Wednesday, July 1, 2020

रहस्य रोमांच से भरा अद्भुत स्थल है उनाकोटी






#महान_रहस्यों_और_रोमांच_से_भरा_हुआ_पुरातात्विक_स्थल_उनाकोटी_त्रिपुरा

♦️त्रिपुरा की राजधानी अगरतल्ला से 178 किलोमीटर दूरी पर स्थित  है, महान रहस्यों और रोमांच से भरा हुआ पुरातात्विक स्थल है- उनाकोटी!
जिसका शाब्दिक अर्थ है करोड़ में एक कम। यहां मौजूद है निन्यावे लाख निन्यानवे हज़ार नौ सौ निन्यानवे मूर्तियां। ये मूर्तियां किसने बनाई और कैसे ? ये आज भी रहस्य बना हुआ है, आखिर इस जंगल मे ऐसी खूबसूरत मूर्तियां बनाई किसने और क्यों ?
👉लहरदार पगडंडियां, घने जंगल और घाटियां और संकरी नदियां और स्रोतों के मनोरम दृश्य, अनोखी वनस्पतियां और वन्य जीवों के आसपास होने का अहसास, और जंगल के अभयारण्य। ऐसा ही है उनाकोटि का प्राकृतिक भंडार, जो इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक खूबियों के रंग, गंध से पर्यटकों को अपनी ओर इशारे से बुलाता है। यह एक औसत ऊंचाई वाली पहाड़ी श्रृंखला है, जो उत्तरी त्रिपुरा के हरे-भरे शांत और शीतल वातावरण में स्थित है।त्रिपुरा के इस हरे-भरे और शांत शीतल वातावरण में सैकड़ों वर्षों से जंगल के बीच रखी इन मूर्तियों को देखकर लगता है जैसे किसी शिल्पकार ने कई सालों की मेहनत के बाद देवी-देवताओं को इतने सुंदर माहौल में विश्राम के लिए छोड़ दिया हो। आप इस जंगल में कहीं पर भी चले जाइए, हर तरफ आपको मूर्तियां नजर आ जाएंगी।संकीर्ण पगडंडियां, दूर-दूर तक फैले जंगल और कोलाहल मचाते नदी स्रोतों के मध्य स्थित है त्रिपुरा की 'उनाकोटि'। जिसे पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े रहस्यों में भी गिना जाता है। यह स्थान काफी सालों तक अज्ञात रूप में यहां मौजूद रहा, हालांकि अब भी बहुत लोग इस स्थान का नाम तक नहीं जानते हैं। जगंलों की बीच शैलचित्रों और मूर्तियों का भंडार 'उनाकोटि' जितना अद्भुत है उससे कहीं ज्यादा दिलचस्प इसका इतिहास है।

♦️उनाकोटि की खास बात:-
उनाकोटि की सबसे खास बात यहां मौजूद असंख्य हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। जो इस स्थान को सबसे अलग बनाने का काम करती हैं। उनाकोटि एक पहाड़ी इलाका है जो दूर-दूर तक घने जंगलों और दलदली इलाकों से भरा है। उनाकोटि लंबे समय से शोध का बड़ा विषय बना हुआ है, क्योंकि इस तरह जंगल की बीच जहां आसपास कोई बसावट नहीं एक साथ इतनी मूर्तियों का निर्माण कैसे संभव हो पाया।

♦️अनोखी मूर्तियों का निर्माण:-
उनाकोटी (Unakoti) में दो तरह की मूर्तियाँ हैं। एक जो चट्टानों को काटकर उकेरी गई हैं और दूसरे पत्थर की मूर्तियाँ। यहाँ चट्टानों पर उकेरी गई छवियों में सबसे सुंदर शिव की ये छवि है जिसे उनाकोटि काल भैरव (Unakoti Kaal Bhairav) के नाम से जाना चाता है। करीब 30 फीट ऊँचे इस शिल्प के ऊपर 10 फीट का जटा रूपी एक मुकुट है। उन दोनों की बगल में शेर पर सवार देवी दुर्गा और दूसरी और दूसरी तरफ संभवतः देवी गंगा की छवियाँ हैं। शिल्प के निचले सिरे पर नंदी बैल का जमीन में आधा धँसा हुआ शिल्प भी है। इसके आलावा यहाँ गणेश, हनुमान और भगवान सूर्य के भी खूबसूरत शिल्प हैं।
👉इतिहासकार मानते हैं कि भिन्न भिन्न मूर्तियों से भरा पूरा ये इलाका करीब ९ से १२ वीं शताब्दी (9th-12th Century) के बीच पाल राजाओं के शासनकाल में बना। यहाँ के शिल्प में शैव कला के आलावा तंत्रिक, शक्ति और हठ योगियों की कला से भी प्रभावित माना गया है।यहां हिन्दू धर्म से जुड़ी प्रतिमाएं हैं, जिनमें भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान विष्णु, और गणेश भगवान आदि की मूर्तियां स्थित है। इस स्थान के मध्य में भगवान शिव के एक विशाल प्रतिमा मौजूद है, जिन्हें उनाकोटेश्वर के नाम से जाना जाता है।
उनाकोटि की पहाड़ी पर हिन्दू देवी-देवताओं की चट्टानों पर उकेरी गई अनगिनत मूर्तियां और शिल्प मौजूद हैं। बड़ी-बड़ी चट्टानों पर ये विशाल नक्काशियों की तरह दिखते हैं, और ये शिल्प छोटे-बड़े आकार में और यहां-वहां चारों तरफ फैले हैं।

