Friday, July 31, 2020

आज 31/07 को शाम का सतसंग

**राधास्वामी!! 31-07-2020-

आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ- 

                              

 (1) दिवाला पूजें जीव अजान। भरमते फिरते चारों खान।।अभागी जीव न मानें बात। भरमते नित तम चक्कर साथ।।-( करें जहाँ आरत सेवक सूर। मेहर गुरु पाया आनँद पूर।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-2,पृ.सं.325)                                                                

 (2) राधास्वामी गुरु दातार। प्रगटे  संसारी।। राधास्वामी सद किरपाल। मिले मोहि देह धारी।।-(राधास्वामी लें अपनाय। जस तस दया धारी।।) (प्रेमबिलास- शब्द-25,पृ.सं.31)                                                                 
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

*
*राधास्वामी!!                                        

31-07- 2020-   

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन 

-कल से आगे -(62)

 इन पंक्तियों का लेखक भली प्रकार समझता है कि ऊपर की पंक्तियों में एक मान्य व्यक्ति के संबंध में कुछ अप्रिय शब्द लेखबद्ध हो गये, किंतु उसे संतोष है कि उसने यह शब्द अकाथ्य प्रमाण के आधार पर लिखे हैं । 

कारण यह है कि यदि स्वामीजी को मुक्ति की अवस्था का सचमुच अनुभव होता तो उनके चित्त में मुक्ति की बड़ी भारी महिमा होती। 

क्या जीव-अवस्था और ब्रह्म-दर्शन अवस्था में केवल शब्दों का भेद है?  नहीं,नहीं, अंधकार और प्रकाश का ,झूठ और सच का सा भेद है। परंतु उक्त स्वामीजी के चित्त में मुक्ति की विशेष चिंता तथा महिमा न थी , आप जरा उनके जीवन- चरित्र के पृष्ठों पर दृष्टि डालें, आपको उपर्युक्त समस्त कथन का प्रमाण मिल जाएगा। 

महाशय लक्ष्मण आर्यउपदेशक के द्वारा लिखित जीवन चरित्र के पृष्ठ 905 और 906 पर उन बातों का उल्लेख है जो स्वामीजी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में कहीं। आपने कमलनयनजी से कहा-" शरीर का अब कुछ भरोसा नहीं , ना जाने किस वक्त छूट जाय और मैं इस काम के लिए फिर दोबारा भी जन्म लूँगा और इस वक्त जो मेरे विरुद्ध हुए हैं वो सब शांत हो जायँगे। 

आर्य समाजों की तरक्की से भी बड़ी भारी मदद मिलेगी। मैं उस वक्त वेद का बकिया(शेष) भाष्य कर दूँगा"। आशिकाँ गश्तमन्द मस्त अज बूए तो। आरिफाँ मानिन्द गुम दर रुए तो।।                                                                 
अर्थ-प्रेमीजन तेरी सुगन्धि ही से मस्त व मगन हो जाते है और भक्तजन तेरे दर्शन से अपनी सुध बुध खो बैठते हैं । भगवद्गीता में निर्देश है-" जिस जिस भी भाव या रुप को याद करता हुआ जीव अंतकाल में शरीर को छोड़ता है, हमेशा उसी की चाह से रंगा हुआ वह खास उसी भाव या रूप को प्राप्त होता है"।  अध्याय ८ श्लोक ६) ।।                          

  🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- 

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


Thursday, July 30, 2020

विदा की वेदना

नमस्कार. "विदा "शब्द ही वेदना से जुड़ा है. लड़की की विदा या स्वजन की विदा से अधिक विदारक होती है केसरिया बाने में एक वीर शिरोमणि की विदा. यहाँ एकतो वे  हैं जिनको विदा दी जानी है , दूसरे जिनको ये दारुण दाइत्व निभाना हैं यानी जिनको वीरों को विदा देना है और तीसरा महाभारत के संजय की तरह वह व्यक्ति है जिसे आपको उस विदा के क्षणों की शब्द चित्रावली प्रेषित करनी है. जिन्हें विदा दी जारही है उनकी आँखों में अँगारे हैं. जो विदा दे रहे हैं उनकी ऑंखें  उत्तप्त सागर का जलताप अपनी कोरों में संस्कारों के खजाने की भांति छुपाये हैं और तीसरा अपने गालों को गरम गरम जल के संताप से भीगने से बचाने में असमर्थ हैं. चौथे का हाल तो आप बतायेंगे. 

इसी सर्ग की पंक्तियाँ हैं ---
"बहनों के हाथोँ में रण कँगन राखी थी 
मांओं के आँचल, आशीषों की साखी थी. 
गोदी के लालों में कौतूहल बोला था 
ऐसी गंभीर विदा, शेष फण डोला था. "

लेकिन इस विदा के पूर्व की रात्रि का दृश्य ---
"सोये थे सुख दुःख के भावों के छौने भी 
तोड़ रहे नखतों को साधन के बौने भी. 
सोयीं थीं तलवारें, रण दूल्हे सोये थे 
बहुवर भी सोयी थी, चूल्हे भी सोये थे. "
प्रातः काल का दृश्य ---
"नदिया के पानी में सोना उतराया था 
नूतन इतिहास लिये नया दिवस आया था. 
लेकिन हर रश्मि पर गज़नी की छाया थी 
रंजित अभिसारों में डरी हुई काया थी. 
बेसर के मोती का पानी घबराया था 
मन में नव कम्प लिये नया प्रात आया था. 
घोघा गढ़ तोरणा पर सेना की हलचल थी 
अन्तः पुर प्राँगण में मावस सी प्रतिपल थी. "
कल्पना कीजिये उस पल की जब बाप्पा ने राजगुरु नन्दीदत्त को बुला कर उनको अंतःपुर सौंप ते हुए ये कहा होगा ---
"अबसे तुम्हारा धर्म, अब तक जो नहीं रहा. "
साथ जो हमारे चले वीर गति पायेंगे 
चढ़ कर तलवारों पर शम्भू -धाम जायेंगे. "
बाप्पा जो आदेश राजगुरु को दे रहे हैँ इन पँक्तियों को टाइप करते हुए मेरे हाँथों और नेत्रों के बीच कम्पन और अश्रु का द्वंद्व बाधक रहा हैं. एक अमृतसर की अध्यापिका थीं कोई कौर, बात सन 70-71की होगी, मैं कानपुर रहता था, उन्होंने एक पत्र में लिखा था '(अपने ही हाथोँ से ---)आपकी इन पंक्तिओं ने बहुत रुलाया. शायद इस प्रकार की उपमा मैंने कहीं नहीं पढ़ीं. '
"मेरी जब काया यह टूक टूक होलेगी !
अंतःपुर प्राँगण में जौहर वह्नि डोले गी. 
देदेना आगी तुम वीर ललनाओं को 
अपने ही हाथों से अपनी रचनाओं को. 
नन्दीदत्त !भार बड़ा कांधे तुम्हारे हैं "

मेरा भी दाह कर्महाथों तुम्हारे हैं. 
इतना ही नहीं बंधु, तुमको तो जीना हैं 
'सामंत 'के आने तक गरल घूँट पीना हैं. 
सामंत घोघा बप्पा का अंतिम शेष अंश था उसे भी गज़नी की सेना को राह भटकाने का दायित्व सौंपा गया था. उसे भी प्राणोत्सर्ग का आदेश दिया था बाप्पा ने. 
आज विदा को यहीं रोकते हैँ. कल इस बेला का अनूठा विसर्जन पढ़ेंगे आप. तब तक के लिये विदा लेता हूँ. साथ बने रहिये गा. 
आपका 
जीवन शुक्ल.

दयालबाग़ भंडारा सूचना औऱ सावधानी

💥 भंडारा नोटिस/ कार्यक्रम (अगस्त-2020)

परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज का भंडारा भारत व विदेशों की विभिन्न ब्रांचों में बुधवार 12 अगस्त, 2020 को दोपहर 12.30 बजे (वीडियो कॉन्फ़रेन्सिंग के माध्यम से) मनाया जाएगा। दयालबाग़ में भंडारा सप्ताह 10.8.2020 से 14.8.2020 तक मनाया जाएगा।


 (कोविड-19 महामारी के कारण प्रतिबंध के दौरान अगस्त, 2020 में परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज का भंडारा मनाए जाने के सम्बन्ध में कार्यक्रम एवं परामर्श)


अगस्त, 2020 के भंडारे में अनुमति प्राप्त क्षेत्र आंध्र राधास्वामी सतसंग एसोसिएशन, तमिल राधास्वामी सतसंग एसोसिएशन, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा व पूर्वी राज्य राधास्वामी सतसंग एसोसिएशन तथा दयालबाग़ राधास्वामी सतसंग एसोसिएशन ऑफ़ योरप के सतसंगी भाई बहन शामिल हो सकते हें। सभी सतसंगी सावधानी बरतते हुए अगस्त, 2020 का भंडारा अपनी ब्रांचों/ एरिया सतसंग/ सतसंग सेंटर/ प्राइवेट ग्रुप्स सतसंग/ व्यक्तिगत रूप में मनाएँगे। इसमें आगे दिए गए परामर्श तथा केन्द्र/ राज्य/ स्थानीय गवर्नमेंट द्वारा जारी किए गए निर्देशों में स्वीकृत लोगों के अतिरिक्त कोई भी दयालबाग़ नहीं आएगा। मौजूदा निर्देशानुसार उन्हें ई. सतसंग कास्केड द्वारा ऑडियो/ वीडियो ट्रान्समीशन (निर्देशानुसार) उपलब्ध कराया जायेगा।
राधास्वामी



भक्त की भक्ति

🌹🌹
*एक बार सतगुरु जी सत्संग करके आ रहे थे। रास्ते में गुरुजी का मन चाय पीने ☕को हुआ।*

*उन्होंने अपने ड्राइवर को कहा हमे चाय पीनी ☕है।”ड्राइवर गाड़ी 5 स्टार होटल के आगे खड़ी कर दी।*

*गुरुजी ने कहा-“नहीं आगे चलो यहाँ नहीं।”*

*फिर ड्राइवर ने गाड़ी किसी होटल के आगे खड़ी कर दी।*
*गुरूजी ने वह भी मना कर दिया।*

*काफी आगे जाकर एक छोटी सी ढाबे जैसी एक दुकान आई। गुरूजी ने कहा-“यहाँ रोक दो यहाँ पर पीते हैं चाय।☕”*

*ड्राइवर सोचने लगा कि अच्छे से अच्छे होटल को छोड़ कर गुरुजी ऐसी जगह चाय☕ पीएंगे। खैर वो कुछ नहीं बोला।*

*ड्राइवर चाय वाले के पास गया और बोला-“अच्छी सी चाय ☕बना दो।”जब दुकानदार ने पैसों वाला गल्ला खोला तो उसमे गुरूजी का सरूप फोटो लगा हुआ था।*

*गुरूजी का सरूप देख कर ड्राइवर ने दुकानदार से पूछा-“तुम इन्हें जानते हो, कभी देखा है इन्हें?”*

*तो दुकानदार ने कहा- “मैंने इनको देखने जाने के लिए पैसे इकठे किये थे। जो कि चोरी हो गए, और मैं नहीं जा पाया।*
*पर मुझे यकीन है कि गुरूजी मुझे यही आ कर मिलेंगे।”*

*तो ड्राइवर ने कहा-“जाओ और चाय ☕उस कार मैं दे कर आओ।"*

*तो दुकानदार ने बोला- “अगर मैं चाय ☕देने के लिए चला गया तो कहीं फिर से मेरे पैसे चोरी न हो जायें।”*

*तो ड्राइवर ने कहा- “चिंता मत करो अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम्हारे पैसे अपनी जेब से दूंगा।”*

*दुकानदार चाय ☕कार मैं देने के लिए चला गया। जब वहां उसने गुरुजी के देखा तो हैरान हो गया।*

*आँखों में आंसू देखे तो गुरू जी ने कहा-“तूने कहा था कि मैं तुम्हे यहीं मिलने आऊं और अब मैं तुमको मिलने आया हूँ तो तुम रो रहे हो।”*

*इतना प्यार था उस आदमी के अन्दर आंसू रुकने 😭का नाम ही नहीं ले रहे थे।*

*जब मन सच्चा हो और इरादे नेक हो तो भगवन को भी आना पड़ता है, अपने भगत के लिये.🌹🌹

एक दोहे में भारत के सब राज्य

*कितने आश्चर्य की बात है....*   
*भारत के 29 राज्यों के नाम..*
*श्री. संत तुलसीदास* 
*के इक दोहे में समाई हुई है।*

*राम नाम जपते अत्रि मत गुसिआउ।*
*पंक में उगोहमि अहि के छबि झाउ।।*

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रा - राजस्थान      ! पं- पंजाब
म - महाराष्ट्र         ! क- कर्नाटक
ना - नागालैंड       ! मे- मेघालय
म - मणिपुर         ! उ- उत्तराखंड
ज - जम्मू कश्मीर  ! गो- गोवा
प - पश्चिम बंगाल   ! ह- हरियाणा
ते - तेलंगाना         ! मि- मिजोरम
अ - असम   !   अ- अरुणाचल प्रदेश
त्रि - त्रिपुरा     ! हि- हिमाचल प्रदेश
म - मध्य प्रदेश     ! के- केरल
त - तमिलनाडु     ! छ- छत्तीसगढ़
गु - गुजरात         ! बि- बिहार   
सि - सिक्किम     ! झा- झारखंड
आ- आंध्र प्रदेश   ! उ- उड़ीसा
उ - उत्तर प्रदेश    !

