Saturday, March 20, 2021

सतसंग शाम RS-DB 20/03

 **राधास्वामी!! 20-03-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-       

                             

(1) प्रेम रँग बरसत घट भारी।

 दास आरती नई सम्हारी।।-

(राधास्वामी दया दृष्टि अब कीन्ही। चरन सरन मोहि दृढ कर दीन्ही।।)

(प्रेमबानी-1-शब्द-37,पृ.सं189,190-विशाखापत्तनम दयालनगर-ब्राँच-149 उपस्थिति।)                       


(2) प्रेम की दौलत अपर अपार।

 प्रेम से मिलता सिरजनहार।

**राधास्वामी!! 20-03-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-

(1) प्रेम रँग बरसत घट भारी। दास आरती नई सम्हारी।।-(राधास्वामी दया दृष्टि अब कीन्ही। चरन सरन मोहि दृढ कर दीन्ही।।)

(प्रेमबानी-1-शब्द-37,पृ.सं189,190-विशाखापत्तनम दयालनगर-ब्राँच-149 उपस्थिति।)

 (2) प्रेम की दौलत अपर अपार। प्रेम से मिलता सिरजनहार।।-(प्रेम बिना सब थोथी कार। प्रेम से उतरे भौजल पार।

प्रेम कु बख्शिश दें राधास्वामी।।)

 (प्रेमबानी-4-शब्द-8-पृ.सं.137-दोबारा-पढा-गया।)

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-

कल से आगे।।

सतसँग के बाद:-


(1) राधास्वामी मूल नाम।।

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।

 (3) बढत सतसँग अब दिन दिनः अहा हा हा ओहो हो हो।।

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



**राधास्वामी!!-20-03 -2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे:-

(192)-का शेष:


अब प्रश्न उठता है कि यदि ईश्वर अनंत और अपार है तो इन लोकों का विस्तार अनंत और अपार होना चाहिए, और यदि यह लोक परिमित हैं तो ईश्वर इनमें व्यापक होने के अतिरिक्त इनके बाहर भी होना चाहिए अन्यथा इनमें परिमित होने से ईश्वर भी परिमित ठहरेगा।।

 पृथ्वीलोक की लंबाई चौड़ाई तो हर किसी को मालूम ही है और अंतरिक्ष अर्थात् बीच के लोकों की लंबाई चौड़ाई का भी अनुमान किया जा सकता है। सूर्य से तिसरे अर्थात द्यौः लोक का आरंभ बताया जाता है।

 यदि द्यौःलोक भी पृथ्वी और अंतरिक्ष के समान परिमित है तो फिर ईश्वर की अनन्ता और अपारता तो समाप्त हो गई । इसलिए या तो मानना होगा कि द्यौःलोक अनंत और अपार है या यह कि द्यौःलोक के बाहर भी अनंत और अपार ईश्वर है।

 यदि द्यौःलोक अनंत अपार है तो यह जीवो में से बसा हुआ भी होना चाहिएँ। पर वेदों और अंतरिक्ष के समान इसमें भी बसे हुए लोक होने चाहिए । पर वेदों में इन लोको का स्थान का कोई उल्लेख नहीं है। अब यदि संत दया करके यह सब भेद प्रकट फरमाते हैं तो इसका आदर करना चाहिए या निरादर?

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**।-(प्रेम बिना सब थोथी कार। प्रेम से उतरे भौजल पार। प्रेम कु बख्शिश दें राधास्वामी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-8-पृ.सं.137-दोबारा-पढा-गया।)                                                     (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।        सतसँग के बाद:-                                                (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                     (3) बढत सतसँग अब दिन दिनः अहा हा हा ओहो हो हो।।                                            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!!-20-03 -2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-(192)-का शेष:-अब प्रश्न उठता है कि यदि ईश्वर अनंत और अपार है तो इन लोकों का विस्तार अनंत और अपार होना चाहिए, और यदि यह लोक परिमित हैं तो ईश्वर इनमें व्यापक होने के अतिरिक्त इनके बाहर भी होना चाहिए अन्यथा इनमें परिमित होने से ईश्वर भी परिमित ठहरेगा।। पृथ्वीलोक की लंबाई चौड़ाई तो हर किसी को मालूम ही है और अंतरिक्ष अर्थात् बीच के लोकों की लंबाई चौड़ाई का भी अनुमान किया जा सकता है। सूर्य से तिसरे अर्थात द्यौः लोक का आरंभ बताया जाता है। यदि द्यौःलोक भी पृथ्वी और अंतरिक्ष के समान परिमित है तो फिर ईश्वर की अनन्ता और अपारता तो समाप्त हो गई । इसलिए या तो मानना होगा कि द्यौःलोक अनंत और अपार है या यह कि द्यौःलोक के बाहर भी अनंत और अपार ईश्वर है। यदि द्यौःलोक अनंत अपार है तो यह जीवो में से बसा हुआ भी होना चाहिएँ। पर वेदों और अंतरिक्ष के समान इसमें भी बसे हुए लोक होने चाहिए । पर वेदों में इन लोको का स्थान का कोई उल्लेख नहीं है।  अब यदि संत दया करके यह सब भेद प्रकट फरमाते हैं तो इसका आदर करना चाहिए या निरादर?                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                            

   यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


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