Thursday, March 19, 2020

निर्भया - कोरोना पर दिनेश श्रीवास्तव की कविताएं









Ds दिनेश श्रीवास्तव:

 कॅरोना वायरस-कारण और निदान
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एक 'कॅरोना' वायरस,जग को किया तबाह।
निकल रही सबकी यहाँ, देखो कैसी आह।।-1

विश्वतंत्र व्याकुल हुआ,मरे हजारों लोग।
आपातित इस काल को,विश्व रहा है भोग।।-2

खान-पान आचरण ही,इसका कारण आज।
रक्ष-भक्ष की जिंदगी,दूषित आज समाज।।-3

योग-साधना छोड़कर,दुराचरण है व्याप्त।
काया कलुषित हो गई, मानस शक्ति समाप्त ।।-4

स्वसन तंत्र का संक्रमण,करता विकट प्रहार।
शीघ्र काल-कवलित करे,करता है संहार।।-5

ये विषाणु का रोग है,करता शीघ्र विनास।
रोगी से दूरी बने,रहें न उसके पास।।-6

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
ये विषाणु, इसका सदा,शीघ्र फैलना काम।।-7

हो बुखार खाँसी कभी,सर्दी और ज़ुकाम।
हल्के में मत लीजिए,लक्षण यही तमाम।।-8

भोजन नहीं गरिष्ठ हो,हल्का हो व्यायाम।
रहें चिकित्सक पास में,करिए फिर विश्राम।।-9

तुलसी का सेवन करें,श्याम-मिर्च के साथ।
पत्ता डाल गिलोय का,ग्रहण करें नित क्वाथ।।-10

करें विटामिन  'सी'  सदा,अक्सर हम उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-11

रहना अपने देश मे,अनुनय करे 'दिनेश'।
प्यारा अपना देश है,जाना नहीं विदेश।।-12

आएँ अगर चपेट में,रखिये धीरज आप।
वैद्य दवा के साथ ही,महा मृत्युंजय जाप।।-13

                     दिनेश श्रीवास्तव
                      गाज़ियाबाद
[15/03, 15:06] Ds दिनेश श्रीवास्तव: गीतिका

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                चिंता चिता समान
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चिंता ज्वाला बन करे, नित प्रति दग्ध शरीर।
चिंता चिता समान है,अति उपजाए पीर।।

पंथी करता क्यों यहाँ, पथ की चिंता आज।
मिलता उसको है यहाँ, लिखी गई तकदीर।।

क्या लेकर आए यहाँ, जाओगे सब छोड़।
फिर तुम किसकी चाह में,होते यहाँ अधीर।।

नश्वर जीवन है यहाँ, पुनर्जन्म है सत्य।
चिंतित हैं फिर किस लिए,राजा,रंक, फ़क़ीर।।

जीवन मे किसको मिला,सब कुछ यहाँ जहान।
गया सिकंदर लौट कर,खाली हाथ शरीर।।

चिंतित हो चिंतन करे,मानव प्रज्ञाहीन।
चिंता में व्याकुल यहाँ, पीटे व्यर्थ लकीर।।

कर्मशील बनकर रहो,चिंतामुक्त 'दिनेश'।
सत्य यही सब कह गए, गीता,कृष्ण,कबीर।।


             दिनेश श्रीवास्तव
[17/03, 10:12] Ds दिनेश श्रीवास्तव: बाल-कविता
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बापू ने जो राह दिखाई,
साफ सफाई करना भाई।
रोग व्याधियाँ दूर रहेंगी,
मोदी ने भी अलख जगाई।।

नए नए ये रोग निराले,
सुने नहीं थे,देखे भाले।
इसके कारण विश्व काँपता,
'कोरोना' को कौन सम्हाले।।

"स्वच्छमेव जयते" का नारा,
नारा यही हमारा प्यारा।
इससे सारे रोग भगेंगे,
यही हमारा बने सहारा।।

'कोरोना' को दूर भगाएँ,
साफ सफाई को अपनाएँ।
बापू के संदेश जगत को,
एक बार फिर से समझाएँ।।