अत्यंत आश्चर्यजनक...👌🌺

👏👏👏👏👏👏👏👏👏

आज 30/7 को शाम के सतसंग में पाठ विनती



**राधास्वामी!! 30-07-2020- 

आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-  
                                 

(1) दिवाला पूजें जीव अजान। भरमते फिरते चारों खान।।-( जुए में नर देही हारी।देत जम धिरकारी भारी।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-2 ●दिवाली● पृ सं.324) 

                                       
(2) कौन सके गुन गाय तुम्हारे। कौन सके गुन गाये जी।।टेक।। कामी क्रोधी लोभी हमसे। चरनन आन मिलाये जी।।-( राधास्वामी दयाल चरन की।महिमा निस दिन गाये जी।।) (प्रेमबिलास-शब्द-24-पृ.सं.29)                                                        

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला कल से आगे।।                  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 30-07-2020 -

कल से आगे-( 61 ) 

परंतु प्रश्न होता है कि स्वामीजी ने मुक्ति के संबंध में यह नई बात क्यों निकाली जबकि श्री नरदेव शास्त्री के कथनअनुसार वेदों में कोई ऐसा प्रमाण विद्यमान नहीं है जो स्पष्ट रूप से इस विचार का समर्थक हो। इसका उत्तर इन पंक्तियों के लेखक के विचार में यह है कि न तो स्वामीजी को मुक्ति अवस्था का अनुभव था , ना ही मुक्ति की विशेष इच्छा थी । 

वे सच्चे देशभक्त थे, वे दूसरे कर्मकांड के श्रद्धालुओं के समान इस जगत् को सत्य मानते थे और यहाँ के पद- परिजन, जीवन तथा सुख-समृद्धि को अतीव महत्व देते थे। साथ ही उनको अनुभव से ज्ञात था कि भारतवासी मुक्ति के लिए आसक्त होकर संसार के संग्राम से उदासीन तथा दीन हीन हो रहे हैं । यदि उन्हें स्वयं मुक्ति की अवस्था का अनुभव होता तो इन सब बातों के होते हुए भी वे मुक्ति से पुनरावृत्ति आवृत्ति के सिद्धांत का प्रचार न करते और यदि उन्हें मुक्ति की अभिलाषा होती तो जिज्ञासु की तरह दूसरे धार्मिक नेताओं से उसकी पूछताछ करते। भारतवर्ष की दुर्दशा देख करके और उसके लिए मिथ्या धार्मिक शिक्षा को उत्तदायी ठहरा कर उन्होंने तत्कालीन धार्मिक विचारों पर दायें बायें और आगे पीछे कुठाराघात आरंभ किया इस आवेग में एक कठोर आघात  मुक्ति के सिद्धांत पर भी आ पड़ा।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

जे आर डी टाटा / 23 पृथ्वीराज रोड/ विवेक शुक्ला



जे.आर.डी टाटा, 23 पृथ्वीराज रोड
पृथ्वीराज रोड के गोल चक्कर से आप पृथ्वीराज रोड में पहुंचिए। इधर आपको 23  नंबर में मिलेगा टाटा हाउस। 


जे.आर.डी टाटा ( जन्म 29 जुलाई 1904- मृत्यु 29 नवंबर 1993) राजधानी आते तो इसी में ठहरते। ये टाटा का दिल्ली का घर था। इसमें अपने राजधानी प्रवास के दौरान 1950 के आसपास से रहने लगे थे। वे तब तक टाटा  ग्रुप के चेयरमेन बन चुके थे। वे राजधानी में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से ही मुलाकात करने आया करते थे। उनका कद इतना ऊंचा हो गया था कि उन्हें शायद ही कभी कोई मंत्री अपने पास बुलाने की हिमाकत करता हो।
मुंबई से उनके साथ टाटा समूह की सहयोगी कंपनियों के डायरेक्टर जैसे अजित केरकर ( ताज होटल), एफ.सी. सहगल (टीसीएस), प्रख्यात विधिवेत्ता ननी पालकीवाला (एसीसी सीमेंट)वगैरह आते। टाटा लाख व्यस्त होने पर भी लगभग 45 मिनट की ब्रिस्क वॉक करने का वक्त निकाल लेते थे। उन्हें इंडिया गेट पर सैर करना पसंद था। पृथ्वीराज रोड से इंडिया गेट उन्हें उनका प्रिय ड्राइवर अमर सिंह ही कार में लेकर जाता। अमर सिंह लगभग आधी सदी तक टाटा समूह में काम करते रहे।
जे.आर.डी टाटा की 1993 में मृत्यु के बाद टाटा हाउस में  सुपर लक्जरी फ्लैट बना दिए गए हैं।
जे.आर.डी.टाटा ने अपने बंगले में एक खासी समृद्ध लाइब्रेयरी भी बनवाई हुई थी। उसमें बिजनेस,मैनेजमेंट,मोटिवेशन जैसे विषयों की मुख्य रूप से किताबें रहती थीं। जे.आर.डी टाटा को बागवानी का गजब का शौक था। वे सुबह-शाम मालियों से अपने बंगले में लगे पेड़-पौधों की सेहत पर अवश्य बात करते। उन्हें निर्देश देते।?
 
बाबा साहेब-नोबल पुरस्कार
 विजेता कवि पाज भी रहे
 डा. भीमराव अंबेडकर 22 पृथ्वीराज रोड के बंगले रहे। इधर ही उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को डा. सविता से विवाह किया था। ये बंगला उन्हें नेहरूजी की कैबिनेट का सदस्य बनने के चलते आवंटित हुआ था। अब 22 पृथ्वीराज रोड में तुर्की के भारत में राजदूत रहते हैं।
 इस बीच, नोबल पुरस्कार विजेता आक्तेवियो पाज 1962- 68 के दौरान जब दिल्ली में मेक्सिको के राजदूत थे तब यहां की साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहा करते थे।उनके 13 पृथ्वीराज रोड  के आवास में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के कवियों के बीच कविता पाठ के कार्यक्रम होने लगे थे। वे भी अपनी ताजा कविताएं सुनाते। अपने छह साल के भारत प्रवास के दौरान पाज ने शिव और पार्वती, वृंदावन, खुसरो और लोधी गार्डन के गुबंदों पर कविताएं लिखीं। पाज  अंतिम बार 1985 में दिल्ली आए थे। तब कांग्रेस के नेता और कवि श्रीकांत वर्मा उनकी मेजबानी कर रहे थे। पाज ने 1995 में भारत के समाज, परम्पराओं, स्मारकों आदि पर एक किताब ‘ग्लिम्प्स आफ इंडिया’ भी लिखी।
 आडवाणी जी से भगत जी तक
लुटियन दिल्ली के भी दिल में है पृथ्वीराज रोड। इधर सरकारी और प्राइवेट दोनों बंगले हैं। आजकल बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी यहां ही 30 नंबर के बंगले में रहते हैं। वे यहां आने स पहले  पंडारा पार्क में रहते थे। दिल्ली के लोकप्रिय नेता एच.के.एल भगत भी यहां रहते थे। उनके बंगले के बाहर हमेशा भीड़ लगी रहती थी फरियादियों की। ये  हर आने वालें से मिलते और फिर निकलते। भगत जी के घर के दरवाजे आम और खास सबके लिए सदैव खुले रहा करते थे। पर अब पृथ्वीराज रोड के अधिकतर बंगलों के बाहर सन्नाटा ही रहता है। बंगलों के अंदर-बाहर सुरक्षाकर्मी अवश्य ही पहरा दे रहे होते हैं। कांग्रेस के पूर्व सांसद नवीन जिंदल का यहां अपना निजी बंगल है.
नवभारत टाइम्स में छपे लेख के सम्पादित अंश।

PICTURES- JRD TATA AND OCTOVIO PAAZ

Wednesday, July 29, 2020

गांधीजी चिठिया औऱ मोबाइल संवाद / विवेक शुक्ला


गांधीजी, चिट्ठिय़ां और आज की मोबाइल क्रांति के बीच हमारा संवाद

यरवदा जेल में रहने के दौरान गांधीजी को दमे के एक रोगी ने चिट्ठी लिखी जिसमें प्राकृतिक चिकित्सा के उनके प्रयोगों का हवाला देते हुए अपने लिए कुछ उपाय बताने को कहा। महादेव देसाई ने यह कहते हुए वो चिट्ठी फाड़ दी कि आप ऐसी चिट्ठियों का जवाब कब तक देते रहेंगे? सरदार पटेल भी उस मौके पर वहीं थे। उन्होंने भी हंसी मजाक किया और कहा कि लिखो न कि उपवास कर, काशीफल खा औऱ भाजी खा। गांधीजी इनकी बातों  पर पहले तो खूब हंसे लेकिन इस चिट्ठी का जवाब लिख कर भेजा भी।
आज कोरोना संकट के दौर में करोड़ो लोग अपने घरों में रह कर भी संचार और सूचना क्रांति की बदौलत दुनिया भर से जुड़े हुए हैं। लेकिन गांधीजी जी ने जब स्वाधीनता संग्राम की बागडोर संभाली थी तो दौर ही अलग था। भारतीय रेल और भारतीय डाक ही उस दौर में अंग्रेजी राज के कब्जे के सबसे ताकतवर हथियार थे। लेकिन गांधीजी ने इनको अपना हथियार बना लिया। लोगों से जुड़ाव के लिए देश के तमाम हिस्सों में गांधीजी ने रेलों के माध्यम से जितनी यात्राएं की, उतनी किसी और नेता ने नहीं की। इसी तरह लोगों से संवाद के लिए गांधीजी जी जितनी चिट्ठी शायद ही किसी ने लिखी हो। गांधीजी छह भाषाओं में लिख सकते थे। दक्षिण भारतीय भाषाओं समेत वे 11 भाषाओं में हस्ताक्षर कर लेते थे। वे दाहिने और बाएं दोनों ही हाथों से लिख लेते थे लेकिन बाएं हाथ की उनकी लिखावट दाएं हाथ से काफी अच्छी थी। वे भरी भीड़ के बीच या जनसभाओं के दौरान ही नहीं अंधेरे में भी चिट्ठियों का जवाब लिख लेते थे। चिट्ठियों के सहारे उन्होंने दुनिया भर के आम और खास लोगों तक से संवाद बनाए रखा था। इनकी बदौलत गांधीजी को बहुत से बेहतरीन सहयोगी भी मिले। चलती रेलगाड़ी हो या हिलता हुआ पानी का जहाज गांधीजी को चिट्ठी लिखने में कहीं बाधा नहीं आती थी। उनकी लिखी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चिट्ठी कई संदर्भों में मूल्यवान हैं। विदर्भ में सेवाग्राम महात्मा गांधी का आखिरी पड़ाव आजादी के आंदोलन का निर्णायक केंद्र रहा। यहां गांधीजी को रोज एक दो बोरे चिट्ठियां आती थीं। गरीब मजदूर और किसान से लेकर बड़े अफसर और नेताओं की। यहीं गांधी जी से संपर्क को वायसराय लिगलिनथो ने आश्रम में टेलीफोन लगवा दिया था। एक डाकघर भी वहां खुला। कई बार दिन भर में गांधी जी अपने हाथ से 80 पत्रों तक के जवाब लिख देते थे। जीवन के आखिरी दिन यानि 30 जनवरी, 1948 को भी दिल्ली में गांधीजी का काफी समय चिट्ठियां लिखने में बीता। ये चिट्ठियां न होती तो क्या गांधीजी इतने लोगों से जुड़ सकते थे। लेकिन हमारे पास मोबाइल है.फिर भी हम कितने लोगों से जुड़ पाते हैं।
(c) अरविंद कुमार सिंह. 

