Saturday, March 13, 2021

सतसंग सुबह RS DB 14/03

**राधास्वामी!! सभी सैक्रेटरी साहबान से निवेदन हैं कि हुजूर राधास्वामी दयाल की दया व मेहर से जिस भी ब्राँच को सुबह सतसंग में पाठ करने का मौका मिलता है वह कोशिश करें कि सारबचन की पोथी से ही पाठ तैयार करके ही पढें।

क्योंकि जैसा कि हम सब जानते ही है कि पहला पाठ ज्यादातर सारबचन से ही किया जाता है। आशा करते है कि आप सब इस निवेदन को मान कर हमारा सहयोग करेंगें।               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



: 🤗💞🙏राधास्वामी 🙏💞🤗


मुस्कराते हुए "राधास्वामी "नाम का  इजहार करना एक ऐसा उपहार है जो बिना किसी मोल और भाव के अतोल और अमोल है " इसमें दोनो "निहाल हो जाते हैं । करने वाला भी और प्राप्त करने वाला भी। 

      🙏 करबद्ध       💞 हार्दिक   🤗 राधास्वामी 🤗

[3/14, 07:19] +91 97176 60451: *🌹🌹🌹🌹🌹🌹परम गुरू हुजूर महाराज जी के पावन जन्मदिन की समस्त सतसंग जगत व प्राणी मात्र को बहुत बहुत बधाई🌹🌹🌹🌹🌹🌹। :- **                              

 **गुरु धरा शीश पर हाथ । मन क्यों सोच करें। गुरु रक्षा हरदम संग। क्यों नहीं धीर धरे ।

 गुरु राखे राखनहार। उनसे काज सरे ।।।    

तेरी करे पच्छ कर प्यार। बैरी दूर पड़े ।।।

  गुरु दाता दीन दयार। चरन लग जगत तरे।।

 मेरे मात पिता गुरु देव।  महिमा कौन करें।

प्यारे राधास्वामी दीनदयाल। छिन छिन सार करें।।

 मालिक हर दम हर एक जीव के संग है।

 जो संसारी है वह उससे और उसके भेद से बेखबर है और हर काम में अपनी अकल की तदबीर और तजवीज़ का या दूसरे आदमीमियों की मदद वगैरह का आसरा रखते हैं और इसमें वक्त नाकामयाबी के दुख और झटके सहते हैं और इसकी उसकी शिकायत करते हैं लेकिन जो सच्चे परमार्थी है और मालिक के भेद से वाकिफ हैं और उसके चरणों में पहुंचने के लिए नित्त जतन करते हैं, वह अपने मन में खूब समझते हैं कि बगैर मालिक की दया और प्रेरणा के कुछ नहीं हो सकता है और इस वास्ते उसकी मौज के आसरे पर सब काम करते हैं और हमेशा दया की निरख और परख करते रहते हैं ।

(प्रेम पत्र भाग 4 पैरा 77)

【 परम गुरु हुजूर महाराज!

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*परम गुरु हुजूर महाराज-प्रेम उपदेश:- (85)-  

             

    हुजूर राधास्वामी दयाल की दया की दयालुता का क्या जिक्र किया जावे कि वे अपने आप मिले, यानी आप जीव को खींच कर अपने चरणों में लगाते हैं और जो जो काम परमार्थी और परमार्थी सेवा कि जिनके सुनने और ख्याल करने से जीवन का दिल डरता है और काँपता है, अपनी दया से उनको आप सहज में कराते हैं ।

फिर क्या खौफ और क्या डर है?  वे ही सब तरह संभाल करेंगे और कर रहे हैं। जब तक मिलौनी का खेल है, यानी परमार्थी और संसारी दोनों काम कर रहे हो, तब तक उनकी दया साहब और प्रगट कम नजर आती है और जब मौज से मिलौनी का झगड़ा हटावेंगे, तब देखोगे कि किस कदर दात प्रेम की फरमाते हैं ।

 इस बात का सच्चे परमार्थी को अपने मन में निश्चय रखना चाहिए कि एक रोज जरुर खास दया फरमावेंगे और इस बात का मन में भरोसा रख कर उनकी दया का शुकराना करते रहो और चरणों की याद में लगे रहो। यह हुजूर राधास्वामी दयाल का खास हुम है।।      ।। कड़ी।।

 धीरज धरो करो सत्संगत, मेहर दया से लेउँ सुधारा।।

संशय छोड़ करो दृढ प्रीति, और परतीत सम्हारा।।                        

 तुम्हारी चिंता में मन धारी, तुम अचिंत रह धरो पियारा।।

यह करनी मैं आप कराऊँ, और पहुँचाऊँ धुर दरबारा।।

वह तो रूप दिखाकर छोड़ूँ, तुम जल्दी क्यों करो पुकारा।।                                  

।।कड़ी।।।    

                                                  