सभी प्रश्न का एक है उत्तर,
धोना होगा हाथ निरंतर।
गर्म गर्म पानी को पीना,
इसका यह अचूक है मंतर।।

कभी न इससे है घबराना,
भीड़ भाड में कहीं न जाना।
दूर दूर से हाथ जोड़ना,
नहीं किसी को गले लगाना।।

नीबू और संतरा खाना,
मिले आँवला उसे चबाना।
लेकर शस्त्र विटामिन 'सी' का,
'कोरोना' को आज हराना।।

                    दिनेश श्रीवास्तव
[19/03, 11:11] Ds दिनेश श्रीवास्तव: दोहे-

            "कोरोना से बचाव"

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
यही हमारी सभ्यता,सुबह मिलें या शाम।।-१

प्रियजन भगिनी या सुता,गले न मिलिए आप।
दूर रहें सब प्रेमिका,छोड़ प्रेम का ताप।।-२

प्रक्षालन हो हाथ का,साबुन से भरपूर।
प्रियजन को भी कीजिये,धोने को मजबूर।।-३

करें विटामिन 'सी'सदा,भोजन में उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई  रोग।।-४

भीड़ भाड़ लगता जहाँ,वहाँ न जाएँ आप।
मिल सकता है आप को,कोरोना संताप।।-५

काली मिर्च गिलोय का,तुलसी अदरक साथ।
सेंधा नमक मिलाइए, बना पीजिए क्वाथ।।-६

सेवन प्रतिदिन कीजिए,नीबू एक निचोड़।
और आंवला स्वरस भी,काम करे बेजोड़।।-७

अपनी शक्ति बढ़ाइए, फिर प्रहार पुरजोर।
कोरोना भी हारकर,भगे मचाते शोर।।-८

अक्ष भक्ष को छोड़कर,भोजन शाकाहार।
करें निरंतर आप फिर,रोगों का संहार।।-९

बहुत जरूरी हो अगर, बाहर निकलें आप।
मास्क लगाकर निकलिए,करते शिव का जाप।।-१०

                      दिनेश श्रीवास्तव
[19/03, 19:03] Ds दिनेश श्रीवास्तव: गीत
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अक्ष भक्ष की धारणा,करते हैं व्यभिचार।
यही राक्षसी वृत्तियाँ,छोड़ो मेरे यार।।

मानव करता जा रहा,अपने को ही अंत।
कथनी करनी भेद से,नहीं अछूता संत।।
ढोंग प्रदर्शन को सदा,रहता है तैयार।
यही राक्षसी-----------------------।।

कुदरत के कानून को,तोड़ रहे सब लोग।
तरह तरह की व्याधियाँ,भोग रहे सब लोग।।
कुदरत भी तैयार है,करने को प्रतिकार।
यही राक्षसी--------------------।।

निष्कंटक जीवन बने,व्यर्थ मचे क्यों शोर।
मुड़कर फिर से देखिए,इस प्रकृति की ओर।।
दोहन इसका रोकिए,बने न ये लाचार।
यही राक्षसी---------------------।।

कोरोना का रोग भी,फैला है जो आज।
लगता कुदरत ही यहाँ, हमसे है नाराज।।
नष्ट भ्रष्ट हमने किया,कुदरत का शृंगार।।
यही राक्षसी--------------------।।

                           दिनेश श्रीवास्तव
[20/03, 08:58] Ds दिनेश श्रीवास्तव:

निर्भय दिवस
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निर्भय दिवस मनाइए
खुश होइए
निर्द्वंद होकर
सो जाइये।
क्योंकि
दरिंदे सो गए
चिरंतन नींद में।
अब कभी नहीं
होगा बलात्कार,
बहू बेटियों का
होगा सत्कार।
नहीं मरेंगी बेटियाँ अब
लेकिन भ्रूण हत्या
रुकेगी कब?
हत्या तो हत्या है,
चाहे पेट में या
सड़क पर।
फाँसी का विकल्प
केवल और केवल
होता है संकल्प
हत्या न करने का
पेट मे या सड़क पर।।

                       दिनेश श्रीवास्तव

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