रोजाना वाक्यत / 29072020



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- 10 दिसंबर 1932- शनिवार:- जलसा के दिनों के लिए तीन फिल्मों का बंदोबस्त woहो गया है । पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट की तरफ से बेहतरीन फिल्में आवेगीँ  दीवान बहादुर हर बिलास सारदा को अपने 3 रचनाएं नजर की ।ड्रामा स्वराज, ड्रामा संसार चक्र ,और गीता का उर्दू तर्जुमा।                                                    हजरत दिलचस्प दयालबाग देखने आया चाहते हैं।  शौक से आव़े घर घर तुम्हारा है। लेकिन बेहतर हो कि 20 दिसंमबर से पहले पहले तशरीफ़ लावें। और जलसा के कामों की वजह से मुझे भी फुरसत न मिलेगी। ऐसे ही एक और साहब ने रियासत बीकानेर से खत लिखा है। वह भी 26 दिसंबर को आया चाहते है और प्राईवेट में मुलाकात के ख्वाहिसमंद है। भला उन दिनों यह मौका कहाँ ।                                                         रात के सत्संग बयान हुआ कि हमें जोश या खुशी में भरकर कोई ऐसा काम न करना चाहिए जो हमको परमार्थी लक्ष्य से गिरा दे। संत मत के अंतरी साधन में कामयाबी हासिल करने के लिए निहायत जरूरी है कि प्रेमी जन के ह्रदय में भगवंत के लिए अनन्य भक्ति हो। इंसान जोश या खुशी से अधीन होकर भगवंत को भूल जाता है और उसका मन फूल कर कुप्पा बन जाता है । उस वक्त तो यह हालत अच्छी लगती है लेकिन जब वह अभ्यास में बैठता है उस वक्त उसका करनी का फल भुगतता है और रोता है ।                 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

Tuesday, July 28, 2020

काले काले जामुन के निराले गुण



सुमति भारव्दाज

29-07-20

स्वाद और सेहत से भरपूर रसीले जामुन

Jamun Fruit
July 24, 2020
बरसात की पहली फुहार पड़ते ही काले- काले सेहत और स्वाद से भरे रसीले जामुन बाजार में छा जाते हैं. बरसात का मौसम चूंकि अपने साथ सेहत से जुड़ी कई बिमारियां भी लेकर आता है शायद इसीलिए प्रकृति ने बहुत सोच समझ कर जामुन को इस मौसम का फल बनाया है क्योंकि इसका फल, गुठली, पत्ते से लेकर पेड़ की छाल तक में इतने गुणकारी औषधिय गुण छिपे हैं कि यह छोटे से लेकर बड़े रोगों तक के लिए रामबाण इलाज का काम करता है। स्वाद में थोड़े खट्टे और मीठे इस फल में ऐसे सभी जरूरी पौष्टिक तत्व और लवण पाये जाते हैं जिसकी शरीर को आवश्यकता के साथ उसे स्वस्थ बनाए रखने में भी जरूरत पड़ती है. हर फल का चूंकि अपना एक मौसम होता है और यह फल भी मौसमी होने के कारण केवल दो-तीन महीने के लिए ही उपलब्ध रहता है. मगर फल का मौसम जाने के बाद भी इसकी गुठलियों, पत्तियों व छाल के प्रयोग से उतना ही फायदा लिया जा सकता है जितना की इसके फल से मिलता है. शुगर में अत्यन्त लाभकारी इस फल को उपयोग में लाने के लिए बाजार में तरह- तरह के जूस,शरबत और सिरके भी मिलने लगे है. तो आइए विस्तार से जानते हैं जामुन फल के साथ उसकी गुठली, पत्तियों और छाल के लाभों के साथ उन्हें कैसे उपयोग में लाएं और साथ ही उसका जूस और सिरका घर पर ही कैसे बनाएं. जामुन फल के लाभ 1. जामुन के फल में विटामिन बी, सी, कैल्शियम और आयरन के अलावा कैरॉटिन, थाइमिन, रिवोफ्लेविन और नियासिन जैसे उपयोगी विटामिन पाए जाते हैं, जिससे शरीर में खून की कमी पूरी होने के साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है । 2. प्रतिदिन 100 ग्राम जामुन के फल खाने से भरपूर कैलोरी एंव ऊर्जा भी मिलती हैं इसलिए यह ऊर्जा और पोषण का एक सस्ता और सुलभ स्त्रोत है । 3. एन्टी-ऑक्सिडेंट से भरपूर होने के काऱण यह शरीर को हानिकारक फ्री रेडीकल्स से मुक्त कर शरीर को डिटॉक्सीफाई भी करता है. 4. जामुन के गूदे में पोटाशियम की मात्रा भरपूर होने के कारण यह हृदय धमनियों को स्वस्थ रखने के साथ कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा भी नियंत्रित रखता है. 5. ब्लड प्रेशर बढ़ने से रोक कर नियंत्रित रखने में मदद करता है 6. शुगर के रोगियों में शुगर बनाने की मात्रा घटा कर इन्सुलिन बनाने की मात्रा बढ़ाता है. 7. जामुन फल त्वचा में मिलानिन बनाने की मात्रा तेजी से बढ़ाता है जिससे सफेद दाग कम करने में लाभ मिलता है । प्रयोग जामुन के फल से भरपूर लाभ उठाने के लिए इसे सेंधा या काले नमक में भूना जीरा मिलाकर सेवन करना चाहिए प्रतिदिन 100 ग्राम से ज्यादा सेवन नुकसान पहुंचा सकता है, इसका प्रयोग खाली पेट नहीं करना चाहिए और न ही जामुन खाने के बाद पानी या दूध का सेवन करना चाहिए. जामुन गुठली के लाभ 1. शुगर के रोगियों के लिए जामुन फल क्योंकि बहुत उपयोगी है इसलिए, जब फल उपलब्ध न हो तब इसकी गुठली का प्रयोग करके फल जितना ही फायदा लिया जा सकता है. गुठली पाउडर में बराबर मात्रा में सूखे बेल के पत्ते और मीठी नीम के पत्ते मिलाकर प्रतिदिन एक चम्मच सेवन करना शुगर रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है । 2. जामुन की गुठली में जम्बोलिन नामक ग्लूकोज पाया जाता है जो स्टार्च को शुगर में बदलने से रोकता है, इसलिए गुठली पाउडर का एक चम्मच नियमित सेवन करने से ब्लड शुगर नियंत्रित रहने के साथ शुगर रोग में गला सूखने व बार- बार पेशाब आने की समस्या भी दूर होती है। 3. पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे गैस, अफारा, अपच और ऐसीडिटी में गुठली का पाउडर बहुत लाभकारी है. एक चम्मच पाउडर,चुटकी भर काला नमक मिलाकर हल्के गरम पानी के साथ सेवन करें। 4. गुठली पाउडर अमाशय में सूजन, घाव और अल्सर के उपचार में भी सहायक है. इसके लिए एक चम्मच पाउडर का नियमित उपयोग करें। 5. पिलिया रोग में लाभकारी होने के साथ यह लिवर की प्रक्रिया भी सुधारने में सहायक है । 6. गले में दर्द या आवाज बैठने की समस्या हो तो एक चम्मच शहद में गुठली का चूर्ण मिलाकर चाटने से लाभ मिलता है। 7. नई शोध में वैज्ञानिकों का मानना है कि गुठली के पाउडर का काढ़ा बनाकर पीने से न केवल कैंसर जैसे रोग से ही बचाव होता है बल्कि कीमो थेरेपी के कारण होने वाले हानिकारक रेडिएशन से भी बचाव होता है। 8. सूखी गुठली को पानी के साथ घिसकर मुंहासो पर लगाने से लाभ मिलता है। 9. चेहरे के दाग धब्बे मिटाने के लिए एक चम्मच गुठली के पाउडर में आधा चम्मच जौ या बेसन का आटा,नींबू या आंवले के रस में मिलाकर लगाएं दाग धब्बे हल्के होने के साथ त्वचा का रंग भी निखर उठेगा । प्रयोग जामुन उपयोग में लाने के बाद गुठलियों को अच्छी तरह धो कर धूप में सूखा लें, गुठलियों की नमी पूरी तरह सूख जाने के बाद ही पाउडर बनाकर कांच की शीशी में भर कर रखें. पाउडर को चूर्ण रूप में या पानी के साथ उबालकर काढ़े के रूप में भी सेवन किया जा सकता है । जामुन के पत्तों के लाभ 1. फोड़े, फुन्सियों, सामान्य घाव के अलावा यदि शुगर के मरीज का घाव ठीक न हो रहा हो तो जामुन के ताजे पत्तो को पीस कर पुल्टिस बना कर नियमित बाधें घाव सूखने लगेगा । 2. यदि मुंह से खून या बदबू आने की समस्या है तो जामुन के 3-4 ताजे व मुलायम पत्तों को थोड़ी देर मुंह में चारों और धुमा-धुमा कर चबाएं या पानी में पत्ते उबाल कर कुल्ला करें लाभ मिलेगा । 3. मसूडों में सूजन हो, मसूडे कमजोर व ढ़ीले पड़ गए हों तो जामुन के पत्तों का पाउडर, सेंधा नमक व थोड़ी हल्दी मिलकार मंजन करें। 4. नशा उतारने के लिए या किसी विषैले जंतु के काटे का जहर उतारने के लिए जामुन की ताजी पत्तियों का रस निकालकर पीना चाहिए। 5. इसके अलावा जामुन की सूखा कर पिसी हुई पत्तियां, गुठली पाउडर के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़कर शरीर स्वस्थ एंव निरोगी रखने में बहुत सहायक हैं । प्रयोग जामुन का फल भले ही कुछ समय के लिए उपलब्ध हो मगर जामुन के पत्ते पूरे वर्ष उपलब्ध रहते हैं इसलिए, जहां तक हो सके ताजे पत्ते ही उपयोग में लाने चाहिए मगर पत्तों को सूखाकर उसके चूर्ण से भी लाभ लिया जा सकता है । जामुन पेड़ की छाल के लाभ 1. जामुन के पेड़ की छाल में ऐस्ट्रिन्जेंट प्रोपटीज की बहुतायता होती है इसलिए इसकी छाल को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दांत दर्द व दांत के रोगों के अलावा मुंह व गले से सम्बन्धित परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है । 2. इसकी छाल में जीवाणुरोधी एंव संक्रमण रोधी विशेषता पाए जाने के कारण यह साधाऱण बुखार के अलावा मलेरिया रोग में भी फायदेमंद है बुखार उतारने के लिए इसकी छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पीना चाहिए । 3. इसकी छाल को पानी में उबालकर पीस लें और गाढ़ा पेस्ट चेहरे पर लगाएं इससे मुंहासों की समस्या दूर होने के साथ त्वचा के खुले रोमछिंद्रो और दाग धब्बों से भी छुटकारा मिलता है । 4. गठिया रोग के उपचार में छाल का प्रयोग दर्द से राहत देता है छाल को पानी में खूब उबालकर काढा बनाकर पीयें व छने हुए गूदे का दर्द वाले स्थान पर लेप लगा लें शीघ्र आराम मिलेगा । प्रयोग जामुन के पेड़ की छाल के छोटे-छोटे टुकड़े सूखा कर रख लें उपयोग में लाने के लिए टुकड़ो को कूटकर या पाउडर बनाकर प्रयोग में लाएं। जामुन का जूस और सिरका बनाने की विधि जूस और शरबत कैसे बनाएं जामुन के ताजे फलों का जूस बनाने के लिए जामुन को हाथ से मथ कर गुठली अलग कर लें व गूदे में बर्फ के कुछ टुकड़े, थोड़ा काला नमक व भुना जीरा मिलाकर मिक्सी में पीस लें। जामुन का शरबत बनाने के लिए गुठली निकाले हुए जामुन के गूदे को थोड़ा पानी मिलाकर उबालें, जब पानी सूखने लगे तो आंच बंद कर गूदा ठंड़ा होने पर मिक्सी में पीस लें बराबर मात्रा में चीनी मिलकार दोबारा गाढ़ा होने तक पकाएं और ठंड़ा होने पर शीशी में भर कर रख लें. यह शरबत यदि साल भर के लिए बनाकर रखना हो तो सोडियम बेन्जोएट और सिट्रिक एसिड मिलाकर रखें । सिरका कैसे बनाएं जामुन के अध पके फलों को हाथ से मथ कर गूदा गुठली से अलग कर लें, और गूदे में थोड़ा नमक मिलकार एक घंटे के लिए किसी कांच के बर्तन में रख दे. एक घंटे बाद गूदे को हाथों से अच्छी तरह मसल कर निचोड़ते हुए रस निकाल लें, हाथ से रस न निकालना चाहें तो किसी मुलायम व साफ कपड़े में गूदा डालकर रस निकाल लें, और इस रस को कांच की बोतल में या चीनी मिट्टी के बर्तन में भर कर रख दे, 20 से 25 दिनों में सिरका तैयार हो जाएगा ।

अविद्या का रहस्य / बीरबल प्रसंग -28072020



 एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा की बीरबल यह #अविद्या क्या है ?*

बीरबल ने बोला कि आप मुझे 4 दिन की छुट्टी दे दो फिर मैं आपको बताऊंगा !