  कौन करें आरत सतगुरु की।।             

   ब्रह्मादिक सब तरस रहे हैं, मिली नहीं यह पदवी।

। बड़े भाग जानो अब उनके, जिनको सरन परापत गुरु की।।

गुरु समान समरथ नहीं कोई, जिन धुर घर की आन खबर दी।।                              

मेरे भाग बड़े अब जागे, मिल सतगुरु संग आरत करती ।

 भाव भक्ति क्या-क्या दिखलाऊँ, मैं सतगुरु बिन और न रखती।।     

इसससे ख्याल करो कि सिर्फ हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रीति और प्रतीति मजबूत करनी चाहिए, फिर सब काम दुरुस्त हो जाएंगे । यह प्रीति और प्रतीति भी आप बख्शते जाते हैं और एक रोज पूरी-पूरी बख्शेंगे।

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*परम गुरु हुजूर महाराज

-【 सार उपदेश】 (36)

- इस मन में प्रेम यानी इश्क की महिमा है, यानी यह मार्ग प्रेम भक्ति का है जिसमें कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरणों में सच्ची दीनता और अधीनता के साथ प्रेम अंग लेकर चाल चलती है।

 इस मत का रस्मि परमार्थ के साथ मेल नहीं हो सकता है, क्योंकि फारसी में जो कहा है उसका अर्थ यह है कि प्रेमियों का मत और सब मतों से जुदा है और उनके मत और पंथ में सिर्फ सच्चे मालिक की मानता है।

और जाहिर है कि सच्चे इश्क और प्रेम में सिवाय सच्चे प्रीतम कुल मालिक के दूसरों का दखल नहीं हो सकता है और न दूसरे के ख्याल कि वहां गुंजाइश है । इस वास्ते इस मत को सिर्फ वह लोग मानेंगे जिनको दुनिया के हालात देखकर और यहाँ अपना काम थोड़े दिनों का समझकर सच्चा खौफ मरने और संसार के दुख और सुख का पैदा हुआ है और जिनकी सच्ची ख्वाहिश अपने सच्चे मालिक और कर्ता के मिलने और अपने निज घर में, जहां से सुरत आई है, पहुँचने की ह्रदय के अंदर से पैदा हुई। और जो ऐसे सच्चे चाहने वाले मालिक के हैं ,इस रास्ते को खुशी और शौक के साथ कबूल करेंगे और उन्हीं को इस मत की पोथियों को पढ़कर और सुनकर तसल्ली और आनंद प्राप्त होगा।।

 **राधास्वामी!! 14-03-2021-


 आज (रविवार) परम गुरु हुजूर महाराज जी का पावन जन्मदिन।, सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                     

   (1) घन गरज सुनावत गहरी।

 अब आरत सूरत सुन सुन ठहरी।।-(जिन राधास्वामी चर गहे री।

 उन मिटी चौरासी फेरी।।)

 (सारबचन-शब्द-15-पृ.सं.391-मौज से)

(गुडगाँव ब्राँच-348 उपस्थिति)                                                                            (2) उमँग मन गुरु चरनन में लाग।।टेक।।

भोग रोग तज चेत जगत से।

सतसँग में अब जाग।।

-(वहाँ से आगे चलो उमँग से। राधास्वामी चरनन पाग।।)

 (प्रेमबानी-3- शब्द-10- पृ.सं.8)


  सतसंग के बाद:-                                            

 (1) राधास्वामी मूल नाम।                                   

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।                                                                

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे.भा. मेलाराम जी फ्राँस)                              

 (4) है कोई ऐसी सुरत शिरोमन। अटल सुहाग जिन पाना है।।

(प्रेमबिलास-शब्द-62-पृ.सं.80)                               

  (5) फागुन की ऋतु आई सखी। मिल सतगुरु खेलो री होरी।।

(प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.स.293)                                                              (6) आज गुरु खेलन आये होरी। जग जीवन का भाग जगो री।।

(प्रेमबानी-3-शब्द-24-पृ.सं.312)                                                              (7) राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी गाऊँ। नाम पदारथ नाम पदारथ नाम पदारथ पाऊँ।।

 (सारबचन-शब्द-तीसरा-पृ.सं.569,570)                                               

(8) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ।

 पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।।

 जो मर्जी तेरी के मुवाफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।   

               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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