Thursday, February 13, 2020

सत्संग के मिश्रित प्रसंग



। [14/02, 00:14] Mamta Vodafone: *🎈भीतर का घर🎈*

         *एक मकान मालिक को अपना घर बाहर से बहुत सुन्दर लगता था, भीतर छोड़ बस बाहर ही रहने लगा। बाहर से रोज साफ करता, भीतर जाना भूल ही गया, बाहर से लोग तारीफ करते तो बहुत खुश रहता पर अंदर गंदगी फैलने लगी।*

      *एक दिन दीमक दरवाजें, खिडकियों से बाहर आने लगे तो घबराया कि मेरे मकान की सुदरता को क्या हो गया? बाहर से साफ करे पर दीमक तो भीतर से आ रही थी। अंदर झाके तो घर बदबू से भरा हुआ था, भीतर जाया न जाये, बाहर से सफाई न हो पाये। काश बाहर की सफाई के साथ-साथ भीतर भी साफ रखता तो घर भीतर बाहर से साफ रहता।*

     *ऐ इंसान, मकान है, तेरा शरीर और मालिक है तूँ, पर ध्यान सिर्फ बाहर चमड़ी और शरीर रूपी मकान पर लगा रखा है। भीतर काम, कोध्र, लोभ, मोह का दीमक लग चुका है और बाहर इनिद्रयों के दरवाजों से बाहर भी प्रकट हो रहा है, बाहर से छुटकारा पाने का प्रयास चल रहा है, आखों की खिड़की से शास्त्रों को पढा जा रहा है, मूंह के दरवाजें से भजन गाये जा रहे हैं, कानों द्वारा सतसंग सुने जा रहे हैं, क्या बस इससे ही भीतर के विकार यानि दीमक मर जायेगी?*

      *अगर इन अंदर के विकारों को ख़त्म करना है तो पूरन संतों से नाम लेकर भजन सिमरन करना चाहिए जी।*

      *🙏🏻राधा स्वामी जी🙏🏻*
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*ढलना तो एक दिन सभी को है,*
       *चाहे इंसान हो या सूरज*
*मग़र हौसला सूरज से सीखो*
            *रोज़ ढल के भी*
*हर दिन उम्मीद से निकलता है।*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
          *🙏🌞सुप्रभात🌞🙏*
 *🙏🌹आपका दिन शुभ हो🌹🙏*
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: *गीता में कृष्ण जी ने कहा है.....*
*जो लोग तुम्हारी बुराई करते हैं वो करेंगे*
*चाहे तुम अच्छा काम करो या बुरा ।*
*इस लिए शांत रहकर अपना कर्म करते रहे ।*
        *निंदा से मत घबराओ*
*निंदा उसी की होती है जो जिंदा हैं ।*
*मरने के बाद तो सिर्फ़ तारीफ होती है ।*

*🙏।। Radhasoami।।* 🙏
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: *सांस  रुक  जाए मगर*
      *आंखे  कभी  बंद  न्  हो ,*
*मौत  आये तो  भी  तुझे  देखने*
      *की  जिद  खत्म  न हो*
*मेरे प्यारे सतगुरु तेरा  दर्शन  कर ,*
     *अनमोल  खजाना पाया  है ,*
*तेरी  सुरत मे तो*
     *तीनो लोक समाया है।*
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: *परिस्थितियों के अनुसार*
*सब चीज सुंदर है*
*जैसे*
*जो स्कूल की घंटी*
*सुबह के समय*
*बेकार लगती है*
*वही छुट्टी के समय*
*बहुत अच्छी लगती है* ।