अकबर राजी हो गया और उसने चार दिनों की छुट्टी दे दी !

बीरबल #मोची के पास गया और बोला कि भाई जूती बना दो,मोची ने नाप पूछी तो बीरबल ने बोला भैया ये नाप वाप कुछ नहीं। डेढ़ फुट लंबी और एक बित्ता चौड़ी बना दो,और इसमें हीरे जवाहरात जड देना,,सोने और चांदी के तारों से सिलाई कर देना और हाँ पैसे की चिंता मत करना जितना मांगोगे उतना मिलेगा।

मोची ने भी कहा ठीक है भैया तीसरे दिन ले लेना !

तीसरे दिन जूती मिली तब पारितोषिक देने के पहले बीरबल ने उस मोची से एक ठोस #आश्वासन ले लिया कि वह किसी भी हालात में इस जूती का कभी भी जिक्र नहीं करेगा यानि हर हालात में अनजान बना रहेगा ।

         *अब बीरबल ने एक जूती अपने पास रख ली और दूसरी #मस्जिद में फेंक दी । जब सुबह #मौलवी जी नमाज पढ़ने (बाँग देने ) के लिए मस्जिद गए तो मौलवी को वो जूती वहाँ पर मिली।

 मौलवी जी ने सोचा इतनी बड़ी और शानदार जूती किसी इंसान की तो हो ही नहीं सकती जरूर अल्लाह मियां नमाज पढ़ने आया होंगे और उसकी छूट गई होगी।*

उसने वह जूती अपने सर पर रखी, मत्थे में लगाई और खूब जूती को चाटा ।

*क्यों ?*

*क्योंकि वह जूती अल्लाह की थी ना ।*

*वहां मौजूद सभी लोगों को दिखाया सब लोग बोलने लगे कि हां मौलवी साहब यह जूती तो अल्लाह की रह गई उन्होंने भी उसको सर पर रखा और खूब चाटा।*

*यह बात अकबर तक गई।*

*अकबर ने बोला, मुझे भी दिखाओ ।*

*अकबर ने देखा और बोला यह तो अल्लाहमियां की ही जूती है।*

*उसने भी उसे खूब #चाटा, सर पर रखा और बोला इसे मस्जिद में ही अच्छी तरह अच्छे स्थान पर रख दो !*

*बीरबल की छुट्टी समाप्त हुई, वह आया बादशाह को सलाम ठोका और उतरा हुआ मुंह लेकर खड़ा हो गया।*

*अब अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या हो गया मुँह क्यों 10 कोने का बना रखा है।

बीरबल ने कहा जहाँपनाह हमारे यहां चोरी हो गई,,
अकबर  ने पूछा- क्या चोरी हो गया ?

बीरबल ने उत्तर दिया - हमारे #परदादा की जूती थी चोर एक जूती उठा ले गया । एक बची है,

*अकबर ने पूछा--क्या एक जूती तुम्हारे पास ही है ?

*बीरबल ने कहा - जी मेरे पास ही है ।उसने वह जूती अकबर को दिखाई । अकबर का माथा ठनका और उसने मस्जिद से दूसरी जूती मंगाई और बोला *या अल्लाह मैंने तो सोचा कि यह जूती अल्लाह की है मैंने तो इसे चाट चाट के चिकनी बना डाली*

बीरबल ने कहा यही *अविद्या* है
पता कुछ भी नहीं और भेड़ चाल में जूती को चाटे जा रहे हैं,,
आज कल वाट्स अप और फेसबुक पर यही विद्या हावी है।

Thursday, July 23, 2020

आज 24/07 का दिन मंगलमय मुबारक हो / कृष्ण मेहता



🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक 24 जुलाई 2020*
⛅ *दिन - शुक्रवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)*
⛅ *शक संवत - 1942*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - वर्षा*
⛅ *मास - श्रावण*
⛅ *पक्ष - शुक्ल*
⛅ *तिथि - चतुर्थी दोपहर 02:34 तक तत्पश्चात पंचमी*
⛅ *नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी शाम 04:03 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी*
⛅ *योग - वरीयान् सुबह 08:59 तक तत्पश्चात परिघ*
⛅ *राहुकाल - सुबह 10:54 से दोपहर 12:33 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:10*
⛅ *सूर्यास्त - 19:19*
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण - विनायक-दुर्वा गणपति चतुर्थी*
 💥 *विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~*
 🌷
          🌞 ~ *हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
🙏🏻🌷🌻🌹🍀🌺🌸🍁💐🙏🏻

संसारचक्र (नाटक ) / 24072o20


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】

कल से आगे

-तीसरा दृश्य)                     
(बाजार में कुछ लोग जमा है। बातें हो रही हैं।)

एक शख्स- सुना तुमने महाराज की बाबत?

 दूसरा शख्स- नहीं तो।

पहला शख्स- अरे तुम क्या दिल्ली में रहते हो?

तीसरा शख्स- कुछ बतलाओं भी तो।

पहला शख्स- महाराज ने हुक्म दिया है आइंदा रियासत की निस्फ आमदनी नहर,कुएँ, व सड़क बनाने और देहात के अंदर सफाई रखने पर खर्च होगी ।

चौथा शख्स- ओ हो! रियासत की आमदनी तो आठ लाख रुपया साल है, क्या हर साल चार लाख रुपरा इन कामों पर खर्च होंगे ?

तीसरा शख्स- इस हिसाब से तो 1 दिन सारा राज का राज स्वर्गपुरी बन जाएगा!

पहला शख्स- और एक लाख रुपये साल स्कूलों और हस्पतालों पर खर्च होंगे, एक लाख गोशालाओं पर, एक लाख अमला की तनख्वा पर।

दूसरा शख्स- और महाराज का खर्चा ?

पहला शख्स- महाराज ने प्रण कर लिया है कि अपने इखराजात के लिए रियासत की आमदनी से सिर्फ से सिर्फ एक.लाख रुपया सालाना लेंगे।

दूसरा शख्स- वाह साहब वाह! महाराज ने तीर्थ यात्रा क्या की सब के सब पाप- कर्म धो डालें।

चौथा शख्स- मालूम होता है तुलसी बाबा का प्रभाव पड़ा है।

पहला शख्स - नहीं नहीं, तुलसी बाबा तो वैसे ही साथ रहते हैं। महाराज की गोदावरी नगर में किसी राजा से मुलाकात हो गई थी। वह राजा क्या राजर्षि है। उसके कोई गुरु है। सुना है कि इस प्रांत के पोस्टमास्टर जनरल है  बस उनके शरणागत हो गये.
दूसरा शख्स - कोई अच्छे ही गुरु हैं जिन्होंने गृहस्थी भी नहीं छुडाई और जगत् से न्यारा भी कर दिया।

( इतने में तीन नायिकाएं सफेद कपड़े पहने सामने से आती है)

तीसरा शख्स- ये मातमीं सूरतें किधर जा रही हैं?

एक नायिका- महाराज के यहां हाजिरी देने जा रहे हैं।

पहला शख्स- अब हुआ तुम लोगों का भी मिजाज ठीक। उतर गये न चमकीले दमकीले कपडे?

दूसरी नायिका-वह प्रजा क्या जिस पर राजा का प्रभाव न पडे और वह राजा क्या जिस पर प्रजा का प्रभाव न पडे?

 दूसरा शख्स- ठीक है, ठीक है ।

 पहला शख्स-(दूसरे से) चलो भाई!हम भी इनके पीछे पीछे चले , देखें क्या तमाशा होता है ?

क्रमशः                         

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



प्रेमपत्र bhag-1 / 24072020



**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र- कल से आगे-( 9)

 अब समझना चाहिए कि सहसदलकँवल के नीचे परगट कार्यवाही तीन धारों की है।।                                                   

 पहली चैतन्य धार जो सत्तपुरुष राधास्वामी की अंश है और यहां अनेक जिस्मों में जीव चैतन्य या सुरत कहलाती है और कारफरमा यानी कर्ता है यही है।।                                                     

दूसरी निरंजन यानी काल पुरुष की धार जो मन रुप होकर हर एक जिस्म सुरत की ताकत से कार्यवाही करती है ।।                           

तीसरी माया की धार, जो देह और इंद्री रूप होकर सुरत और मन का गिलाफ हो रही है। नीचे के देश में माया के तहत और उसका मसाला (जो 3 गुण और पांच तत्वों में ) स्थूल और ज्यादा स्कूल यानी मलीन से मलिन होता गया और इसी सबब से इन देशो में भी निहायत स्थूल और मलीन है।

क्रमशः                     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


रोजाना वाक्यात ...... / 24072020




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाकिआत-
कल से आगे-

 हरबर्ट स्पेंसर ने किसी वक्त कह दिया था कि औरतों का भी जब जब दाँव चलता है बेतकल्लुफ मर्दो पर जुल्म करती है। उनका सिर्फ मर्दों को जालिम करा देना महज व्यर्थ है ।

बस फिर क्या था हरबर्ट स्पेंसर की इज्जत खाक में मिला दी गई। लेकिन आज एक किताब के कुछ पृष्ठ पढे। उसका नाम है The Dominant Sex । उसके रचनाकारों ने तो गजब ही ढा दिया है। उन्होंने बकायदा जाँच व खोजबीन के बाद स्पार्टा, मिश्र व दीगर राष्ट्रों की पुरानी कौमों के हालात लेखनीबंद किये हैं जिनके अध्ययन से मालूम होता है कि जो हाल मर्दों ने आजकल औरतों का कर रखा है उन लोगों के जमाने में औरतों ने मर्दों का कर रखा था।

मर्दों को पर्दे में रहना पड़tता था । जायदाद की मालिका औरते होती थी। कपड़े धोना व सीना, खाना पकाना, झाड़ू pलगाना यह सब कामों के जिम्मे थे यहां तक कि बच्चों की परवरिश का काम भी मर्दों के सिपुर्द था।

 ज्यों ही किसी मर्द की बीवी ने बच्चा जना उसे आजकल की औरतों की तरह चारपाई पर लेट जाना पड़ता था और बीबी दो चार रोज के बाद हस्ब मामूल अपने काम पर चली जाती थी। औरतें व्यापार व सरकारी नौकरियां करती थी और उन्हें इजाजत थी जितने मर्दों से चाहे शादी करें लेकिन कोई मर्द सिवा अपनी बीवी के दूसरी तरफ निगाह न उठा पाता था। असली बात यही है कि ताकत व उन्नति पाकर हर इंसान मर्द हो या औरत कमजोर पक्ष पर जुल्म करने लगता है।।                                         
O मिस्टर हेनरी मॉर्गनथ्यू ने मुझसे दरयाफ्त किया कि ताकतवर आदमी वह है जो कमजोरों की क्या सहायता करे। इस पर उन्होने पूछा कि ताकतवर कौम की तारीफ क्या है, मैने कहा वह कमजोर कौमों की सहायता करे।

उन्होने पूछा अगर कोई कौम रुपया पैसा और ताकत रखती हो और कमजोर हो की सहायता न करें तो क्या कहोगे?  मैं जवाब दिया मैं यही कहूँगा कि यकीनन वह कौम कमजोर है क्योंकि कमजोरों की मदद करने की कमजोरी है । इस जवाब से वह बहुत खुश रहें और बड़ी भारी रकम मुझे पेश की। लेकिन मैंने उसे लेने से इनकार कर दिया परमार्थ की तो यही तालीम है-

 क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाकिआत-
कल से आगे-

 हरबर्ट स्पेंसर ने किसी वक्त कह दिया था कि औरतों का भी जब जब दाँव चलता है बेतकल्लुफ मर्दो पर जुल्म करती है। उनका सिर्फ मर्दों को जालिम करा देना महज व्यर्थ है ।

बस फिर क्या था हरबर्ट स्पेंसर की इज्जत खाक में मिला दी गई। लेकिन आज एक किताब के कुछ पृष्ठ पढे। उसका नाम है The Dominant Sex । उसके रचनाकारों ने तो गजब ही ढा दिया है। उन्होंने बकायदा जाँच व खोजबीन के बाद स्पार्टा, मिश्र व दीगर राष्ट्रों की पुरानी कौमों के हालात लेखनीबंद किये हैं जिनके अध्ययन से मालूम होता है कि जो हाल मर्दों ने आजकल औरतों का कर रखा है उन लोगों के जमाने में औरतों ने मर्दों का कर रखा था।

