Friday, February 28, 2020

सत्संग के मिश्रित बचन उपदेश





प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा


 [29/02, 08:20] +91 94162 65214: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-सतसंग के उपदेश-भाग-2-(30)-【मन की शुद्धता के लिये उपाय।।:-बाज लोग कहते है कि जबतक वे आजादाना जिंदगी बसर करते थे और परमार्थ के सम्बंध में सिवाय जबानी जमा खर्च के कोई यत्न या कोशिश न करते थे उनको अपना मन निहायत साफ सुथरा मालूम होता था लेकिन जबसे उन्होने मन व इंद्रियों के दमन यानी काबू करने के लिये बाकायदा यत्न शुरु किया उन्हे महसूस हुआ कि उनका मन कैसी गंदी व नापाक ख्वाहिशात से भरा हुआ है और जब उसे ठहराने के लिये कोशिश की जाती है तो बछेरे के समान, जो पीठ पर हाथ रखने से उछलता है, गैरमामूली-चंचलता दिखलाता है और उनकी तबीयत में बार बार यही आता है कि अभ्यास छोडकर खडे हो जायँ या लेट जायँ। बाज अनजान मन की यह हालत देखकर साधन की युक्तियों की निस्बत शक खरने लगते है और कुछ नादान जो साधन छोडकर बदूस्तरे साबिक मन के खेल कूद में लग जाते है। वाजह हो कि मन के इस किस्म के विघ्न सिर्फ सुरत-शब्द अभ्यास ही की कमाई में प्रकट नही होते, पतञ्जली महाराज ने भी अपने योगसूत्रों में इन विघ्नों का विस्तार से जिक्र किया है जिससे जाहिर होता है कि अस्टांग योग करने वालों को भी इन विघ्नों का सामना करना पड़ता था। असल बात यह है कि जब तक मन के अंदर मलिनता भरी है कोई भी शख्स कामयाबी के साथ योग साधन नहीं कर सकता इसलिए हर एक शौकीन अभ्यासी को मन की शुद्धता हासिल करने के लिए यत्न करना चाहिए। मन की शुद्धता कैसे प्राप्त हो ? हम लोग नहीं जवाब देंगे कि सत्य बोलने से मन को शुद्धता प्राप्त होती है लेकिन यह जवाब काफी नहीं है ।सत्य बोलने से तबीयत में शांति और निर्मलता जरूर आती है लेकिन हाल के और पिछले जन्मों के संस्कार और संसार के पदार्थों की कोशिश और अपने व संगी साथियों के मन के काम, क्रोध वगैरह अंगों का जो अपना असर जरूर ही दिखलाते हैं। केवल सत्य बोलने का व्रत धारण कर लेने से उनके नाकिस असर से बचाव नहीं हो सकता। जैसे जल में स्नान करने से थोड़ी देर के लिए बदन साफ़ व ठंडा हो जाता है ऐसे ही सत्य बोलने पर मन को थोड़ी देर के लिए निर्मलता व शीतलता प्राप्त हो जाती है लेकिन जल्द ही मन बदस्तूर मलीन हो जाता है। क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
[29/02, 08:20] +91 94162 65214: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-(9)-【 उपदेश शब्द के अभ्यास का ।】:-इस दुनियाँ में सब जीवों के मन में चाह सुख की मालूम होती है और हर रोज उसके वास्ते मेहनत मशक्कत करते हैं। और जो कुछ सुख यहां के हासिल होते हैं अगर पूरे पूरे नहीं मिलते और जो मिले तो वह सब नाशवान है और उसमें आनंद थोड़ी देर का है।।                    अक्लमंद वह है जो दुनियाँ के हाल और सुखों को देखकर कोई यहां ठहराऊ नहीं है खोज यानी तलाश करें कि परम सुख, जो हमेशा एक रस कायम रहे, वह कहां है। और जब कि इस दुनिया के छोटे-छोटे सुखों के वास्ते उम्र भर खपता रहता है और फिर वे सब सुख यहां के यहीं छोड़ जाता है, फिर उस सुख के लिए जो हमेशा एक रस  रहे जरूर तवज्जह करना मुनासिब मालूम होता है। दुनिया के सुखों की प्राप्ति की ख्वाहिश में बारंबार जन्मना और मरना पड़ता है । इसलिए हर एक को चाहिए कि इनमें प्रीति कम करें और ऐसे मुकाम के हाजिर करने के वास्ते कोशिश करें कि जहां हमेशा पूरा आनंद प्राप्त होवे।।                              