Saturday, March 13, 2021

सतसंग सुबह - शाम 13/03


 **राधास्वामी!! 13-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-                                      

(1) हे गुरु मैं तेरे दीदार का आशिक जो हुआ। मन से बेजार सुरत वार के दिवाना हुआ।।(सारबचन-शब्द-गजल पहली-पृ.सं.424) (फरीदाबाद-251-उपस्थिति)     

                       

(2) मगन हुआ मन गुरु भक्ति धार।।टेक।। जगत भोग से कर बैरागा। गुरु परशादी मिला अधार।।-(राधास्वामी चरन अब बसे हिये में। नित्त रहूँ मैं चरन सम्हार।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-9-पृ.सं.7,8)                        

  सतसंग के बाद:-                                           

  (1) राधास्वामी मूल नाम।                               

   (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।                                                                    

 (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।                                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-

 भाग-1-कल से आगे:-( 46 )-

प्रेमी भाई जय बहादुर लाल रिटायर्ड डिप्टी कलेक्टर के देहांत पर शोक-सभा में हुजूर ने फरमाया - डिप्टी साहब के साथ मेरा वास्ता नहीं पड़ा परंतु जितने भी मुझे उनसे जानकार होने का संयोग हुआ उससे मैं उनकी मेहनत और परिश्रम से बहुत प्रभावित हुआ।

वह अपने कर्तव्य का बहुत ध्यान रखते थे । वह शांतिप्रिय थे। किसी से झगड़ा आदि नहीं करते थे बल्कि दूसरे लोगों के झगड़े-काजिए निपटा देते थे। वह सत्संग में पाबंदी से आते रहे। 31 जनवरी की सुबह को वह नियम पूर्वक व्यायाम ग्राउंड पर मौजूद थे। इन दिनों कमजोरी की हालत में भी सुबह के वक्त व्यायाम ग्राउंड पर आने में उनके दो उद्देश्य रहते थे, अव्वल चहलकदमी और हल्की वर्जिश और दूसरे तमाम वह सतसंगी प्रेमी भाइयों को दर्शन भी देते थे।

आप साहबान में हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में जो प्रार्थना अपने धाम में उनको बास देने के बारे में की उसके लिये अगर पोथी कुछ इशारा कर सकती है तो वह शब्द के अंदर मौजूद है यानी आपके प्रार्थना करने से पहिले ही वह प्रार्थना स्वीकार हो गई। वास्तव में डिप्टी साहब इस गति के अधिकारी थे, इसलिए हुजूर राधास्वामी दयाल ने उनको पहले से ही अपने चरणों में बास दे दिया।         

 🙏🏻राधा स्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज

- प्रेम पत्र -भाग 1-

[ सार बचन शब्द 22, बचन-49]के अर्थ:-

सुन री सखी एक मर्म जनाऊँ। नई बात अब तोहि सुनाऊँ।।१।।                                             

अर्थ -हे सखी! तुझको एक भेद जनाता हूँ और नई बात सुनाता हूंँ।।          

                                                        

 दिन बिच नाचत चन्द दिखाऊँ। रैन उदय निन कर दरसाऊँ।।२।।                                      

   अर्थ - सुन्न में, जहाँ की सदा रोशनी रहती है यानी दिन रहता है, चंद्रस्वरूप नजर आता है, और त्रिकुटी के मुकाम पर जहाँ से की माया यानी अँधेरा और रात शुरू हुई, सूर्यरुप रोशनी देता है।                                    

    अगिन पूतरी जल से सिचाऊँ। जल की रम्भा अगिन नचाऊँ।।३।।                               

  अर्थ- सहसदलकमल में ज्योतिस्व अमृत की जलधार से (जो ऊँचे से आती है)  रोशन है और अमृत धार के संग जो धुन सहसदलकमल से नीचे उतरी, वह अग्नि यानी माया के घर में केलि कर रही है।                                            

 (2)-सुरत शब्द मार्ग के अभ्यासी को घबराहट के साथ जल्दी करना या निराश होकर अभ्यास छोड़ देना, किसी सूरत में मुनासिब नहीं है।।                                       

  देखो दुनियाँ में जिस काम का जिसको सच्चा सुख होता है वह उसको थोड़ा या बहुत दुरुस्ती के साथ अंजाम देता है और कोई विघ्न या जाहिरी तकलीफ उसको उस काम के करनेे से रोक नहीं सकती, बल्कि जो मेहनत और तवज्जह वह उस काम के करने में करता है, उस मेहनत में उसको रस आता है और वह नागवार नहीं मालूम होती और चाहे जिस कदर उस काम के पूरे होने में देर लगे, वह जल्दी के सबब से निराश होकर उसको नहीं छोड़ता है।

