Wednesday, December 2, 2020

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत

 -कल से आगे- 10 मार्च 1933-

 शुक्रवार:- 7:30 बजे लखनऊ पहुंच गये। स्टेशन पर अनेक सतसंगी मौजूद थे। ए०पी० सेन रोड पर एक कोठी में ठहरने के लिये इंतजाम है।।                                                  

  1:30 बजे मीटिंग से छुट्टी मिली । 2:00 बजे घर पहुंचे और आधा घंटा आराम करके खाना खाया । 3:00 बजे स्थानीय सत्संगी जमा हो गये।  4:00 बजे काफी मजमा हो गया। मुख्तसर पाठ हुआ। और 6:00 बजे तक सवाल व जवाब होते रहे। एक जिज्ञासु ने गीता के हवाले से विश्ववदर्शन की निस्बत सवाल किया।

जिसका विस्तृत जवाब दिया गया । 7:00 बजे की ट्रेन से कानपुर वापस हुए। और डेढ़ घंटा बाद आगरा की वापसी का सफर शुरू हो गया। हालाँकि सतसंगी भाइयों को बारहा मना किया कि स्टेशन पर जमा न हो 100 लेडीस को हमराह न लावें लेकिन कानपुर के सत्संगियों को स्वराज्य की हवा लगी है। वह किसी की नहीं सुनते।।      

रेल में कर्नल गिड़नी सहयात्री हो गये। कर्नल गिडनी से पहले कभी कभी मुलाकात नहीं हुई थी। मिलने पर वह कहने लगे कि मैं आपको जानता हूँ और मैं अपने स्वयं को इंट्रोड्यूस किया चाहता हूँ। मैंने जवाब दिया- मगर कर्नल गिडनी को कौन नहीं जानता । वह हँस कर कहने लगे- आपको मालूम है कि यह अल्फाज कह कर आप मेरी कितनी तारीफ कर रहे हैं । जवाब दिया कि सच कहने में अगर किसी की तारीफ हो जाय तो वह तारीफ उचित समझी जाती है ।

उन्होंने कहा आप सवाल व जवाब में बड़े होशियार मालूम होते हैं । जवाब दिया- मेहरबानी! एक और मौलवी साहब रफीके सफ़र थे। और दयालबाग से वाकिफ थे। वह दयालबाग की तारीफ करने लगे। कर्नल गिडनी कहने लगे अगर वाकई दयालबाग ऐसा है और इतनी चीजें वहाँ तैयार होती है तो मैं जरूर जाऊँगा मगर याद रखिये अपनी चेक बुक साथ न लाऊँगा । जवाब दिया- आप बेशक बिला चेक बुक आवें। आपको मालूम उधार दे दिया जावेगा। आपका ऐतबारहै।

गर्जे की 2 घंटे तक कर्नल गिडनी मजे की बातेन करते रहे। उन्होंने गत राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के बीच कुछ हालात सुनाये जो अत्यधिक दिलचस्प थे। कर्नल गिडनी बड़े खुश मिजाज ,बड़ी सूझबूझ वाले और काबिल एंग्लो इंडियन है । उनसे मिलकर तबीयत बहुत खुश हुई। 14 मार्च को दयालबाग आने का वादा किया है।।                                       🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【 शरण आश्रम का सपूत】 कल से आगे:- सुपरिटेंडेंट आश्रम- हुजूर ! हमें भी कुछ अर्ज करने का मौका दिया जाय।                 मजिस्ट्रेट- कहिये- आप क्या कहना चाहते हैं। सुपरिटेंडेंट- यह दुरुस्त है कि रायसाहब के जुम्ला बयानात गलत है और यह भी दुरुस्त है कि आश्रम को नुकसान पहुँचाने की गरज से रायसाहब और वकील साहब ने यह सब फसाद बरपा किया है।।                         वकील-( बात काटकर) मुझे आश्रम को नुकसान पहुँचाने से क्या फायदा ? फीस लेने की खातिर अगर कहो तो मुजायका नहीं। सुपरिटेंडेंट -लेकिन रायसाहब और वकील साहब दोनों बूढ़े आदमी है।  वकील- होंगे रायसाहब बूढे-हम तो जवान ही हैं- देख लो दिल एकदम स्याह है - बाल सफेद हो गये तो क्या।  सुपरिटेंडेंट- अलावा इसके वकील साहब के दिमाग में कुछ फितूर है इसलिए गुजारिश बहुजर है इन दोनों पर नजरें तरहुम फरमाई जावे। अगर रायसाहब को सजा दी गई तो इसमें हमारी ही बदनामी है- क्योंकि बिलआखिर यह हमारे भाई हैं - बजाय मुकदमा चलाने के अगर इनको मुनासिब तम्बीह कर दे तो काफी होगा।।                           वकील -बहुत काफी - बल्कि काफी व काफी होगा- हर किसी के लिए शाफी होगा और हमेशा झगड़ों के लिए मुनाफी होगा। सुपरिटेंडेंट- अलबत्ता भोंडी सख्त जरुम की मुर्तकिब हुई है और सौतेली माँ होने से इसने बच्चों पर जुल्म किया है -उसे मुनासिब सजा दी जाय।  मजिस्ट्रेट- देखो- विरोधचन्द! तुम्हारा ऐसा स्याह दिल।  वकील हुजूर स्याह दिल तो बंदे का है ।  मजिस्ट्रेट-(डाँट कर वकील से) तुम चुप रहो (बिरोधचन्द से) और सुपरिटेंडेंट साहब के ये ख्यालात ! मैं इस पाकनिहाद सुपरिटेंडेंट की सिफारिश मंजूर करता हूँ। अलबत्ता मैं गवर्नमेंट को लिखूँगा कि तुमसे रायसाहबी का खिताब वापस लिया जावे और यूनिवर्सिटी की सेनेट से दरखास्त करूँगा कि तुम्हारी बी०ए० की डिग्री मन्सूख की जावे और भिखारीलाल के लिये यह हुकुम होगा कि मेरी इजलास में यह पेश न होने पावें। क्रमशः                              🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- कक्ल ल से आगे-( 12 ) मालूम होवे कि यह दर्द पिंडलियों में इस सबब से पैदा होता है कि सूरत की धार का सिमटाव और खिंचाव ऊपर की तरफ होता है । और जब इस तरह सुरत पिंडलियों में से खिंचती है , तब रगे उसके वास्ते तड़पती हैं। सो आहिस्ता आहिस्ता  उनको सुरत की धार के थोड़े बहुत के खिंचाव की बर्दाश्त होती जावेगी और तब दर्द भी कम होता जावेगा और कोई तकलीफ अभ्यास में नहीं मालूम होगी ।।                       (13) कभी-कभी ऐसा होता है कि भजन का अभ्यास करते करते हाथ और बाँहें और पिंडलियाँ और पैर सुन्न हो जाते हैं , यानी किसी कदर बेकार हो जाते हैं। और कभी उँगलियाँ सुन्न हो कर छूट जाती हैं, तो इस बात का कुछ अंदेशा नहीं है। उँगलियाँ छोड़कर जो भजन बने जाय तो जिस कदर हो सके भजन करता रहे , या जो आवाज न सुनाई देवे तो उस वक्त ध्यान करता रहे । और जब भजन कर चुके तब थोड़ी देर हाथ और पैर फैला कर के खाली बैठे और फिर उठ कर थोड़ी देर टहले तो सब अंग बदस्तूर हो जावेंगे।क्रमशः                                           🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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