Saturday, February 29, 2020

सत्संग के उपदेश मिश्रित बचन





प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा

[01/03, 04:30] +

91 97830 60206:

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाक्यात-

 23 जुलाई 1932 -शनिवार:-

 चंद रोज हुए दयालबाग में एक प्रेम सत्संगी का इंतकाल हो गया ।उसकी उम्र 73 वर्ष की थी। दुनिया के लिहाज से उसने काफी उम्र पाई। वह कई बरस से दयालबाग में ऑनरेरी काम करता था और घर बार के कामों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता था। लेकिन क्योंकि स्वभाव का नेक था इसलिए हर शख्स के दिल में उसके लिए मोहब्बत थी चुनांचे अब उसके मर जाने पर उसके संबंधीगण जार जार रोते हैं ।

वह कम उम्र या कम अक्ल नहीं है कि उन्हें समझाया जाए। वह बखूबी जानते हैं कि रोना या अफसोस करना नामुनासिब है लेकिन वह मजबूर है । मोहब्बत का जोश आंसुओं की शक्ल अख्तियार करके फूट-फूटकर निकलता है। आप कहेंगे उन्हें मृतक के साथ उसकी हालते जिंदगी में मोहब्बत नहीं पालनी चाहिए थी । लेकिन वह बाप था और वह बच्चे हैं। वह बच्चों से मोहब्बत करता था ,उनको सुख देता था, एक नेकदिल था ।

 बच्चे कैसे उसकी मोहब्बत पीकर चुप लगा जाते? आप कहेंगे कि उसे बच्चों के साथ मोहब्बत जब जबानी चाहिए थी। लेकिन वह दुनिया के दस्तूर के खिलाफ कैसे अमल करता?- इंसानी स्वभाव, दुनिया का रिवाज, दुनिया की तालीम उसके खिलाफ थे। जब उसे विवेक आया उसने दुनिया के ताल्लुकात कम कर दिए और अपने तई संभाल लिया। नासमझी के जमाने के बोये हुये बीजों के लिए वह क्या कर सकता था?  गरजेकि यह हालत है कि दुनिया की मोहब्बत का। उसका अंजाम खुद अपने लिए दुख , और दूसरों के लिए दुख है । सतसंगी भाइयों को चाहिए कि आइंदा सोच समझकर चले। 

  रात के सत्संग में बयान हुआ  सतसंगी दूसरों की देखा देखी स्वामीजी महाराज का जन्म वक्त खास तरह से मनाते हैं। इसमें शक नहीं कि हर प्रेमी जन का फर्ज है कि अपने बुजुर्गों की दया व मेहरबानियों याद कर और शुकराना बजा लावे लेकिन हम गलत रास्ते पर पड़ जाएंगे अगर जन्म घड़ी व मुहूर्त के वहमों में पड़कर खास रश्मियात बजा लाने की फिक्र करने लगेंगे । स्वामीजी महाराज हमारे परम पूज्य सतगुरु है। उनका जन्मदिन हमारे लिए एक मुबारक दिन है । और हमारे जिम्में फर्ज है कि वह दिन मनावे लेकिन ख्याल रखें कि किसी किस्म के भ्रम में हमारी संगत के अंदर न घुसने पावे।  हिंदू भाई कृष्ण महाराज का जन्मदिन मनाते हैं लेकिन साथ ही जन्म की भी नकल उतारते हैं । हमें इस किस्म की बातों से परहेज करना चाहिए

