Sunday, July 19, 2020

आज 19/07 को शाम के सतसंग में पाठ औऱ वचन



**राधास्वामी!!

19-07-2020-

आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-

                        

  (1) होली खेले सयानीः गुरू के रंग रँगानी।।टेक।।-(राधास्वामी सतगुरु मिले रँगीले। उन सँग फाग खिलानी।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-25-पृ.सं.313)                                               

(2) राधास्वामी सतगुरु सरन पडा री। राधास्वामी सतगुरु चरन गहा री।। राधास्वामी धुन प्रगट पुन आ री। रचन रची स्वामी अस सारी।।-( राधास्वामी दयाल की महिमा भारी। गाय रहूँ मैं सन्मुख ठाढी।।) प्रेमबिलास-शब्द-15,पृ.सं.19-20)                                     

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।   
             
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!!                 
                    

 19- 07-2020-

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे -(54) -

 राधास्वामी मत बतलाता है कि सूरत अर्थात आत्मा एक अनादि पदार्थ है अर्थात् वह सदा से विद्यमान है। इसका कोई आदि नहीं है। हाँ, रचना से पहले सब सुरतें (आत्माएँ) कुलमालिक में लीन थी, जैसा कि बचन है:-

सुनो सुरत तुम अपना भेद। तुम हम में थी सदा अभेद।।

 पर सुरते तीन प्रकार की हैं -एक वे जो अनादि समय से माया के लेश से पृथक थीं। दूसरी वे जो माया के लेश से संयुक्त है पर उनमें पहले वह लेश अस्थायी है अर्थात किसी समय दूर हो सकता है। तीसरी वे जिन पर माया का लेश सदा स्थाई है।

पहले प्रकार की सुरतें आदि ही में अर्थात्, रचना के प्रकट होने पर निर्मल चेतन देश के किसी लोक में अपने निजी चेतनता के अनुसार ठहर गई। दूसरे प्रकार की सुरतों को ब्रह्मांड तथा पिंड देशों में अपने लेश का भुगतान भुगतने के लिए उतरना पड़ा। ये ही सुरतें योग साधन करके एक दिन पवित्र और शुद्ध होकर निर्मल चेतन देश में प्रवेश कर सकती हैं।

जोकि तीसरे प्रकार के सुरतों की चेतनता निम्न कोटि की है इसलिए वे सदैव ब्रह्मांड तथा पिंडदेशों के लोकों में भ्रमण करती रहेंगी। प्रलय होने पर पिंडदेश ब्रह्मांड में और महाप्रलय होने पर पिंड तथा ब्रम्हांड दोनों कालपुरुष में समा जाते हैं और दोबारा रचना( सृष्टि ) की क्रिया आरंभ होने पर ये फिर प्रकट हो जाते हैं।

इन देशों में स्थाई रूप से निवास करने वाली सुरते भी प्रलय तथा महाप्रलय के समय अपने देशों के पुरुषों में समा जाती है और दोबारा रचना होने पर फिर प्रकट  होकर अपने लोको में पूर्ववत् निवास करने लगती है।

पर निर्मल चेतन देश में प्रलय और महाप्रलय की गति नहीं है इसलिए जिन सुरतों को रचना के आदि में इस देश में निवास मिला या जिन्होंने माया की मलिनता से सर्वदा मुक्त होकर इसके किसी लोक में गति प्राप्त कर ली उनको सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है।                     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश -भाग पहला -

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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