Tuesday, November 23, 2010

मेवात अंचल का लोकजीवन

मेवात अंचल का लोकजीवन
हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को संस्पर्श करते हुए एक विशिष्ट
अंचल है, जिसे 'मेवात' कहा जाता है. विद्वानों का मत है कि इस अंचल में बसने
वाली 'मेव'जाति के नाम पर इस अंचल का नाम 'मेवात' पड़ गया है. इतिहासकार डॉ.
कृपालचन्द्र यादव ने 'मेवात' शब्द की उत्पत्ति 'मत्स्य प्रदेश' से मानी है. उनका
मत है कि अति प्राचीनकाल में और बौद्ध-~काल में तथा उसके बाद भी लगभग सारे का
सारा यह प्रदेश जो अब 'मेवात'कहलाता है, 'मत्स्य प्रदेश' कहलाता था. अत: यह
सिद्ध हो जाता है कि 'मत्स्य' से ही 'मेवात' शब्द बना है.१
(अ) मेवात :एक परिदृश्य
संपूर्ण 'मेवात अंचल' का क्षेत्र-विस्तार इस प्रकार है--हरियाणा प्रांत के
गुड़गाँव, फिरोजपुर-झिरका, नूह, पुनहाना, पिनगाँव, नगीना, हथीन, सोहना तावडू,
आदि का क्षेत्र, उत्तर प्रदेश का जिला मथुरा की कोसी एंव छाता तह-सीलों का
पश्चिमी अंचल, राजस्थान के जिला अलवर, की रामगढ़, तिजारा, किशनगढ़, अलवर,
लक्ष्मणगढ़, गोविंदगढ़ आदि तहसीलें, जिला भरतपुर की कामा, डीग (पश्चिमी भाग),नगर
(पश्चिमी भाग) आदि तहसीलें. वस्तुत: इस अंचल में 'मेव' जाति की प्रधानता है तथा
यहाँ बोली जाने वाली बोली 'मेवाती' कहलाती है.
'मेवात अंचल' के मेव लोग अपनी दरियादिली,सरलता और भोलेपन के लिए प्रसिद्ध हैं.
लम्बा शरीर,ईषत् गौर वर्ण, चेहरे पर सरलता आदि इन लोगों की विशेषता है. ये लोग
शरीर से बड़े सुदृढ़ व मजबूत तथा मन से बहादुर होते हैं. फटे-पुराने वस्त्र
पहनने के कारण भी इनका शरीर भदा नहीं लगता. दरिद्रता में भी ये लोग प्रसन्न
दिखाई देते हैं. ये लोग अपनी मेहनत और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध हैं. हसनखां
मेवाती इस जाति की वीरता व शौर्य के प्रतीक हैं.
'मेवात अंचल' मुख्यत: कृषि-प्रधान अंचल है. यहाँ के लोग मुख्यत: खेतिहर लोग हैं.
खेतीबाड़ी से ये लोग अच्छी आमदनी कर लेते हैं. निम्नलिखित मेवाती लोकगीत में
कृषि की महत्ता का प्रतिपादन हुआ है-
खेती में रस मौत है निपजे भारी न्यार .
सातू तूड़ सुलाखणा भैंस बाँधल्यों च्यार .
भैंस बाँधल्यों च्यार क खावो छच्च मलीदो.
निरभै पेलो डंड बढ़ै देही पैं गीदो.
हो तन सूं हुस्यार काम सब करो अगेती.
छोड़ सोच,ससपंच,रंज,गम करल्यो खेती..
