Sunday, July 19, 2020

रोजाना वाक्यात /2007202



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाकिआत-

कल से आगे- 3 दिसंबर 1932- शनिवार-

जलसा के दिनों के लिए प्रोग्राम तय हो गया। और प्रकाशन के लिए दफ्तर प्रेम प्रचारक भेज दिया गया। 1 दिन शुकराना के लिए रखा गया है ,1 दिन ब्रांच सत्संगों के सेक्रेटरियों के जलसे के लिए और एक दिन आम सत्संगियों के जलसे के लिए है।

ताकि हर किसी को अपने दिल के ख्यालात के इजहार का मौका मिल जाये। 27, 28, 29 को यानी 3 दिन भंडारा रहेगा। 29 की सुबह को सभा का सालाना जलसा आयोजित होगा। भंडारों के दिन दस हजार मर्द व औरतों का बिला विचार जात व भिन्नता दर्जा एक जा बैठकर खाना दुनिया का जवान हाल से पुकार कर सुना देगा कि जात पाँत का भूत दयालबाग के अंदर नहीं घुस सकता।।

                                                आज गीता के तर्जुमें की कुछ कापियाँ उन भाइयों मे तक्सीम की जिन्होंने उसकी तैयारी में मदद दी थी। सबसे अव्वल कॉपी मेहता ऊधो दास साहब रिटायर्ड चीफ जज बहावलपुर को दी गई । वह कल ही दयालबाग आए हैं। यह गीता के बड़े प्रेमी है। तर्जुमा तैयार करके मैंने पांडुलिपि आपके हवाले कर दिया था। उन्होंने पढ़कर अनेक लाभकारी मशवरे दिये। उसके बाद तर्जुमा प्रेमी भाई बिहारी दास एम. ए. के हवाले किया गया।

 उन्होंने भी खूब छानबीन की। उसके बाद मैंने खुद 1-1 श्लोक के तर्जुमें  की गौर से जांच की और दो-चार प्रमाणित तर्जुमों से मुकाबला किया। अर्थात अपनी तरफ से तो सही बनाने में पूरी कोशिश की।

मेहता साहब तर्जुमा को मौजूदा पॉलिश्ड शक्ल में देखकर बहुत खुश हुए । मेहता साहब ने नुस्खे के उन सब मकामात पर निशानात लगा दिये जहां मेरा तर्जुमा भ्रमआत्मक या अपूर्ण था। बिहारी दास साहब ने उन सब मकामात पर निशानात लगा दिए जहां मेरा तर्जुमा मुस्तनद टीकाकारों से मुख्तलिफ था। नामुकम्मल या मौहूम तर्जुमें को दुरुस्त करना फर्ज था लेकिन दूसरे टीकाकारों से सहमत  होना मुझे अपना फर्ज महसूस नहीं हुआ।

इसलिए मेरे तर्जुमा में दूसरों से जगह-जगह भिन्नताएं हैं । वह लोग समझते हैं कि मेरे मानी दुरुस्त है मेरा मन कहता है कि मेरे मानी दुरुस्त है। फैसला व्यास जी ही कर सकते हैं।।               

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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