Sunday, March 14, 2021

सतसंग RS-DB शाम / 14/03

 *राधास्वामी!! 14-03-2021- आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-                                                                                   

  (1) आज घडी अति पावन भावन। राधास्वामी आये जक्त चितावन।।(सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.556) (डेढगाँव ब्राँच-604 उपस्थिति)                              

   (2) प्रेम गुरु रहा हिये में छाय। सुरत अब नई २ उमँग जगाय।।-(पिता प्यारे राधास्वामी दीन दयाल। अनेक बिधि कर रहे मेरी सम्हाल।। ) (प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.130)                                                                           

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।       

 सतसंग के बाद:-     

                                       

  (1) राधास्वामी मूलनाम।।                                

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                          

 (3) बढत सतसँग अब दिन दिन । अहा हा हा ओहो हो हो।                                           

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 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


*राधास्वामी!! 03- 2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे

-[ ज्ञान, ध्यान, योग, वैराग्य]

-( 188)-                    

  प्रश्न-आपकी पुस्तक सारबचन में लिखा है:- ज्ञान ध्यान और जोग बैरागा। तुच्छ समझ मैंने इनको त्यागा। राधास्वामी गिनें न ब्रह्मज्ञान री। राधास्वामी थरपें न ज्ञान ध्यान री।                                                          

अब जबकि ज्ञान, ध्यान, योग और वैराग्य को ही त्याग दिया और ब्रह्मज्ञान की कदर  छोड़ दी फिर राधास्वामी-मत में बाकी क्या रह गया?  क्या इन बचनों का भी कोई खास अर्थ है?                                                  

उत्तर- नवीन वेदान्तियों और दूसरे जबानी जमा खर्च करने वालों का वाचिक ज्ञान और बेठिकाने व्यापक परमात्मा का या भगवद्गीता के उपदेश के गलत अर्थ लगाकर नाक की फुंगल ( सिरे) पर ध्यान और धोती नेती न्यौली आदि हठयोग की क्रियाएँ और गृहस्थ के धर्म छोड़कर कपड़े रँगवा कर जहान भर में भीख मँगाने वाला वैराग्य ये सभी मालिक के दर्शन की प्राप्ति के लिए तुच्छ साधन है। लोगों को का केवल दो चार ग्रंथ पढ़कर अपने को ब्रह्मज्ञानी समझ लेना और संसार के पदार्थों और भोगों की वासनाओं को छोड़ने के बदले गृहस्थ-धर्म त्याग कर मारे मारे फिरना सच्चे परमार्थ के दृष्टिकोण से भ्रममूलक बातें हैं। इसलिए राधास्वामी दयाल ने इनका निषेध फर्माया है। रहा यह प्रश्न कि इन भ्रममूलक बातों के छोड़ने के अनन्तर राधास्वामी-मत में शेष क्या रह गया? इसका उत्तर पिछले पृष्ठो में एक से अधिक बार आ चुका है ।

आपकी सुविधा के लिए दोहराया जाता है। लो, सुनलो, शेष रह गये (१)

सतगुरु पूरे की शरण और भक्ति, (२)

 सुरतशक्ति के जगाने वाले असली अंतरी साधन, (३)

 सत्तपुरुषों का सत्संग, और (४) 

उनके पवित्र बानी का पाठ । जिस शब्द की कड़ी उपस्थित की गई है स्वयं उसी में आगे चलकर फरमाया है:-                              

 ज्ञान ध्यान और योग बैरागा। तुच्छ समझ मैने इनको त्यागा।।११।।                             

मैं तो चकोर चंद राधास्वामी । नहिं भावे सतनाम अनामी।।१२।।                                      

   बिन जल मछली चैन न पावे। कँवल बिना अलि क्यों ठहरावे।।१३।।                       

  स्वाँति बिना जैसे पपिहा तरसे।सुत बियोग माता नहिं सरसे।।१४।।।                               

अस अस हाल भया अब मेरा। कासे बरनूँ कोई न हेरा।।१५।।                                            

 ऐसी भक्ति होय इकरंगी। काटे बंधन मन  बहुरंगी।।१६।।।                                         

खुल गये भक्ति प्रेम भंडारा। कोटिन जीव का होय उधारा।।२२।।      

(189)- आप ही विचार करें कि क्या ऐसी अनन्यभक्ति के सामने वाचिक ज्ञान और ऊपरी ही ध्यान और वैराग्य कुछ योग्यता रखते हैं? सच तो यह है कि यह सब प्रश्न भक्तिमार्ग से अनभिज्ञता और वाचिक ज्ञान की प्रधानता के कारण उत्पन्न होते हैं। भक्ति-शून्य हृदय अनन्यभक्ति के कदर कैसे कर सकती हैं?                                                  

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थप्रकाश-

भाग दूसरा-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


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