Thursday, March 19, 2020

आज 20//03 का दिन मंगलमय शुभ हो।


प्रस्तुति - (Morni) / कृष्ण मेहता:
♦♦♦ ⚜🕉⚜ ♦♦♦

*🙏ॐ श्रीगणेशाय नम:🙏*
   *🙏शुभप्रभातम् जी🙏*

*इतिहास की मुख्य घटनाओं सहित पञ्चांग-मुख्यांश ..*

     *📝आज दिनांक 👉*
   
   *📜 20 मार्च 2020*
             *शुक्रवार*
 *🏚नई  दिल्ली अनुसार🏚*

*🇮🇳शक सम्वत-* 1941
*🇮🇳विक्रम सम्वत-* 2076
*🇮🇳मास-* चैत्र
*🌓पक्ष-* कृष्णपक्ष
*🗒तिथि-* द्वादशी पूर्णरात्रि
*🌠नक्षत्र-* श्रवण-17:05 तक
*🌠पश्चात्-* धनिष्ठा
*💫करण-* कौलव-18:56 तक
*💫पश्चात्-* तैतिल
*✨योग-* शिव-11:51 तक
*✨पश्चात्-* सिद्ध
*🌅सूर्योदय-* 06:24
*🌄सूर्यास्त-* 18:32
*🌙चन्द्रोदय-* 28:52
*🌛चन्द्रराशि-* मकर-30:20 तक
*🌛पश्चात्-* कुम्भ
*🌞सूर्यायण-* उत्तरायन
*🌞गोल-* उत्तरगोल
*💡अभिजित-* 12:04 से 12:53
*🤖राहुकाल-* 10:57 से 12:28
*🎑ऋतु-* वसन्त
*⏳दिशाशूल-* पश्चिम

*✍विशेष👉*

*_🔅आज शुक्रवार को 👉 चैत्र बदी द्वादशी पूर्णरात्रि , पापमोचनी एकादशी व्रत (वैष्णव ) , विजया वंजुली महाद्वादशी , सूर्य सायन मेष राशि में 09:09 पर , वसन्त सम्पात , सायन वसन्त ऋतु प्रारम्भ , सूर्य का उत्तर गोल प्रवेश , देवताओं का मध्याह्न , दैत्यों की मध्य रात्रि , उत्तराक्रान्ति , महाविषुव दिन , सर्वार्थसिद्धियोग / कार्यसिद्धियोग सूर्योदय से 17:05 तक , अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस व विश्व गौरैया दिवस।_*
*_🔅कल शनिवार को 👉 चैत्र बदी द्वादशी 07:57 तक पश्चात् त्रयोदशी शुरू , द्वादशी तिथि वृद्धि , रंग त्रयोदशी , शनि प्रदोष व्रत , वारुणी योग 19:40 से , गंगा वरूणा संगम पर स्नान , मधुश्रवा त्रयोदशी , शक चैत्र एवं संवत 1942 आरम्भ , द्विपुष्कर योग 06:04 से 07:56 तक , पंचक प्रारम्भ 06:20 से , मेला पृथूदक पिहोवा तीर्थ हरियाणा , विश्व सैन्य दिवस (कन्फर्म नहीं ) , विश्व वन दिवस , विश्व कविता दिवस , विश्व कठपुतली दिवस , अन्तर्राष्ट्रीय रंगभेद उन्मूलन दिवस व World Down Syndrome Day._*

*🎯आज की वाणी👉*

🌹
*नरस्याभरणं   रूपं*
      *रूपस्याभरणं गुण:।*
*गुणस्याभरणं ज्ञानं*
     *ज्ञानस्याभरणं क्षमा॥*
*भावार्थ👉*
          _मनुष्य का आभूषण उसका रूप होता है, रूप का आभूषण गुण होता है, गुण का आभूषण ज्ञान होता है और ज्ञान का आभूषण क्षमा होता है।अर्थात् रूपवान् होना भी तभी सार्थक है जब सच्चे गुण, सच्चा ज्ञान और क्षमा मनुष्य के भीतर हो।_
🌹

