Thursday, April 1, 2021

सतसंग सुबह RS 02/04

 **राधास्वामी!! 02-04-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-      

                                                                                

  (1) हे गुरु मैं तेरे दीदार का आशिक जो हुआ।

 मन से बेजार सुरत वार के दीवाना हुआ।।-

(राग और राडिनी मैने सुने अन्तर जाकर।

मेरे नजदीक हुए हिन्दू मुसलमाँ काफिर।।)

(सारबचन-गजल पहली-पृ.सं.424,425 -

राजाबरारी ब्राँच-60 उपस्तिथी।)                                              

(2) गुरु प्यारे सुनो इक अरज मेरी।।टेक।।

जब से दर्शन पायो तुम्हारा। चरनन में रहे सुरत अडी।।-

(राधास्वामी प्यारे परम उदारा।

गाऊँ तुम गुन घडी घडी।।)

(प्रेमबानी-3-शब्द-13-पृ,सं.19)

                                  

 सतसँग के बाद:-                                      

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                              

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                               

 (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।                                          

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

-भाग 1- कल से आगे-( 57)


 5 जून 1941 को जिस समय हुजूर सत्संग पंडाल में पधारे तो उन्होंने आते ही पूछा, "आपमें से कौन लोग चुपचाप बैठे थे और कौन-कौन बातें कर रहे थे?"

 मालूम हुआ कि ज्यादातर लोग बातें कर रहे थे। फरमाया कि आप लोग सत्संग में आकर बातें करते हैं तो यहाँ आने से क्या लाभ?

  सत्संग का असली लाभ तो आप तभी प्राप्त कर सकते हैं जब आप यहाँ आने के बाद चुपचाप बैठकर अंतर्मुख हों। पिछले दिनों ही मैंने इसके बारे में आप से बातचीत की थी कि हमको अपने अंदर परमार्थी परिवर्तन करना चाहिए और कल का बचन जो 'सत्संग के उपदेश' से पढ़ा गया था उसमें भी ऐसा ही संकेत था । आज वही बचन फिर आपके सामने पढा जायगा । आप उसे ध्यान से सुने और उसके मुताबिक अपना ढंग बनाने की कोशिश करें । और अगले दिन सत्संग में आवे तो चुप होकर बैठे।                                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]

-कल से आगे :-

लो देखो आदित्यों को, वसुओ को, रूद्रों को, अश्वनीकुमारों को, और मरुतो को। देखो बहुत से आश्चर्य जो इससे बेहतर कभी तुम्हारे देखने में नहीं आये। लो आज चर और अचर सारे जगत् को यहाँ मेरे देह में एक जगह पर इकट्ठे देख लो। अगर उनके सिवाय किसी और वस्तु के देखने की इच्छा हो तो उससे भी देख लो। लेकिन हाँ तुम अपनी इन आँखों से मुझे नहीं देख सकते हो। 

मैं तुम्हें दिव्य चक्षु देता हूँ, उसके द्वारा मेरी ईश्वरी योग को देखो। इस पर संजय बयान करता है- हे राजा (धृतराष्ट्र) यह कह कर महायोगेश्वर हरि कृष्ण महाराज ने अर्जुन को अपने परम ईश्वरीयरूप का दर्शन कराया जिसमें बेशुमार मुहँ और आँखें थी, बेशुमार अद्भुत शक्लें थी, बेशुमार दिव्य भूषण थे और बेशुमार दिव्य शस्त्र उठाए हुए थे।

【 10】                                             

 दिव्य मालाएँ और वस्त्र धारण किए, दिव्य अतरों से सुगंधित,हैरत रूप, बेअन्त, हर तरफ मुख किए हुए- ऐसा वह रुप था। अगर आसमान पर एक हजार सूर्य एकदम उदय हो जायँ तो शायद उनका प्रकाश उस महान आत्मा की प्रभा के बराबर हो।

 गरजेकि अर्जुन ने देवों के देव के उस शरीर के अंदर कुल जगत् को मय उसके चमत्कारों के एक जगह पर स्थित देखा जिससे मारे हैरत के उसके रोंगटे खड़े हो गये।उसने हाथ जोड़ कर और सिर झुका कर श्री कृष्ण जी को प्रणाम किया और फिर अर्ज की:- हे देव! आपके इस स्वरूप के अंदर मैं देवताओं को देखता हूँ, सब प्रकार के भिन्न-भिन्न देहधारियों को देखता हूँl

, भगवान ब्रह्मा को कमलासन पर विराजमान देखता हूँ, तमाम ऋषियों को देखता हूँऔर दिव्य साँपों को देखता हूँ।【 15】                                           

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-( 12)-

यह भी गौर करने के लायक है कि जो चैतन्य सर्वव्यापक हैं वह सब जगह माया के खोलो में, चाहे वे भारी है या हल्के, ढका हुआ है ।

और इस देश में जो मलिन माया का स्थान है, वह व्यापक चैतन्य बहुत भारी खोलो में छिप रहा है और इस सबब से उसकी ताकत भी गुप्त है। अब जब तक कि विशेष चैतन्य की,जिस पर की खोल हल्के हैं, मदद न पहुँचे तब तक यह व्यापक चैतन्य कुछ काररवाई नही कर सकता, अचेत पडा हुआ है इसका नमूना इसी लोक में मौजूद है, वह आप कुछ काम नहीं कर सकता जब तक की विशेष सूरज के चैतन्य की धार किरणियों के वसीले से इस अचेत चैतन्य को ताकत देकर न जगावे ।

 इसी तरह ऊपर के और नीचे के लोकों का हाल समझ लो । महा विशेष चैतन्य वह है, जो बिल्कुल बेपर्दा और बेखोल है, जिसको निर्मल और निर्माया चैतन्य कहना चाहिए।

ऐसे देश में पहुँच कर, जीव चैतन्य जिसको संत सूरत कहते हैं, गिलाफो यानी देहियों के बंधन से छूट कर अपने अमर और पूरन आनंद स्वरूप को प्राप्त होगा और जन्म मरण और काल क्लेश और देहियों के साथ के दु ख सुख के फंदे सब कट जावेंगे और बिल्कुल दूर हो जावेंगे।

क्रमशः                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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