Wednesday, December 2, 2020

बेकार का पत्थर

बेकार का पत्थर



प्रस्तुति  आनंद प्रकश /अनिल कुमार सिंह 


माइकलएंजलो एक रास्ते से गुज़रता था. और उसने संगमरमर के पत्थर की दुकान के पास एक बड़ा संगमरमर का पत्थर पड़ा देखा... अनगढ़, राह के किनारे. उसने दुकानदार से पूछा कि,"और सब पत्थर सम्हाल के रखे गए हैं, भीतर रखे गए हैं, ये पत्थर बाहर क्यों डला है? ”उसने कहा, "ये पत्थर बेकार है. इसे कोई मूर्तिकार खरीदने को राज़ी नहीं है. आपकी इसमें उत्सुकता है?”


माइकलएंजलो ने कहा, "मेरी उत्सुकता है.”उसने कहा, “आप इसको मुफ़्त ले जाएँ. ये टले यहाँ से तो जगह खाली हो. बस इतना ही काफ़ी है कि ये टल जाए यहाँ से. ये आज दस वर्ष से यहाँ पड़ा है, कोई खरीददार नहीं मिलता. आप ले जाओ. कुछ पैसे देने की ज़रूरत नहीं है. अगर आप कहो तो आपके घर तक पहुँचवाने का काम भी मैं कर देता हूँ.”


दो वर्ष बाद माइकलएंजलो ने उस पत्थर के दुकानदार को अपने घर आमंत्रित किया कि, "मैंने एक मूर्ति बनाई है, तुम्हें दिखाना चाहूँगा.”वो तो उस पत्थर की बात भूल ही गया था. मूर्ति देखके तो दंग रह गया, ऐसी मूर्ति शायद कभी बनाई नहीं गई थी! 


मरियम जब जीसस को सूली से उतार रही है, उसकी मूर्ति है. मरियम के हाथों में जीसस की लाश है. इतनी जीवंत है कि उसे भरोसा नहीं आया. उसने कहा, "लेकिन ये पत्थर तुम कहाँ से लाए? इतना अद्भुत पत्थर तुम्हें कहाँ मिला?”


माइकलएंजलो हँसने लगा. इसने कहा, "ये वही पत्थर है, जो तुमने व्यर्थ समझके दुकान के बाहर फेंक दिया था और मुझे मुफ़्त में दे दिया था. इतना ही नहीं, मेरे घर तक पहुँचवा दिया था.”


“वही पत्थर है!” उस दुकानदार को तो भरोसा ही नहीं आया. उसने कहा, "तुम मज़ाक करते होओगे. उसको तो कोई लेने को भी तैयार नहीं था, दो पैसा देने को कोई तैयार नहीं था. तुमने उस पत्थर को इतना महिमा, इतना रूप, इतना लावण्य दे दिया! तुम्हें पता कैसे चला कि ये पत्थर इतनी सुन्दर प्रतिमा बन सकता है?”

माइकलएंजलो ने कहा, "आँखें चाहिए. पत्थरों के भीतर देखने वाली आँख चाहिए.”


अधिकतर लोगों के जीवन अनगढ़ रह जाते हैं, दो कौड़ी उनका मूल्य होता है. मगर वो तुम्हारे ही कारण. तुमने कभी तराशा नहीं. तुमने कभी छैनी नहीं उठाई. तुमने कभी अपने को गढ़ा नहीं. तुमने कभी इसकी फ़िकर न की कि ये मेरा जीवन जो अभी अनगढ़ पत्थर है, एक सुन्दर मूर्ति बन सकती है. इसके भीतर छिपा हुआ क्राइस्ट प्रगट हो सकता है. इसके भीतर छिपा हुआ बुद्ध प्रगट हो सकता है.


वस्तुत: ~

माइकलएंजलो के जो शब्द थे, वो ये थे कि, "मैंने कुछ किया नहीं है, मैं जब रास्ते से निकलता था, इस पत्थर के भीतर पड़े हुए जीसस ने मुझे पुकारा कि माइकलएंजलो, मुझे मुक्‍त करो. उनकी आवाज़ सुनके ही मैं इस पत्थर को ले आया. मैंने कुछ किया नहीं है, सिर्फ़ जीसस के आस-पास जो व्यर्थ के पत्थर थे, वो छाँट दिए हैं, जीसस प्रगट हो गए हैं.”


प्रत्येक व्यक्‍ति परमात्मा को अपने भीतर लिए बैठा है, थोड़े से पत्थर छाँटने हैं, थोड़ी छैनी उठानी है. उस छैनी उठाने का नाम ही साधना है...!

No comments:

Post a Comment

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...