Wednesday, November 24, 2010

बिहार की गाथा

नये बिहार की गाथा

नये बिहार की गाथा
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अब जबकि चुनाव परिणाम सामने आ गये हैं तो नीतीश कुमार का जादू चल गया है। बिहार में एक नये अध्याय की शुरूआत हो गयी है, तब यह प्रश्न लोगों के दिमाग में उठना स्वाभाविक है कि अब बिहार कैसा बनेगा? क्योंकि इस बार जो नीतीश कुमार से अपेक्षायें होंगी वह सिर्फ सड़क और बिजली तक सीमित नहीं रहेंगी। लोग नया बिहार बनाना चाहेंगे, एक ऐसा बिहार जो न सिर्फ विकास के मापदण्ड पर खरा उतरे बल्कि एक ऐसा बिहार जो देश में रोल मॉडल बन सके। गर्त से उठकर शीश पर पहुंचने की कहानी लिखनी होगी इस नयी सरकार को। अभी तक गुजरात को सबसे ज्यादा विकासशील राज्य माना जा रहा है।
गुजरात पूरे विश्व में अपनी आर्थिक प्रगति की कहानियां लोगों को बता रहा है। स्वच्छ प्रशासन और मजबूत शासन की बदौलत नरेन्द्र मोदी अपराजेय साबित हो चुके हैं। ठीक कुछ इसी तरह की सम्भावना बिहार के साथ भी व्यक्त की जा सकती है। क्योंकि मानव संसाधन और प्राकृतिक उपहार से बिहार पूरी तरह लैस है। जरूरत सिर्फ दिशा और संसाधन की थी, ऐसे में जबकि पूरा विश्व एक गांव बन चुका है तो संसाधन की भी बहुत कमी नहीं रही। तमाम विदेशी कम्पनियां भारत जैसे देश में उन राज्यों को चिन्हित करने में लगी हैं जहां भय और भ्रष्टाचार कम है।
बिहार ने पिछले पांच साल में यह जता दिया है कि वहां आने वाले किसी भी उद्यमी को किसी से भी भय खाने की जरूरत नहीं। अपराध पर लगाम और प्रशासन को कमान यही मुख्यमंत्री के रूप में नीतिश कुमार की उपलब्धि रही है। सम्भवतः ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मुख्यमंत्री ने सुशासन स्थापित करने के लिये अपने समर्थकों तक को जेल भिजवाया। नीतिश ने अपनी पिछली सरकार के दौरान न तो भाई-भतीजावाद पनपने दिया और न राजनीतिक सौदेबाजों को पनाह दी।
यही कारण है कि जिन लोगों ने भी नीतिश पर दबदबा बनाकर मनमानी करने की कोशिश की, वे पार्टी और फिर बिहार की जनता से ही अलग हो गये। किसी का नाम क्यों लिया जाये। आधा दर्जन नेताओं का हर्ष जनता देख चुकी है। अब सिर्फ बिहार को दिशा की जरूरत है एक ऐसी दिशा की जहां से आर्थिक विकास के साथ-साथ लोग मानव विकास की भी गाड़ी के पीछे दौड़ें। मानव विकास की इसलिये की, कि सामाजिक रूप से बिहार का समाज अन्य राज्यों से काफी पिछड़ा हुआ है। जातिगत व्यवस्था अभी भी इतनी गहरी जमी हुई है कि लोग धरती से उठने को तैयार नहीं, खास जाति की खास पहचान और उसी के आधार पर काम का उदाहरण अब सिर्फ बिहार में ही देखने को मिलता है। इस पर सबसे अधिक काम करने की आवश्यकता होगी। बाहुबलियों और कथित रूप से ऊँची जातियों के दर्प को पिघलाना होगा और कथित रूप से नीची जातियों के टूटे मनोबलों को उठाना होगा। बीच की खाई बिना किसी को चोट पहुंचाये पाटनी होगी। पर ऐसा तभी संभव होगा जब कथित रूप से निचली जातियों को बी0पी0एल0 कार्ड और मनरेगा के चश्मे से आगे भी देखना होगा। सिर्फ रोटी ही गरीबों की जरूरत नहीं। पेट के आगे और भी दुनिया है और यह दुनिया खुद को साबित करने की है।
एक औसत बिहारी देश के किसी भी भाग के किसी व्यक्ति से कम योग्य नहीं है बल्कि देशभर में हर साल प्रशासनिक परीक्षाओं में यदि किसी प्रदेश के सबसे अधिक उम्मीदवार चुने जाते हैं तो वह बिहार ही है। मेधा और मेहनत दोनों हैं बिहार के पास। कभी पंजाब ने कृषि क्रान्ति की नींव के रूप में तो कभी महाराष्ट्र की जीवनचर्या चलाने वाले सेवक के रूप में कभी गणित के क्षेत्र में सबको चौंका देने वाले तो कभी तकनीक के क्षेत्र में नयी खोज करने वाले बिहारी इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। अब समय है कि पिछले 20 साल से लिखे अकर्मण्य बिहार के इतिहास को बदलने का। बिहारी सिर्फ मजदूर नहीं हैं, बिहारी सिर्फ दीन-हीन नहीं हैं, बिहारी सिर्फ जातिवादी नहीं हैं, बिहारी सिर्फ सामंतवादी नहीं हैं बल्कि बिहारी प्रगतिशील हैं, संघर्षमान हैं, मेधावी हैं और मेहनती हैं। बिहार के लोग पूरे विश्व में फैले हैं जिस तरह एन0आर0आई0 गुजरातियों में गुजरात के नवनिर्माण में सहयोग दिया, जिस तरह एन0आर0आई0 केरलावासियों ने केरल के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी निभाई उसी तरह से देश-विदेश में फैले बिहार के लोग भी बिहार के विकास में योगदान के लिये भी तैयार बैठे हैं। जितनी तेजी से बिहार से पलायन हुआ था उतनी ही तेजी से बिहार में स्थापित होने की होड़ लोगों में लग सकती है। लेकिन इसके लिये बिहार की नयी सरकार को जबरदस्त पहल करनी होगी। ढांचागत विकास के साथ-साथ विश्वास की बहाली भी जरूरी है। लोगों को यह लगना चाहिए कि बिहार पहुंचने पर न सिर्फ उनकी आबरू, उनकी सम्पत्ति और उनकी पहचान सुरक्षित रहेगी बल्कि उन्हें सम्मान के साथ पूरा अवसर मिलेगा।   

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