Saturday, March 28, 2020

दयालबाग / परम गुरु महाराज साहब पर विशेष


प्रस्तुति - उषा रानी /
 राजेन्द्र प्रसाद सिन्हा

🙏🙏 Radhasoami🙏🙏🙏


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**परम गुरु महाराज साहब जी के पावन जन्मदिवस के अवसर पर उनके चरण कमलों में सादर समर्पित:-

【परम गुरु महाराज साहब जी के मुख्तलिफ वक्तों पर फरमाए हुए बचन】

 (34)- सच्चे परमार्थी से जब कोई कसूर बन पड़ेगा, तो वह बहुत पछतावेगा और झुरेगा और दिल से चाहेगा कि आइंदा उससे कोई कसूर ना बन पड़े । वह हमेशा अपने कसूरों को तसलीम करेगा क्योंकि अगर तसलीम ना करें , तो उसमें अहंकार पाया जाता है। कसूर करके साक्षी बनना अब्बल सीढ़ी है और फिर पछताना दूसरी है। मगर जो लोग बजाय साक्षी बनने के तरह तरह से अपने अवगुण को छिपाते हैं, उनकी सीढ़ी तो निहायत ही नीची है।।                     " उनको नहीं उपदेश हमारा, उनको जगत कामना मारा"।।       सच्चे परमार्थी को अगर कोई ऐसे ऐब का इल्जाम लगाए जो उसमें नहीं है , तो भी वह इल्जाम लगाने वाले को झूठा नहीं कहेगा, बल्कि तसलीम करेगा कि हां मुझ में यह ऐब है, क्योंकि उसे ख्याल होगा कि यह ऐब मुझ में गुप्त धरा होगा जो मालिक ने प्रगट कर दिया। यह चाल ,ढंग सत्संगी का होना चाहिए । सच्चा परमार्थी हमेशा दूसरों के कसूरो पर पर्दा डालेगा और अगर उसे किसी का कसूर नजर पड़ेगा, तो वह यह ख्याल करेगा की दर हक़ीक़त उसमें कोई ऐब नहीं , यह मेरी समझ की गलती है। सच्चे परमार्थी का जहां मान होता होगा, वहां से फौरन अपना ताल्लुक तोड़ देगा। और मान की निज पहचान यह है कि अपनी तारीफ सुनकर खुश हो । सच्चा परमार्थी अपने मन भर गुण को रत्ती भर भी नहीं समझेगा और रत्ति भर ऐब को मन भर से बढ़कर समझेगा । अगर कोई सच्चे परमार्थ को उसका कसूर जतावेगा, तो वह उसको बहुत प्यारा लगेगा और उससे बड़ा खुश होगा।।           " मेरी प्यारी सहेली हो,  दया कर कसर जता दो री"।।                          सच्चे परमार्थी को बसबब अपने मन की हर वक्त निरख,परख करने के इस बात का मौका ही नहीं मिलेगा कि वह दूसरे के औगुन देखे। बसबब माया के पर्दे के बीच में आने की जहां से कि ताकत आकर हमें मदद दे रही है उसकी खबर ना होना और यह ख्याल होना कि तमाम ताकत हमारे ही पेट में से निकल रही है , इसका नाम अहंकार है। सो जहां तक माया है, वहां तक आपा है**

*(35)- निज दया उस पर है जिसको चारों तरफ से दुनिया में निराश किया जावे। जिधर जिधर निगाह करें, उसी तरफ मायूसी दिखाई दे । हर वक्त चिंता, गम, फिक्र व बीमारी में फंसा रहे, हर तरह का दुनिया का नुकसान हो जावे। जब यह हालत हो जाएगी तो सिवाय मालिक के और किसी का आसरा ना रहेगा। हम लोग इस लायक नहीं हैं कि हैं हालत बर्दाश्त कर सके और जब कभी यह हालत आती है तो मालिक से प्रार्थना करते हैं कि यह दया खींच ली जावे। तो मालिक भी चुप हो रहता है। मगर उस तकलीफ के बदले लाख दर्जे ज्यादा दया आती है और जो रंग की ऐसी हालत के गुजरने के बाद चढ़ता है, वह पक्का होता है। वरना मिलने की हालत रहती है, यानी कभी-कभी रुखा फीकापन। जैसा कि जीव तकलीफ में सच्चा होकर लगता है, वैसा ही कभी आराम की हालत में नहीं लगता। मगर संसारी लोग इस मेहर को कहर यानी मालिक का क्रोध समझते हैं।।     ( 45)- कुल सतसंगियों को जो राधास्वामी दयाल के चरणों में आये हैं और जिन्होंने वक्त के सतगुरु से उपदेश लिया है , यह समझना चाहिए कि वह अपनाये गए हैं और यह जरूर बिलजरूर एक दिन अबेर सबेर अपने पिता के निज धाम में पहुंचेंगे और उन पर आइंदा कर्म हरगिज न चढेंगें। उनके पिछले कर्म भी मौज और हिकमत से सहूलियत के साथ कटवाए जाएंगे ।। सतसंगियों को दुख में घबराना और सुख में फूलना नहीं चाहिए, बल्कि दुख और बीमारी आने पर समझना चाहिए कि सतगुरु की अति दया है और महज उनकी संभाल के लिए यह हालत पैदा की गई है। जीव अति निर्बल और लाचार है । उससे कुछ नहीं बन पडता। इसलिए राधास्वामी दयाल खुद देह धर कर  अपने बच्चों को अपने निज धाम में पहुंचाने के लिए इस दुनिया में तशरीफ़ लायें है और वह जीव को थोड़ी सी उनके चरणों में प्रीति करने से और दृढ निश्चय उनके चरनों का धारण करने से और राधास्वामी नाम को सच्चा मानने से और उनके चरणों की सच्ची टेक बाँधने से और वक्त ब वक्त मौका मिलने पर उनका बाहरी सत्संग और दर्शन करने से अपना लेंवेगे और निजधाम में पहुंचा देंवेगे । जीव को इसमें हरगिज  शक व शुबह न करना चाहिए। राधास्वामी**

*||दोहा||         
                            
    बार-बार कर जोर कर, सविनय करूं पुकार।। साध संग मोहि देव नित, परम गुरु दातार।। कृपा सिंधु समरथ पुरुष ,आदि अनादि अपार। राधास्वामी परम पितु, मैं तुम सदा अधार।।।                                             ||सोरठा||   
                                 
  बार-बार बल जाउँ, तन मन वारूँ चरण पर ।                   
  क्या मुख ले में गाऊँ, मेहर करी जस कृपा कर।। धन्य धन्य गुरु देव ,दयासिंधु पूरन धनी। नित्त करूँ तुम सेव, अचल भक्ति मोहि देव प्रभु ।। दीन अधीन अनाथ, हाथ गहा तुम आनकर। अब राखो नित साथ, दीनदयाल कृपानिधि।। काम क्रोध मद लोभ, सब विधि अवगुणहार मैं।।   

                            प्रभु राखो मेरी लाज, तुम द्वारे अब मैं पड़ा।।                           राधास्वामी गुरु समरत्थ, तुम बिन और न दूसरा। अब करो दया परतक्ष, तुम दर एती बिलँब क्यों।।।     

                                    

||दोहा||     
                                                        दया  करो मेरे साइयाँ, देव प्रेम की दात।          दुख सुख कछु ब्यापे नहीं, छूटे सब उतपात।। 🙏🏻

 राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय

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राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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