खेती के अतिरिक्त इन लोगों में पशु-पालन का विशेष चाव है. ये लोग अपने पशुओं की
बहुत अधिक देखभाल करते हैं. ये लोग गाय-भैंस, बैल,बकरियाँ आदि को विशेष चाव से
पालते हैं. बैलों को हलों, बहली व गाड़ियों में जोता जाता है. मेवात अंचल में
बैलों की सजावट पर विशेष ध्यान दिया जाता है. बैलों को मणियों का कंठा,
मखाने,घुंघरू, टाल आदि गहने पहनाये जाते हैं. त्योहारों व विवाहों के अवसर पर
उनके सींगों रंग-बिरंगे कपड़े व मोर की पंखों की पट्टियाँ बाँधी जाती है. उनके
शरीर पर हरे, गुलाबी रंग या मेंहदी से स्वास्तिक के चिह्न या अन्य कुछ डिजाइन
बनाये जाते हैं. उनके सींगों को गेरू या रंग या वार्निश से रंगा जाता है. उन पर
आकर्षक रंगदार 'झूल' भी डाली जाती है. गाय या भैंस के गले में घंटी बाँधने का भी
चाव इन लोगों में हैं.
मेवात अंचल में मकान कच्चे-पक्के दोनों प्रकार के होते हैं. कच्चे मकान गोबर से
लीपे जाते हैं और उन पर सफेदी व गेरू की तरह-तरह की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ खींचकर
चित्रकारी की जाती है. घरों की दीवारों पर स्वास्तिक का चिह्न कई स्थानों पर
देखने में आया है. सुन्दरता और लाभ की कामना से इस प्रकार के चिह्नों को दीवारों
पर अंकित किया जाता है. मेव घरों में मिट्टी की हंडियों व विविध बर्तनों की
प्रचुरता होती है. मेव स्त्रियां घर से बाहर जाते समय अपने साथ 'खारी' (तीलियों
की बनी हुई टोकरी) अवश्य रखती हैं जिसमें घर से रवाना होते समय थोड़ा अनाज,
वस्त्र आदि सामान रखा जाता है. इसमें अनाज रखना शुभ माना जाता है.
(आ) श्रृंगार अभिरुचि
मेवात अंचल के लोगों में (विशेषत:मेवों में) पहनावे व श्रृंगार के प्रति बहुत
आकर्षण पाया जाता है. मेव स्त्रियांॅ मुस्लिम स्त्रियों की भाँति सलवार कमीज
पहनती हैं. मेव स्त्रियों की सलवार पैरो के पास बहुत सकड़ी तथा कटिप्रदेश के पास
कुछ ढीली होती हैं. सलवारें प्राय:लाल या काले रंग के बूँटेदार वस्त्र की बनवाई
जाती है. कमीजें प्राय: गहरे भूरे, काले-~लाल छींटदार कपड़े की बनाई जाती है.
मेव युवतियों मे रेशम की कमीज या कुर्ती पहनने का विशेष प्रचलन है. मेव युवतियाँ
गुलाबी या हरे रंग की रेशमी कुर्तियाँ बड़े चाव से पहनती हैं. वृद्धा महिलाएँ
प्राय: आँगी पहनती हैं. महिलाएँ पैरों में जूतियाँ पहनती हैं. जिन्हें लोकभाषा
में 'जनानी' कहा जाता है. जनानी आकर्षण रंग-बिरंगे डोरों से कढ़ी हुई होती हैं.
मेव जाति की स्त्रियांॅ शरीर पर सफेद या रंगीन दुपट्टा ओढ़ती हैं. यह दुपट्टा
प्राय: सूती कपड़े का होता हैं. आजकल तो फैशन के रूप में रेशमी दुपट्टे का
प्रचलन भी हो गया है.
इधर पुरुषों में (विशेषत: मेवों में) कमरी, बगली या बगलबंदी व धोती पहनने का
विशेष प्रचलन है. आजकल कमरी के बदले में कमीज और धोती के साथ-साथ तहमद भी
प्रचलित होने लगा है. मेव लोगों की कमीज लम्बी होती है. कमीज के नीचे ये लोग
बनियान पहनते हैं जिसे 'हल्फी' कहते हैं. कमीज के ऊपर कुछ लोग 'सदरी' (वेस्ट
कोट) पहनते हैं. पुरुषों में सिर पर साफी या 'पगडी' बाँधने का विशेष प्रचलन है.