*20 मार्च की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ👉*

1602 – यूनाइटेड डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
1739 - नादिरशाह ने दिल्ली सल्तनत पर कब्ज़ा किया। मयूर सिंहासन के गहने चोरी किये और उन्होंने दो महीने तक दिल्ली में लूटमार की थी।
1814 – प्रिंस विलियम फ्रेडरिक नीदरलैंड का शासक बना।
1861 – अर्जेंटीना का मेंडोना शहर शक्तिशाली भूकंप की वजह से पूरी तरह से तबाह हो गया।
1904 – सी. एफ. एंड्रूज महात्मा गाँधी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने भारत आये।
1916 – अल्‍बर्ट आइंस्‍टीन की किताब जनरल थ्‍योरी ऑफ रिलेटिवली का प्रकाशन हुआ।
1920 – लंदन से दक्षिण अफ्रीका के बीच पहली उड़ान शुरू हुई।
1956 – ट्यूनीशिया को फ्रांस से आजादी मिली।
1956 – सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षण किया।
1964 – यूरोपियन स्पेश रिचर्स आॅर्गनाइजेशन की स्थापना हुई।
1966 – लंदन वेस्टमिनिस्टर के सेंट्रल हॉल में प्रदर्शनी के लिए रखा गया फुटबॉल वर्ल्ड कप चोरी हो गया। इसकी कीमत तीस हजार पाउंड थी।
1969 – अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन ने वर्ष 1970 में वियतनाम युद्ध की समाप्ति की घोषणा की।
1977 – प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव में पराजित हुईं।

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1981 – अर्जेंटीना के पूर्व राष्ट्रपति इसाबेल पेरोन को आठ वर्ष की सजा हुई।
1982 – फ्रांस ने परमाणु परीक्षण किया।
1987 – फूड एंड ड्रग एडमिनिशट्रेशन ने एंटी एड्स दवा AZT को मंजूरी दी। अमेरिकी सरकार द्वारा एड्स के इलाज के लिए मंजूरी दी जाने वाली यह पहली दवा थी।
1990 – नामीबिया ने 75 सालों के दक्षिण अफ्रीकी शासन से आजादी पाई थी और अर्धरात्रि में  स्वतंत्रता की घोषणा हुई।
1991 - बेगम ख़ालिदा जिया बांग्लादेश की राष्ट्रपति निर्वाचित।
1995 – टोक्यो में भूमिगत रेल मार्ग में विषैली गैस के लीक होने से 12 लोगों की मौत हो गई और 4700 लोग घायल हुए।
2002 - नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा 6 दिवसीय यात्रा पर भारत पहुँचे ।
2002 - जिम्बाब्वे राष्ट्रमंडल से निलम्बित।
2003 - इराक पर अमेरिकी हमला शुरू।
2006 - अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री ने दावा किया कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में है।
2009 - न्यायमूर्ति चन्द्रमौली कुमार प्रसाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश नियुक्त हुए।
2019 - पीएनबी घोटाला: भगोड़ा नीरव मोदी लंदन में गिरफ्तार, नहीं मिली जमानत, 29 मार्च तक जेल में रहेगा।

*20 मार्च को जन्मे व्यक्ति👉*

1782 - कर्नल टॉड - अंग्रेज़ अधिकारी एवं इतिहासकार, जिसे राजस्थान के इतिहास का मार्ग सर्वप्रथम प्रशस्त करने का श्रेय दिया जाता है।
1966 – नेशनल फिल्‍म अवार्ड विजेता गायिका अल्‍का याग्निक का जन्‍म कोलकाता में हुआ था।
1973 - अर्जुन अटवाल - भारतीय पहले गोल्फ खिलाड़ी।
1987 - कंगना राणावत, भारतीय अभिनेत्री।
1615 - दारा शिकोह - मुग़ल बादशाह शाहजहाँ और मुमताज़ महल का सबसे बड़ा पुत्र था।

