Friday, February 28, 2020

साहबजी महाराज /रोजनामचा वाक्यात




प्रस्तुति - आत्म स्वरूप /
सुनीता स्वरुप /मेहर स्वरूप


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाक्यात-

 22 जुलाई 1932 -शुक्रवार:-

 अहमदाबाद में एक बड़ा पिंजरापोल है । जिसकी मुतअद्दिद शाखे हैं। वहां के प्रबंधकों ने चमड़ा रंगने का कारखाना जारी करने का इरादा किया है। दयालबाग से मशवरा व मदद मांगते हैं । शुक्र है कि हिंदू भाइयों को समझ आ रही है कि कूड़े करकट से रुपया पैदा हो सकता है । जब दयालबाग में चमड़े के काम का कारखाना जारी किया गया था तो कई आदमियों ने सख्त विरोध किया था। एक पंडित जी ने तो यहां तक कह दिया था कि दयालबाग वालों का हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा । लेकिन अब जगह जगह यहां के कारखानों कारखाना की क़द्र हो रही है । दयालबाग लेदर स्कूल में काफी से ज्यादा उम्मीदवार भर्ती होने के लिए आए हैं और मुल्क भर में दयालबाग के जूतों व सूटकेसों की कद्र है। एक महाराजा साहब ने अपनी रियासत के कुल शेर व रीछ वगैरह जंगली जानवरों की खाले दयालबाग  के कारखाने में भेजने का हुकुम पारित फरमा दिया है और 400 के करीब खाले पहुंच गई है। भाई अगर जीना चाहते हो तो काम करो और मिलकर काम करो। और जमाने की चाल देख कर काम करो।  वरना तुम्हारे दफन करने के लिए गड्ढा खुदा है । आराम से उसमे जा लेटो। रात के सत्संग में बयान हुआ कि दुनिया में परमार्थ के इच्छुक तो बहुत है लेकिन हर किसी की योग्यता पृथक है। बाज तो पिछले महात्माओं के चमत्कारों और उनकी मुसीबतों का हाल पढ सुनकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, बाज मंदिर मस्जिद बनवा कर, बाज कथा या कव्वाली सुनकर, बाज दान पुण्य करके और बाज तर्क वितर्क में शरीक होकर। लेकिन सच्चे परमार्थी की वही शख्स कदर कर सकता है जिसकी सहनशीलता काफी बड़ी है और जो हर वक्त जागृत रहता है जिस पर दुनिया की हानि लाभ अपना पर्दा नहीं डाल सकती और जिसके अंदर मालिक के दर्शन के लिए हमेशा तड़प मौजूद रहती है । एक औरत खाना पकाने बैठती है इतने में उसका बच्चा रोने लगता है वह खाने का काम छोड़कर बच्चे को संभालती है। इतने में घर की गाय जंगल से चर कर वापस आ जाती है बच्चे को लिटा कर गाय बांधने लगती है। गाय किसी वजह से खौफ खाकर उसके सींग मारती है और वह जख्मी होकर चिल्लाने लगती है। अर्थात इसी तरह काम के अंदर काम निकल कर यानी अव्वल काम यानी खाना बनाना भूल जाती है । ठीक यही हाल इंसान का है । जब तब परमार्थ कमाने का इरादा करता है लेकिन काम के अंदर काम, ख्वाइश के अंदर ख्वाइश पैदा होने से वह परमार्थ के मुतअल्लिक़ इरादे को भूल जाता है।  जब कूच का वक्त आता है तो दुनिया के सब काम खत्म हो जाने से उसे परमार्थ कमाने की याद आती है। रोता है सर पीटता है और हाय हाय करता हुआ चला जाता है। इसलिए सच्चे प्रमार्ध की कमाई वही शख्स कर सकता है जो हर वक्त बेदार रहे और परमार्थी मकसद को हमेशा मुख्य रखे । 🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻 **

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