मर्दों को पर्दे में रहना पड़tता था । जायदाद की मालिका औरते होती थी। कपड़े धोना व सीना, खाना पकाना, झाड़ू pलगाना यह सब कामों के जिम्मे थे यहां तक कि बच्चों की परवरिश का काम भी मर्दों के सिपुर्द था।

 ज्यों ही किसी मर्द की बीवी ने बच्चा जना उसे आजकल की औरतों की तरह चारपाई पर लेट जाना पड़ता था और बीबी दो चार रोज के बाद हस्ब मामूल अपने काम पर चली जाती थी। औरतें व्यापार व सरकारी नौकरियां करती थी और उन्हें इजाजत थी जितने मर्दों से चाहे शादी करें लेकिन कोई मर्द सिवा अपनी बीवी के दूसरी तरफ निगाह न उठा पाता था। असली बात यही है कि ताकत व उन्नति पाकर हर इंसान मर्द हो या औरत कमजोर पक्ष पर जुल्म करने लगता है।।                                           
O मिस्टर हेनरी मॉर्गनथ्यू ने मुझसे दरयाफ्त किया कि ताकतवर आदमी वह है जो कमजोरों की क्या सहायता करे। इस पर उन्होने पूछा कि ताकतवर कौम की तारीफ क्या है, मैने कहा वह कमजोर कौमों की सहायता करे।

उन्होने पूछा अगर कोई कौम रुपया पैसा और ताकत रखती हो और कमजोर हो की सहायता न करें तो क्या कहोगे?  मैं जवाब दिया मैं यही कहूँगा कि यकीनन वह कौम कमजोर है क्योंकि कमजोरों की मदद करने की कमजोरी है । इस जवाब से वह बहुत खुश रहें और बड़ी भारी रकम मुझे पेश की। लेकिन मैंने उसे लेने से इनकार कर दिया परमार्थ की तो यही तालीम है-

 क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


उधो श्याम गोपी संवाद / सतिंदर गुप्ता



 दिल था शाम को सौंप दिया
अब   दुजा  कहां   से  लाएं  हंम
बंसी   धुन   कान‌   में    बैठ  गई
अब और  क्या  उसे सु नाएं  हंम
एक दिल था शाम को सौंप दिया

आंखों   में  शाम   हैं   आन  बसें
कुछ   और   देख  ना   पाएं  हंम
इस  तन  पे  शाम  का  राज‌ चले
अब   खुद  कैसे   चल  पायें‌  हम
बंसी   धुन    कान   में   बैठ   गई
अब  और  क्या  उसे  सुनाएं  हंम

जब   शाम  शाम   रंग  डाल  गये
किसी  और  ना रंग  रंग पायें  हंम
बैठा    है   लबों   पे    शाम   नाम
कुछ   और   बोल  ना   पायें   हम
 बंसी    धुन   कान   में   बैठ   गई
अब  और  क्या  उसे  सुनाएं   हंम

उदौ ‌ उस   शाम  का  क्या  कहना
हैं   उस    की   आस   लगाए  हंम
अब    रो   रो    ‌आंसू    सूख   गए
दिल   ही   दिल   घुटते  जायें   हम
 बंसी  ‌  धुन   कान    में   बैठ   गई
अब  और   क्या  उसे  सुनाएं   हंम

उस   बिरहा  जल जल  खाक  हुए
अब  किस  को  और  जलांयें‌   हंम
अगर   कांटा  भी  चुभ  जाये‌  उन्हें
यहां   लहू   लुहान   हो  जायें   हम
बंसी   ‌ धुन     कान    में   बैठ  गई
अब   और   क्या  उसे  सुनाएं  हंम

हम   यही    दुआ   नित ‌ करें  सदा
वह      खुश     रहें    आबाद    रहें
जब     याद     हमारी   आ     जाए
उन    के  ही   मन   पा ‌  जायें   हम
 बंसी     धुन   कान   में    बैठ   गई
अब।  और   क्या  उसे  सुनाएं   हंम

जा  ‌  ऊदौ    शाम   से   ना  ‌ कैहना
हमं     घुट    घुट    जिए   जाते    हैं
तेरी  याद  में   तिल   तिल   मरते  हैं
ना    पायें    चैन    ना     सोएं    हंम
बंसी    धुन    कान    में    बैठ    गई
अब   और   क्या  उसे   सुनाएं   हंम

कुछ    ऐसा   ना    कह    देना   उन्हें
जो   और    दुःखी   कर   जाए   उन्हें
हम   खुश  हैं   जिसमें   वो   खुश   हैं
चाहे    जांन   भी   दे    जायें  गे   हंम
बंसी     धुन    कान     में     बैठ   गई
अब   और   क्या ‌  उसे   सुनाएं    हंम
एक   दिल था  शाम  को  सौंप   दिया
अब     दुजा   कहां    से   लाएं    हंम
                   
 प्रवचन में सुना था के एक दिन श्याम गोपियों की याद में बहुत रो रहे थे जब उद्धौ ने देखा के श्याम रो रहे हैं तो उद्धौ ने रोने का कारण पुछा।तब श्याम ने कहा आज गोपियों की बहुत याद आ रही है वह मेरे लिए तड़प रही हैं और मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूं।तब उद्धौ ने कहा कि आप भी इस माया में फंसे हो आप गोपियों से कहो कि तुम्हें छोड़ें और उस साक्षात् भगवान में मन लगाएं।तब श्याम कहते हैं ,उद्धौ तु ही भगवान को सब से ज्यादा जानते हो तुम यहीं जा कर गोपियों को समझाओ  ,और उद्धौ को गोपियों के पास भेजते हैं।

उद्धौ जब गोपियों के पास पहूंचते हैं तो देखते हैं गोपियां श्याम श्याम जपे जा रही हैं और रोये जा रही हैं।तब उद्धौ गोपियों को कहते हैं के श्याम को छोड़ साक्षात् भगवान में दिल लगाएं
तब गोपियां उद्धौ से कहती , एक दिल था शाम को सौंप दिया अब दुजा कहां से लाएं ।इस प्रसंग पर यह रचना लिखी है। आज इस कि रिकोर्डिंग की ।

शिवाष्टक


श्री शिवाष्टक

आदि अनादि अनंत अखंड अभेद अखेद सुबेद बतावैं।
अलग अगोचर रूप महेस कौ जोगि-जति-मुनि ध्यान न पावैं॥
आग-निगम-पुरान सबै इतिहास सदा जिनके गुन गावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥1॥

सृजन सुपालन-लय-लीला हित जो बिधि-हरि-हर रूप बनावैं।
एकहि आप बिचित्र अनेक सुबेष बनाइ कैं लीला रचावैं॥
सुंदर सृष्टि सुपालन करि जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 2॥

अगुन अनीह अनामय अज अविकार सहज निज रूप धरावैं।
परम सुरम्य बसन-आभूषन सजि मुनि-मोहन रूप करावैं॥
ललित ललाट बाल बिधु बिलसै रतन-हार उर पै लहरावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 3॥

अंग बिभूति रमाय मसान की बिषमय भुजगनि कौं लपटावैं।
नर-कपाल कर मुंडमाल गल, भालु-चरम सब अंग उढ़ावैं॥
घोर दिगंबर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 4॥

सुनतहि दीनकी दीन पुकार दयानिधि आप उबारन धावैं।
पहुँच तहाँ अविलंब सुदारून मृत्युको मर्म बिदारि भगावैं॥
मुनि मृकंडु-सुतकी गाथा सुचि अजहुँ बिग्यजन गाई सुनावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 5॥

चाउर चारि जो फूल धतूरके, बेलके पात औ पानि चढ़ावैं।
गाल बजाय कै बोला जो 'हर हर महादेव' धुनि जोर लगावैं॥
तिनहिं महाफल देय सदासिव सहजहि भुक्ति-मुक्ति सो पावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 6॥

बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य दारिद्रय नित्य सुख-सांति मिलावैं।
आसुतोष हर पाप-ताप सब निरमल बुद्धि-चित्त बकसावैं॥
असरन-सरन काटि भवबंधन भव निज भवन भव्य बुलवावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 7॥

औढरदानि, उदार अपार जु नैकु-सी सेवा तें ढुरि जावैं।
दमन असांति, समन सब संकट, बिरद बिचार जनहि अपनावैं॥
ऐसे कृपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥ 8॥


॥इति श्रीशिवाष्टक सम्पूर्ण॥

मृत्यु से साक्षात्कार है जीवन है



🙏 *परमात्मा को जानने का एक तरीका मृत्यु को पूर्ण रूप से जान लेना भी है।*🙏

कोई भी पशु मृत्यु से भयभीत नहीं है, क्योंकि किसी भी पशु की भविष्य के लिए कोई योजना नहीं होती। जितनी बड़ी योजनाएं होती हैं, उतना ही अधिक भय होता है। मृत्यु, वास्तव में, इस बात का भय नहीं है कि आप मर जाएंगे बल्कि इस बात का भय है कि आप अपरिपूर्ण ही मर जाएंगे और यह संभव नहीं है कि इच्छाओं को परिपूर्णता तक ले जाया जा सके और मृत्यु कभी भी आ सकती है।

यदि मैं अपरिपूर्ण ही मरता हूं, तो सचमुच भय है। मैं अभी तक अपरिपूर्ण हूं। मैंने एक क्षण भी परिपूर्णता का नहीं जाना, और मृत्यु आ सकती है। अंत मैं निरर्थक ही जीया। जिंदगी बेकार गई, बिना किसी शिखर के, बिना एक भी क्षण सत्य, शांति, सौंदर्य, आनंद के। मैं सिर्फ एक अर्थहीन निष्प्रयोजनता में जीया तब मृत्यु एक भय बन जाती है। यदि मैं परिपूर्ण हूं, यदि मैंने वह जाना है जो कि जीवन किसी को अवगत करा सकता है, यदि मैंने वह जाना है जो कि वस्तुतः जीवंत है, यदि मैंने एक भी क्षण सौंदर्य का, प्रेम का, परिपूर्णता का जाना है तो फिर मृत्यु का भय कहां है?
 आप उसका स्वागत कर सकते हैं, उसे गले लगा सकते हैं, उसका आतिथ्य कर सकते हैं तो फिर आपने परमात्मा का आवाहन किया है। अब मृत्यु कभी भी नहीं आ सकती: केवल परमात्मा ही आ सकता है। मृत्यु अब वहां नहीं होगी, केवल परमात्मा ही होगा।

लालच की सीमा हो (आपबीती )



*बेईमानी का पैसा*
 *पेट की एक-एक आंत*
 *फाड़कर निकलता है।*

        *एक सच्ची कहानी।*
रमेश चंद्र शर्मा, जो पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर चलाते थे,
उन्होंने अपने जीवन का एक पृष्ठ खोल कर सुनाया
जो पाठकों की आँखें भी खोल सकता है
और शायद उस पाप से, जिस में वह भागीदार बना, उस से भी बचा सकता है।
      मेडिकल स्टोर अपने स्थान के कारण, काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था।
लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि *धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है*
 और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई।

रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी।

अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली।

 लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा। मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था, क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं, बल्कि कई गुना कमाई होती है।

शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे, कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक जाती है।

 लेकिन अगर कोई मुझसे कभी दो रुपये भी कम करने को कहता तो मैं ग्राहक को मना कर देता।
खैर, मैं हर किसी के बारे में बात नहीं कर रहा हूं, सिर्फ अपनी बात कर रहा हूं।

वर्ष 2008 में, गर्मी के दिनों में एक बूढ़ा व्यक्ति मेरे स्टोर में आया।
उसने मुझे डॉक्टर की पर्ची दी। मैंने दवा पढ़ी और उसे निकाल लिया। उस दवा का बिल 560 रुपये बन गया।

 लेकिन बूढ़ा सोच रहा था। उसने अपनी सारी जेब खाली कर दी लेकिन उसके पास कुल 180 रुपये थे। मैं उस समय बहुत गुस्से में था क्योंकि मुझे काफी समय लगा कर उस बूढ़े व्यक्ति की दवा निकालनी पड़ी थी और ऊपर से उसके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे।

बूढ़ा दवा लेने से मना भी नहीं कर पा रहा था। शायद उसे दवा की सख्त जरूरत थी।
फिर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मेरी मदद करो। मेरे पास कम पैसे हैं और मेरी पत्नी बीमार है।
 हमारे बच्चे भी हमें पूछते नहीं हैं। मैं अपनी पत्नी को इस तरह वृद्धावस्था में मरते हुए नहीं देख सकता।"