'मेवात अंचल' के मेवों में चाँदी के गहने पहनने के विशेष प्रचलन है. आजकल फैशन
के साथ-साथ सोने के गहने पहनने का रिवाज भी चल पड़ा है. मेव स्त्रियांॅ प्राय: कई
प्रकार के गहने पहनती हैं. यथा-
(क) गले के गहने: हँसली, नक्कस, ताबीज, बाँकड़ा, तोड़ा, माला, पछेली, पचमणियां,
कठला, बटन, (जंजीर में लगे हुए).
(ख) सिर के गहने :-झेला (सिर पर बाँधने की डोरी),जाली, डोरी.
(ग) कानों के गहने: बाली, पत्ती, झूमका, पातड़ी.
(घ) हाथों के गहने: बाँकड़ा (चूडियों के आगे के कड़े) पछैली (चूडियों के पीछे के
गहने), कड़े, बला (बाजूबंद गूंठी, अंगूठी), छल्ले, हथफूल (हथेली के ऊपर चाँदी का
फूल).
(ड़) पैरों के गहने: नेवरी (चाँदी के खोखले कड़े), कड़ी, पायल, पाजिया (पायजेब)
गढ़िया, छल्ला, गूंठला, मूंढ़ला, छंद आदि.
इधर मेव पुरुषों में भी गहने पहनने का रिवाज देखा गया है. वृद्ध लोग प्राय:
कानों में मुरकी पहनते हैं. युवकों में गले में पतड़ी (काले डोरे में पिरोई
चांदी की पत्री), ताबीज आदि पहनने का रिवाज भी प्रचलित है.
मेव स्त्रियों के श्रृंगार प्रसाधनों में सुरमा, मेंहदी, उबटना आदि का विशेष
महत्व है. शहरी प्रभाव के कारण कुछ मेव युवतियों में पाउडर, वेसलीन, प्लास्टिक की
बिंदिया, नेल-पॉलिश का प्रचलन दिखाई देता है. कुछ पढ़े-लिखें मेवों में सुगंधित बाजारू
तेल लगाने का विशेष चाव देखा गया है. कुछ लोग आँखो में सुरमा या काजल भी लगाते
हैं. मेवों में अधिकांश लोग दाढ़ी रखते हैं परन्तु पढ़े लिखे नवयुवक हजामत
करवाते हैं.
(इ) दाम्पत्य जीवन
'मेवात अंचल' का दाम्पत्य जीवन आनंद एवं उल्लासमय है. मेव-स्त्रियों में अपने
पति के प्रति प्रगाढ़ प्रेम होता है. मेव-स्त्री अपने पति के प्रति इतनी अनुरक्त
एवं श्रद्धावा होती हैं कि उसकी ओर से निरन्तर स्निग्ध प्रेम की धारा बहती
है. मेवात अंचल की मेवणी के प्रमोगार निम्नलिखित लोकगीत में द्रष्टव्य हैं -
मेरो राजा जलेवी को टूक, मैं मिसरी की डली.
मेरो सैंया गयो परदेस, मैं चौबारे खड़ी..
उपर्युक्त लोकगीत में मेवणी ने अपने पति को 'जबेली का टूक' कहा है जो वास्तव में
रस और आनंद का प्रतीक है. 'मेवणी'स्वयं को 'मिसरी की डली' कहती है. इससे अनुमान
लगाया जा सकता है कि मेव जाति के दाम्पत्य जीवन में कितना मिठास है. पति की
प्रतीक्षा में 'चौबारे पर खड़ी' मेवणी अपने प्रेम का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करती है.
