Friday, July 17, 2020

सुदर्शन चक्र के रहस्य की कथा


अदभुत रहस्य :-श्री विष्णु जी का सुदर्शन चक्र

१-कहाँ से आया सुदर्शन चक्र ?
२--किसने बनाया सुदरशन चक्र ?
३ कैसे मिला श्री विष्णु जी को ?
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार श्रीदामा नाम का एक क्रूर असुर था जो देवताओं को परेशान किया करता था वो बचपन से ही दैत्येगुरु शुक्राचार्य का शिष्य था। गुरु कृपा से उसको दिव्य शक्तियां और वज्र के समान शरीर प्राप्त था, उसने अपने बल और पराक्रम से देवताओ से स्वर्ग छीन लिया और उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया, समस्त देवता दुखी हो ब्रह्म देव की शरण में पहुंचे। ब्रह्म देव उन्हें साथ लेकर नारायण के समक्ष पहुंचे।
नारायण ने सबसे बैकुंठ में आने का कारण पूछा तब ब्रह्माजी ने उन्हें श्रीदामा असुर के विषय में सब बताया ये सुनकर विष्णु बोले,” हे देवो! तुम चिंता मत करो शीघ्र ही श्रीदामा का अंत निकट है जल्द ही उसके अत्याचारों से आपको मुक्ति मिलेगी।”
श्री विष्णु ने ये कहकर देवो को विदा किया। जब श्रीदामा को ये पता चला कि देवगण विष्णु से सहायता मांगने गए थे तो वो बड़ा क्रोधित हुआ उसने नारायण का श्रीवत्स चुराने की योजना बनाई। जब श्री विष्णु को ये पता लगा कि श्रीदामा उनका श्री वत्स चुराने की योजना बना रहा है तो श्री विष्णु ने श्रीदामा को युद्ध के लिए ललकारा तब श्रीदामा और विष्णु जी में घोर युद्ध हुआ। श्री विष्णु ने श्रीदामा पर दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया लेकिन वो सब भी निष्फल रहे। विष्णु यह समझ गए थे की शुक्राचार्य की कृपा से श्रीदामा का शरीर वज्र समान हो गया है।
अतः श्रीदामा को किसी भी अस्त्र या शस्त्र से मारा नहीं जा सकता। इस युद्ध में श्रीदामा का पलड़ा भारी पड़ा। भगवान विष्णु को युद्ध छोड़कर जाना पड़ा और श्रीदामा ने विष्णु पत्नी महालक्ष्मी का हरण कर लिया।
महालक्ष्मी के कारण चिंतित विष्णु ने कैलाश पहुंचकर वहां “हरिश्वरलिंग” की स्थापना की। नारायण ने बद्री क्षेत्र पहुंचकर वहां से 1000 ब्रह्मकमल लिए तथा शिव पूजन करना शुरू किया। नारायण हर एक ब्रह्मकमल को शिव जी का एक नाम लेकर चढ़ाते थे। इस तरह नारायण ने 999 ब्रह्मकमलो से शिव पूजन किया और शिव नाम जपकर “शिवसहस्त्रनाम स्तोत्र” की रचना कर दी।
जब विष्णु जी आखरी ब्रह्मकमल चढाने लगे तो उन्होंने देखा कि एक ब्रह्मकमल कहीं लुप्त हो गया है। विष्णु पूजन छोड़ ब्रह्मकमल लेने नहीं जा सकते थे। तब श्री विष्णु को याद आया कि देवगण उन्हें कमलनयन कहकर पुकारते हैं। विष्णु ने अपना दाहिना नेत्र निकालकर हरिश्वरलिंग पर अर्पण किया। परमेश्वर शिव तत्काल ही वहां प्रकट हो गए।
परमेश्वर शिव ने भगवन विष्णु से प्रसन्न होकर इच्छित वर मांगने को कहा। शिव जी के ये वचन सुन विष्णु बोले कि श्रीदामा के आतंक से सारा जगत आतंकित है देवता स्वर्ग से निकाल दिए गए है तथा श्रीदामा ने लक्ष्मी का भी अपहरण कर लिया है।
श्रीदामा के गुरु व शिवभक्त शुक्राचार्य की कृपा से अभय बना हुआ है उसके वज्र के समान शरीर पर किसी भी अस्त्र या शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ता। अतः आप मुझे वो दिव्यास्त्र प्रदान करें जिससे अपने महाशक्तिशाली असुर जालंधर का वध किया था। तभी शिव की दाहिनी भुजा से महातेजस्वी सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ।
उन्होंने सुदर्शन चक्र को देते हुए भगवान विष्णु से कहा "देवेश! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह अरों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश करने वाला है। सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, राशियाँ, ऋतुएँ, अग्नि, सोम, मित्र,वरुण, शचीपति इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, हनुमान, धन्वन्तरि, तप तथा चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के बारह महीने प्रतिष्ठित हैं। आप इसे लेकर निर्भीक होकर शत्रुओं का संहार करें।
भगवान शिव ने कहा कि यह अमोघ है, इसका प्रहार कभी खाली नहीं जाता।
भगवान विष्णु ने कहा कि प्रभु यह अमोघ है इसे परखने के लिए मैं सबसे पहले इसका प्रहार आप पर ही करना चाहता हूं।
भगवान शिव ने कहा अगर आप यह चाहते हैं तो प्रहार करके देख लीजिए। सुदर्शन चक्र के प्रहार से भगवान शिव के तीन खंड हो गए। इसके बाद भगवान विष्णु को अपने किए पर प्रयश्चित होने लगा और शिव की आराधना करने लगे।
भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि सुदर्शन चक्र के प्रहार से मेरा प्राकृत विकार ही कटा है। मैं और मेरा स्वभाव क्षत नहीं हुआ है यह तो अच्छेद्य और अदाह्य है।
भगवान शिव विष्णु से कहा कि आप निराश न होइये। मेरे शरीर के जो तीन खंड हुए हैं अब वह हिरण्याक्ष, सुवर्णाक्ष और विरूपाक्ष महादेव के नाम से जाना जाएगा। भगवान शिव अब इन तीन रुपों में भी पूजे जाते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु ने श्रीदामा से युद्घ किया और सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। इसके बाद से सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के साथ सदैव रहने लगा।   

🙏🏻🙏🏻🙏🏻   जय जय महाकाल ⛳

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