Wednesday, February 26, 2020

सत्संग के मिश्रित उपदेश





प्रस्तुति - उषा रानी /
  राजेंद्र प्रसाद सिन्हा

[27/02, 07:07] +91 97830 60206: *


*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 20 जुलाई 1932- बुधवार:- आज सुबह खूब बारिश हुई। मौसम की यह पहली बारिश है जिसे बारिश कहा जाए । मगर उम्मीद है कि अब सिलसिला शुरू होकर आगरा की कमी पूरी हो जाएगी।।            पौने 2 महीने दयालबाग से गैरहाजिरी के कारण बहुत से काम पिछड़ गए थे।  शुक्र है कि दया से आज सब बचे हुए काम पूरे हो गए।।                 
 अमृतसर से एक प्रेमी भाई ने एक अखबार भेजा है जिसमें दयालबाग वह डेरा बाबा जयमल सिंह का मुकाबला करके मेरे खिलाफ कुछ वाक्य लिखे हैं ।और तहरीर किया कि यह मजमून पढ़कर दिल को चोट लगती है । मगर चोट लगने की क्या बात है अगर बाकी दयालबाग में परमार्थ का नामोनिशान नहीं है तो लिखने वाला सच कहता है और उसके दाद देनी चाहिए और अगर दयालबाग में प्रमार्थ है तो वह गलत कहता है और उस पर रहम करना चाहिए।

मजमून में मेरी निस्बत लिखा है "यह गुरु साहब एक अपटूडेट जेंटलमैन भी है"  अगर इस तहरीर से लेखक मजमून का मकसद यह है कि मुझे मौजूदा जमाने के जुमला आदाब आते हैं तो शुक्रिया और अगर यह मतलब है कि मैं मौजूदा जमाने के अंग्रेजी फैशन में रहता हूं तो शिकायत। जो शख्स ज्यादातर धोती व कुर्ता पहने उसे अपटूडेट जैंटलमैन कहना अनुचित है। मैं अमृतसर के सतसंगी भाई को ख्वाजा हसन निजामी साहब देहलवी की डायरी मुद्रि 16 जुलाई अध्ययन करें और सफहा 6  के मुतालआ मालूम करें कि लोग उन्हें क्या क्या कहते हैं। अक्लमंदी इसी में है कि हम अपना हिसाब पाक रखें और अधिकारी लोगों के कहने सुनने की परवाह ना करें।।           

     रात के सत्संग में धुन्यात्मक नामों की महिमा बयान की गई।  इन नामों के मानी नहीं होते। इन नामों के उच्चारण करने यानी अंतर में उनकी धन पैदा करने से उनकी रुहानी शक्तियां जागती हैं और हम लोगों का विश्वास व तजर्बा है कि यह नतीजा दूसरे यिनी कृत्रिम नामों के जपने से हासिल नहीं हो सकता ।ओम् , सोहं व राधास्वामी सब धुन्यात्मक नाम है । जो लोग जप के वक्त धुन्यात्मक नामों के मानी पर गौर करते हैं वह न अपने मन को निश्चल कर पाते हैं और ना ही कभी रुहानी घाट का तजुर्बा हासिल कर सकते हैं।🙏🏻

राधास्वामी**🙏🏻
[27/02, 07:07] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश -भाग 2- कल से आगे:- और उनका अहंकार, इच्छा व काम क्रोध वगैरह का इजहार होने लगता है। आमतौर पर यही अवस्था चेतन अवस्था और इस अवस्था की कार्यवाहीयाँ आत्मिक क्रियाएँ  समझी जाती है, लेकिन दरअसल यह "जड़ -चेतन "अवस्था है और इस अवस्था की क्रियाएं मन की करतूते हैं। जो शक्ति इस अवस्था में कारकुन होती है, यानी सुरत की धार का मन के साथ संबंध होने पर जो कुब्बत मन के अंदर जाग जाती है, उसको संतों व दीगर अभ्यासी पुरुषों ने जीवात्मा या जीव के नाम से बयान किया है। इसलिए साधारण मनुष्य जो कुछ ज्ञान हासिल करते हैं या दुख सुख का अनुभव करते हैं उनका संबंध आत्मिक ज्ञान से नहीं होता बल्कि वह सब जीवात्मा का ज्ञान होता है। इस शक्ति कि सब कार्रवाईयों को मुल्तवी करके( जिसे पतंजलि महाराज चित्तवृत्तियों का निरोध कहते हैं) अपने अंतर में निर्मल चेतन घाट की यानी उस स्थान की, जो शरीर व मन की मिलौनी से परे है , चेतनता या प्रज्ञा प्रकट करने पर जो ज्ञान उदय होता है उसका एक पल भर अनुभव हो जाने पर इंसान मुक्ति अवस्था का किसी कदर सही अनुमान कर सकता है। असली मुक्ति तहसील होती है जब सुरत यानी आत्मा शरीर और मन के प्रपंच से अलग होकर और शरीर व मन संबंधी मंडलों के पार निर्मल चेतन अवस्था या देश में, जिसे संतमत में सच्चे मालिक का धाम या राधास्वामी कहा जाता है, प्रवेश कर जाती है । इस धाम में खालिस यानि निर्मल चेतन जौहर के सिवाय और किस चीज का दखल नहीं है क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


