Monday, July 20, 2020

माता सीता औऱ सरयू नदी


एक पौराणिक कथा के मुताबिक सीता ने सरयू नदी को एक वचन दिया था. जिसके अनुसार अगर वो अपने पति श्रीराम और देवर लक्ष्मण के साथ 14 सालों का वनवास पूरा करके सकुशल लौट आती हैं तो वो सरयू नदी में पूजा-अर्चना करेंगी.

अपने वचन के अनुसार वनवास से लौटने के बाद माता सीता अपने पुत्र समान देवर लक्ष्मण को लेकर सरयू नदी के पास चल पड़ीं. जब रामभक्त हनुमान ने दोनों को जाते देख तो वो भी उनका पीछा करने लगे.

माता सीता जब सरयू नदी के किनारे पहुंचीं, तो हनुमान पास के एक पेड़ के पीछे छुप गए और वहीं से दोनों पर अपनी नजर रखने लगे. उधर पूजा आरंभ करने से पहले माता सीता ने लक्ष्मण को सरयू नदी से जल लाने के लिए कहा. जिसके बाद लक्ष्मण जल लाने के लिए नदी में उतर गए.

नदी में उतरने के बाद जैसे ही लक्ष्मण जल भरने लगे वैसे ही अघासुर नाम का एक राक्षस वहां से बाहर निकला. इससे पहले कि वो राक्षस लक्ष्मण को निगलता, माता सीता उसकी इस मंशा को भांप गईं और लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए उस राक्षस के निगले से पहले खुद लक्ष्मण को निगल गईं.

लक्ष्मण को निगलते ही माता सीता और लक्ष्मण का शरीर जल के समान एक तत्व में बदल गया. इस नजारे को देखते ही पेड़ के पीछे छुपे हनुमान ने सीता और लक्ष्मण के जलरुपी सम्मिश्रण शरीर को एक घड़े में भर लिया और उसे लेकर भगवान राम के पास पहुंचे. फिर उस घड़े को दिखाते हुए हनुमान ने श्रीराम से सारी घटना को विस्तार पूर्वक बताया और उसका हल पूछा.

अपने प्रिय भक्त हनुमान की सारी बात सुनने के बाद भगवान राम मुस्कुराए और उन्होंने हनुमान को बताया कि इस राक्षस को भगवान शिव का वरदान प्राप्त है जिसके अनुसार इसका वध कोई भी नहीं कर सकता है.

इसके साथ ही श्रीराम ने हनुमान को बताया कि भगवान शिव के इस वरदान के अनुसार अघासुर का वध तभी किया जा सकता है जब सीता और लक्ष्मण का शरीर एक होकर किसी तत्व में बदल जाए और हनुमान उस तत्व का उपयोग एक शस्त्र के रुप में करें.

जिसके बाद भगवान श्रीराम की आज्ञा पाकर हनुमान ने उस घड़े के जल को गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके सरयू नदी में बहा दिया. सरयू नदी में उस जल के मिलते ही नदी में आग लपटें उठने लगीं जिसमें जलकर अघासुर राक्षस भस्म हो गया.

गौरतलब है कि अघासुर का संहार करने और अपने प्रिय देवर के प्राण बचाने के लिए ही माता सीता ने उन्हें निगल लिया था. हालांकि अघासुर की मृत्यु होते ही सरयू नदी ने सीता और लक्ष्मण को उनका शरीर वापस कर दिया और इस तरह से उन्हें फिर से एक नया जीवनदान मिला.

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