लेकिन मैंने उस समय उस बूढ़े व्यक्ति की बात नहीं सुनी और उसे दवा वापस छोड़ने के लिए कहा।

यहां पर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि वास्तव में उस बूढ़े व्यक्ति की दवा की कुल राशि 120 रुपये ही बनती थी। अगर मैंने उससे 150 रुपये भी ले लिए होते तो भी मुझे 30 रुपये का मुनाफा ही होता।
लेकिन मेरे लालच ने उस बूढ़े लाचार व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा।

फिर मेरी दुकान पर खड़े एक दूसरे ग्राहक ने अपनी जेब से पैसे निकाले और उस बूढ़े आदमी के लिए दवा खरीदी।
लेकिन इसका भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने पैसे लिए और बूढ़े को दवाई दे दी।

वक्त बीतता चला.....
 वर्ष 2009 आ गया। मेरे इकलौते बेटे को ब्रेन ट्यूमर हो गया।
पहले तो हमें पता ही नहीं चला। लेकिन जब पता चला तो बेटा मृत्यु के कगार पर था।
पैसा बहता रहा और लड़के की बीमारी खराब होती गई।

 प्लॉट बिक गए, जमीन बिक गई और आखिरकार मेडिकल स्टोर भी बिक गया लेकिन मेरे बेटे की तबीयत बिल्कुल नहीं सुधरी।
उसका ऑपरेशन भी हुआ और जब सब पैसा खत्म हो गया तो आखिरकार डॉक्टरों ने मुझे अपने बेटे को घर ले जाने और उसकी सेवा करने के लिए कहा।

 उसके पश्चात 2012 में मेरे बेटे का निधन हो गया। मैं जीवन भर कमाने के बाद भी उसे बचा नहीं सका।

2015 में मुझे भी लकवा मार गया और मुझे चोट भी लग गई।
आज जब मेरी दवा आती है तो उन दवाओं पर खर्च किया गया पैसा मुझे काटता है
क्योंकि मैं उन दवाओं की वास्तविक कीमत को जानता हूं।

एक दिन मैं कुछ दवाई लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर गया और 100 रु का इंजेक्शन मुझे 700 रु में दिया गया।
लेकिन उस समय मेरी जेब में 500 रुपये ही थे और इंजेक्शन के बिना ही मुझे मेडिकल स्टोर से वापस आना पड़ा।
*उस समय मुझे उस बूढ़े व्यक्ति की बहुत याद आई* और मैं घर चला गया।

मैं लोगों से कहना चाहता हूं, कि ठीक है कि हम सभी कमाने के लिए बैठे हैं
 क्योंकि हर किसी के पास एक पेट है। लेकिन वैध तरीके से कमाएं, ईमानदारी से कमाएं ।
गरीब लाचारों को लूट कर कमाई करना अच्छी बात नहीं है,
 क्योंकि *नरक और स्वर्ग केवल इस धरती पर ही हैं, कहीं और नहीं।* और आज मैं नरक भुगत रहा हूं।

*पैसा हमेशा मदद नहीं करता। हमेशा ईश्वर के भय से चलो।*
 *उसका नियम अटल है क्योंकि*
 *कई बार एक छोटा सा लालच भी हमें बहुत बड़े दुख में धकेल सकता है।*

आज 23/07 का दिन मंगलमय हो



प्रस्तुति  -कृष्ण  मेहता


 एक क्षण के लिए भी कर्महीन जीवन मत जियो कुछ कर्म अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए करो। कुछ कर्म अपनों को आगे बढ़ाने के लिए करो। और कुछ कर्म समाज के लिए करो, ये कर्म सत्कर्म कहलाते हैं। किसी-किसी दिन कर्महीन रहने पर तुम्हें पता है कि कितनी नई चीजें सृष्टि में आगे बढ़ जाती है। कई नए बीज मिटटी में मिलकर अंकुरित होकर पेड़ बनने की और बढ़ जाते हैं। कई फूल काँटों के बीच रहकर प्रकृति को सौन्दर्य युक्त बनाने के लिए खिल पड़ते है।कई परमार्थी चित्त आत्म- प्रेरित होकर स्वार्थ की बेड़ियों को तोड़कर परमार्थ पर चल पड़े होंगे। कई हृदयों के तारों पर ईस्वर भक्ति का संगीत झंकृत हो चुका होगा। कई मानव देव बनने की राह पर चल पड़े होंगे।मै कई बार सोचती  हूँ कि आपने और मैंने जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन और क्षण फिर नष्ट कर दिया। आलस्य की शैया पर पड़े-पड़े समय को आज अपने हाथों से और आपके हाथों से फिर निकलता हुआ देख रहा हूँ।


 कृष्ण मेहता:


 🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक 23 जुलाई 2020*
⛅ *दिन - गुरुवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)*
⛅ *शक संवत - 1942*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - वर्षा*
⛅ *मास - श्रावण*
⛅ *पक्ष - शुक्ल*
⛅ *तिथि - तृतीया शाम 05:03 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
⛅ *नक्षत्र - मघा शाम 05:44 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
⛅ *योग - व्यतिपात दोपहर 12:03 तक तत्पश्चात वरीयान्*
⛅ *राहुकाल - दोपहर 02:12 से शाम 03:51 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:10*
⛅ *सूर्यास्त - 19:20*
⛅ *दिशाशूल - दक्षिण दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -
 💥 *विशेष - तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *पुण्यदायी तिथियाँ* 🌷
➡ *11 अगस्त : जन्माष्टमी (स्मार्त)*
➡ *12 अगस्त : जन्माष्टमी (भागवत) (20 करोड़ एकादशी व्रतों के समान अकेला जन्माष्टमी का व्रत है - भगवान श्रीकृष्ण । जन्माष्टमी के दिन पूरी रात जागरण करके ध्यान, जप आदि करना महापुण्यदायी है ।), बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से दोपहर 11:17 तक)*
➡ *15 अगस्त : अजा एकादशी  (समस्त पापनाशक व्रत, माहात्म्य पढ़ने-सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल)*
➡ *16 अगस्त : विष्णुपदी संक्रांति  (पुण्यकाल दोपहर 12:43 से सूर्यास्त तक)(ध्यान, जप, व पुण्यकर्म का लाख गुना फल)*
➡ *22 अगस्त : गणेश चतुर्थी  (चन्द्र-दर्शन निषिद्व चन्द्रस्त - रात्रि 09:49) (ॐ गं गणपतये नम: । का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विध्न-निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।)*
➡ *26 अगस्त :बुधवारी अष्टमी  (सूर्योदय से सुबह 10:40 तक)*
➡ *29 अगस्त : पद्मा एकादशी  (व्रत करने व माहात्म्य पढ़ने-सुनने से सब पापों से मुक्ति)*
➡ *01 सितम्बर : महालय श्राद्धारम्भ (श्राद्ध पक्ष 01 सितम्बर से 17 सितम्बर तक)*
🙏🏻 *लोक कल्याण सेतु जुलाई 2020 से*
               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞



          🌞 ~ *हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
🙏🏻🌷🌻🌹🍀🌺🌸🍁💐🙏🏻


प्रेमपत्र, रोजाना वाक्यात, औऱ संसारचक्र


 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- 5,6,7 दिसंबर 1932 -सोमवार से बुधवार:-" इंसान क्या चाहता है "। इस सवाल का बहुत से दार्शनिकों ने जवाब देने की कोशिश की है। नेत्शे की राय है कि इंसान ताकतवर बनना चाहता है मगर हिंदुस्तान के बाशिंदों दो बाशिंदों का तो हाल ही अस्त व्यस्त है । यहाँ के लोग तो आम तौर महज गुजारा चाहते हैं। उनके दिल में किसी खास चीज या हालत के लिए शौक नहीं है। बस इतना हो कि बाल बच्चे सुखी रहें और आराम से जिंदगी कट जाये। मालूम होता है कि मगरिब में जिंदगी की कशमकश ज्यादा होने से आम तौर लोग ताकत के इच्छुक हैं।।                                                         हजरत खामोश अपने रोजानामचा मोवर्रिखा 22 नवंबर में तहरीर करते हैं कि उनके गांव (जिला फतेहपुर) में किसान आजकल ₹1 की 20 साल पुरानी जवार लाते हैं और उसी का सेर भर दलिया तीन सेर मट्ठों में डालकर पका लेते हैं और सब घर यही खाकर खुदा का शुक्र बजा लाते हैं। इससे समझ में नहीं आ सकता कि इस मुल्क के किसान कैसे आहिस्ता आहिस्ता मौत के मुंह में उतर रहे हैं। दूसरे मुल्कों में अगर यह हालत हो तो ऐसी हाय तौबा मच की जमीन व आसमान हिल जायें मगर ये हिंदुस्तान हजरत खामोश का वतन है यहाँ हर शख्स खामोश ही रहना पसंद करता है। गवर्नमेंट भी क्या करें? किसानों की कमाई से गवर्नमेंट के सब काम चलते हैं । किसानों की इमदाद के लिए किसकी कामाई आवे? अगर नमक से नमकीनी जाती रहे  तो वह किस चीज से नमकीन बनाया जावे? क्रमशः                     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[7/23, 04:22] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर महाराज-प्रेम पत्र-भाग-एक-कल से आगे:-(8) फिर मुकाम त्रिकुटी से दोनों धारें उतर कर सहसदलकँवल में आकर ठहरीं और यहाँ इनका नाम जोत निरंजन और शिव शक्ति हुआ।ब्रह्मांड में ब्रह्म सृष्टि की रचना इन्होने करी। यहाँ पर निरजंन जोत का स्वरुप जुदा जुदा प्रगट हुआ और दोनों चैतन्य और निहायत लतीफ यानी सूक्ष्म स्वरुप है। इस मुकाम से तीनों गुण की धारें यानी सत, रज, तम जिनको ब्रह्म, विष्णु और महेश कहते हैं और पांच तत्व सूक्ष्म यानी पृथ्वी, जल , अग्नि, पवन और हुए। इन आठों से मिलकर चेतन पुरुष और माया के तीन लोक की रचना करी, यानी देवता, असुर और चार खान के जीव ( जेरज, अंडज,स्वेदज और उद्भिज), जिसमें मनुष्य, चौपाये,परिंद और कीड़े मकोड़े और अनेक किस्म के दरख्त और वनस्पति और खाने शामिल है, पैदा किये और सूरज और चांद और जमीन आसमान रचे गए क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

【संसार चक्र 】

-कल से आगे :-

बाँदी -श्री महाराज! महारानी जी ने कहलाया है के अँगूठी वाले नौजवान की पूरी खातिर की जावे और राजपंडित से दरख्वास्त की जाय कि राजकुमार का अमृतलाल ही नाम रक्खा जाय। महारानी जी अँगूठी देख कर बड़ी ही प्रसन्न हुई।

( हंस पड़ती है और वापस चली जाती है।)

                                   

 राजपंडित- भाई हम तो आगे ही कह रहे थे राजकुमारों के लायक नाम है ।

दीवान साहब -श्री महाराज ! अगर आज्ञा हो तो मैं कुछ अर्ज करूँ।

 दुलारेलाल- हाँ हाँ कहिये।

 दीवान साहब- अभी बुढिया कहती थी कि स्त्री का दिल संतान के लिए बहुत तड़पता है ।ये लोग अमृतलाल को गोद क्यों न लें लें?  इसको मां-बाप मिल जायँगे और उनको पली पलाई संतान ।

 दुलारेलाल- बहुत खूब ! मैं भी यही सोच रहा था।

( गले से सोने का कण्ठा उतार कर)

यह लो अमृतलाल! इसे पहनो तुलसी बाबा और उनकी धर्मपत्नी को नमस्कार करो । ये तुम्हारे ताऊजी और ताईजी थे, आज से तुम्हारे पिता और माता हुए।

( बाँदी एक थाल मिठाई का लेकर आती है।)

बाँदी- श्री महाराजा ! यह थाल महारानी जी ने अँगूठी वाले के लिये भेजा है।

दुलारेलाल (नौजवान से) लो भाई लो, मिठाई की कसर थी, वह भी पूरी हो गई। खिलाओ सबको मिठाई ।अपने हाथ से बाँटो।

नौजवान-हुजूर! क्या मैं स्वपन देख रहा हूँ?