*20 मार्च को हुए निधन👉*

1351 – दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हुई।
1727 - आइज़ैक न्यूटन - महान् गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिर्विद एवं दार्शनिक थे।
1943 - एस. सत्यमूर्ति - भारत के क्रांतिकारी नेता थे।
1943 - शशिभूषण रथ - 'उड़िया पत्रकारिता के जनक' और स्वतंत्रता सैनानी थे।
1970 - जयपाल सिंह - भारतीय हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ियों में से एक।
1972 - प्रेमनाथ डोगरा - जम्मू-कश्मीर के एक नेता थे।
1995 - रोहित मेहता - प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक, लेखक‍, दार्शनिक, भाष्यकार और स्वतंत्रता सेनानी थे।
1999 - प्रख्यात ब्रिटिश अमूर्त चित्रकार पैट्रिक हेरोन का निधन।
2008 - सोभन बाबू, भारतीय अभिनेता।
2011 - बोब क्रिस्टो -भारतीय फ़िल्मों के अभिनेत्री।
2014 - खुशवंत सिंह - भारत के प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार।
2015 - मैल्कम फ्रेजर - ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री।
2019 - 1971 युद्ध के हीरो बांग्लादेश नेवी के संस्थापक कैप्टन एमएन सामंत का निधन।

*20 मार्च के महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव👉*

🔅 अन्तर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस।
🔅 विश्व गौरेया दिवस ।

*कृपया ध्यान दें जी👉*
    *यद्यपि इसे तैयार करने में पूरी सावधानी रखने की कोशिश रही है। फिर भी किसी घटना , तिथि या अन्य त्रुटि के लिए मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है ।*

🌻आपका दिन *_मंगलमय_*  हो जी ।🌻

   ⚜⚜ 🌴 💎 🌴⚜⚜
[20/03, 08:41] Morni कृष्ण मेहता: चैत्र नवरात्री की बड़ी महत्ता है चैत्र शुक्ल पक्ष से प्रारम्भ होने वाली इस नव रात्रि का प्रथम इस दिन से नए वर्ष की शुरुआत होती  है, द्वितीय- संवत्सर का प्रारम्भ भी इसी तिथि से होता है, तृतीय- यह नवरात्री सकाम्य नवरात्री कहलती है | अर्थात समस्त प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाले शुभ दिवस हैं ये |

    नवरात्री पूजन , या साधना के अनेक विधान हैं जो जिस भी तरीके से माँ को मना सकता है, मनाता है | किन्तु इस बार हम इस नवरात्र विशेस साधना करेंगे , इन नौ दिनों में भगवती के तीन विविध मन्त्र की साधना, जो प्रत्येक व्यक्ति को जीवन मे एक उच्च आयाम तक पहुंचा सकती है, यदि वह सच में पूर्ण मन कर्म और वचन यानी संकल्प के साथ संपन्न कर लेता है तो निश्चित ही प्रत्येक क्षेत्र में सफल होगा ही ये अकाट्य सत्य है और मेरा अनुभूत भी |

     दुर्गा सप्तसती एक तांत्रिक ग्रन्थ है ये तो सभी जानते हैं किन्तु प्रयोग विधान कम ही लोग कर पाते हैं और जो कर लेते हैं तो उनके लिए कुछ भी कठिन नहीं | दुर्गा सप्तसती में माँ आद्याशक्ति के भिन्न रूपों की साधना है ये,

१-    प्रबल-आकर्षण हेतु महामाया प्रयोग—जो की प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए ही ताकि वह अपने कार्यों में सामाजिक जीवन हो या अध्यात्मिक जीवन व्यक्ति के व्यक्तित्व में आकर्षण होगा तो सफलता मिलना निश्चित हि है और इस प्रयोग को नवरात्रि के पहले तीन दिवस करना है |

