Monday, February 24, 2020

दयालबाग में शिक्षा संस्कृति और खेतीबाड़ी





 प्रस्तुति - स्वामी शरण /आत्म स्वरूप
 /संत शरण


[22/02, 07:59] +91 97830 60206:

।दयालबाग एवं सतसंग संस्कृति और कृषि।।


*(28) 1943 की एक सुबह हुजूर मेहताजी महाराज अपने साथ कुछ दर्जन आदमियों को लेकर झाड़ियों से भरे ऊंची नीची जमीन के हिस्से पर तशरीफ़ ले गये। वे अपने साथ फावडे ले गये और मैदान को साफ करना व समतल करना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे खेत में काम करने वाले सत्संगियों की संख्या बढ़ गई और यह सुबह के सत्संग के बाद का रोजाना का कार्यक्रम हो गया। ऊँचे भू- स्थलों  से मिट्टी को खींचकर लाने के लिए पाटे बनाए गए और सख्त व उबड खाबड दिखाई देने वाले खेत समतल होने लगे। तथा शाम को हर तरह का काम करने वाले सत्संगी इस सेवा में जाने लगे। जाडे की ठंडी सुबह में, गर्मी की तपती दोपहर में और बारिश के मौसम में हुजूर मेहताजी महाराज काम करने वालों को निर्देश देने और उत्साहित करने हेतु दया कर स्वयं वहाँ मौजूद रहते थे। समतल किये गये खेत जोते गए। उनमें विभिन्न फसलों के बीज बोए गए और माइनर नहर और ट्यूबवेल से सींचे गये। करते करते समय कुछ समय में 1250 एकड का एक कृषि फार्म बनकर तैयार हो गया और क्विंटलों अनाज, दालें तिलहन, मूँगफली, गन्न र सब्जियों आदि की फसल पैदा होने लगी ।"अधिक अन्न उपजाओ"  योजना के अंतर्गत दशको तक लगातार श्रम के परिणामस्वरूप दयालबाग अपनी जरुरत भर खदानों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया था। इस रैती और ऊसर भूमि को हरे भरे खेतों में बदलना किसी चमत्कार से कम नहीं था।               (29) 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दयालबाग और उसके आसपास के क्षेत्रों के नागरिकों की देखभाल के लिए दयालबाग में टाउन एरिया कमेटी की स्थापना एक प्रभावशाली कदम था। 1995 मे टाउध एरिया नगर पंचायत बन गई जो एक छोटी म्यूनिसिपल (नगर पालिका )है                    (30) 1961 में राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह एक प्रमुख घटना थी। समारोह लगभग 1 सप्ताह तक चला और हुजूर मेहताजी महाराज ने दया कर बसंत पंचमी के दिन सुबह संदेश दिया इसका हिंदी में अनुवाद परिशिष्ट 2 में प्रकाशित।।                               (31)  भारत और भारत के बाहर के अंग्रेजी जानने वाले व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ी संख्या में सत्संग की पोथियों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया और प्रकाशित किया गया। हुजूर मेहताजी  महाराज ने दया कर अधिकांश पवित्र पोथियाँ के अनुवाद करने का दुरुह कार्य स्वयं सरंजाम दिया जिसके परिणाम स्वरूप अब बड़ी संख्या में अंग्रेजी में पोथियां उपलब्ध है ।                 (32) सितंबर 1937 में विद्यार्थियों को मुफ्त दूध वितरण की योजना शुरू की गई ।बाद में उनके शिक्षण शुल्क की  अदायगी , मुफ्त यूनिफार्म, स्वेटर और जूते आदि महय्या करनें एवं उनकी स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रबंध किये गये।।         (33)  इस दौरान निर्माण कार्यों के अंतर्गत विद्युत नगर , और कार्यवीर नगर मोहल्लों का विस्तार हुआ, व लेदर गुड्स फैक्ट्री की इमारत, इंजीनियरिंग कॉलेज, उसकी प्रयोगशाला सहित एक भवन का निर्माण कार्य हुआ तथा लड़कों के लिए छात्रावास में स्थान बढ़ाया गया।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(34) 2 जनवरी 1956 को पंडित जवाहरलाल नेहरू दयालबाग आये और हुजूर मेहताजी महाराज ने उनका स्वागत करते हुए फरमाया-......  "दयालबाग आगरा शहर से दूर गाँव की तरह शांत है, साथ ही यहाँ शहरों की तरह पूर्ण स्वच्छता व सफाई का प्रबंध है। यहाँ विद्यार्थी, वैज्ञानिक व साधक एकांत में शांति पूर्वक अपना-अपना कार्य करते है और बेरोजगारों, कृषक व श्रमिक जीविका कमाने का अवसर पाते है। न यहाँ दौलत बहती है और न यहाँ कोई भूखा रहता है, न यहाँ बडे महल व कोठियाँ है, न टूटी-फूटी झोपडियाँ। न यहाँ कोई महान या बडा है न छोटा या अकिंचन। अगर यहाँ किसी का दूसरे से अधिक आदर होता है तो उसी का जो दूसरों से बढकर औऋ बेहतर काम करता है। दयालबाग सभी निवासियों का है लेकिन किसी भी निवासी का यहाँ किसी भी प्रकार का कोई मालिकाना अधिकार नही है।।" यह एक प्रकार से दयालबाग के सामाजिक आदर्शों का सार है।।                              (35) 1937 से 1975 का समय सतसंग के संगीकरण consolidation का समय था। इंडस्ट्री के विस्तार और कृषि द्वारा संगत में एक मौन क्रांति आई, साथ ही सदस्यों के आध्यात्मिक विकास को कायम रखते हुए बहुत समय से आवश्यक समझे जा रहे सामाजिक व सांस्कृतिक सुधार किये गये।।                                  (36) सतसंग की शानदार प्रगति हुई। सतसंगियों की संख्या निरंतर बढती रही। 1975 तक विदेश की 5 शाखाओं को मिलाकर सभा से सम्बद्ध 578 ब्राँचें थी तथा 10 प्रांतीय एसोसिएशंस जिनमें 3 विदेश की भी सम्मलित थी, बनाई गई। रीजनल तथा ब्राँच स्तर पर पुनर्गठन का कार्य किया गया।।                               (37) हुजूर मेहताजी महाराज के द्वाप दयालबाग के विभिन्न कार्यों की प्रगति जिस रफ्तार से शिक्षा, उद्योग, कृषि और सतसंगियों के कल्याण के क्षेत्रों में हुई थी वह रफ्तार 1975 से अब तक उसी वेग से जारी है। दयालबाग की शिक्षा निती  का एक प्रलेख 1977 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार को भेजा गया। इस शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का शारिरीक, बौद्धिक, भावात्मक तथा नैतिक एकीकरण करके उसे एक पूर्ण मानव के रुप में.विकसित करना था। एजुकेशन पॉलिसी का मूल-पाठ परिशिष्ट 3 में प्रकाशित है। इन शिक्षा निति के अनुसार एक नई तरह की शिक्षा पद्धति का निर्धारण करके उसके तत्वों को संस्थाओं में जारी किया गया। इस.शिक्षा पद्धति ने देश भर के शिक्षाविदों का ध्यान तत्काल आकार्षित किया और तबसे यह कई अन्य संस्थाओं द्वारा अपनाई गई है। नवीन शिक्षा पद्दति की पुनः संरचना करने और उसे अपनाने में पूरी तरह सक्षम डी.ई.आई. को केंद्र सरकार ने 1981 में डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्रदान किया। यह दयालबाग में.शिक्षा कु प्रगति तथा पूज्य आचार्यों के आदेशों के पालन की दिशा में विकास का एक महत्वपूर्ण कदम था। 1986 में टेक्निकल कॉलेज और 1995 में प्रेम विद्यालय को इसकी छत्रछाया में लाया गया।

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