 इसी तरह परमार्थ के अभ्यासियों को मजबूती के साथ अपना अभ्यास जारी रखना चाहिए और जो प्रतीति के साथ एक दिन दया जरूर होगी इस काम को प्रीति करे जावेगा, तो वह कभी खाली नहीं रहेगा और राधास्वामी दयाल उसको जब तक जैसा जैसा मुनासिब समझेंगे दया करके अंतर में रस और आनंद बख्शते जावेंगे।

क्रमशः.                                       

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर  साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश]-

कल से आगे:

- वेदों से वाकिफ जिसे अक्षर (अविनाशी) बयान करते हैं और जिसमें मन को बस में रखने वाले और आसक्ति रहित पुरुष जाकर समाते हैं और जिसकी इच्छा लेकर ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है अब उस पद या मुकाम का बयान संक्षेप से करता हूँ।

जिस्म के सब द्वारा (ज्ञानेन्द्रियों) को बंद कर, मन को हृदय में थाम,  प्राण को मस्तक में ठहरा, योग से एकाग्रचित्त हो, एक अक्षर 'ओम' का उच्चारण और मेरे ध्यान करता हुआ जो शरीर त्याग कर रवाना होता है वह परमगति अर्थात उस परमधाम को प्राप्त होता है। जो लगातार मेरा ध्यान धरता है और किसी दूसरे की ओर ख्याल जाने नहीं देता ऐसा सावधान (होशियार) योगी मुझ तक आसानी से रसाई  हासिल कर लेता है।

ऐसे महात्मा जन एक बार मुझ तक रसाई हासिल करने के बाद किसी दुखदाई और नाशवान स्थान में फिर जन्म नहीं लेते क्योंकि वे पूरी सिद्धी यानी कमाल को पहुँच गये हैं अर्थात उनकी गति परमधाम में हो गई है।

【15】                   

क्रमशः                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



**राधास्वामी!! 13-03-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-                                   

   (1) राधास्वामी गुरु दातार। प्रगटे संसारी।।

-(राधास्वामी ले अपनाय। जस तस दया धारी।।) (प्रेमबिलास-शब्द-25-पृ.सं.31,31) (सिकन्दराबाद ब्राँच -290 उपस्थिति)                                                 

 (2) गुरु की धर हिये में परतीत। बढावत दगन दिन चरनन प्रीत।।-

(अचल घर राधास्वामी चरन रली। मेहर हुई पिया से जाय मिली।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.129,130).                                              

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                                               

  सतसंग के बाद:-                                           

  (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                 

   (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                             

  (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे.भा. मेलाराम जी-फ्राँस)                                     

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!- 12-03-2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन

(187) - कल से आगे:-


गुरु नानक साहब ने भी राग मारू महल्ला पहला में इसी ढंग से सृष्टि-उत्पत्ति का वर्णन किया है। लिखा है :-                               

 अर्बद नर्बद(बेशुमार) धुन्दूकारा।धरनि न गगना हुकुम अपारा। ना दिन रैन न चंद न सूरज। सुन्न समाधि लगायँदा।।★               ★                                                                   

 ब्रह्मा बिशन महेश न कोई। अवर न दीसे एको सोई। नारि पुरुष नहिं जाति न जनमा। ना को दुख सुख पायँदा। ★          ★                                                        

   ना सुच संजम तुलसी माला। गोपी कान्हा न गऊ गोवाला। तन्त मन्त पाखण्ड न कोई। ना को बंसि बजायँदा।★          ★                                                                 

   बेद कतेब सिम्रिति शासत। पाठ पुरान उदय नहिं आसत। कहता बकता आप अगोचर। आपे अलख लखायँदा। ★          ★                                             

   जाँ तिस भाणा ताँ जगत उपाया। बाझ कला(कुदरत) आडान (अकेला) रहाया। ब्रह्मा बिशन महेश उपाये। माया मोह बधायँदा।★           ★                           

    विरले को गुरु शब्द सुनाया। कर कर देखें हुकुम सवाया। खंड ब्रहांड पाताल अरम्भे। गुपतों परघटी आयंदा।★          ★                  

नौ घर थापे थापनहारे। दसवें वासा अलख अपारे। सायर सपत भरे जल निर्मल। गुरमुख मैल न लायँदा।.      🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                

 यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा

 -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


प्रस्तुति - मेहर, कृति, सृष्टि, दृष्टि अमी शरण l 

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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