Tuesday, July 21, 2020

संसारचक्र ( नाटक ) /21072020


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】

-कल से आगे-

( दूसरा दृश्य )

-(राजा दुलारेलाल अपने महल के एक कमरे में बैठा है। दीवान साहब, राज पंडित, मुसहिबीन मौजूद है। तुलसी बाबा अपनी बुढिया स्त्री के साथ आते हैं)

बुढिया-(राजा दुलारेलाल से) -महाराज की कृपा से मेरे सब कष्ट दूर हो गये।जिंदगी के  की कृपा से मेरे सब कष्ट दूर हो गये। जिंदगीं के बाकी चार दिन अब आराम से कट जाएंगे । भगवान करें महाराज के घर पुत्र पैदा हो और महाराज और महारानी जी उसका सुख भोगें।

दुलारेलाल-( मुस्कुराकर) मालूम होता है तुलसी बाबा के घर लौटने से तुमको बहुत आनंद हुआ।

बुढिया- महाराज ! स्त्री का दिल अजीब तरह का होता है।  वह कोई ना कोई आसरा जरूर ढूँढता है। लोगों का विचार गलत है कि ब्याह शादी सिर्फ संतानोत्पत्ति के लिए होती है।

तुलसी बाबा- मेरा विचार था मुझसे गलती में आ जाएगा नहीं तो मेरा विचार था  कि मुझसे गृहस्थी में न रहा जायगा पर अब तो यही अनुभव हुआ कि मेरा विचार गलत था। स्त्री जरा भी अच्छे दिल वाली हो तो घर को स्वर्ग बना देती है।

एक मुसाहिब- लेकिन घर में खाने को ना हो और औलाद पर औलाद जनने लगे तो घर को नर्क भी बना देती है।

राज पंडित -संसार में स्वर्ग नरक दोनों ही हैं। चाहो जिसे भोग लो। अब इन बेचारों के क्या संतान पैदा होगी जो खौफ करें ?

बुढिया- महाराज ! संतान की उम्र तो अब गई पर स्त्री का दिल संतान के लिए तड़पता बहुत है।

दुलारेलाल- माता! तुमने और तुलसी बाबा ने हम पर बहुत एहसान किये हैं ।अगर हमारे घर में पुत्र पैदा हो तो उनको अपना ही पुत्र समझना।

 तुलसी बाबा और बुढिया-( मिलकर ) हरे राम, हरे राम ,महाराज !यह क्या कहते हैं?  कहां राजकुमार कहाँ हम दरिद्र ?

(इतने में चोबदार दाखिल होता है।)

 चौबदार-हुजूर आली! एक नौजवान कुरुक्षेत्र से आया है। उसने यह अँगूठी दी है और कहा है यह महारानी जी की सेवा में पेश की जाय।

 क्रमशः               

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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