 दुलारेलाल- नहीं तुम जाग रहे हो, तुम संसार-चक्र का तमाशा देख रहे हो ।।             


🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**





आज शाम 23/07 शाम सतसंग के पाठ औऱ वचन


**राधास्वामी!!
 23-07-2020-

 आज शाम के सतसंग में पढे जाने वाले पाठ-

(1)होली खेलत सुरत रँगीली, गुरु सँग प्रीति बढाई।।टेक।। सुरत अबीर मलत चरनन पर। प्रेम रंग बरसाई। गुनन गुलाल उडावत चहुँ दिस। शब्द सुनत हरखाई। गगन पर करत चढाई।।-(महासुन्न होय चढत गुफा पर। सोहँग मुरली बजाई। सतपुर जाय मिली सतगुरु से। मधुर धुन आई। चरन में राधास्वामी जाय समाई।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-29,पृ.सं.317)

(2) मैं तो आय फँसी परदेस, कोई घर की खबर जनाओ रे। प्रेमनगर मेरे पिया बिराजे, कोई प्रेम की डगर खुलाओ रे।।-( ) (प्रेमबिलास-शब्द-17,पृ.सं.22)

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!

!23-07 -2020

-आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे-( 56) का  शेष:-

अब शेष रह गई 2 युक्तियां अर्थात पहली और चौथी । उनके विषय में वैदिक धर्म के परम भक्त श्री नरदेव शास्त्री वेदतीर्थ का लेख ध्यानसहित पढ़ने के योग्य है। आपने अपने ग्रंथ ' आर्य समाज का इतिहास ' के प्रथम भाग में पहली युक्ति के संबंध में लिखा है--" इसमें संदेह नहीं-- सर्व दुखों से छूट कर जन्म मरण के बंधन से रहित होकर ईश्वरानंद में निमग्न होने का नाम ही मुक्ति है ।

 इतने अंश में सब दर्शनकार एकमत हैं। पर मुक्ति से लौटकर फिर आता  है, इस तत्व को केवल स्वामी जी ही मानते हैं । जो लौटना नहीं मानते वे 'न च पुनरावर्तते, न च पुनरावर्तते'  इस श्रुति को प्रणाम में प्रमाण में देते हैं ।

हमको तो आज तक एक प्रमाण नहीं मिला जो स्पष्ट रूप से लौटने की बात कहता हो"।

(पृष्ठ61)

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश -

भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**




राधास्वामी दीन दयाल नित करो मेरी सम्हाल.




मेरी आजाद रूह को क़ैद-ए-जिस्म ना देना ,
बड़ी मुश्किल से कटती  है सज़ा-ए-ज़िंदगी मेरे #दाता #
 तेरी रहमत है मालिक जो कटती जा रही है यह
वरना काटे से कहां कटती है यह जिदंगी मेरे #दाता #
कितने ही गुनाहो से लबरेज है यह तन बदन मेरा
फानी है इसे तो माटी ही है इक दिन  होना #मेरे मालिक #
जो आऊ तेरे दर पे ले कर के रूहे पाक मै अपनी
कर्म करना मुझ पे मेरे #मौला#
मेरी  रूहे पाक को आजाद कर देना
बचा के भवसागर के थपेङो से
मुझे चरणो मे ले लेना
मुझे चरणो मे ले लेना
🌹राधास्वामी🌹




रोजाना वाक्यात


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजाना वाकिआत- 5,6,7 दिसंबर 1932

 -सोमवार से बुधवार:-"

 इंसान क्या चाहता है "। इस सवाल का बहुत से दार्शनिकों ने जवाब देने की कोशिश की है। नेत्शे की राय है कि इंसान ताकतवर बनना चाहता है मगर हिंदुस्तान के बाशिंदों दो बाशिंदों का तो हाल ही अस्त व्यस्त है ।

यहाँ के लोग तो आम तौर महज गुजारा चाहते हैं। उनके दिल में किसी खास चीज या हालत के लिए शौक नहीं है। बस इतना हो कि बाल बच्चे सुखी रहें और आराम से जिंदगी कट जाये। मालूम होता है कि मगरिब में जिंदगी की कशमकश ज्यादा होने से आम तौर लोग ताकत के इच्छुक हैं।।                                                       
हजरत खामोश अपने रोजानामचा मोवर्रिखा 22 नवंबर में तहरीर करते हैं कि उनके गांव (जिला फतेहपुर) में किसान आजकल ₹1 की 20 साल पुरानी जवार लाते हैं और उसी का सेर भर दलिया तीन सेर मट्ठों में डालकर पका लेते हैं और सब घर यही खाकर खुदा का शुक्र बजा लाते हैं।


 इससे समझ में नहीं आ सकता कि इस मुल्क के किसान कैसे आहिस्ता आहिस्ता मौत के मुंह में उतर रहे हैं। दूसरे मुल्कों में अगर यह हालत हो तो ऐसी हाय तौबा मच की जमीन व आसमान हिल जायें मगर ये हिंदुस्तान हजरत खामोश का वतन है यहाँ हर शख्स खामोश ही रहना पसंद करता है।

गवर्नमेंट भी क्या करें? किसानों की कमाई से गवर्नमेंट के सब काम चलते हैं । किसानों की इमदाद के लिए किसकी कामाई आवे? अगर नमक से नमकीनी जाती रहे  तो वह किस चीज से नमकीन बनाया जावे?

क्रमशः                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


Wednesday, July 22, 2020

प्रेमपत्र bhag-1 / 23072020



**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र-भाग-एक

-कल से आगे:-(8)

 फिर मुकाम त्रिकुटी से दोनों धारें उतर कर सहसदलकँवल में आकर ठहरीं और यहाँ इनका नाम जोत निरंजन और शिव शक्ति हुआ।

ब्रह्मांड में ब्रह्म सृष्टि की रचना इन्होने करी। यहाँ पर निरजंन जोत का स्वरुप जुदा जुदा प्रगट हुआ और दोनों चैतन्य और निहायत लतीफ यानी सूक्ष्म स्वरुप है। इस मुकाम से तीनों गुण की धारें यानी सत, रज, तम जिनको ब्रह्म, विष्णु और महेश कहते हैं और पांच तत्व सूक्ष्म यानी पृथ्वी, जल , अग्नि, पवन और हुए।

 इन आठों से मिलकर चेतन पुरुष और माया के तीन लोक की रचना करी, यानी देवता, असुर और चार खान के जीव ( जेरज, अंडज,स्वेदज और उद्भिज), जिसमें मनुष्य, चौपाये,परिंद और कीड़े मकोड़े और अनेक किस्म के दरख्त और वनस्पति और खाने शामिल है, पैदा किये और सूरज और चांद और जमीन आसमान रचे गए.

 क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


संसारचक्र ( नाटक ) 23072020


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

【संसार चक्र 】

-कल से आगे :-

बाँदी -श्री महाराज! महारानी जी ने कहलाया है के अँगूठी वाले नौजवान की पूरी खातिर की जावे और राजपंडित से दरख्वास्त की जाय कि राजकुमार का अमृतलाल ही नाम रक्खा जाय। महारानी जी अँगूठी देख कर बड़ी ही प्रसन्न हुई।

( हंस पड़ती है और वापस चली जाती है।)

                                     

 राजपंडित- भाई हम तो आगे ही कह रहे थे राजकुमारों के लायक नाम है ।

दीवान साहब -श्री महाराज ! अगर आज्ञा हो तो मैं कुछ अर्ज करूँ।

 दुलारेलाल- हाँ हाँ कहिये।

 दीवान साहब- अभी बुढिया कहती थी कि स्त्री का दिल संतान के लिए बहुत तड़पता है ।ये लोग अमृतलाल को गोद क्यों न लें लें?  इसको मां-बाप मिल जायँगे और उनको पली पलाई संतान ।

 दुलारेलाल- बहुत खूब ! मैं भी यही सोच रहा था।

( गले से सोने का कण्ठा उतार कर)

यह लो अमृतलाल! इसे पहनो तुलसी बाबा और उनकी धर्मपत्नी को नमस्कार करो । ये तुम्हारे ताऊजी और ताईजी थे, आज से तुम्हारे पिता और माता हुए।

( बाँदी एक थाल मिठाई का लेकर आती है।)

बाँदी- श्री महाराजा ! यह थाल महारानी जी ने अँगूठी वाले के लिये भेजा है।

दुलारेलाल (नौजवान से) लो भाई लो, मिठाई की कसर थी, वह भी पूरी हो गई। खिलाओ सबको मिठाई ।अपने हाथ से बाँटो।

नौजवान-हुजूर! क्या मैं स्वपन देख रहा हूँ?

 दुलारेलाल- नहीं तुम जाग रहे हो, तुम संसार-चक्र का तमाशा देख रहे हो ।।               


🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


Dayalbagh घोषणा


*कल  शाम (२२-०७-२०२०)  के  सत्संग  के  बाद  हुई  अनाउंसमेंट*

आजकल  वायरस  से  फैलने  वाली  कोविड १९  बीमारी  बहुत  तेज़ी  पकड़े  हुए  हैं।  *यह  बीमारी  छोटी  छोटी  ड्रोपलेट्स,  बूंदे,  जो  हवा में  तैरती  हैं  और  मुंह  से  व  नाक  से  निकलती  हैं, उनके  द्वारा  ज्यादातर  फैलती  हैं। यह  ड्रोप्लेट्स  खांसने  में, बातचीत  करने  में  और  छींकने  में  बहुत  ज्यादा  क्वांटिटी  में  व  बहुत  ज्यादा  स्पीड  के  साथ  बाहर  निकलती  हैं।*  इनसे  बचने  के  लिए  इंतजाम  सिम्पल  हैं,  *मास्क  का  प्रयोग।* मास्क  कई  प्रकार  के  होते  हैं, लेकिन  सबका  प्रिंसिपल  ये  हैं  कि  *मुंह  और  नाक  दोनों  ढकने  चाहिएं।*

जो  मास्क  हैं, ये  कपड़े  के  सस्ते  मिलते  हैं,  इनको  २ - ३  अगर  खरीद  ले,  तो  उनको  साबुन  से   रोज़ाना  धो  सकते  हैं।  अगर  धूप  निकली  हो  तो  धूप  में  उनको  डालकर  सुखा  सकते  हैं,  इससे  वो  स्टरिलाइज,  सनिटाइज  हो  जाते  हैं।  और  अगले  दिन  दूसरा  मास्क  पहना,  इसी  तरह   वॉश -  वियर,  वॉश - वियर   की  साइकिल  चल  सकती  हैं।  *कुछ  मास्क*  होते  हैं,  *जिनमें  वाल्व  लगे  रहते  हैं,  ताकि  एयर  एक  डायरेक्शन  में  जाएगी  दूसरी  में  नहीं।  ये  मास्क  ठीक  नहीं  है। 

गवर्नमेंट  एक्सपर्ट्स  ने  भी  और  हम  लोगो  की  तरफ  से  भी  ये  राय  दी  जाती  है  कि  जो  वाल्व  वाले  मास्क  हैं  उनका  प्रयोग  ना  करें,  तो  ही  अच्छा  है।  और  दूसरा  बहुत  ज़रूरी  तरीका  यह  हैं  कि  एक  दूसरे  से  दूरी  मेंटेन  करें।  सोशियल  डिस्टैंसिंग  और  ये  कर्यवाई  घर  में  भी  जारी  रखनी  चाहिए  क्योंकि  ६०%  से  ८०%  जो  मरीज़  होते  हैं  वो  ए  सिंप्टोमेटिक  होते  हैं  (कोई  उनमें  तकलीफ  नहीं  होती),  वो  नॉर्मल  इंसान  की  तरह  रहते  हैं  और  किसी  को  पता  ही  नहीं  लगता  की  दे  आर  केरी  ए  वायरस  और  ड्रॉप्लेट्स  में  आ  जायेगे  वायरस।  इसीलिए  उनसे  डिस्टैंस  मेंटेन  करना  अति  आवश्यक  है  और  ये  घर  में  भी  करें  और  बाहर  भी  करें।*  बाहर  में   एंवायरनमेंट  पे  तो  हम  लोगों  का  कंट्रोल  नहीं  है, लेकिन  अपने  ऊपर  हम  लोग  कंट्रोल  कर  सकते  हैं।

 तो  जितनी  बातें  आपको  बताई  गई  है  छोटी - छोटी  वो  सब  करने  से  इस  बीमारी  से  बचाव  हो  सकता  है।

*राधास्वामी*

इस तरह करें अपनी आखों की देखभाल


👀*आंखों में रहती है थकान और भारीपन तो ऐसे करें इनकी देखभाल* 👀

1. सुबह सूर्योदय से पहले उठें और उठते ही मुंह में पानी भरकर बंद आंखों पर 20-25 बार ठंडे पानी के छींटे मारें। याद रखें, मुंह पर छींटे मारते समय या चेहरे को पानी से धोते समय मुंह में पानी भरा होना चाहिए।

 2. धूप, गर्मी या श्रम के प्रभाव से शरीर गर्म हो तो चेहरे पर ठंडा पानी न डालें। थोड़ा विश्राम कर पसीना सुखाकर और शरीर का तापमान सामान्य करके ही चेहरा धोएं।

