काम का जिसको सच्चा सुख होता है वह उसको थोड़ा या बहुत दुरुस्ती के साथ अंजाम देता है और कोई विघ्न या जाहिरी तकलीफ उसको उस काम के करनेे से रोक नहीं सकती, बल्कि जो मेहनत और तवज्जह वह उस काम के करने में करता है, उस मेहनत में उसको रस आता है और वह नागवार नहीं मालूम होती और चाहे जिस कदर उस काम के पूरे होने में देर लगे, वह जल्दी के सबब से निराश होकर उसको नहीं छोड़ता है।

इसी तरह परमार्थ के अभ्यासियों को मजबूती के साथ अपना अभ्यास जारी रखना चाहिए और जो प्रतीति के साथ एक दिन दया जरूर होगी इस काम को प्रीति करे जावेगा, तो वह कभी खाली नहीं रहेगा और राधास्वामी दयाल उसको जब तक जैसा जैसा मुनासिब समझेंगे दया करके अंतर में रस और आनंद बख्शते जावेंगे।

क्रमशः      🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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