Wednesday, March 31, 2021

निंदक नियरे राखिये........

 आलोचना एक ऐसा वाक्य है, जो किसी भी इंसान को विचलित कर सकती है। मगर हिम्मती व साहसी व्यक्ति केवल वही होता है जो इस आलोचना का स्वयं पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ने देता।


आचार्य चाणक्य कहते हैं प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक वक्त ऐसी ज़रूर आता है जब उसे अपनी आलोचना सुननी पड़ती है। जिसे सुनकर वह उत्तेजित भो हो जाता है। लेकिन क्या ऐसा करना सही होता है, जी नहीं चाणक्य बताते हैं मनुष्य को किसी भी हालात में अपनी आलोचना सुनकर उत्तेजित नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसा जीवन में हर किसी के साथ होता है, परंतु ऐसे समय में जो व्यक्ति अपनी निंदा या आलोचना सुनकर उत्तेजित हो जाता है, वो कभी जीवन में सफलता के मुकाम पर नहीं पहुंच पाता।


बहुत से लोग अपने जीवन में दूसरों की आलोचना केवल इसलिए करते हैं ताकि वह उत्तेजिक होकर किसी तरह का कोई ऐसा कदम उठा लें जिससे वह सफलता की जगह असफलता को हासिल करें। तो ऐसे में क्या करना चाहिए? आइए जानते हैं नीतिकार आचार्य चाणक्य से, जिन्होंने बताया है कि आलोचना होने पर व्यक्ति को क्या करना चाहिए।  जैसे कि हमने आपको उपरोक्तत भी बताया कि कई बार सामने वाले व्यक्ति का मकसद केवल आपको उत्तेजित करना होता है, ऐसे में कोई फैसला लेने से या फिर कोई बात कहने से जो हित में न हो तो असल जिंदगी में ऐसे आलोचक कई पैदा हो जाते हैं।


कहा जाता है अक्सर इस हथियार का प्रयोग सामने वाले को बिना युद्ध किए हुए ही परास्त करने के लिए किया जाता है, क्योंकि ऐसे लोग जल्दी अपनी आलोचना सुन कर उत्तेजित हो जाते हैं और उत्तेजना में कोई गलत निर्णय ले लेते हैं या उनका आत्मविश्वास डगमगा जाता है। जो सामने वाला चाहता होता है, ताकि वह आप पर हावी हो सके। चाणक्य के अनुसार इस स्थिति का सबसे अच्छा उपाय है आलोचना को नजर अंदाज करना।


इसके अलावा चाणक्य ये भी कहते हैं कि आलोचना करने वाले का प्रत्येक व्यक्ति का असली मकसद होता है आपको नीचा दिखाना नहीं होता। बल्कि कभी-कभी उनकी मंशा आपको सावधान करने की या आपका हित करने की भी हो सकती है। ऐसे व्यक्ति आपकी आलोचना तो करत हैं, लेकिन वह यह भी ध्यान रहेंगे कि आपको बुरा न लगे। इसलिए ऐसे व्यक्तियों की नजर अंदाज़ न करें, बल्कि इनकी आलोचना के पीछे की भावना को समझने का प्रयास करें।


कुल मिलाकर आचार्य चाणक्य का मानना है कि कभी भी आलोचना पर व्यक्ति को अपना आपा नहीं खोना चाहिए। बल्कि इसके इसके पीछे छिपे उद्देश्य को ध्यान में रखकर या तो उसे हंसकर टाल देना चाहिए या फिर उससे सीख लेनी चाहिए, परंतु उत्तेजित नहीं होना चाहिए।

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हेमन्त किगरं (समाजसेवी) 9915470001

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