[27/02, 07:07] +91 97830 60206: *


*परम गुरु हजूर महाराज- प्रेम पत्र- कल से आगे :-आदि जहूर कुल मालिक का शब्द है और वही जान की धार है।  और जहां धार होगी वहां शब्द भी जरूर होगा और शब्द के बराबर कोई रास्ता दिखाने वाला और अंधेरे में प्रकाश करने वाला नहीं है। इस वास्ते चाहिए कि शब्द को पकड़ कर चढ़े और उसका भेद भेदी से मिल सकता है । रुह यानी सूरत की धार पिंड में पहले दोनों आंखों के मध्य में जो तिल है आकर ठहरी और वहां से सब देह में फैली । चाहिए कि किसी मुकाम से धार को पकड़े।  पहले अभ्यास उसके समेटने का करे, जैसे नाम का सुमिरन और स्वरूप का ध्यान, और फिर शब्द का अभ्यास करें, उससे चढ़ाई होगी।।                     शब्द अंतर में जो हो रहा है वह हर एक स्थान के मालिक के दरबार से आता है । और हर एक स्थान का शब्द जुदा-जुदा है , इसका भेद लेकर चलना चाहिए ।।           

जैसे बाहर रचना धारों की है, ऐसे ही इस देह में भी कुल कारखाना धारों का है, जिसको नर्वस सिस्टम यानी रगो का मंडल कहते हैं । इन्हीं रगों में होकर रुहानी शक्ति तमाम बदन में फैली हुई है। कुल रचना शब्द कुल रचना में शब्द भरपूर है और सब बदन में काम उसी की धारों से चल रहा है, पर जो शब्द की आसमानी है उसी को पकड़कर चलना और चढ़ना होगा । पहले वक्त में मूलाधार यानी गुदा चक्र से अभ्यासी चलते थे। संत कहते हैं कि बैठक जीव की आंखों के बीच में है , इस वास्ते संतों का रास्ता आंखों के मुकाम से चलता है । 
 संतों ने रचना को तीन बडे दर्जो में तकसीम किया है ।एक निर्मर चेतन देश जहाँ माया का नामोनिशान भी नहीं है।  दूसरा निर्मल चेतन और निर्मल माया देश जहाँ कि माया निहायत पाक है और शुद्ध है।  तीसरा निर्मल चेतन और मलीन माया के देश में है। जहां की शुद्ध माया है वह ब्रह्य देश है। और निर्मल चेतन देश में चैतन्य चैतन्य है और वही संतो का दयाल देश है। और फिर हर दर्जे में छोटे दर्जे शामिल है । दयाल देश बतौर सिंध अपार और ब्रह्मा उसकी लहर है  और जीव बतौर बूंद के है।

 क्रमशः 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

[27/02, 07:14] +91 83779 58104: 💫💫


 रूह जिसे नाम मिला है..शरीर छोड़ती है..तब गुरू..और..काल में वकालत होती है..काल कहता है..आपकी रूह ने भजन किया है..पर मन से नहीं किया..सतगुर कहते हैं..मन से मेरा कोई मतलब नहीं..वो तो तेरा है..मुझे मेरी रूह से मतलब है..उसने मेरा हुक्म माना है..


  सतगुर के हुक्म के पीछे राज़ होता है..
इसिलिए कहते हैं..मन लगे ना लगे..बैठो..सिमरन करो. 🙏🏻

राधास्वामी।



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