Tuesday, November 16, 2010

जैसलमेर

जैसलमेर भारत के राजस्थान प्रांत का एक शहर है। भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित धार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में ११७८ ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहाँ भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए ७७० वर्ष सतत शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है। सल्तनत काल के लगभग ३०० वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग ३०० वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में अँग्रेज़ी राज्य की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इस राज्य ने अपने वंश गौरव व महत्व को यथावत रखा। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात यह भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गया। भारतीय गणतंत्र के विलीनकरण के समय इसका भौगोलिक क्षेत्रफल १६,०६२ वर्ग मील के विस्तृत भू-भाग पर फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहाँ की जनसंख्या बींसवीं सदी के प्रारंभ में मात्र ७६,२५५ थी।[१]
जैसलमेर जिले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था। महाभारत के युद्ध के बाद बड़ी संख्या में यादव इस ओर अग्रसर हुए व यहां आ कर बस गये।[२] यहां अनेक सुंदर हवेलियां और जैन मंदिरों के समूह हैं जो 12वीं से 15वीं शताब्‍दी के बीच बनाए गए थे।[३]
विषय-सूची:
1. भौगोलिक स्थिति
2. भूगोल
3. इतिहास
4. विशेषताएं
5. शासक
6. स्थापत्यकला
7. मंदिर स्थापत्य
8. चित्रकला
9. भाषा
10. साहित्य
11. संगीत
12. धर्म
13. इन्हें भी देखें
14. चित्र दीर्घा
15. बाहरी कड़ियां
16. सन्दर्भ
17. विस्तृत पाठ
जैसलमेर
जैसलमेर का किला



जैसलमेर का किला
Map of राजस्थान with जैसलमेर marked भारत के मानचित्र पर राजस्थान अंकित


Location of जैसलमेर
जैसलमेर



समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देशFlag of India.svgभारत
राज्यराजस्थान
जिलाजैसलमेर
महापौरसंग सिंह भाटी
जनसंख्या
घनत्व
५८,२८६ (2001 के अनुसार )
• ११,४२९ /कि.मी. (२९,६०१ /वर्ग मी.)
क्षेत्रफल
ऊंचाई (AMSL)
५.१ km² (२ sq mi)
• २२५ मीटर (७३८ फी.ft)
विभिन्न कोड
पिनकोड• 345 00x
दूरभाष• +02992
गाड़ियां• RJ 15

1. भौगोलिक स्थिति


जैसलमेर सिटी का दृश्य
Jaisalmer Fort sign.

जैसलमेर राज्य भारत के पश्चिम भाग में स्थित थार के रेगिस्तान के दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र में फैला हुआ था। मानचित्र में जैसलमेर राज्य की स्थिति २०००१ से २०००२ उत्तरी अक्षांश व ६९०२९ से ७२०२० पूर्व देशांतर है। परंतु इतिहास के घटनाक्रम के अनुसार उसकी सीमाएँ सदैव घटती बढ़ती रहती थी। जिसके अनुसार राज्य का क्षेत्रफल भी कभी कम या ज्यादा होता रहता था। जैसलमेर का क्षेत्र थार के रेगिस्तान में स्थित है। यहाँ दूर-दूर तक स्थाई व अस्थाई रेत के ऊंचे-ऊंचे टीले हैं, जो कि हवा, आंधियों के साथ-साथ अपना स्थान भी बदलते रहते हैं। इन्हीं रेतीले टीलों के मध्य कहीं-कहीं पर पथरीले पठार व पहाड़ियाँ भी स्थित हैं। इस संपूर्ण इलाके का ढाल सिंध नदी व कच्छ के रण अर्थात् पश्चिम-दक्षिण की ओर है।

2. भूगोल

2. 1. भूमि

जैसलमेर राज्य का संपूर्ण भाग रेतीला व पथरीला होने के कारण यहाँ का तापमान मई-जून में अधिकतम ४८० सेंटीग्रेड तथा दिसम्बर-जनवरी में न्यूनतम ४० सेंटीग्रेड रहता है। यहाँ संपूर्ण प्रदेश में जल का कोई स्थाई स्रोत नहीं है। वर्षा होने पर कई स्थानों पर वर्षा का मीठा जल एकत्र हो जाता है। यहाँ अधिकांश कुंओं का जल खारा है तथा वर्षा का एकत्र किया हुआ जल ही एकमात्र पानी का साधन है।

2. 2. मौसम

जनवरी-मार्च तक यहां ठंड पड़ती है और तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। अप्रैल-जून तक यह खूब तपता है और औसत तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है। इस मौसम में जब मध्याह्न में सूर्य सिर पर होता है और उसकी किरणों थार के रेगिस्तान पर पड़ती है तो सुनहरी रेत को देख ऐसा लगता है मानो चहुंओर सोने के कण बिखरे पड़े हों। ऐसे मनमोहक दृश्य का आनंद लेने के लिए पर्यटक भीषण गर्मी की भी परवाह नहीं करते और यहां घुमक्कड़ी करते फिरते हैं। अक्टूबर से दिसंबर तक मानसून और ठंड के बीच के मौसम में यहां आप ठंड और बारिश दोनों तरह के मौसम का आनंद उठा सकते हैं। [४]