२-    आत्म विश्वास हेतु महा सरस्वती प्रयोग- आकर्षण तो है किन्तु अपनी बात कहने या कार्य करने में आत्म विश्वास नहीं तो क्या लाभ, अतः उसका दूसरा सोपान आत्मशक्ति जागरण का है , अतः मध्य के तीन दिवस इस प्रयोग को करना होगा |

३-    धनधान्य पुत्र पौत्र सुख सौभाग्य हेतु श्री दुर्गा प्रयोग- अब अपने प्रबल आकर्षण और आत्मविश्वास से आप अपना व्यापार या सुख सम्रद्धि पा भी लेते हो किन्तु उसे भोगने हेतु परिवार नहीं पुत्र-पौत्र नहीं तो भी कोई लाभ नहीं अतः इस हेतु अंतिम तीन दिवस इस प्रयोग को करना से पूर्णता प्राप्त होती ही है |

विधि व सामग्री-
             वैसे तो इन दिनों सभी के पास सभी पूजा सामग्री प्राप्य होती है किन्तु फिर भी माँ अम्बे का एक सुन्दर चित्र, पीले आसन पीले वस्त्र प्रथम तीन दिवस, मध्य के तीन दिनों में, श्वेत वस्त्र और आसन, अंतिम तीन दिवस में लाल वस्त्र और लाल आसन, दिशा पूर्व या उत्तर दिशा चेंज नहीं करनी है बस मन्त्र और प्रयोगानुसार वस्त्र और आसन हि बदलने हैं, घी का दीपक जो नौ दिन अखंड जलेगा, कलशा की स्थापना और नव गृह की स्थापना अनिवार्य है, दाहिने ओर गणेश, और बायें ओर भैरव स्थापना करना है | प्रतिदिन प्रातः माँ का पूजन अबीर गुलाल कुमकुम चन्दन पुष्प धुप दीप और नेवैद्ध से करना है नेवैद्ध में खीर या हलुवे का भोग , यदि संभव हो सके तो  प्रति दिन एक कन्या का पूजन कर भोजन करवाएं या दसवे दिन तीन पांच या नौ कन्याओं को एक साथ |

   चूँकि ये साधना रात्रि कालीन है अतः दसवें दिन ही हवन और पूर्णाहुति सभव है, दूसरी बात प्रत्येक तीन के बाद चतुर्थ दिन प्रातः उस प्रयोग के मंत्रो का हवन करना है फिर रात से दूसरा प्रयोग शुरू होगा |

पूर्ण नियम संयम ब्रह्मचर्य, भूमि सयन, प्रति दिन प्रातः के पूजन में यदि कवच, अर्गला और रात्रिसूक्त का पाठ और कुंजिका स्त्रोत किया जाए तो अति उत्तम |
 
प्रबक आकर्षण हेतु महामाया प्रयोग—
पीले वस्त्र पीला आसन, जप संख्या-पांच माला हल्दी माला से |  हवन हेतु १५० बार |
ध्यान मन्त्र –
ॐ खड्गंचक्रगदेषुचापपरिद्याञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः,
शङखं संदधतिं करैस्त्रिनयनां सर्वाङगभूषावृताम |
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां,
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलो हन्तु मधुं कैटभं ||
मन्त्र—
ॐ महामाया हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,
ग्यानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा |
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ||

२- आत्मविश्वास हेतु महा सरस्वती प्रयोग-
सफ़ेद वस्त्र सफ़ेद आसन, जप संख्या पांच माला, स्फटिक माला से | हवन हेतु १५० मन्त्र जप से |

ध्यान मन्त्र—
ॐ घंटाशूलहलानि शंख्मुसले चक्रम धनुः सायकं,
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् |
गौरीदेहसमुद्धवामं त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र
सरस्वतीमनुभजे शुंभादिदैत्यार्दिनीम् ||