विचारवान आदमी इस दुनिया की नाशवान हालत को देखकर जरूर दिल में ख्याल करता है कि कोई ऐसा स्थान भी है जो अमर होवे और जो सर्व सुख का भंडार हो, और जिसकी प्राप्ति के लिए एक बार मेहनत करनी पड़े और फिर हमेशा का आनंद प्राप्त होवे और बार-बार मेहनत न करनी पड़े , जैसे यहां हर दिन में नए सिरे से मेहनत करके दुनिया के सुख मिलते हैं और मरने के वक्त एकदम सब छोड़ने पड़ते हैं। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[29/02, 08:20] +91 94162 65214: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 22 जुलाई 1932 -शुक्रवार:- अहमदाबाद में एक बड़ा पिंजरापोल है । जिसकी मुतअद्दिद शाखे हैं। वहां के प्रबंधकों ने चमड़ा रंगने का कारखाना जारी करने का इरादा किया है। दयालबाग से मशवरा व मदद मांगते हैं । शुक्र है कि हिंदू भाइयों को समझ आ रही है कि कूड़े करकट से रुपया पैदा हो सकता है । जब दयालबाग में चमड़े के काम का कारखाना जारी किया गया था तो कई आदमियों ने सख्त विरोध किया था। एक पंडित जी ने तो यहां तक कह दिया था कि दयालबाग वालों का हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा । लेकिन अब जगह जगह यहां के कारखानों कारखाना की क़द्र हो रही है । दयालबाग लेदर स्कूल में काफी से ज्यादा उम्मीदवार भर्ती होने के लिए आए हैं और मुल्क भर में दयालबाग के जूतों व सूटकेसों की कद्र है। एक महाराजा साहब ने अपनी रियासत के कुल शेर व रीछ वगैरह जंगली जानवरों की खाले दयालबाग  के कारखाने में भेजने का हुकुम पारित फरमा दिया है और 400 के करीब खाले पहुंच गई है। भाई अगर जीना चाहते हो तो काम करो और मिलकर काम करो। और जमाने की चाल देख कर काम करो।  वरना तुम्हारे दफन करने के लिए गड्ढा खुदा है । आराम से उसमे जा लेटो। रात के सत्संग में बयान हुआ कि दुनिया में परमार्थ के इच्छुक तो बहुत है लेकिन हर किसी की योग्यता पृथक है। बाज तो पिछले महात्माओं के चमत्कारों और उनकी मुसीबतों का हाल पढ सुनकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, बाज मंदिर मस्जिद बनवा कर, बाज कथा या कव्वाली सुनकर, बाज दान पुण्य करके और बाज तर्क वितर्क में शरीक होकर। लेकिन सच्चे परमार्थी की वही शख्स कदर कर सकता है जिसकी सहनशीलता काफी बड़ी है और जो हर वक्त जागृत रहता है जिस पर दुनिया की हानि लाभ अपना पर्दा नहीं डाल सकती और जिसके अंदर मालिक के दर्शन के लिए हमेशा तड़प मौजूद रहती है । एक औरत खाना पकाने बैठती है इतने में उसका बच्चा रोने लगता है वह खाने का काम छोड़कर बच्चे को संभालती है। इतने में घर की गाय जंगल से चर कर वापस आ जाती है बच्चे को लिटा कर गाय बांधने लगती है। गाय किसी वजह से खौफ खाकर उसके सींग मारती है और वह जख्मी होकर चिल्लाने लगती है। अर्थात इसी तरह काम के अंदर काम निकल कर यानी अव्वल काम यानी खाना बनाना भूल जाती है । ठीक यही हाल इंसान का है । जब तब परमार्थ कमाने का इरादा करता है लेकिन काम के अंदर काम, ख्वाइश के अंदर ख्वाइश पैदा होने से वह परमार्थ के मुतअल्लिक़ इरादे को भूल जाता है।  जब कूच का वक्त आता है तो दुनिया के सब काम खत्म हो जाने से उसे परमार्थ कमाने की याद आती है। रोता है सर पीटता है और हाय हाय करता हुआ चला जाता है। इसलिए सच्चे प्रमार्ध की कमाई वही शख्स कर सकता है जो हर वक्त बेदार रहे और परमार्थी मकसद को हमेशा मुख्य रखे । 🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻 **

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