Friday, March 12, 2021

सतसंग शाम RS -DB /012/03

 **राधास्वामी!!12-03-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) निज रुप का जो तू प्रेमी है।

कर जुगत जगत से हो न्यारा।।

 बिन मेहर गुरू नहिं काज सरे।

 सतगुरु का हो जा निज प्यारा।।-

(वहाँ से भी आगे सुरत चली। घर अलख अगम को निहार रहीः फिर राधास्वामी चरन मिली। और पाय गई प्रीतम प्यारा।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-3-पृ.स.6,7)

 (विशाखापत्तनम-दयालनगर ब्राँच-251 उपस्थिति)                                                   

(2) बिरहनी सुरत हिये धर प्यार। उमँग कर आई गुरु दरबार।।

-(काज मेरा सब बिधि पूरा कीन। सुरत हुई राधास्वामी चरनन लीन।।)

 (प्रेमबानी-4-शब्द-3-पृ.सं.128-129)                                                                        

 (3)यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                                                            

सतसंग के बाद:-                                             

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                        (3) बढत सतसंग अब दिन दिन अहा हा ओहो हो हो।।                        

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!!         11-03- 2021-

आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-                                        

(186)- इस स्थान पर ऋग्वेद मंडल 10, सूक्त नंबर 129 का अनुवाद उपस्थित करना उचित प्रतीत होता है । स्वयं स्वामी दयानंद जी ने अपने ऋग्वेदादि-भाष्य-भूमिका में " पैदायशे आलम का बयान"  शीर्षक के नीचे इस सूक्त के पहले मंत्र का अनुवाद किया है।

शेष मंत्रों के भावार्थ का संकेत करके लिखा है-" इन मंत्रों का तर्जुमा तफसीर में किया जायेगा" (देखो पृष्ठ 75 और 76, ऋग्वेदादि-भाष्य-भूमिका उर्दू एडिशन)  क्या ही अच्छा होता है कि स्वामी दयानंद जी इन मंत्रों का अनुवाद भाष्य में कर जाते! दुष्ट जनों ने विष देकर एक माननीय व्यक्ति का अंत कर दिया। और उनका वेदों का भाष्य अपूर्ण रह गया।

**राधास्वामी!!12-03-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-

(1) निज रुप का जो तू प्रेमी है। कर जुगत जगत से हो न्यारा।। बिन मेहर गुरू नहिं काज सरे। सतगुरु का हो जा निज प्यारा।।-(वहाँ से भी आगे सुरत चली। घर अलख अगम को निहार रहीः फिर राधास्वामी चरन मिली। और पाय गई प्रीतम प्यारा।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-3-पृ.स.6,7) (विशाखापत्तनम-दयालनगर ब्राँच-251 उपस्थिति)

(2) बिरहनी सुरत हिये धर प्यार। उमँग कर आई गुरु दरबार।।-(काज मेरा सब बिधि पूरा कीन। सुरत हुई राधास्वामी चरनन लीन।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-3-पृ.सं.128-129) (3)यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।। सतसंग के बाद:- (1) राधास्वामी मूल नाम।। (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।। (3) बढत सतसंग अब दिन दिन अहा हा ओहो हो हो।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 11-03- 2021-

 आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे:- (186)-

इस स्थान पर ऋग्वेद मंडल 10, सूक्त नंबर 129 का अनुवाद उपस्थित करना उचित प्रतीत होता है । स्वयं स्वामी दयानंद जी ने अपने ऋग्वेदादि-भाष्य-भूमिका में "

पैदायशे आलम का बयान" शीर्षक के नीचे इस सूक्त के पहले मंत्र का अनुवाद किया है। शेष मंत्रों के भावार्थ का संकेत करके लिखा है-" इन मंत्रों का तर्जुमा तफसीर में किया जायेगा" (देखो पृष्ठ 75 और 76, ऋग्वेदादि-भाष्य-भूमिका उर्दू एडिशन)