*🌹💐🙏सुप्रभात🙏🌹💐*
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: *खुशियों के लिए क्यों*
*किसी का इंतज़ार,*
*आप ही तो हैं अपने*
*जीवन के शिल्पकार !*
*चलो आज मुश्किलों को हराते हैं*
*और दिन भर मुस्कुराते हैं !!*
               *सुप्रभात।*
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: **राधास्वामी!! 12-02-2020-आज शाम के सतसंग मे पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 55) आजकल परमार्थ व परमार्थी संस्थाओं का नाम बदनाम हो रहा है। वजह यह है कि प्राय: परमार्थी संस्थाएं ऐसे लोगों के हाथों में है जिन्हें न आध्यात्मिकता से कोई संबंध है , न जनता की बेहतरीन से कोई वास्ता है। जब कोई महापुरुष अपना अमृतरुपी उपदेश जारी फरमाते हैं तो प्रेमी जन प्रभावित हो कर उनके चरणों के इर्द गिर्द जमा होने लगते हैं और जब वे देखते हैं कि वे महापुरुष अपना तन, मन धन जनता की निःस्वार्थ सेवा में सर्फ करते हैं और बावजूद दुनिया से बेगरज होने के अपनी विद्या आम लोगों को खुशी से सिखलाते है और अपनी ओर से प्रेम की दात बख्शिश फरमाते हैं तो स्वभाविक तन, मन, धन भेंट करने के लिए उनका भी दिल उमंगता है। धीरे-धीरे ऐसे प्रेमी जनों की तादाद काफी बढ़ जाने से वहां सोने चांदी की नदी बहने लगती है और कुछ अर्से बाद जब वह महापुरुष अपना काम पूरा करके दुनिया से रुखसत हो जाते हैं तो या तो कोई मतलबी शख्स खुद उनकी गद्दी संभाल लेता है यह कोई नाकाबिल शख्स गद्दी पर बिठा दिया जाता है जिससे स्वार्थियों को अपने हाथ रंगने का मौका मिले। महापुरुष का सिर से हाथ उठ जाने पर रुपए पैसे की तरक्की और रुहानियत ल पाकीजगी की मादूमी से कमी से संयोग में किस्म किस्म की खराब रस्में जारी हो जाती हैं और आम लोग इस बिगडी परमार्थी संस्था का हाल मुलाहिजा करके सच्चे परमार्थ  और सच्ची परमार्थी संस्थाओं की लाशों को सच्चा परमार्थ व परमार्थी संस्थाए ख्याल करते है। जैसे किसी जिस्म के अंदर से रुह के निकल जाने पर वह जिस्म मुर्दा हो जाता है और सडने लगता है ऐसे ही किसी परमार्थी सयोंग के अंदर से सच्चे महाप्रभु से रुखसत हो जाने पर संस्था के अंदर सड़न पैदा हो जाती है। मालूम होवे कि सच्चा महापुरुष या सच्चा सतगुरु दरअसल वह सूरत या रुह है जो किसी इंसानी जिस्म के अंदर वर्तमान है और जागृत या चेतन है और सच्चे मालिक से मेल प्राप्त किये है, उसका बाहरी जिस्म और दुनिया  में काम करने वाला मन केवल सुरत के वस्त्र या गिलाफ है और सच्चे सद्गुरु उनकी संतान को आमतौर पर महज उनके खून का कतरा मिलता है और चूंकि खून महज उनकी रुह के गिलाफ का अंश है इसलिये इस खून के रिश्ते की वजह से किसी महापुरुष की संतान में उनका जानशीन बनने की योग्यता नही आ सकती।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 (सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा)**
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: जो  तू  चाहता  है, वो  नहीं  होता , जो  मैं  चाहता  हूँ  वो  होता  है तू  चाहता  है  कि  वो  हो, जो  मैं  चाहता  हूँ , तो  फिर  तू  वो  कर  जो  मैं  चाहता  हूँ, फिर  वो  होगा  जो  तू  चाहता  है ।