।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -सत्संग के उपदेश

 -भाग 2- कल का शेष:-

 मन की शुद्धता प्राप्त करने के लिए अव्वल उपाय झुरना यानी पश्चाताप करना है, दूसरा उपाय मन के अंदर भक्ति व प्रेम के ख्यालात पैदा करना है और तीसरा उपाय सुरत यानी तवज्जुह को अंतर में किसी ऊंचे मुकाम पर जमाना है और चौथा उपाए सच्चे मालिक या गुरु महाराज की दया मेहर हासिल करना है। जब हम अपनी गलतियों को गलतियां समझने लगते हैं तभी हमारे मन के अंदर पश्चाताप पैदा होता है। दूसरे लफ़्ज़ों में जब हमारा मन सच्चा होकर बरतने लगता है तभी हमको अपनी कसरे नजर आती हैं । कसरे नजर आने पर अपनी गलती व कमजोरी के लिए हर शौकीन परमार्थी को जोड़ना चाहिए । सच्चा पछतावा पैदा होने पर जैसे नींबू निचोड़ने से अर्क निकल जाता है ऐसे ही मन के अंदर से विकारी अंग निकल जाते हैं। श्रद्धा और भक्ति के ख्यालात मन में पैदा करने से शुद्दता ऐसे प्राप्त होती है जैसे तेजाब के अंदर खार डालने से तेजाब की तेजाबी मिट जाती है ।और सुरत यानी तवज्जुह को किसी ऊंचे मुकाम पर ले जाने से मन को शुद्धता ऐसे प्राप्त होती है जैसे किसी दर्द का रोगी नींद आ जाने पर स्वपन में मनोहर तजुर्बात हासिल करता है यानी तवज्जुह के ऊंचे स्थान की ओर मुखातिब होने से उनका झुकाव निचली जानिब वाले अंगों की तरफ से हट जाता है । सच्चे मालिक या सच्चे गुरु महाराज की कृपा दृष्टि से मन को ऐसे शुद्धता प्राप्त होती है जैसे वर्षा होने से  तमाम वृक्ष व जमीन धुल जाते है। प्रेमीजनों को चाहिये कि इध उपायों में से जिस मौके पर जो उपाय बन पडे वहीं अमल में लावें और लाभ उठावें। 

         बाज पुराने ख्यालात के लोग गंगा, यमुना वगैरह  दरियाओं में स्नान करने से मन की शुद्धता प्राप्त होने की आशा बाँधते है। खुले पानी में गोता मारने पर जिस्म के अंदर अव्वल एक दर्जा की ठंडक आ जाती है जो ग्रीष्म ऋतु  में खासकर हद दर्जे की सोहावनी लगती है। नहाने  के थोडी देर बाद जिस्म में खुशगवार गर्माई व दमक महसूस होती है। अनसमझ लोग इन्ही तजरुबात से खुश होकर अपनी तई तसल्ली देते है कि दरिया में स्नान करने से उनके पाप धुल गये और उनका हृदय शुद्द हो गया। प्रेमीजनों को इस भ्रम से होशियार रहना चाहिये।

।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



 **परम गुरू हुजूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-1-

कल से आगे:

- संत कहते हैं कि यह परम सुख का भंडार तुम्हारे घट में मौजूद है।।                           आदि में सूरत राधास्वामी के चरणों से उतर के ब्रह्मांड में होती हुई और वहां से मन को संग लेती हुई दोनों आंखों के मध्य में आकर ठहरी और वही इसकी असल बैठक है। फिर वहां से सुरत तमाम देह में फैली और एक एक सुख या एक एक किस्म का रस, जो दस इंद्रियों के वसीले से हासिल होता है, सुरत की एक-एक धार का है जो इंद्री द्वारे बैठ कर लेती है । अगर सुरत की धार उस इंद्री पर न हो तो वह इंद्री कुछ काम नहीं दे सकती है। और वह सुरत कतरा या बूंद है सत्तपुरुष राधास्वामी सिंध की । अब जबकि एक कतरा इस कदर सुखदायक है, तो उस सिंध के सुख की क्या महिमा की जावे।।         


   संत फरमाते हैं कि जो सुख की सुरत के भंडार में है वह अविनाशी है और वह देश भी अविनाशी है और तुम भी अविनाशी हो। पर मन और माया का संग करके इस मृत्युलोक में दुख और सुख जन्म मरण भोगना पड़ता है। जबकि दुनिया के नाशवान और तुच्छ सुखों के लिए रात दिन उम्र भर मेहनत करते हो, तब उस सुख के लिए जो सर्व सुखों का भंडार है किस कदर मेहनत करनी चाहिए। जिस कदर मुमकिन हो कम से कम 2 घंटे सुबह और शाम 4 घंटे सुबह और शाम या 4 घंटे सुबह और शाम तवज्जह के साथ इस काम के वास्ते अभ्यास करना मुनासिब है जो शौक होवे, क्योंकि हर एक गृहस्थ  4 घंटे अभ्यास दो-तीन दफा करके हर रोज कर सकता है। बहुत से आदमी 6,7,या 8, घंटे रोज नौकरी करते हैं और कोई कोई 10 घंटे और 12 घंटे रोज मेहनत करते हैं । फिर जो चाहे कोई चाहे कम से कम 2 घंटे, और भी 4 घंटे बल्कि 6 घंटे काम के वास्ते निकाल सकता है।


क्रमशः🙏🏻


 राधास्वामी🙏🏻**

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