क्या ही अच्छा होता है कि स्वामी दयानंद जी इन मंत्रों का अनुवाद भाष्य में कर जाते! दुष्ट जनों ने विष देकर एक माननीय व्यक्ति का अंत कर दिया। और उनका वेदों का भाष्य अपूर्ण रह गया। सूक्त का अनुवाद यह है:-

तब (अर्थात् जब वर्तमान सृष्टि का आविर्भाव न हुआ था) न असत् था, न ही सत था। न स्थूल लोक में थे, न अंतरिक्ष( सूर्य और पृथ्वी के मध्य में स्थित वायुमंडल), न उससे परे का आकाश। फिर कौन वस्तु ढकी हुई थी और कहाँ अर्थात् किस स्थान में ढकी हुई थी और ढकने वाली क्या वस्तु थी? क्या उस समय जल था, गहिर गंभीर जल (अथाह पानी) था?

(१) 【कल का शेष-(12-03-2021)】;-

उस समय मौत अर्थात मृत्यु-शक्ति भी न थी, न अमृत्यु(सदा स्थित रहने वाली शक्ति) ही थी। न दिन और रात का विभाग करने वाला चिन्ह (सूर्य ) था केवल वही एक (ब्रह्म या आदि पुरुष) था। पर वह प्राणवान् ( क्रियावान्) न था। वह स्वधा (स्वयं या अपनी,शक्ति से) जीता अर्थात चेतन था। उसके अतिरिक्त और कुछ भी न था (२)। उस समय तम् अर्थात् अंधेरा था और अंधेरे में वह छिपा था और अपने में तद्रूप ( नाम और रूप से शून्य) अरुप था। उस समय जो कुछ था ज्ञानशून्य, था अनाम और अरुप था। वह एक (ब्रह्म) तप की शक्ति से प्रकट हुआ (३) इसके अनंतर का काम अर्थात् इच्छा वर्तमान हुई। इच्छा मन का आदिम बीज थी। जिन ज्ञानवान ऋषियों ने ह्रदय में एकाग्रचित्त होकर खोज की, उन्होने सत् और असत् का सम्बंध साक्षात किया (४)। तब (इच्छा प्रकट होने पर) सत् और असत् के मध्य तिरछी किरण-रुप सीमा स्थापित हुई। उस सीमा के ऊपर की ओर क्या था और नीचे की ओर क्या थि? एक ओर बीज धारण कलने वाले(सृष्टि उत्पन्न कलने वाली सामग्री) थे। दूसरी ओर प्रबल शक्तियाँ थी। एक ओर निर्बाध किया का वेग था और दूसरी ओर शक्ति थी।।(५)। भला कौन जानता है और बतला सकयि है कि यह सब कहाँ से उत्पन्न हुए (इसलिए वे भी इस रहस्य से अनभिज्ञ है)। इसलिये कौन जानता है कि यह सब पहले पहल कहाँ से आया?(६)।। जिससे यह सृष्टि हुई क्या उसने स्वंय इस सबको रचा या नहीं रचा? यह बात वह जो परम व्योम (सबसे ऊँचे आकाश) मे स्थित रह कर सृष्टि का निरीक्षण करता है, ठीक ठीक जानता होगा और सम्भव है कि वह न जानता हो (७)। अब देखिये कि इस सूक्त के वर्णन में और उस वर्णन में जो सारबचन के 'नहिं खालिक मखलूक़ न खिलकत' शब्द में किया गया क्या अन्तर है? यदि यह सूक्त ईश्वर का बनाया हुआ है (जैसाकि हिन्दू भाई। विश्वास करते है) तब तो उसके अन्तिम मन्त्र से प्रकट है कि स्वंय ईश्वर भी नही जानता कि यह सृष्टि कहाँ से प्रकट हुई और हिन्द भाइयों का दावे के साथ तीन अनादि पदार्थों के सम्बन्ध में कोई बात कहना वेद विरुद्ध हो जाता है। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**सूक्त का अनुवाद यह है:- तब (अर्थात् जब वर्तमान सृष्टि का आविर्भाव न हुआ था) न असत् था, न ही सत था। न स्थूल लोक में थे, न अंतरिक्ष( सूर्य और पृथ्वी के मध्य में स्थित वायुमंडल), न उससे परे का आकाश। फिर कौन वस्तु ढकी हुई थी और कहाँ अर्थात् किस स्थान में ढकी हुई थी और ढकने वाली क्या वस्तु थी?  क्या उस समय जल था, गहिर गंभीर जल (अथाह पानी) था?(१) 【कल का शेष-(12-03-2021)】;-                     