(ई) अतिथि-सत्कार
'मेवात अंचल'के लोक जीवन में अतिथि-सत्कार का विशेष महत्व है. यहाँ के लोग
अतिथियों का भली-भाँति आदर करते हैं. यहाँ के लोग अतिथि-~सत्कार में परम औदार्य
बरतते हैं. एक मेव स्त्री निम्नलिखित लोकगीत में अपनी अतिथि-सत्कार भावना का
परिचय देती हुई कहती है-
चावल राँधू ऊजला, धुपवां घोटूँ दाल.
मीठो ले मन भावतो, दूँ छुटवां घी डाल..
(उ) सामाजिक परम्पराएँ
यों तो प्रत्येक समुदाय की अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं लेकिन मेव समुदाय की
अपनी कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक परम्पराएँ एवं विशिष्टताएं हैं. इस समुदाय की
सामाजिक संरचना संस्कृति में हिन्दू मुस्लिम परम्पराओं का एक विशिष्ट समन्वय
दिखाई पड़ता है. मेव-समुदाय की सामाजिक संरचना बड़ी रोचक है. मेव-समुदाय तेरह उप
विभागों तथा बावन गोत्रों में विभाजित है. उपविभागों तथा गोत्रों का विवरण इस
प्रकार है-
(क) उप-विभाग: (१) चिरकलोत (२) टैमरोत (३) दूरलोत (४) नाई (५) पूंदलोत
(६) घासेडिया (७) डेवाल (८) लूंडावत बागोरिया (९) रटावत (१०) बालौत (११) गौरवाल
(१२) सेंगल (१३) पाहट.
इन उप-विभागों में से पहले बारह को 'पाल' तथा तेरहवें उप-विभागों को 'पलाकड़ा'
कहा जाता है.
(ख) गोत्र :- गोरवाल, गेवाल, खड़त्राई, बड़नाई, बागला, छाजलिया, नाँगलोट, संगला,
मुच्छाला, खरकटिया, भरकरिया, भावला, बेसर, भमनावट भोटिया, बीनोत, जोनवाल,
लमखारा, पनोरा, घासेडिया, लूका, सरधीया, मंगरीया, बलियाना, कटारिया, सोखेड़,
गोंछा, बोंडिया, गोमनियां, डोबाल, पालावत, सगड़ावत, मकड़ावत, कंगार,
जटलावत, सलानिया, छोकर, मोर जंगाल, गोमाल, सोंगल, मछलावत, खेलदार, कावलिया आदि.
उक्त गोत्रों के अतिरिक्त नौं गोत्र अज्ञात हैं.
(ग) नातेदारियाँ :- मेव-समुदाय में उपर्युक्त पालों तथा गोत्रों की व्यवस्था का
बहुत महत्व है. वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करते समय मेव-समुदाय में इनका पूरा-पूरा
ध्यान रखा जाता है. मेव-समुदाय अन्तर्विवाही हैं अर्थात् मेव लोग अपने पालो में
ही विवाह करते हैं. मेव-समुदाय में विवाह-सम्बन्ध स्थापित करते समय हिन्दुओं की
भाँति दादा, दादी, नाना, नानी, आदि चार निकटतम चार गोत्रों को छोड़ना आवश्यक होता
है. लेकिन आजकल मेवात अंचल में कहीं-~कहीं 'दादा' और 'मामा'- ये दो गोत्र छोडे
जाते हैं.
मेव-समुदाय में नातेदारी संबोधन हिन्दुओं की भाँति ही है. मेवों में प्रमुख
नातेदारियों के सम्बोधन इस प्रकार हैं.
मेहरी =पत्नी, भान= बहिन, भाई, बाप, माँ, बड़ा बाप= ताऊ, बहनोई, भानजा, भानजी,
भतीजा, भतीजी, बेटा, बेटी, साला, सलज, साली, साढ़ू, फूफी, बूआ, फूफा, जँवाई,
धणी = पति, बीरा, भाई, ननद, बड़ो= जेठ, बड़ी= जिठाणी, लाला देवर, छोटी= दोराणी,
ससुरो, बूआ-सास, नन्दोई= पति की बहन का पति, भौजाई.
