*परम पूज्य हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब का महत्त्वपूर्ण संदेश*
*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के पवित्र भंडारे के सुअवसर पर*
*(मध्याह्न 15.2.2004)*
(पिछले दिन का शेष)
*अक्सर लोगों की शिकायत होती है कि सुमिरन ध्यान भजन नहीं बनता है। जब राधास्वामी दयाल ने हमको अपने नाम का मूलमंत्र “राधास्वामी” प्रदान कर दिया तो वही ऐसी एक कुंजी है जिससे घट के सारे ताले और द्वार खोले जा सकते हैं। पोथियों में भी ज़िक्र है, हम में से जो अभी उपदेश प्राप्त नहीं हैं वे भी उच्चारण करें “राधास्वामी” का,चार भाग में बाँट करके ‘रा’-‘धा’-‘स्वा’-‘मी’,पहले तन की ज़बान से, अपना ध्यान नाभि चक्र पर ‘रा’ का उच्चारण करके केन्द्रित करें। फिर उसके ऊपर हृदय चक्र पर ‘‘धा’’ करके केन्द्रित करें। कण्ठ चक्र पर ‘स्वा’ करके केन्द्रित करें और सुरत के स्थान जो आखों के बीच है उस पर केन्द्रित करके ‘मी’ कहें। तो जिनको उपदेश नहीं मिला है वे भी ‘राधास्वामी’ नाम का सुमिरन कर सकते हैं। ‘रा’ नाभि चक्र पर, ‘धा’ हृदय चक्र पर, ‘स्वा’कण्ठ चक्र पर और ‘मी’ आँखों के बीच में। जिनको पहला उपदेश प्राप्त है वे इस प्रकार ‘राधास्वामी’ का कुछ समय तक सुमिरन करने के पश्चात् साथ-साथ में ध्यान भी कर सकते हैं। और सुरत के स्थान पर यह चार भागों में ‘राधास्वामी’ शब्द का सुमिरन कर सकते हैं। शुरूआत किया जैसे कि तन की ज़बान से, फिर मन की ज़बान से और सुरत के स्थान तक ले गये और फिर मन और सुरत दोनों को साथ-साथ ‘राधास्वामी’ नाम के सुमिरन में और गुरु स्वरूप के ध्यान में लगा दिया। जिनको दूसरा उपदेश प्राप्त है वे फिर ‘राधास्वामी’ नाम का सुमिरन ऊँचे चक्रों पर भी कर सकते हैं। वे सुरत की बैठक से शुरू करके राधास्वामी धाम तक ‘राधास्वामी’नाम का सुमिरन कर सकते हैं। चार हिस्सों में बाँट करके, पहले चार चक्रों को शामिल करें। आप ऐसा भी कर सकते हैं कि नाभि चक्र से सुरत के स्थान तक चार भागों के बाद हृदय चक्र से शुरू करें और सुरत के स्थान के ऊपर चक्र तक जायँ। फिर कण्ठ चक्र से शुरू करें और सुरत के स्थान के दो स्थान ऊपर के चक्र तक जायँ। फिर सुरत के स्थान से शुरू करें और वहाँ से तीन चक्र ऊपर तक और जायँ। और फिर सुरत के स्थान से शुरू करते हुए बीच में एक-आध चक्र छोड़ते हुए राधास्वामी धाम तक सुमिरन और ध्यान करें। यही सुमिरन ध्यान, भजन का भी फ़ायदा देने लगेगा। जैसा हमारे परम गुरुओं ने कह रक्खा है विशेष कर परम गुरु हुज़ूर डा. लाल साहब ने फ़रमाया कि खेतों में अगर हम शान्ति से खेतों का काम करें तो सुमिरन ध्यान भजन भी बन सकता है। मैंने जो विधि आपको बताई वह आप बड़ी आसानी से काम करते करते भी कर सकते हैं। रा-धा-स्वा-मी, इसको अपने मन और सुरत से अन्तर में सुमिरन करते रहिये। ग्रेशस हुज़ूर डा. लाल साहब का ध्यान करते रहिये। और इस प्रकार सुमिरन ध्यान दोनों ही बनता जायगा। और अगर आपको उपदेश प्राप्त है और आप ऊँचे स्थानों पर भी यह करते हैं तो यह भजन में भी तबदील हो जायगा ।* राधास्वामी।
(प्रेम प्रचारक, दिनांक 8 मार्च, 2004)
राधास्वामी
प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
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