Friday, March 27, 2020

राधास्वामी दयालबाग / नो घबराहट





*【प्रेम प्रचारक】   

(नो घबराहट):-           इस रचना पर काल कर्म धार सदा से गिरती आई है, कर्म प्रधान जगत में सबको कर्म का फल मिलता भाई है। (1)                                 कर्म रेख पर मेख जो मारे ऐसा गुरु हमारा है, सत्संगी गौर हालत में गुरु ही एक सहारा है।(2)                                                                दीन दुखी असहाय होय जब सत्संगी घबराता है, " नो घबराहट" का संदेश गुरुमेहर की याद दिलाता है।(3)                                     जब सद्गुरु की यह बानी है फिर घबराना किससे कैसा, सतगुरु ही आप संभालेंगे दुख आये चाहे भी जैसा ।(4)                                                   गुरु की दया से काल जाल मन से छटाँक हो जाता है , सूली की सजा भी घट जाती काँटा बन कर चुभ जाता है। (5)                                                    मौज समझ हर हालत में जब सत्संगी दृढ रहता है, नो घबराहट का संदेश गुरु मेहर की याद दिलाता है ।(6)                                  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[27/03, 14:20] +91 94162 65214: **राधास्वामी!! 27-03-2020                         आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-(1) बिकल जिया तरस रहा। मोहि दरस दिखा दो जी।।टेक।। (प्रेमबानी-3,शब्द-7,पृ.सं. 204)      (2) सखी री मैं तो जावत हूँ पिया देश।(टेक) -(प्रेमबिलास-शब्द-88-पृ.सं.124)                     (3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा-कल से आगे।                 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी !!    27-03 -2020 -                       आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे -(92)  लोगों का यह ख्याल है कि संसार की किसी वस्तु या संसार के किसी जीव से सदा स्थाई प्रीति की जा सकती है।  जैसे छोटे बच्चे खिलौना देखकर पूरी तवज्जुह के साथ उसकी तरफ दौड़ते हैं और उससे दिल बहलाते हैं लेकिन थोड़ी देर बाद दिल भर जाने पर उसे फेंक देते हैं ऐसे ही उम्र पाए हुए लोग भी दूसरे या संसार की वस्तुओं के साथ थोड़ी देर प्रीति करके उक्ता जाते हैं और फिर उनसे मुंह फेर लेते हैं। जबकि मनुष्य का मन प्रकृति है और हर प्राकृतिक वस्तु में परिवर्तन आवश्यक है तो मन का हाल सदा एक समान कैसे रह सकता है।।                                                      मनुष्य खास दशाओं व अवस्थाओं के प्रभाव की मौजूदगी में दूसरे मनुष्य या संसार की वस्तुओं से प्रीति बाँधते हैं और उन दशाओं व अवस्थाओं में परिवर्तन होते हैं उनकी प्रीति गायब हो जाती है। ऐसे देखने में आया है कि जो माता अपने बच्चे को सुंदर व हृष्ट पुष्ट देखकर उसे जबरदस्त प्रीति करती है उसके किसी असाध्य रोग से पीड़ित होकर सूख जाने पर उसकी मौत मांगने लगती है। संसार की वस्तुओं के मुकाबले मनुष्य की प्रकृति के सांग बिलास करने की रूचि ज्यादा ठहराऊ है इसलिए सच्चे परमार्थ में उस रूचि के नाश करने के लिए, जो मनुष्य के सांसारिक मोह की जड़ है, ज्यादा जोर दिया जाता है।                                            🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 सत्संग के उपदेश भाग तीसरा**

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