Tuesday, February 25, 2020

सत्संग के उपदेश




प्रस्तुति - डा. ममता शरण / कृति शरण

[26/02, 07:02]

**परम गुरु हुजू साहबजी महाराज-

रोजाना वाक्यात- 18, 19 मंगलवार:-

टेक्सटाइल फैक्ट्री के सब कलें आ गई है और उनके स्थापित करने का इंतजाम हो रहा है।  मिस्टर स्क्रूवाला दिल लगाकर काम कर रहे हैं। उम्मीद है कि यकुम अगस्त तक कलें चालू हो जायेंगी ।।                     कुर्तालम से खत प्राप्त हुआ है कि पुनालोर की कागज की मिल का इंतजाम दयालबाग के सिपुर्द हो सकता है। क्योंकि फासिला बहुत ज्यादा है और दूर बैठे कोई निगरानी नहीं हो सकती इसलिए इनकार कर दिया गया ।।             लैला मजनूँ फिल्म का मुनाफा अब सतसंग को मिलना शुरू हो गया है। ₹6000 के करीब प्राप्त हुआ है । फिल्म पर कुल लागत ₹200000 आई थी और दूर हो चुके वह 30 जून तक वसूल हो चुकी है। सेठ चमरिया अपने वादे के बहुत पक्के हैं उन्होंने वादा किया था कि लागत निकलने के बाद सब नशा सत्संग का। चुनांचे अब वह वादा पूरा हो रहा है।।                   इन दिनों मुतअद्दिद मद्रासी व मराठा नौजवानों के दरख्वास्तें प्राप्त  हुई । यह लोग दयालबाग में काम चाहते हैं । अव्वल तो हर किसी के लिए काम निकालना मुश्किल है दोयम  अनभिज्ञ आदमियों के भरोसे काम बढ़ा लेना दुरुस्त नहीं इसलिए सबको इंकारी जवाबात  दिए जाते हैं। बाज लोग लिखते हैं कि हमें परमार्थ का भी बहुत शौक है। मुमकिन है कि ऐसा हो मगर यह भी मुमकिन है परमार्थ का महज बहाना किया जाता हो और असल मंशा सिर्फ रोजगार प्राप्ति हो । मिस्टर क्लार्क पूर्व कमिश्नर आगरा कहा करते थे खूब देखभाल कर लोगों को दयालबाग के अंदर कदम रखने दो वरना जैसे निखट्टू शहद के छत्ते पर धावा करते हैं सैकड़ों निकम्मे व नाकाबिल लोग दयालबाग के अंदर घुस आएंगे और यहां का वातावरण बिगाड़ देंगे। उनका यह मशवरा निहायत बहुमूल्य है। सत्संगी भाई भी नोट कर लें और किसी की सिफारिश करते वक्त ध्यान में रखें की सिफारिश करते हुए सत्संग के जिम्में नई जिम्मेदारियां डाल रहे हैं। जिस शख्स के चाल चलन व स्वभाव व इरादों की निस्बत पूरा इत्मीनान हो उसी की सिफारिश करें।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



[26/02, 07:02] +91 97830 60206:

**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेमपत्र -कल से आगे -और मालूम हो कि तरकीब संतों के अभ्यास की ऐसी आसान है कि जिसको लड़का, जवान और बूढ़ा, स्त्री और पुरुष, पढा और अनपढ़, गृहस्थ और विरक्त सब कर सकते हैं । एक नशे की चीज और गोश्त का खाना मना है। गोश्त खाने से दिल सख्त और मोटा होता है और इसकी तवज्जुह बाहर की तरफ होती है और जिस जानवर का गोश्त खाया जाएगा उसका भी असर तबीयत में आएगा। और नशे की चीज के इस्तेमाल से दिमाग की रगों में खलल पैदा होता है। और यह भी शर्त है कि अभ्यासी किसी शख्स को अपनी निजी फायदे या मतलब के लिए दुख ना दें, मन करके सबको सुख पहुंचावे, नहीं तो दुख देने से तो बचे।।                  और खाने-पीने में इस कदर होशियारी रखें कि बहुत पेट भर कर ना खावे, किसी कदर हल्का रहे जिससे सुस्ती और नींद ना आवे । सिर्फ यह शर्ते दरकार है । और बाकी अभ्यास की तरकीब ऐसी है कि बहुत आराम के साथ उसकी कार्रवाई हो सकती है और सब जगह और सब वक्त बन सकती है। किसी तरह की रोक टोक नहीं है। और इस अभ्यास में सांस का रोकना नहीं होता है। और मतो  में स्वाँस का रोकना बताया है, इस सबब से वह अभ्यास किसी से नहीं बना। और उसमें परहेज और खतरे सख्त है । इस सबब से गृहस्थ से तो बिल्कुल नहीं बन सकता और बिरक्त के वास्ते भी मुश्किल और खतरनाक है।।                                       अब चाहिए कि सूरत को आशा अपने निज घर की बँधवा कर आहिस्ता आहिस्ता काम चल निकलेगा,पर इसकी मियाद मुकर्रर हो सकती है कि किस कदर अरस में  काम पूरा होगा। यह अनुरागी के शौक पर निर्भर है, जिस का कदर शौक तेज होगा उसी कदर रास्ता जल्दी तय होगा ।।                       चलने का रास्ता यह है कि जिस धार पर या सड़क से सुरत आई है उसी रास्ते से जाना होगा।।                     रचना में कुल कारखाना धारों का है, ख्वाह वह नजर आवें या नही।  जैसे जब हम देखते हैं तब रोशनी की धार आती है, जब सुनते हैं जब शब्द की धार , जब सूंघते है तब खुशबू या बदबू की धार आती है । और सूरज की रोशनी के जरिए यहाँ किरनों के जरिये से आती है।  ऐसे ही सुरत किरण जिस धार की उतर कर आई है उसी धार पर उसको सवार करा कर ऊंचे की तरफ को चलना चाहिए।

क्रमशः

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[26/02, 07:02] +91 97830 60206:

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश-( भाग 2)-( 29 )

【मुक्ति अवस्था का वर्णन।】:- प्रश्न है कि संतमत में मुक्ति अवस्था का किस प्रकार वर्णन किया गया है?  मुक्ति अवस्था चुकी ज्ञानेंद्रियों व स्थूलल बुद्धि की पहुंच से परे की हालत है इसलिए रोजाना महावरे के अल्फाज उसका बयान करना एक निहायत कठिन बल्कि नामुमकिन बात है। जो बात सर्व साधारण के तजरुबें में न आई हो। उसका वर्णन करने के लिए आमतौर पर तजुर्बे में आने वाली मगर उससे मिलती-जुलती बातों की उपमा यानी नजीर दी जाती है । मसलन अमृत का वर्णन करने के लिए दूध की सफेदी , बर्फ की ठंडक, चीनी की मिठास, और पानी की तरलता से काम लिया जाता है । इसी तरह की अवस्था का वर्णन करने के लिए इंसानी जिंदगी के निर्मल व गहरे रस व आनंद की अवस्था का जिक्र किया जाता है मगर जाहिर है कि इस किस्म का बयान कतई अधूरा है। संतमत में बतलाया गया है कि सब जानदारों के अंदर एक चेतन जौहर विराजमान है जो सुरत आत्मा या रूह के नाम से पुकारा जाता है। हालते मौजूदा में यानी पृथ्वी पर निवास करते हुए सुरत का तअल्लुक़ मन व शरीर से हो रहा है और ये दोनों मन व शरीर  सुरत से जान पाकर चेतन हो रहे हैं और जैसे 1 एलेक्ट्रों मैगनेट के अंदर,जिसमें अजखुद कोई चुम्बकीय शक्ति नहीं होती , बिजली के गुजर होने से जबरदस्त चुंबकीय शक्ति पैदा हो जाती है ऐसे ही मन से (जो की जड़ है ) सुरत की धार का संयोग होते ही मन के अंदर हरकत आ जाती है

। क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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