**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1-(13)-【 सत्संग की महिमा】-(1) सत्संग की महिमा सब मतों में वर्णन की है पर बहुत थोडे लोग हैं जो इसके कदर जानते हैं । बहुत से लोग तो यह भी नहीं जानते कि सत्संग किसको कहते हैं। तीर्थों में और मंदिरों में लोग अनगिनत जाते हैं पर सत्संग का खोज और उसमें शामिल होने की चाहा किसी के दिल में मालूम नहीं होती । इन कामों में फल बहुत कम है, और जो कुछ है सो भी सैर और तमाशे में जाता रहता है।। ( 2) सतसंग का फायदा बहुत ज्यादा है पर उसकी कदर और चाह बहुत कम है । सच तो यह है कि जब तक कोई सततपुरुषों का गहरा संग नहीं करेगा और उनके बचन को चित्त देकर नहीं सुनेगा और उन बचनों का मनन और विचार करके अपने फायदे की बातों को छांट कर थोड़े बहुत उनके मुआफिक बर्ताव नहीं करेगा, तब तक उस पर परमार्थ का रंग किसी तरह नहीं चढ़ेगा और न उसके मन और बुद्धि की हालत बदलेगी और उसका चालचलन दुरुस्त होगा । इस वास्ते सब जीवो को जरूर चाहिए कि अपने शहर में और जहां कहीं कि वे जावें सत्संग का खोज करके उसमें जिस कदर बन सके शामिल होकर उससे फायदा उठाने।। ( 3)- अब समझना चाहिए कि सत्संग किसको कहते हैं। संत अथवा राधा राधास्वामी मत में सत्संग नाम ऐसी सभा और संगत या जलसे का है जहां कि सच्चे मालिक का निर्णय और उसकी महिमा और उससे मिलने के सच्चे रास्ते और जुगत का बयान होता होवे और राजाओं और सूरमाओं और दानी पुरुषों की तारीफ और हाल का जिक्र ना होवे और मुखिया ऐसी संगत के सतगुरू या साधगुरु होवें या उनका निज सत्संगी जो प्रेम और सचौटी के साथ अभ्यास कर रहा होवे, क्योंकि ऐसा सत्संग बगैर सत्तपुरुषों की मदद के जो कि आप मालिक से मिल रहे हैं या मिलने के लिए सच्चा अभ्यास कर रहे हैं और अपने तन मन और इंद्रियों को अभ्यास के बल से पूरा पूरा या किसी कदर काबू में लाए हैं, नहीं चल सकता और ना किसी को उससे जैसा चाहिए फायदा हासिल हो सकता है। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
Tuesday, March 24, 2020
राधास्वामी - दयालबाग / प्रेम-पत्र / हुज़ूर महाराज साहब
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1-(13)-【 सत्संग की महिमा】-(1) सत्संग की महिमा सब मतों में वर्णन की है पर बहुत थोडे लोग हैं जो इसके कदर जानते हैं । बहुत से लोग तो यह भी नहीं जानते कि सत्संग किसको कहते हैं। तीर्थों में और मंदिरों में लोग अनगिनत जाते हैं पर सत्संग का खोज और उसमें शामिल होने की चाहा किसी के दिल में मालूम नहीं होती । इन कामों में फल बहुत कम है, और जो कुछ है सो भी सैर और तमाशे में जाता रहता है।। ( 2) सतसंग का फायदा बहुत ज्यादा है पर उसकी कदर और चाह बहुत कम है । सच तो यह है कि जब तक कोई सततपुरुषों का गहरा संग नहीं करेगा और उनके बचन को चित्त देकर नहीं सुनेगा और उन बचनों का मनन और विचार करके अपने फायदे की बातों को छांट कर थोड़े बहुत उनके मुआफिक बर्ताव नहीं करेगा, तब तक उस पर परमार्थ का रंग किसी तरह नहीं चढ़ेगा और न उसके मन और बुद्धि की हालत बदलेगी और उसका चालचलन दुरुस्त होगा । इस वास्ते सब जीवो को जरूर चाहिए कि अपने शहर में और जहां कहीं कि वे जावें सत्संग का खोज करके उसमें जिस कदर बन सके शामिल होकर उससे फायदा उठाने।। ( 3)- अब समझना चाहिए कि सत्संग किसको कहते हैं। संत अथवा राधा राधास्वामी मत में सत्संग नाम ऐसी सभा और संगत या जलसे का है जहां कि सच्चे मालिक का निर्णय और उसकी महिमा और उससे मिलने के सच्चे रास्ते और जुगत का बयान होता होवे और राजाओं और सूरमाओं और दानी पुरुषों की तारीफ और हाल का जिक्र ना होवे और मुखिया ऐसी संगत के सतगुरू या साधगुरु होवें या उनका निज सत्संगी जो प्रेम और सचौटी के साथ अभ्यास कर रहा होवे, क्योंकि ऐसा सत्संग बगैर सत्तपुरुषों की मदद के जो कि आप मालिक से मिल रहे हैं या मिलने के लिए सच्चा अभ्यास कर रहे हैं और अपने तन मन और इंद्रियों को अभ्यास के बल से पूरा पूरा या किसी कदर काबू में लाए हैं, नहीं चल सकता और ना किसी को उससे जैसा चाहिए फायदा हासिल हो सकता है। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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