 3. आंखों को गर्म पानी से नहीं धोना चाहिए, इससे आंखों को नुकसान होता है।

 4. बहुत दूर के पदार्थों या दृश्यों को देर तक नजर गड़ाकर न देखें, तेज धूप से चमकते दृश्य को न देखें, कम रोशनी में लिखना, पढ़ना व बारीक काम न करें।

 5. नींद, आंखों में भारीपन, जलन या थकान महसूस हो तो काम तत्काल आंखों को बंद कर उन्हें थोड़ा विश्राम दें।

 6. देर रात तक जागना और सूर्योदय के बाद देर तक सोना आंखों के लिए हानिकारक होता है। देर रात तक जागना ही पड़े तो घंटा-आधा घंटे में एक गिलास ठंडा पानी पी लेना चाहिए।

 7. आंखों को धूल, धुएं, धूप और तेज हवा से बचाना चाहिए।

 8. लगातार आंखों से काम ले रहे हों तो बीच में 1-2 बार आंखें बंद कर, आंखों पर हथेलियां हलके-हलके दबाव के साथ रखकर आंखों को आराम देते रहें।

 9. कभी-कभी रोना आंखों के लिए फायदेमंद होता है। इससे मन के साथ-साथ आंखों की भी सफाई होती है

हाथ पाँव में सूनापन औऱ झनझनाहट हो


*🌹हाथ पैरों के सुन्न / झनझनाहट हो जाये तो.....🌹*

👉🏻हाथ पैर सुन्न होने का कारण - अंग के सुन्न होने या झनझनाहट का मुख्य कारण वहां रक्त संचार की कमी है। जब शरीर के किसी भी अंग में अधिक समय तक दबाव होता है या रक्त संचार ढंग से नहीं होता तो शरीर की नसों पर असर पड़ने लगता है। इससे शरीर के अंगों तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन और रक्त संचार नहीं हो पाता है, जिससे उन अंगों में झनझनाहट होने लगती है या वे सुन्न हो जाते हैं।

🌹1.यदि आपके हाथ या पैर सुन्न हो गए हैं तो आप एक बड़े बर्तन में गुनगुना पानी लें और उसमें सेंधा नमक मिलाएं। फिर इसमें सुन्न हुआ अंग करीब 10 मिनट के लिए भिगो कर रखें। एेसा करने से काफी आराम मिलेगा।

🌹2.1 चम्मच दालचीनी और शहद मिला कर सुबह कुछ दिनों तक सेवन करें।

🌹3.हाथ पैरों के सुन्न पड़ने पर जैतून या फिर सरसों के तेल को गुनगुना गर्म करके उससे हाथ पैरों की मालिश करें, इससे नसें खुलती हैं और ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और शरीर ठीक हो जाता है।

🌹4. एक साफ कपड़े को गरम पानी { पानी जितना गरम सह सके उतना गरम ले  ज़्यादा गरम से स्किन जल जाने की संभावना } में भिगो कर कपड़े निचोड़ लें  उस कपड़े से  पांच-सात मिनट के लिए प्रभावित जगह को सेंके। सुन्नपन दूर होने तक इस उपाय को कई बार दोहराएं।

🌹5. नियमित व्यायाम करें

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

आज 22/07 का दिन मंगलमय हो



प्रस्तुति - कृष्ण मेहता

🌞 🕉~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🕉🌞
         
⛅ *दिनांक - 22 जुलाई 2020*
⛅ *दिन - बुधवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2077*
⛅ *शक संवत - 1942*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - वर्षा*
⛅ *मास - श्रावण*
⛅ *पक्ष - शुक्ल*
⛅ *तिथि - रात्रि 07:22 तक द्वितीया*
⛅ *नक्षत्र - रात्रि 07:16 तक अश्लेशा*
⛅ *योग - दोपहर 02:56 तक सिद्धि*
⛅ *राहुकाल - दोपहर 12:33 से 02:12*
⛅ *सूर्योदय - 06:09*
⛅ *सूर्यास्त - 19:20*
⛅ *दिशाशूल - उत्तर दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण - चन्द्र-दर्शन*
 💥 *विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

🌷 *नागपंचमी* 🌷
🙏🏻 *श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है, इस बार ये पर्व 25 जुलाई, शनिवार को है, इस दिन नागों की पूजा करने का विधान है, हिंदू धर्म में नागों को भी देवता माना गया है, महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है, इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं, नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं-*
🐍 *वासुकि नाग*
*धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है, ये हैं भगवान शिव के गले में लिपटे रहते हैं, (कुछ ग्रंथों में महादेव के गले में निवास करने वाले नाग का नाम तक्षक भी बताया गया है) ये महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान हैं, इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है, इनकी बुद्धि भगवान भक्ति में लगी रहती है, जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए, तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।*
*तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया, समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया, आस्तीक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था, धर्म ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकि की नेती (रस्सी) बनाई गई थी, त्रिपुरदाह (इस युद्ध में भगवान शिव ने एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों को नष्ट कर दिया था) के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।*
🐍 *शेषनाग*
*शेषनाग का एक नाम अनंत भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता कद्रू व भाइयों ने मिलकर विनता (ऋषि कश्यप की एक और पत्नी) के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।*
🐍 *ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए, इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया, क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं, धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।*
👉🏻 शेष कल.........

🌷 *व्यतिपात योग* 🌷
🙏🏻 *व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है।*
🙏🏻 *वाराह पुराण में ये बात आती है व्यतिपात योग की।*
🙏🏻 *व्यतिपात योग माने क्या कि देवताओं के गुरु बृहस्पति की धर्मपत्नी तारा पर चन्द्र देव की गलत नजर थी जिसके कारण सूर्य देव अप्रसन्न हु नाराज हुए उन्होनें चन्द्रदेव को समझाया पर चन्द्रदेव ने उनकी बात को अनसुना कर दिया तो सूर्य देव को दुःख हुआ कि मैने इनको सही बात बताई फिर भी ध्यान नहीं दिया और सूर्यदेव को अपने गुरुदेव की याद आई कि कैसा गुरुदेव के लिये आदर प्रेम श्रद्धा होना चाहिये पर इसको इतना नहीं  थोडा भूल रहा है ये, सूर्यदेव को गुरुदेव की याद आई और आँखों से आँसू बहे वो समय व्यतिपात योग कहलाता है और उस समय किया हुआ जप, सुमिरन, पाठ, प्रायाणाम, गुरुदर्शन की खूब महिमा बताई है वाराह पुराण में।*
💥 *विशेष ~ 22 जुलाई 2020 बुधवार को दोपहर 02:57 से 23 जुलाई, गुरुवार को दोपहर 12:03 तक व्यतिपात योग है ।*


🙏🏻🌹🌻☘🌷🌺🌸🌼💐🙏🏻

संसारचक्र (नाटक ) / 22072020


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】-

 कल से आगे-

(इतने में बाँदी दाखिल होती है।)
J
 बाँदी- श्री महाराज की जय हो! भगवान् ने राजकुमार भेजा है ,मुबारक हो।

 (सब लोग मुबारकबाद देते हैं। राजा दुलारेलाल आंखें बंद कर लेता है और कुछ देर बाद नौजवान को बुलवाता है। नौजवान हाजिर होता है।)

दुलारेलाल- आओ भाई आओ, हमारी जान के बचाने वाले, आओ हमारे नजदीक बैठो।

दीवान साहब -श्री महाराज! यह कौन है?

  दुलारेलाल -यह वही नौजवान है जिसने कुरुक्षेत्र में हमारी जान बचाई थी। महारानी जी इसे यह अंगूठी यादगार के तौर पर दया आई थी।

(मुसाहिबीन से मुखातिब होकर)  देखो! इस नौजवान को अच्छे कमरे में ठहराओ और खूब खातिर करो।

एक मुसाहिब- उठो भाई! बड़े भाग्यवान् हो, अच्छे वक्त आये।

नौजवान- महाराज! अगर मुझे इस वक्त महारानी जी के दर्शन नहीं हो सकते तो यह अंगूठी उन तक पहुंचा दी जाय।

 दुलारेलाल- अच्छा। लो बाँदी,यह अँगूठी महारानी जी
 को दिखलाओ और कहो अँगूठी लाने वाले की खातिर की जा रही है, इत्मीनान रक्खें।

( बांदी अंगूठी लेकर जाती है और लौटकर आती है।)

  बाँदी-महारानी जी पूछती हैं इस नौजवान का नाम क्या है?

नौजवान -मेरा नाम अमृतलाल है।

(बाँदी नाम सुन कर अंदर जाती है ।,हाजरीन,खासकर तुलसी बाबा। और बुढिया, अमृतलाल की तरफ गौर से देखते हैं।)

राजपंडित- नाम तो बड़ा सुंदर है, राजकुमारों का सा है।

तुलसी बाबा -(नौजवान से) अरे भाई तुम्हारे बाप का क्या नाम है?

  नौजवान- मेरे बाप का नाम गंगादास था।

दुलारेलाल- हैं! तुम्हारे बाप को क्या हुआ ?

नौजवान -हुजूर को याद होगा- उन ठगो की टोली का एक आदमी बच गया था वह उनका सरदार था। 15 दिन हुए उसने दाव पाकर मेरे बाप को मार डाला । क्रियाक्रम कराते ही अपनी जान बचाने के लिए यहां भाग आया हूँ, हुजूर शरण में लें।

 दुलारेलाल- तुम यहाँ कतई बेफिक्र हो कर रहो।

 तुलसी बाबा -श्री महाराज।  यह तो हमारा भतीजा है ।

बुढिया-अरे मेरे अमृत मेरे कलेजे लग जा । मैं भी कहूँ शक्ल तो मेरे देवर की किसी है ।

 दुलारेलाल - आप लोगों ने इसे अच्छी तरह पहचान लिया ? मैंने इन लोगों का पेद्दापुरम में जिक्र किया था न?

 तुलसी बाबा- हाँ महाराज, मुझे खुद याद है।

  क्रमश:

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



जीवन में घृणा का स्थान / प्रेमचंद



#प्रेमचंद की बेबाक अभिव्यक्ति :

"निंदा ,क्रोध और घृणा यह सभी दुर्गुण है लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकाल दीजिये तो संसार नरक हो जायेगा .यह निंदा का ही भय है जो दुराचारियों पर अंकुश का काम करता है ,यह क्रोध ही है जो न्याय और सत्य की रक्षा करता है और यह घृणा ही है जो पाखंड और धूर्तता का दमन करती है ....घृणा स्वाभाविक मनोवृत्ति है और प्रकृति द्वारा आत्मरक्षा के लिए सिरजी गयी है .जिस वस्तु का जीवन में इतना मूल्य है उसे शिथिल होने देना अपने पाँव में कुल्हाडी  मारना है .जरूरत इस बात की है कि हम घृणा का परित्याग करके उसे विवेक बना दें .इसका अर्थ यही है कि हम व्यक्तियों से घृणा न करके उनके बुरे आचरण से घृणा करें ...पाखंड ,धूर्तता ,अन्याय ..और ऐसी ही अन्य दुष्प्रवृतियों के प्रति हमारे अन्दर जितनी ही प्रचंड घृणा हो उतनी ही कल्याणकारी होगी ..
जीवन में जब घृणा का इतना महत्व है तो साहित्य कैसे उसकी उपेक्षा कर सकता है ."----प्रेमचंद
(१९३२ में लिखित 'जीवन में घृणा का स्थान 'लेख से .)

Tuesday, July 21, 2020

मुरुदेश्वर मंदिर





मुरुदेश्वर मंदिर का गोपुरम्
मुरुदेश्वर (कन्नड : ಮುರುಡೇಶ್ವರ) दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड जिले के भटकल तहसील स्थित एक कस्बा है। 'मुरुदेश्वर' भगवान शिव का एक नाम है। यहाँ भगवान शंकर की विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति स्थित है। यह कस्बा अरब सागर के तट पर स्थित है और मंगलुरु से १६५ किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे बहुत ही सुन्दर एवं शांत स्थान पर बना हुआ है। मुरुदेश्वर सागरतट, कर्णाटक के सब से सुन्दर तटों में से एक है। पर्यटकों के लिए यहाँ आना दोगुना लाभप्रद रहता है, जहां एक ओर इस धार्मिक स्थल के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी तरफ प्राकृतिक सुन्दरता का आनन्द भी मिलता है।
मुरुदेश्वर मंगलुरु-मुम्बई रेलपथ पर स्थित एक रेलवे स्टेशन भी है।
मुरुदेश्वर मन्दिर परिसर के पीछे एक दुर्ग है जो विजयनगर साम्राज्य के काल का है।

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...