3. इतिहास

मुख्य लेख : जैसलमेर का इतिहास

पैनोरामा में बड़ा बाग
सँकरी गलियों वाले जैसलमेर के ऊँचे-ऊँचे भव्य आलीशान भवन और हवेलियाँ सैलानियों को मध्यकालीन राजशाही की याद दिलाती हैं। शहर इतने छोटे क्षेत्र में फैला है कि सैलानी यहाँ पैदल घूमते हुए मरुभूमि के इस सुनहरे मुकुट को निहार सकते हैं। माना जाता है कि जैसलमेर की स्थापना भाटी राजपूत, राव जैसल ने 12 वीं शताब्दी में की थी। इतिहास की दृष्टि से देखें तो जैसलमेर शहर पर खिलजी, राठौर, मुगल, तुगलक आदि ने कई बार आक्रमण किया था। इसके बावजूद जैसलमेर के शाही भवन राजपूत शैली के सच्चे द्योतक हैं।

4. विशेषताएं

जैसलमेर राज्य भारत के मानचित्र में ऐसे स्थल पर स्थित है जहाँ इसका इतिहास में एक विशिष्ट महत्व है। भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर इस राज्य का विस्तृत क्षेत्रफल होने के कारण अरबों तथा तुर्की के प्रारंभिक हमलों को यहाँ के शासकों ने न केवल सहन किया वरन दृढ़ता के साथ उन्हें पीछे धकेलकर शेष राजस्थान, गुजरात तथा मध्य भारत को इन बाहरी आक्रमणों से सदियों तक सुरक्षित रखा। राजस्थान के दो राजपूत राज्य, मेवाइ और जैसलमेर अनय राज्यों से प्राचीन माने जाते हैं, जहाँ एक ही वंश का लम्बे समय तक शासन रहा है। हालाँकि मेवाड़ के इतिहास की तुलना में जैसलमेर राज्य की ख्याति बहुत कम हुई है, इसका मुख्य कारण यह है कि मुगल-काल में बी जहाँ मेवाड़ के महाराणाओं की स्वाधीनता बनी रही वहीं जैसलमेर के महारावलों द्वारा अन्य शासक की भाँती मुगलों से मेलजोल कर लिया जो अंत तक चलता रहा। आर्थिक क्षेत्र में भी यह राज्य एक साधारण आय वाला पिछड़ा क्षेत्र रहा जिसके कारण यहाँ के शासक कभी शक्तिशाली सैन्य बल संगठित नहीं कर सके। फलस्वरुप इसके पड़ौसी राज्यों ने इसके विस्तृत भू-भाग को दबा कर नए राज्यों का संगठन कर लिया जिनमें बीकानेर, खैरपुर, मीरपुर, बहावलपुर एवं शिकारपुर आदि राज्य हैं। जैसलमेर के इतिहास के साथ प्राचीन यदुवंश तथा मथुरा के राजा यदु वंश के वंशजों का सिंध, पंजाब, राजस्थान के भू-भाग में पलायन और कई राज्यों की स्थापना आदि के अनेकानेक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक प्रसंग जुड़े हुए हैं।
सदियों तक आवागमन के सुगम साधनों के आभाव में यह राज्य देश के अनय प्रांतों से लगभग कटा सा रहा। इस कारण बाहर के लोगों के जैसलमेर के बारे में बहुत कम जानकारी रही है। सामान्यत: लोगों की कल्पना में यह स्थान धूल व आँधियों से घिरा रेगिस्तान मात्र है। परंतु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है, इतिहास एवं काल के थपेड़े खाते हुए भी यहाँ प्राचीन, संस्कृति, कला, परंपरा व इतिहास अपने मूल रुप में विधमान रहा तथा यहाँ के रेत के कण-कण में पिछले आठ सौ वर्षों के इतिहास की गाथाएँ भरी हुई हैं। जैसलमेर राज्य ने मूल भारतीय संस्कृति, लोक शैली, सामाजिक मान्यताएँ, निर्माणकला, संगीतकला, साहित्य, स्थापत्य आदि के मूलरुपंण बनाए रखा।

5. शासक

मुख्य लेख :
जैसलमेर राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के आरंभ में ११७८ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल के द्वारा किया गया। भाटी मूलत: इस प्रदेश के निवासी नहीं थे। यह अपनी जाति की उत्पत्ति मथुरा व द्वारिका के यदुवंशी इतिहास पुरुष कृष्ण से मानती है। कृष्ण के उपरांत द्वारिका के जलमग्न होने के कारण कुछ बचे हुए यदु लोग जाबुलिस्तान, गजनी, काबुल व लाहौर के आस-पास के क्षेत्रों में फैल गए थे। कहाँ इन लोगों ने बाहुबल से अच्छी ख्याति अर्जित की थी, परंतु मद्य एशिया से आने वाले तुर्क आक्रमणकारियों के सामने ये ज्यादा नहीं ठहर सके व लाहौर होते हुए पंजाब की ओर अग्रसर होते हुए भटनेर नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया। उस समय इस भू-भाग पर स्थानीय जातियों का प्रभाव था। अत: ये भटनेर से पुन: अग्रसर होकर सिंध मुल्तान की ओर बढ़े। अन्तोगत्वा मुमणवाह, मारोठ, तपोट, देरावर आदि स्थानों पर अपने मुकाम करते हुए थार के रेगिस्तान स्थित परमारों के क्षेत्र में लोद्रवा नामक शहर के शासक को पराजित यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस भू-भाग में स्थित स्थानीय जातियों जिनमें परमार, बराह, लंगा, भूटा, तथा सोलंकी आदि प्रमुख थे। इनसे सतत संघर्ष के उपरांत भाटी लोग इस भू-भाग को अपने आधीन कर सके थे। वस्तुत: भाटियों के इतिहास का यह संपूर्ण काल सत्ता के लिए संघर्ष का काल नहीं था वरन अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष था, जिसमें ये लोग सफल हो गए।

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