Saturday, February 29, 2020

दीक्षा के बाद कठिनाईयां बढ़ जाती है।





प्रस्तुति - दिनेश कुमार सिन्हा /आशा सिन्हा

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जो भी व्यक्ति साधना में अग्रसर होता है उनमें से हर कोई दीक्षा लेना चाहता है। परंतु ऐसा नहीं है की दीक्षा सिर्फ साधक को ही लेनी चाहिए बल्कि हमारे सनातन धर्म में यह कहा गया है कि दीक्षा प्रत्येक व्यक्ति को लेनी चाहिए। पूर्व काल में और आज भी कहीं-कहीं यह प्रचलित है की विवाह के समय ही पति-पत्नी को गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है। लेकिन वह दीक्षा सिर्फ #कुलगुरु के द्वारा ही दी जाती है ना की किसी अन्य के द्वारा।

आज की समय में यह हमेशा सुनने को देखने को मिलता है कि दीक्षा लेने के कुछ समय बाद साधक की परेशानियां और बढ़ गई। आखिर क्या कारण है इसका ?हमने तो दीक्षा इसलिए ली थी कि हमें साधना में सफलता प्राप्त हो लेकिन ऐसा क्यों कि हमारी परेशानियां ही बढ़ती जा रही है इसका क्या क्या कारण है यह मैं आज आपके सामने रख रहा हूं।

पहला_और_सबसे_बड़ा_प्रमुख_कारण
आपको यह पता ही नहीं है कि आप किस कुल से हैं ।अर्थात जिस भी कुल में आपका जन्म हुआ है वहां पहले से ही आपके जो भी देवी देवता पूजित हो रहे हैं उन्हीं के कुल के अनुसार दीक्षा लेनी चाहिए फिर भी अगर आप इससे बाहर चाहते हैं तो भी आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि आपके पूर्वजों ने किन की साधनाएं की थी और हम में से हर किसी के पूर्वज किसी न किसी बड़ी शक्ति की पूजा करके उनको अपने घर में स्थान दिया ही हैं यह अकाट्य सत्य है। इसे हम झुठला नहीं सकते और हमारा जन्म जो हुआ है वह भी उस कुल के शक्ति के कारण ही हुआ है, अपने कुल में जन्म देने का श्रेय उस कुल के शक्ति को जाता है और कहीं ना कहीं वह शक्ति यह चाहती हैं कि आने वाले समय में आप उनकी सेवा करें लेकिन आज के समय में खास करके फेसबुक और इंटरनेट के माध्यम से जो दीक्षा दी जाती है उसमें ना तो आपके कुल का पता होता है ना तो आपके कुल में पूजित शक्तियों के बारे में पूछा जाता है सीधा आपको मंत्र उठा के दीक्षा दे देते हैं।

अब यह भी प्रश्र उठता है की अगर मेरे पिता वैष्णव हैं और मुझे शैव मार्ग पर चलना है तो क्या यह फलित नही होगा। इसका साधारण सा उत्तर है बिल्कुल होगा बस आपको इतना करना है कि प्रथम दीक्षा अपने कुलगुरू द्वारा लेना है और भगवान नारायण का कम से कम एक पुरश्चरण अवश्य करना है। उसके बाद ही गुरूआज्ञा लेकर या तो उनके द्वारा या गुरू द्वारा बताये गये विद्वान साधक द्वारा आप शैव मार्ग को चुनें। लेकिन कुलगुरू और पिता अगर आपको सीधे आज्ञा प्रदान कर दें तो नारायण इच्छा।

दुसरा_प्रमुख_कारण

आप गृहस्थ हो। पत्नी है , बच्चे हैं और दीक्षा लिये हो शमशानिक अघोरी की। तो भैया आज फलित हो भी जाये आपके अगले वंश के बच्चे अगर सेवा पुजा न करें तो दर दर भटकेंगे। महाकाली की कालका स्वरूप घर में पुजित होती है जिनके पुजन भोग में लहसन प्याज तक वर्जित है। शमशान काली को बडे़ बोल वाले आज घर पुजवा देंगे कल को आपका घर शमशान बनेगा। नियम बना है न तो नियम के अनुसार चलिये। शमशान साधना की इतनी इच्छा है तो छोड़ कर परिवार एकांतवास करिये। अपने इच्छा के लिये कुल के नाश का कारण न बनिये।

तीसरा_प्रमुख_कारण

वर्ण संकर दीक्षा - यह आज बहुत ही प्रभावी है। इस बात को कहते हुये जरा भी हिचक नही की लंपट और कपटी गुरू अपने से उच्च वर्ण के व्यक्ति को भी दीक्षा दे दे रहे हैं। अरे अपनी तुलना महाकवि बाल्मिकी, संत रविदास , महर्षि विश्वामित्र से करना छोड़ दो की वह तो शुद्र थे, क्षत्रिय थे। अरे तुम कालनेमियों में इतना सामर्थय आ गया है जो संतो और ऋषियों के समकक्ष बैठोगे। हाँ आज भी जो समर्थ गुरू हैं जिन्होंने वास्तव में साधनाऐं की हैं तो उनका मुखतेज से ब्रह्मविद्या झलकती है। उन्हें आप गुरू बनायें चाहे वह शुद्र हों या कुछ और।
इसे पढ़ कर जो स्वयं को कालनेमि समझता हो वह ही कमेंट में अपना चरित दिखाये वरना सिद्ध तो शांत रहेंगे ही। 😜
गलती उनकी है जो कालनेमी को पहचान नही पाते और मंत्र ले कर फंस जाते हैं। अरे पुरे जीवन का सवाल है परखो पहले फिर दीक्षा लो।