उस समय मौत अर्थात मृत्यु-शक्ति भी न थी, न अमृत्यु(सदा स्थित रहने वाली शक्ति) ही थी। न दिन और रात का विभाग करने वाला चिन्ह (सूर्य ) था केवल वही एक (ब्रह्म या आदि पुरुष) था। पर वह प्राणवान् ( क्रियावान्) न था। वह स्वधा (स्वयं या अपनी,शक्ति से) जीता अर्थात चेतन था। उसके अतिरिक्त और कुछ भी न था (२)।                     उस समय तम् अर्थात् अंधेरा था और अंधेरे में वह छिपा था और अपने में तद्रूप ( नाम और रूप से शून्य) अरुप था। उस समय जो कुछ था ज्ञानशून्य, था अनाम और अरुप था। वह एक (ब्रह्म) तप की शक्ति से प्रकट हुआ

(३)                                                

 इसके अनंतर का काम अर्थात् इच्छा वर्तमान हुई। इच्छा मन का आदिम बीज थी। जिन ज्ञानवान ऋषियों ने ह्रदय में एकाग्रचित्त  होकर खोज की, उन्होने सत् और असत् का सम्बंध साक्षात किया

(४)।                          

तब (इच्छा प्रकट होने पर) सत् और असत्      के मध्य तिरछी किरण-रुप सीमा स्थापित हुई। उस सीमा के ऊपर की ओर क्या था और नीचे की ओर क्या थि? एक ओर बीज धारण कलने वाले(सृष्टि उत्पन्न कलने वाली सामग्री) थे। दूसरी ओर प्रबल शक्तियाँ थी। एक ओर निर्बाध किया का वेग था और दूसरी ओर शक्ति थी।।

(५)।                             

भला कौन जानता है और बतला सकयि है कि यह सब कहाँ से उत्पन्न हुए (इसलिए वे भी इस रहस्य से अनभिज्ञ है)। इसलिये कौन जानता है कि यह सब पहले पहल कहाँ से आया?(६)।।                                                 

  जिससे यह सृष्टि हुई क्या उसने स्वंय इस सबको रचा या नहीं रचा? यह बात वह जो परम व्योम (सबसे ऊँचे आकाश) मे स्थित रह कर सृष्टि का निरीक्षण करता है, ठीक ठीक जानता होगा और सम्भव है कि वह न जानता हो (७)।                                           

अब देखिये कि इस सूक्त के वर्णन में और उस वर्णन में जो सारबचन के 'नहिं खालिक मखलूक़ न खिलकत' शब्द में किया गया क्या अन्तर है?  यदि यह सूक्त ईश्वर का बनाया हुआ है (जैसाकि हिन्दू भाई। विश्वास करते है) तब तो उसके अन्तिम मन्त्र से प्रकट है कि स्वंय ईश्वर भी नही जानता कि यह सृष्टि कहाँ से प्रकट हुई और हिन्द भाइयों का दावे के साथ तीन अनादि पदार्थों के सम्बन्ध में कोई बात कहना वेद विरुद्ध हो जाता है।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!l

🙏🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...