Tuesday, March 30, 2021

सतसंग शाम RS 30/03

 राधास्वामी!! 30-03-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-                                   

(1) गुरु प्यारे की दम दम शुक्रगुज़ार।।टेक।।

दया करी मोहि संग लगाया। भेद दिया मोह़ि घट का सार।।

-(शब्द सँग स्रुत अधर चढा कर। पहुँचाया राधास्वामी दरबार।।)

(प्रेमबानी-3 -शब्द-73-पृ.सं.60,61-डेडगाँव-91- उपस्थिति)                                 

(2) राधास्वामी सत मत जिसने धारा।

 सहज हुआ उन जीव उधारा।।

पुरुष होय चहे सत्री होई।

गुरु के संग प्रीति करे सोई।।-

(जग में जम का जोर घनेरा। जीव करें चौरासी फेरा।।)

 (प्रेमबानी-4-शब्द-10-पृ.सं.145,146)                                                    

 

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।  

     सतसँग के बाद:- 

                                          

  (1) राधास्वामी मूल नाम।।                              

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                        

 (3) बढत सतसँग अब दिन दिन अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी)                                       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

*राधास्वामी!!   

                                     

  30- 03 -2021- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

परसों से आगे:-( 197 )-

जरा विद्युत शक्ति को देखिये। इसकी भी दो अवस्थाएँ हैं -गुप्त और प्रकट।  जब वह गुप्त अवस्था में है तो अरूप है, और उसका हाल किसी को ज्ञात नहीं हो सकता । जब वह किसी रूप में अपना प्रकाश करती है तभी उसकी खबर होती है। जैसे लैंप के द्वारा बिजली की रोशनी हो गई, यह रोशनी देखकर ही मनुष्य  कह सकता है कि बिजली प्रकाश स्वरूप है।

यदि संसार में कहीं भी बिजली की रोशनी न हो या बिजली गुप्त दशा में ही रहे तो मनुष्य कभी न कहे कह सकेगा कि बिजली प्रकाशस्वरूप है। अर्थात् प्रकाश- स्वरूप कहलाने के लिए बिजली के वास्ते प्रकाशरूप धारण करना अनिवार्य है। 

इसी प्रकार ईश्वर के लिए सच्चिदानंद स्वरूप कहलाने के लिए सच्चिदानंद स्वरूप धारण करना अनिवार्य है और जोकि वह इस समय प्रकट अवस्था में है इसलिए कोई न कोई स्थान ऐसा होना चाहिए जहाँ ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप से प्रकट हो और जहाँ ऐसा होगा वह मँडल का मँडल सच्चिदानंद स्वरुप होगा। क्रमशः                                           

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                               

  यथार्थ प्रकाश - भाग दूसरा

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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