चौथा_प्रमुख_कारण

स्वयंसिद्ध गुरू जो इतना विज्ञापन देते हैं की दीक्षा लो और सिद्ध हो जाओ। यह मंत्र बिना दीक्षा नही करनी यह स्त्रोत बिना दीक्षा नही करनी। आप दीक्षा पर दीक्षा लेते हो हर दीक्षा का 4100 रू देते हो और गंवा के पैसा टुटते रहते हो।
अगर वास्तव में गुरू होते तो हर स्त्रोत मंत्र की दीक्षा नही बल्कि आज्ञा दी जाती है और विधि बताई जाती है, वह करवाते। तो जिनको सिर्फ अपना बैंक भरना है वैसे गुरू की दीक्षा फलित होने से रही।

पाँचवा_प्रमुख_कारण

सब कुछ बिल्कुल सही से हुआ। गुरू भी मिल गयें। दीक्षा भी सही। तब भी दीक्षा के बाद परेशानी हो गयी। ऐसी स्थिति में गुरू जी से कह कर स्वयं के लिये शाप विमोचन  विधि करवानी चाहिये। पहले से कभी गाय, पशु या प्राणी को कष्ट दिये हो और उनका रोना आप पर पडा़ हो तब दीक्षा के साथ श्राप भी तुरंत असर दिखाता है।

विशेष :-
1. जो गुरू भगवान से ज्यादा अपनी भक्ति करवाये। गुरू गुरू करते रहे और स्वयं को ही भगवान समझे ऐसे गुरू से तुम्हे कुछ नही मिलेगा। लिख लो। ठगे जाओगे स्वयं के द्वारा।

2. गुरू वह है जो तुम्हें परम मोक्ष के ओर ले जाये। सांसारिक कष्टों को हल करे। सिर्फ दक्षिणा न मांगे बल्कि तुम्हारे बुरे दिनों में अपना सामर्थय दिखाये।

3. वैसे दुष्ट और लंपट गुरूओं से भी दीक्षा लेना बेकार है जो अपने ही शिष्य की साधना और अध्यात्मिक  उन्नति से ईर्ष्या रखता हो। ऐसे दुष्ट कालनेमी अपने ही शिष्य की शक्तियों को बंधन में डाल देते और उनका आर्थिक स्थिति खराब कर स्वयं के अंहकार को पोषित करते हैं। इन जैसों के लिये यमराज सफोला गोल्ड रिफाइन तेल को कराह में डाल गरम रखते हैं। विशेष आवभगत होती है।

जिस तरह सोना लेते समय स्वयं हॉलमार्क देखते हो न की गाढी़ कमाई से ले रहे हैं नकली न निकल जाये तो माता जी, भैया जी अपने वर्तमान और भविष्य की स्वर्ण कुंजि किसी को सौंपने से पहले क्यों नही परखते और सोचते ??
 याद रहे बडे़ बडे़ ब्रांडेड शोरूमों में ही नकली स्वर्ण अधिकतर बेचे जाते हैं। तो शोरूम मत देखो समान देखो। क्या दिया जा रहा है़। भेडो़ं के जैसे कुंऐ में मत गिरो कि इतने लोग शमशान काली दीक्षा लिये और शत्रुनाश किये तो हम भी वही करेंगे। अरे क्या राम जी, विष्णुजी , शिवजी, दुर्गा जी शत्रुनाश नही किये। इनकी पुजा से समस्या हल नही होगा। भोले मानुषों राम नाम लेकर लंका दहन करने वाले हनुमान जी कितने मुंडमाला पहनते थे?? अब रहस्य मत बताना मुझे।

मेरा कथन सिर्फ यह है की परख कर गुरू बनाओ और ऐसा गुरू बनाओ जो आपके कष्टों में साथ खडा़ रहे। न की मझधार डुलाने वाले उससे आपकी बात भी न होने दे। बाकी आपकी श्रद्धा और भगवती इच्छा।🙏

सीधा दीक्षा पर लिखा है तो अब तुम स्वयंसिद्ध गुरू हो ही और अब तो और भी दीक्षा दोगे इस चोरी के बाद, तो चोरी के लिये कुछ नही कह रहा मैं लेकिन सौगंध है तुम्हें अपने माता पिता गुरू और इष्ट की, कि अगर मेरे इन विचारों को पैसे कमाने के लिये प्रक्षेपित कर रहे हो तो जितना कमाओगे उसका आधा हिस्से का तुम अपने हाथों से भोजन बनाकर गरीबों को खिलाओगे, या कुष्टरोगियों के लिये दवा खरीदोगे या जरूरतमंदों की सहायता करोगे
राधास्वामी।।





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