मन्त्र—
यो मां जयति संग्रामे, यो मे दर्पं व्यपोहति |
यो मे प्रतिबलो लोके स मे भर्ता भविष्यता  ||

३-धन धन्य एवं पुत्र-पौत्र हेतु श्री दुर्गा प्रयोग-
लाल आसन, लाल वस्त्र, जप संख्या पांच माला मूंगा माला से | हवन हेतु १५० मन्त्र से—

ध्यान-
ॐ विद्युत्दामसमप्रभामं मृगपतिस्कंधस्थितां भीषणां,
कन्याभिः करवालखेटविलासद्धस्ताभीरासेवितां |
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं,
बिभ्राणा-मनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ||

मन्त्र-

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः |
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ||

इस तरह इस साधना की पूर्णाहुति होती है किन्तु इन तीनों मन्त्रों को एक माह तक याने ३० दिनों तक निराब्तर ११ या २१ बार करें |

स्नेही स्वजन !
 साधना से जीवन पथ आसान होता है और व्यक्तित्व मुखर होता है व उच्चता प्राप्त होती है अतः साधक बनें व अध्यात्म की उचाईयों तक पहुंचे यही  आप सब के लिए निवेदन है|
[20/03, 08:41] Morni कृष्ण मेहता: शीघ्र फलदायी यज्ञपूजा

   इष्ट की प्रसन्नता का सचोट मार्ग है यज्ञ.यज्ञ विधानमे इष्टदेव को आवाहन पूजन और आहुति प्रत्यक्ष अग्नि देवता द्वारा अर्पित की जाती है यहां कोई संशय ही नही की हमारा भाव इष्टदेवने ग्रहण किया या नही.सतयुग से लेकर आजतक हरेक ऋषि परंपरामें इष्ट का नित्य यज्ञ ही मुख्य उपासना रही है.हमारे साधु भगवंतों जो धुना स्थापन करते है वो अविरत यज्ञ है.हरेक धर्मनिष्ठ व्यक्ति को सालमे एक बार अपने घर पर जिस कुलदेवी या इष्टदेवमे श्रद्धा हो उनकी प्रसन्नता केलिए यज्ञ करवाना चाहिए .जो सक्षम हो वो प्रतिमास भी यज्ञ कर सकते है.ऐसे कही उपासक साधक है जो निशदिन यज्ञ करते है

  यज्ञ करवाना मतलब ऐसा नही की घर पर बड़ा धाम धूम वाला प्रसंग ही करना है ,आप सादाई पूर्वक सिर्फ एक ब्राह्मण को बुलाकर यज्ञ करवा सकते है जो मात्र 1 घंटे भर का विधान है.आप खुद भी सीखले तो नित्य यज्ञ तो सिर्फ 30 मिनिट में आप कर सकते है.धन प्राप्ति ,पुत्र प्राप्ति ,सुआरोग्य प्राप्ति ,विवाह प्राप्ति,ये तमाम प्रकार के फलप्राप्ति यज्ञ द्वारा प्राप्त जोती है ( अगर कोई धनाढ्य व्यापारी धन खर्च कर सके तो उच्च श्रेणी पूजा के साथ चिरकाल स्थिर लक्ष्मी और नए उद्योग उपार्जन केलिए भी बड़े यज्ञ है ) पर सामान्य व्यक्ति सादाई से बिल्कुल थोड़े से खर्च में भी यज्ञ कर सकता है.नित्य यज्ञ तो बिल्कुल सामान्य ख़र्चमे हरदिन कर सकते है.हरेक नगर गांवोमे गायत्री परिवार द्वारा लगभग निशुल्क या सामान्य खर्च में आपके घर आकर यज्ञ करवाने का बहोत प्रसंशनीय कार्य किया जाता है..

