Friday, February 28, 2020

मनुष्य का शरीर कंबल से ढका है




प्रस्तुति - मेहर स्वरूप / अमी  / दृष्टि शरू

**राधास्वामी!!-

28- 02- 2020

- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे
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मनुष्य का शरीर बतौर एक कंबल के है जो उसकी सुरत ने ओढ रक्खा है । वक्त पाकर जब वह बहुत पुराना हो जाता है तो उसे उतार कर फेंक देती है और दूसरा धारण करती है । और चूंकि यह दूसरे शरीरों को खाकर तैयार होता है इसलिए फेंके जाने पर बदले के नियमअनुसार यह दूसरों की खुराक बनता है। जैसे जल में फेंके देने पर कछुए और मछलियां, और जमीन में गाड़ देने पर कीड़े मकोड़े वगैरह इससे अपना पेट भरते हैं। सतसंगियों को चाहिए कि इस कंबल में बंधन ना रखें और ना ही इसके मुतअल्लिकक किसी वहम में न पडें। उन्हे संभाल अपनी सुरत की करनी चाहिए जिसके लिए मुनासिब है कि अपने दिल में यह चाह मजबूत करें कि मरने के बाद उनको कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरणों में निवास मिले। मौत के वक्त उनके ख्याल और बासनाएँ अपना जोर दिखलाती है।  अगर जिंदगी में मालिक के चरणो में बास पाने की चाह मजबूत न की जाएगी तो नामुमकिन नहीं है कि अंत समय कोई दूसरी चाहा अपना जोर चला लेवे। जो लोग सूरत के संभाल करने के बजाय अपने मुर्दा शरीर की फिक्र करते हैं और उसके लिए शानदार समाधो या मकबरे बनवाने का इंतजाम करते हैं उन्हें अंत समय पछताना पड़ता है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा।**



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