Friday, July 17, 2020

अयोध्या के राजा जनक अनरण्य


अयोध्या के राजा अनरणय की रावण द्वारा ह्त्या ।श्री राम ने उन्ही के वंश में जन्म लेकर उनकी हत्या का बदला लिया और अधूरे कार्य ,राक्षसो का नाश , को पूरा किया
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राजा मरुत्त के महायज्ञ में अपनी विजय घोषित कर और मुनियो को मारकर खा कर उनका रक्तपान कर -आततायी रावण अन्य राजाओं के राज्यो में पहुंचा -परन्तु उसकी वरदान जनित शक्तिओ से डरकर सभी ने आत्मसमर्पण कर उसकी दासता स्वीकार की राजा दुष्यंत -राजा सुरथ -राजा गव -राजा पुरुरवा और कन्नौज के प्रसिद्ध राजा गाधि ने भी रावण के सामने पराजय स्वीकार कर ली ।

इसके बाद रावण अयोध्या पहुंचा । इंद्र के समान पराक्रमी राजा अनरणय ने पहले से ही मुकाबले के लिये भारी सेना आदि की तैयारी कर ली थी । उन्होने समर्पण की बजाय युद्ध कर आततायी रावण को समाप्त करने की सोची ।रावण के मंत्री मारीच शुक सारण और प्रहस्त राजा अनरण्य से परास्त हो गए ।
राजा ने रावण का भी मुकाबला किया परन्तु वरदानो के कारण उनकी सेना परास्त हुई -रावण ने कुपित होकर राजा के मस्तक पर प्रहार किया जिससे राजा भूमि पर गिर गए । मरते हुए राजा ने रावण को श्राप देते हुए कहा-यदि मैंने दान पुन्य होम तप तथा धर्मपूर्वक प्रजा का पालन किया हो -तो मेरे ही वंश में प्रभु राम प्रगट होंगे जो मेरे अधूरे कार्य को पूरा कर -तेरा समस्त पापी साथिओ सहित वध करेंगे -
आततायी रावण के सम्मुख समर्पण न कर देश धर्म व् समाज के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले राजा अनरणय का वचन पूरा करने के लिए प्रभु राम ने उनके वंश में दशरथ के पुत्र के रूप में अवतार लेकर उनके अधूरे काम --रावण का कुल सहित वध करना - को पूर्ण किया और अपने पूर्वज की हत्या का बदला भी लिया ( बाल्मीक रामायण उत्तर काण्ड -19-सर्ग )

रावण द्वारा यमराज पर विजय ~~

अयोध्या के राजा अनरणय का वध करने के बाद रावण ऋषि मुनियो को खाता हुआ सभी प्राणियो को भयभीत करता हुआ -हर राज्य को अपने आधीन कर अपने विजय की घोषणा करता पुष्पक विमान पर बैठकर घूम रहा था तभी उसके सामने आकाश में बादलो की पीठ पर खड़े हुए महातेजस्वी देवर्षि नारद मुनि आ गए ।

श्री नारद जी ने रावण से कहा कि वह देवताओं के लिए भी अवध्य है फिर म्रत्यु के आधीन भूलोक के वासिओ को क्यों मार रहा है ।पुलस्त्यनंदन रावण , इन सब प्राणियो को यमलोक अवश्य जाना पड़ता है अगर शक्ति हो तो यमराज को काबू में करो ।
 यमराज पर विजय सारे संसार पर विजय मानी जाउएगी । रावण तुरंत दक्षिण दिशा यमलोक को चला । इधर नारद जी ने पहले ही यमलोक जाकर रावण के आने का समाचार यमराज को दे दिया ।

रावण ने यमलोक में धर्मात्माओ को सर्व सुख का भोग करते व् पापिओ को तमाम यातनाए सहते देखा -रावण ने यातना भोगते पापिओ को अपने पराक्रम से बलपूर्वक मुक्त कर दिया -इसे देखकर यमराज के असंख्य सैनिक रावण पर टूट पड़े । रावण व् उसके सारे सैनिक बुरी तरह घायल हो गए तब रावण ने पाशुपतास्त्र को चलाया जिससे यमराज के सभी सैनिक धराशायी हो गए ।

यह देखकर सूर्य पुत्र यमराज अपने - दिव्य -विशाल रथ पर बैठ कर रावण के सम्मुख पंहुचे । दोनों के भयंकर युद्ध से देवता मानव व् सारा संसार काँप उठा ।.
तब यमराज ने ज्वालाओ से घिरा हुआ भयंकर कालदंड उठाया जिससे किसी का भी बचना असंभव था -वे जैसे ही रावण पर कालदंड का प्रहार करना चाहते थे उसी समय वहा ब्रम्हा जी प्रगट हो गए -उन्होंने यमराज को रोकते हुए कहा कि उन्होंने रावण को देवताओं से न मारे जाने का वर दिया है इसलिए इसपर कालदंड का प्रहार न करो ।

श्री यमराज ने श्री ब्रम्हा जी की आज्ञा का पालन किया और कहा कि जब वे रावण को नही मार सकते है तो युद्ध करना व्यर्थ है और वे रथ सहित अद्रश्य हो गए । इस प्रकार यमराज को जीतकर अपने नाम की घोषणा करते हुए रावण भी चला गया ।

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