हमारी प्राचीन संस्कृति को अगर एक ही शब्द में समेटना हो तो वह है यज्ञ। 'यज्ञ' शब्द संस्कृत की यज् धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है दान, देवपूजन एवं संगतिकरण। भारतीय संस्कृति में यज्ञ का व्यापक अर्थ है, यज्ञ मात्र अग्निहोत्र को ही नहीं कहते हैं वरन् परमार्थ परायण कार्य भी यज्ञ है। यज्ञ स्वयं के लिए नहीं किया जाता है बल्कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए किया जाता है।

यज्ञ का प्रचलन वैदिक युग से है, वेदों में यज्ञ की विस्तार से चर्चा की गयी है, बिना यज्ञ के वेदों का उपयोग कहां होगा और वेदों के बिना यज्ञ कार्य भी कैसे पूर्ण हो सकता है। अस्तु यज्ञ और वेदों का अन्योन्याश्रय संबंध है।
जिस प्रकार मिट्टी में मिला अन्न कण सौ गुना हो जाता है, उसी प्रकार अग्नि से मिला पदार्थ लाख गुना हो जाता है। अग्नि के सम्पर्क में कोई भी द्रव्य आने पर वह सूक्ष्मीभूत होकर पूरे वातावरण में फैल जाता है और अपने गुण से लोगों को प्रभावित करता है। इसको इस तरह समझ सकते हैं कि जैसे लाल मिर्च को अग्नि में डालने पर वह अपने गुण से लोगों को प्रताडि़त करती है इसी तर  सामग्री में उपस्थित स्वास्थ्यवद्र्धक औषधियां जब यज्ञाग्नि के सम्पर्क में आती है तब वह अपना औषधीय प्रभाव व्यक्ति के स्थूल व सूक्ष्म शरीर पर दिखाती है और व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता चला जाता है। मनुष्य के शरीर में स्नायु संस्थान, श्वसन संस्थान, पाचन संस्थान, प्रजनन संस्थान, मूत्र संस्थान, कंकाल संस्थान, रक्तवह संस्थान आदि सहित अन्य अंग होते हैं उपरिलिखित हवन सामग्री में इन सभी संस्थानों व शरीर के सभी अंगों को स्वास्थ्य प्रदान करने वाली औषधियां मिश्रित हैं। यह औषधियां जब यज्ञाग्नि के सम्पर्क में आती हैं तब सूक्ष्मीभूत होकर वातावरण में व्याप्त हो जाती हैं जब मनुष्य इस वातावरण में सांस लेता है तो यह सभी औषधियां अपने-अपने गुणों के अनुसार हमारे शरीर को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती हैं। इसके अलावा हमारे मनरूपी सूक्ष्म शरीर को भी स्वस्थ रखती हैं।
यज्ञ की महिमा अनन्त है। यज्ञ से आयु, आरोग्यता, तेजस्विता, विद्या, यश, पराक्रम, वंशवृद्धि, धन-धन्यादि, सभी प्रकार की राज-भोग, ऐश्वर्य, लौकिक एवं पारलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल से लेकर अब तक रुद्रयज्ञ, सूर्ययज्ञ, गणेशयज्ञ, लक्ष्मीयज्ञ, श्रीयज्ञ, लक्षचंडी भागवत यज्ञ, विष्णुयज्ञ, ग्रह-शांति यज्ञ, पुत्रेष्टि, शत्रुंजय, राजसूय, ज्योतिष्टोम, अश्वमेध, वर्षायज्ञ, सोमयज्ञ, गायत्री यज्ञ इत्यादि अनेक प्रकार के यज्ञ होते चले आ रहे हैं। हमारा शास्त्र, इतिहास, यज्ञ के अनेक चमत्कारों से भरा पड़ा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी सोलह-संस्कार यज्ञ से ही प्रारंभ होते हैं एवं यज्ञ में ही समाप्त हो जाते हैं।
क्योंकि यज्ञ करने से व्यष्टि नहीं अपितु समष्टि का कल्याण होता है। अब इस बात को वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि यज्ञ करने से वायुमंडल एवं पर्यावरण में शुद्धता आती है। संक्रामक रोग नष्ट होते हैं तथा समय पर वर्षा होती है। यज्ञ करने से सहबन्धुत्व की सद्भावना के साथ विकास में शांति स्थापित होती है।

