Tuesday, March 30, 2021

सतसंग RS 31/03

 **राधास्वामी!! 31-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-     

                           

  (1) गुरु तारेंगे हम जानी।

तू सुरत काहे बौरानी।।-

चढ बैठो अगम ठिकानी। राधास्वामी कहत बखानी।।)

 (सारबचन- शब्द-15-पृ.सं.361,362-

गुटइया ब्राँच कानपुर-161 उपस्थिति!) 

                     

 (2) गुरु प्यारे चरन का लाऊँ ध्यान।।टेक।। मध और सुरत जमा हर द्वारे। धुन घंटा सुन अधर चढान।।-(शब्द धार चढ निज घर आई। राधास्वामी चरन समान।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-11-पृ.सं.17,18)                                                 

  सतसँग के बाद:-                                                  (

1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                      

  (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।                                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहतजी महाराज -

भाग 1- कल से आगे:-( 55 )-

24 मई 1941 को शाम के सत्संग में 'सत्संग के उपदेश' भाग 1 से बचन नंबर 32,"शुभ कर्म की असलियत' पढ़ा गया। बचन समाप्त होने पर हुजूर ने फरमाया- अक्सर इस वक्त तक लोगों का ख्याल ऐसा है कि अच्छा कर्म नेकनियती पर निर्भर है। कोई कर्म न बुरा है और न भला बल्कि करने वाले की नियत देखनी चाहिए। अगर कोई कर्म नेकनीयती से किया जावे तो भला है और अगर बदनीयती से किया जाय तो बुरा है। लेकिन इस बचन में आगे चलकर जो लिखा है वह इस यकीन को बहुत कुछ, बहुत कुछ क्या बिल्कुल बदल देता है।

इसकी रोशनी में आप बतालाइये कि क्या अभ्यास युक्ती बताना या बचन कहना लाजिमी तौर पर अच्छा कर्म है इस बचन में बताया गया है कि नेक नियति से किया हुआ कर्म, जरूरी नहीं कि फायदेमंद ही हो। इसलिए उपदेश देने और बचन कहने से जरूरी नहीं कि किसी को फायदा हो ।

आगे चलकर जो शर्त हुजूर साहबजी महाराज ने लिखी है, वह पूरी नहीं हुई तो हर्गिज़ कोई फायदा न होगा। उन्होंने लिखा है कि "रसीदा और कामिल बुजुर्गों " के जो फरायज इन्सान  के लिए तजवीज फरमाये उन्हें श्रद्धा व प्रेम के साथ हस्ब हिदायत सरंजाम देने से इंसान को सुख, सच्चे मालिक की प्रसन्नता व बहिश्त हासिल होते हैं "।

यहाँ पर "रसीदा व कामिल बुजुर्ग' के मानी अगर साहबजी महाराज के लिए जाने जो अनुचित न होगा। जो फरायज साहबजी महाराज ने सत्संगियों के लिए मुकर्रर किये। अगर आप उनसे कोसों दूर भागते हैं तो एक नहीं पचास बचन कह जायँ,आपको कोई लाभ न होगा। साहबजी महाराज ने 23 जून का यानी चोला छोड़ने के 1 दिन पहले , मद्रास में, समुद्र के किनारे इसी बात पर जोर दिया था ।

उन्होंने फरमाया था कि "मैंने अपनी जिंदगी में एक लम्हा भी अपने फराइज जिम्मेदारियाँ सरअंजाम देने में कोताही नहीं"। उनका इस फरमान से मतलब अपने तरीके अमल( ढंग) की निसबत अपनी पोजीशन साफ करने का नहीं था क्योंकि उनके खिलाफ किसी ने कोताही का कोई इल्जाम नहीं लगाया था बल्कि मतलब यह था कि इस फरमान को सुनकर और सब लोग भी इस तरह (अमल) करें (चलें)

क्रमशः                                      

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-


[ भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे:- 


                  

    छल करने वालों का जूआ और तेजस्वी लोगों का तेज मैं हूँ, जय मैं हूँ, निश्चय मैं हूँ  और दिलेरों की दिलैरी में हूँ। वृष्णियों में मैं वासुदेव हूँ, पांडवों में धनंजय (अर्जुन), मुनियों में व्यास और कवियों में शुक्र कवि मैं हूँ। दंड (सजा) देने वालों में सजा मैं हूँ, फतेह चाहने वालों में नीति मैं हूँ। रहस्यों में मौन मैं हूँ और ज्ञानवालों का ज्ञान मैं हूँ। 

मतलब यह कि सब भूतों अर्थात पदार्थों का जो भी बीज है वह मैं हूँ क्योंकि ऐसा कोई चर(चेतन) या अचर (जड़) पदार्थ नहीं है जिसका भाव मेरे बिना हो सके। हे अर्जुन! मेरे दिव्य स्वरुपों का कोई वार पार नहीं है। मेरे विभूतियों का यह वर्णन उदाहरण मात्र है।【40】                    

तात्पर्य यह है कि दुनिया में कुछ भी शानदार, खूबसूरत और ताकतवर है, तुम समझ लो, वह सब मेरे ही तेज का एक अंश है । लेकिन हे अर्जुन!  इन सब बातों को जानने से तुम्हें क्या फायदा होगा।  इस कुल जगत् को तो सिर्फ मेरे एक अंश ने व्याप कर फेल कर काम रखा है।

【 42】                                   

क्रमशः                                                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज

 -प्रेम पत्र -भाग 1

- कल से आगे:-( 10 )

अब समझना चाहिए कि जो चैतन्य इस मलीन माया के देश में व्यापक है वह सदा देहियों के बंधन में गिरफ्तार रहता है और जब तक कि देहियों के खोल यानी आवरण अभ्यास करके दूर न किये जावेंगे, तब तक वह आजाद यानी विदेह नहीं हो सकता ।                                                                                वेदान्त शास्त्र में दो दर्जे माया के लिखे हैं -एक शुद्ध सत्य प्रधान, दूसरा मलीन सत्य प्रधान, और शुद्ध ब्रह्म अथवा पारब्रह्म पद इन दोनों दर्जो के परे कहा है। और वास्ते जुदा होने माया के देश से योग अभ्यास की हिदायत की है कि अपने प्राणों को छः चक्र के पार चढ़ाकर ब्रह्म का दर्शन करें और फिर वहाँ से पारब्रह्म पद में पहुँचे , तब सच्ची मुक्ति हासिल होगी और तब ही शुद्धब्राह् के साथ एकता होगी।

उस वक्त जो बचन की यह बाचक ज्ञानी पोथियों को पढ़ पढ़ के कहते हैं सच्चे दरसेंगे, यानी सच्चा योRS सुबह 31/03गी अपने आपको वहाँ ब्रह्म स्वरूप देखेगा और वही ब्रह्म तमाम नीचे के देश यानी रचना में व्यापक नजर आवेगा।

और जब तक कि कोई अभ्यास करके ब्रह्म और पारब्रह्म पद तक न पहुंचे तब तक एकताई के बचन कहना सिर्फ जबानी जमा खर्च है, असल में उनकी हालत नहीं बदलती, यानी अज्ञानियों के मुआफिक यह बाचक ज्ञानी भी अविद्या के घेर में रहकर मन और इंद्रियों के कहे में चल रहे हैं, और ब्रह्म या आत्मा का आनंद एक जर्रा भी इनको प्राप्त नहीं होता और न अपने रूप को देख सकते हैं और न ब्रह्म का दर्शन पाते हैं।  क्रमशः                                         

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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