उक्त विवरण से स्पष्ट है कि सभी नातेदारी संबोधन हिन्दुओं की ही भाँति हैं
किन्तु 'मेहरी' 'भान' 'वीर' फूफी' आदि संबोधन हिन्दुओं से भिन्न है. उक्त
नातेदारी संबोधनों से हिन्दू-मुस्लिम समन्वय की झलक मिलती है.
मेवों में भी कई ऐसी नातेदारियाँ होती हैं जिनसे दूर रहना आवश्यक माना जाता है.
एक वधू के लिए अपने ससुरो (श्वसुर) व बड़ो जी (जेठ) से परिहार रखना आवश्यक माना
जाता है. वह उनसे थोड़ा सा घूँघट करती है. तथा उनसे बातचीत व हँसी मजाक नहीं करती.
एक मेव स्त्री के लिए 'दामाद' व 'समधी' के प्रति तथा एक मेव ससुर के लिए अपने
'दामाद' के प्रति परिहार देखने में आता है. हिन्दू समाज में भी ये परिहार इसी
प्रकार देखने में आते हैं.
मेव समुदाय में एक वधू का अपने 'लाला' (पति के छोटे भाई) तथा एक पुरुष का अपनी
'साली' (विशेषत: पत्नी की छोटी बहिन) के प्रति विशेष आक-~र्षण होता है. कभी-कभी
इसके सम्बन्ध घनिष्ठता की पराकाष्ठा पर पहुँच जाते हैं. यह भी देखने में आया है
कि मेव समुदाय में जीवन साथी की मृत्यु के पश्चात् पति अपनी पत्नी की मृत्यु पर
अपनी साली से ही विवाह करना पसंद करता है और प्राय; देवर अपनी विधवा भाभी से
विवाह कर लेता है.
(घ) प्रथाएँ:- मेव सामान्यत: एक विवाही ही हैं लेकिन मुस्लिम होने के कारण
उन्हें चार-चार पत्नियाँ रखने में कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन मेवात अंचल में दो
स्त्रियों से विवाह करने वाले बहुत कम व्यक्ति देखे गये हैं. इस अंचल में
सामान्यत: एक पत्नि को ही धारण करने का नियम देखा गया है. मेवों के दाम्पत्य
जीवन में बड़ी निष्ठा है. मेव स्त्री भी अपने पति को अन्य स्त्रियों के साथ
ठिठोली करते हुए सहन नहीं कर सकती.
मेवात अंचल में संयुक्त परिवार प्रणाली के दर्शन होते हैं. हालाँकि अब इस
प्राणली में विघटन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है. पहले बहुएँ अपनी सास के दवाब
में रहती थीं जबकि आज की मेव बहुएँ अपनी सासों को अपने दवाव में रखने का प्रयास
करती हैं. वे अपनी सासों को इस प्रकार कहने में संकोच नहीं करती-
" चुल्ली में पौसेरो,
निकल सास घर मेरो."
परिणाम यह होता है कि मेव पुरुष अपनी पत्नी के कहे में आ जाते हैं. वे अपना घर
अलग बसा लेते हैं तथा अपने वृद्ध माता पिता से सम्बन्ध तोड़ देते हैं.
मेवात अंचल में मेव स्त्रियांॅ अपने ससुराल में ही संतान को जन्म देना उचित समझती
हैं. मेवों में पुत्र का जन्म होना अधिक प्रसन्नता का अवसर माना जाता है. इसकी
खुशी में बिरादरी को दावत दी जाती है जिसमें घी बूरा व चावल खिलाए जाते हैं.