यज्ञ को वेदों में 'कामधुन' कहा गया है अर्थात् मनुष्य के समस्त अभावों एवं बाधाओं को दूर करने वाला। 'यजुर्वेद' में कहा गया है कि जो यज्ञ को त्यागता है उसे परमात्मा त्याग देता है। यज्ञ के द्वारा ही साधारण मनुष्य देव-योनि प्राप्त करते हैं और स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं। यज्ञ को सर्व कामना पूर्ण करने वाली कामधेनु और स्वर्ग की सीढ़ी कहा गया है। इतना ही नहीं यज्ञ के जरिए आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर प्राप्ति भी संभव है।
यज्ञ भारतीय संस्कृति का आदि प्रतीक है। शास्त्रों में गायत्री को माता और यज्ञ को पिता माना गया है। कहते हैं इन्हीं दोनों के संयोग से मनुष्य का दूसरा यानी आध्यात्मिक जन्म होता है जिसे द्विजत्व कहा गया है। एक जन्म तो वह है जिसे इंसान शरीर के रूप में माता-पिता के जरिए लेता है। यह तो सभी को मिलता है लेकिन आत्मिक रूपांतरण द्वारा आध्यात्मिक जन्म यानी दूसरा जन्म किसी किसी को ही मिलता है। शारीरिक जन्म तो संसार में आने का बहाना मात्र है लेकिन वास्तविक जन्म तो वही है जब इंसान अपनी अंत: प्रज्ञा से जागता है, जिसका एक माध्यम है 'यज्ञ'।
यज्ञ की पहचान है 'अग्नि' या यूं कहें 'अग्नि', यज्ञ का अहम हिस्सा है जो कि प्रतीक है शक्ति की, ऊर्जा की, सदा ऊपर उठने की। शास्त्रों में अग्नि को ईश्वर भी कहा गया है इसी अग्नि में ताप भी छिपा है तो भाप भी छिपी है। यही अग्नि जलाती भी है तो प्रकाश भी देती है। इसी अग्नि के माध्यम से जल भी बनता है और जल मात्र मानव जीवन के लिए ही नहीं बल्कि पूरी प्रकृति के लिए वरदान है, अमृत है। इसीलिए अग्नि इतनी पूजनीय है।
एक प्रकार से अग्नि ही ईश्वर है तभी तो अग्नि इतनी पूजनीय है। यही कारण है कि हर धर्म एवं सम्प्र्रदाय में अग्नि का इतना महत्व है तथा उसे किसी न किसी रूप में जलाया व पूजा जाता है। और यज्ञ भी एक तरह की पूजा है। यदि यज्ञ में जलती अग्नि ईश्वर है तो अग्नि का मुख ईश्वर का मुख है। यज्ञ में कुछ भी आछूत करने का अर्थ है परमात्मा को भोजन कराना। इसलिए अग्नि को जो कुछ खिलाया जाता है वह सही अर्थों में ब्राहृभोज है। जिस तरह भगवान सबको खिलाता है उसी तरह यज्ञ के जरिए इंसान भगवान को खिलाता है।
यज्ञ परमात्मा तक पहुंचने का सोपान है। उसका सान्निध्य पाने का माध्यम है। यज्ञ में प्रकट अग्नि साक्षात् भगवान है। इसीलिए यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने के लिए तथा उसे बनाए रखने के लिए यज्ञ या हवन सामग्री का भी विशेष स्थान है। यह सामग्री न केवल भगवान के भोजन का हिस्सा बनती है बल्कि इससे उठने वाला धुआं वायुमंडल को शुद्ध करता है।

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