Sunday, March 1, 2020

परम पुरूष पूरन धनी साहबजी महाराज की डायरी





प्रस्तुति - दीपा सुनीता और रीना शरण


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 24 जुलाई 1932 -रविवार:- अभी-अभी गर्मी तेजी पर है । बादल आते हैं लेकिन बारिश नहीं होती। अलबत्ता जमुना में काफी पानी आ गया है। दयालबाग के कुओं का सोत जमुना से मिला हुआ है । अब हमारे कुओं में भी पानी बढ़ जाएगा। पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट और आगरा की पब्लिक इस कोशिश में है कि महकमा नहर को रजामंद या मजबूर किया जावे के दरिया में हमेशा और खासकर गर्मी के मौसम में काफी पानी छोड़ा जावे। वरना आगरा और दरिया के किनारे के सब गांव तबाह हो जाएंगे।  तीसरे पहर विद्यार्थीयों का सत्संग हुआ। बयान हुआ कि अगर कोई शख्स तालाब के पानी में सूरज का प्रतिबिंब देखकर या आईने में मुंह देखकर कहे कि वह पानी में असली सूरत या आईने में अपनी असली शक्ल देख रहा है तो दुनिया उसे विकृत मस्तिष्क कहेगी । लेकिन तमाम दुनिया कर क्या रही है? ज्ञान इंद्रियों की मार्फत अक्सी ज्ञान हासिल करके शोर मचा रही है कि असली ज्ञान हासिल हो रहा है । जब हम कोई पेड़ देखते हैं दरअसल सूरज की किरणों की मार्फत उसका अक्ष हमारे आंख के पर्दे पर पड़ता है और उसके जरिए सेंसेशन या सनसाइट हमारे दिमाग तक पहुंचती है और असल पेड़ जहां का तहां खड़ा रहता है । ऐसी सूरत में इस ज्ञान को अक्सी ज्ञान कहना नादुरुस्त ना होगा । यही वजह है कि महापुरुषों ने ज्ञान इंद्रियों द्वारा ज्ञान को असत्य ज्ञान कहा । पतंजलि महाराज के कथन अनुसार दुष्टा दृश्य पदार्थों का रूप खुद धारण करता है यानी हमारे चित्त में तब्दीली होकर हमारी ज्ञान शक्ति खुद दृष्य पदार्थ का रुप अख्तियार करती है और जैसे ढालने पर मसाले के गाढा या पतला, गर्म या सर्द होने से मिट्टी में सोने चांदी के खिलौने बिगड़ तगड जाते हैं ऐसे ही मन के गर्म सर्द होने पर हमारा इंद्री ज्ञान भी बिगड तगड जाता है।इसलिये यह ज्ञान अविश्वसनीय हो गया। इंद्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान संसार का काम चलाने के लिए तो दुरुस्त है क्योंकि यहां सभी जीव इंद्री ज्ञान से काम लेते हैं लेकिन समझदार इंसान इस ज्ञान के अलावा सत्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए जतन करता है। वह ज्ञान चश्मे बातिन के द्वारा हासिल होता है । उसी की प्राप्ति के लिए राधास्वामी सत्संग में साधन की जुगतियाँ सिखलाई जाती है ।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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