❤राधास्वामी❤
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: *आपने  जैसे  ही  सोच  लिया  कि  आज  से  मैं   2:30 घंटे  भजन-सिमरन  करूँगा  ,  तो  काल  उधर  सतर्क  हो  जाता  है  ,  काल  बहुत  बड़ी  जबरदस्त  ताकत  है  ,  काल  के  घर  में  जैसे  आग  लग  जाती  है  , ,  वो  दस  तरह  के  जाल  फेकेगा  की  ये  रूह  दयाल  के  पास  ना  जाये  ।*
*पर  सन्त  कहते  हैं  की  आपको  कुछ  नहीं  सोचना  है  , बस  अपनी  असली  सेवा  में  बैठे  रहना  है  ,  चाहे   मन  लगे  लगे  ,  ना  लगे  ना  लगे  ,  दयाल  खुद  ही  निपटेगा  उस  शक्ति  से  हमारा  काम  है  बैठना  । ।*
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: **राधास्वामी!! 13-02- 2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 56)- कहने को तो हर कोई मुक्ति का तलबगार है लेकिन हर शख्स इस लफ्ज़ को एक ही मायने में इस्तेमाल नहीं करता। जैसे बाज लोग मुक्ति का मतलब संसार के दुखों से छूट जाना लेते हैं-- ये दरअसल जन्म मरण व संसार के दुखों से डरते हैं। संतमत में मुक्ति का मतलब सच्चे मालिक से मिलकर एक हो जाना है। दुनिया की हर कौम के अंदर रिवाज है कि प्यार का अंग प्रगट होने पर एक शख्स दूसरे से अपने जिस्म का कोई हिस्सा स्पर्श करता है जैसे बाज लोग हाथ से हाथ मिलाते हैं, बाज नाक से नाक छूते हैं , बाज मुंह से मुंह जोड़ते हैं। इन कार्यवाही से दरअसल उनके जीवात्माएँ एक दूसरे से मिला चाहती हैं लेकिन चूँकि जिस्म स्थूल है इसलिए उनके द्वारा महज क्षणिक और ऊपरी मेल प्राप्त होता है । इससे समझ में आ सकता है कि अगर किसी आत्मा के ऊपर से तन व मन के गिलाफ कतई उतर जायँ और वह सच्चे मालिक के हुजूर में पहुंच जाए तो उस वक्त क्या हालत होगी?  हालत यह होगी कि एक तरफ तो प्रेमभरी चेतन बुंद सच्चे मालिक की तरफ बढ़ रही है और दूसरी तरफ चेतन शक्ति का अपार सिंधु उस सुरत को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है गोया गोवा सुरत सच्चे मालिक में समाया चाहती है और सच्चा मालिक सुरत को अपने में जज्ब किया चाहता है जिसका नतीजा बिल आखिरी यही होगा कि सुरत सच्चे मालिक के साथ मिलकर एक हो जाएगी ।।                      मुक्ति का यह तात्पर्य सिद्ध होने पर मुक्ति के हर चाहने वाले पर फर्ज हो जाता है कि इस दौलत के पाने के लिए जो जीना मुकर्रर किया गया है उस पर कदम जमाने के लिए पूरी कोशिश करें और वह जीना सतगुरु के साथ एक हो जाना है। जो शख्स ऐसे पुरुष से, जो मालिक के साथ एक हो रहा है, एक होने की योग्यता रखता है वही मालिक के साथ एक हो सकता है ।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 (सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा)**
[14/02, 00:14] Mamta Vodafone: *"विचार" सबके "गतिशील" व "भिन्न" होते हैं*
*इसका "जीवंत उदाहरण" है कि "सब्जी" की "टोकरी" में से हर "व्यक्ति" सब्जी "छांटता" है*
*और "मजे की बात" है कि "बिक" भी पूरी ही जाती है*

*"रिश्ते" और "बर्फ" के गोले "एक समान" ही होते हैं*
*जिसे "बनाना" तो "आसान" होता है पर "बचाना" बहुत "मुश्किल"*
*दोनों को "बचाए" रखने का बस एक ही "तरीका" है*
*"शीतलता" बनाए "रखिए"*

*🙏🏻 शुभ रात्रि 🙏🏻*
  *🌺 राधास्वामी🌺*
*मालिक जी सबका भला करें*
        👉🏻🤚🏻🇮🇳🤚🏻👈🏻

🌺🌸🌷🙊🙉🙈🌷🌸🌹

प्रस्तुति - रीना शरण/कृति शरण /अम्मी शरण

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