'छटी' अर्था नामकरण संस्कार के दिन गुड़ और चने बाँटे जाते हैं. लड़की
उत्पन्न होने पर इस समुदाय में इस प्रकार की खुशियाँ नहीं मनायी जातीं क्योंकि
लोगों की मान्यता है कि 'छोरी पराये घरलू होवती है. ' मेव लोग अपने नामों के
साथ 'खाँ' व 'बक्श' जोड़ने में गौरव समझते हैं जैसै रहीमखां, चाहतखां, अकबरखां,
दिलावर खां, अलीबख्श, रहीमबख्श, आदि. मेव स्त्रियों के नाम सीधे-साधे होते हैं.
यथा-अमीरी. अंगूरी, मोहम्मदी, करीमी, लिछमा, दाखां आदि.
मुस्लिम धर्म के अनुसार प्रत्येक मुसलमान को मुसलमानी करवाना आव-~श्यक होता है.
मेवों में भी यह प्रथा प्रचलित है. मेवों में यह प्रथा है कि एक खूँटे (घर) पर
दो लड़कों की ही मुसलमानी हो सकती है तथा उनके बाद लड़कों को मुसलमानी अपने मामा
के घर होती है. मुसलमानी करने का काम नाई करता है. जिस लड़के की जाती है. उसको
परिवार या जाति-बिरादरी वाले लोगों के सामने लाया जाता है. नाई उन सबके सामने
अपने तेज उस्तरे या कैंची से बालक के शिशन के अगले भाग की आवश्यक खाल को काट
देता है. इस घाव पर तुरंत हल्दी, घी, मेंहदी, आदि लगाई जाती है. इस अवसर पर जाति
बिरादरी के लोगों को मिठाईयाँ अथवा मीठे चावल बाँटे जाते हैं.
मेवात अंचल में विवाह संस्कार आमतौर पर ८-१० साल की आयु से लेकर २०-२१ साल की
उम्र तक सम्पन्न हो जाता है. विवाह के समय 'नौशी' और 'नौशे' की विशेष पौशाक होती
है. 'नौशे' को विशेष रूप से सफेद कपडे पहनाये जाते हैं. जैसे-सफेद चूड़ीदार
पायजामा, सफेद लम्बा कोट अथवा सफेद अथवा कुरता एवं सफेदी धोती. सिर पर 'साफी'
अर्था रेशमी रंगीन कपडे का छोटा-`सा साफा बाँधा जाता है. इस पर सेहरा भी
बाँधा जाता है. निकाह से पूर्व 'नौशी' के यहाँ पहुँचने पर उसकी आँखों पर पीला
कपड़ा बाँधा जाता है. संभवत: इसलिए कि वह निकाह से पहले 'नौशी' को न देख सके या
'नौशे' की रूप छवि पर किसी की बुरी निगाह का कोई कुप्रभाव न पड़े. विवाह के
पश्चात् सैयद को ढुकवाने की प्रथा भी मेवात अंचल में प्रचलित है.
(ड़) लोकविश्वास :- मेवात अंचल के कुछ लोक विश्वास भी हैं. कुछ मेव लोग दूध
बिलौने के स्थान पर गोरैया पक्षी का घोंसला रखते हैं. उनका विश्वास है कि ऐसा
करने से अधिक घी निकलता है. तीतर का बाँये हाथ की तरफ बोलना, ग्वाले का भैंस पर
चढ़े हुए मिलना, हिरन, तेली, व काना व्यक्ति दिखलाई देना अपशकुन माने जाते हैं.
पानी भरकर घड़े लेकर आती हुई स्त्री, भंगी, गधे का मिलना अच्छे शकुन माने जाते
हैं. कुछ लोग बुद्धवार व शनिवार को नया कार्य प्रारम्भ करना उत्तम मानते हैं.
(च) निष्कर्ष: निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि मेवात अंचल की सामाजिक परम्पराएँ
बड़ी रंगीन एवं सुखद हैं. इन परम्पराओं से मेवों के भोलेपन एवं परम औदार्य का
अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. वस्तुत: मेवों की सामाजिक परम्पराएँ विशिष्ट
होती हुई भी हिन्दू-परम्पराओं के प्रति आस्थावान हैं.

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