♦️चार-भुजाओं वाले गणेश की दुर्लभ नक्काशी भी है
शिव के शिल्पों से कुछ ही मीटर दूर भगवान गणेश की तीन शानदार मूर्तियां हैं। चार-भुजाओं वाले गणेश की दुर्लभ नक्काशी के एक तरफ तीन दांत वाले चार भुजा गणेश और चार दांत वाले अष्टभुजा गणेश की दो मूर्तियां स्थित हैं। चतुर्मुख शिवलिंग, नंदी, नरसिम्हा, श्रीराम, रावण, हनुमान, और अन्य अनेक देवी-देवताओं के शिल्प और मूर्तियों यहां हैं। एक किंवदंती है कि अभी भी वहां कोई चट्टानों को उकेर रहा है, इसीलिए इस उनाकोटि-बेल्कुम पहाड़ी को देवस्थल के रूप में जाना जाता है, आप कहीं से भी, किधर से भी गुजर जाइए आपको शिव या किसी देव की चट्टान पर उकेरी हुई मूर्ति या शिल्प मिलेगा। इन अद्भुत मुर्तियों के कारण यह स्थान काफी रोमांच पैदा करता है।

♦️भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार उनाकोटि का काल 8वीं या 9वीं शताब्दी का है। हालांकि, इसके शिल्पों के बारे में, उनके समय-काल के बारे अनेक मत हैं। इस क्षेत्र का इतिहास अजातशत्रु के शासन काल से भी जुड़ा हुआ है।

👉उनकोटी की पौराणिक कहानी :-
♦️पहली कहानी :कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव अपने दल-बल और देवताओं के साथ काशी (या कुछ लोग कहते हैं कि कैलाश पर्वत) जा रहे थे । पूरे समूह में कुल मिलकर एक करोड़ लोग थे ।उनकोटी के जंगलों में पहुँचते-पहुँचते रात हो जाने पर निश्चय हुआ कि रात्रि विश्राम वहीं कर लिया जाए । भगवान शिव ने बाक़ी सभी देवी-देवताओं और दल के सदस्यों को सुबह सूर्योदय से पहले उठने का आदेश दिया ताकि नियत समय पर आगे की यात्रा प्रारम्भ की जा सके । अगले दिन जब भगवान शिव सोकर उठे तो देखा कि बाक़ी सभी लोग सो ही रहे थे । इससे क्रुद्ध होकर उन्होंने सबको वही पत्थर में बदल जाने का श्राप दिया और आगे बढ़ गये । इस तरह वहाँ 99,99,999 पत्थर के देवी-देवता बन गये।
♦️दूसरी कहानी : एक स्थानीय शिल्पकार, कालू कुम्हार, माता पार्वती का बहुत बड़ा भक्त था । एक बार जब भगवान शिव, माता पार्वती और अपने विशाल दल-बल के साथ उधर से गुज़र रहे थे तो रात्रि विश्राम करने के लिए उनकोटी में रुक गये । पूरे समूह में कुल मिलकर एक करोड़ लोग थे । कालू कुम्हार ने यह सुना तो वह दौड़ा-दौड़ा भगवान शिव के पास गया और उनके साथ कैलाश जाने की ज़िद करने लगा । माता पार्वती से विचार-विमर्श करने के बाद भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि अगर वह सुबह उनके प्र्स्थान करने से पहले साथ के सारे लोगों की अलग-अलग मूर्तियाँ बनाकर दिखा देगा, तो वो लोग उसे अपने साथ ले जायेंगे । शिल्पकार अपने काम में जी-जान से जुट गया, लेकिन सुबह भगवान शिव के प्रस्थान करने से पहले तक वह केवल 99, 99, 999 आकृतियाँ ही बना सका, इसलिए भगवान उसको वहीं छोड़ कर आगे की यात्रा पर निकल गए ।

♦️एक अन्य कहानी में यह भी कहा जाता है कि कालू कुम्हार को सपने में भगवान शिव ने उनकोटी के प्रस्तर खंडों पर एक करोड़ देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनाने का आदेश दिया । 99,99,999 आकृतियाँ बनाने के बाद कालू कुम्हार ने एक आकृति अपनी ख़ुद की बना दी। इस प्रकार से वहाँ सिर्फ़ 99,99,999 देवी-देवता रह गए ।

👉वार्षिक त्योहार:-
आसपास के लोग यहां आकर इन मूर्तियों की पूजा भी करते हैं। यहां हर साल अप्रैल महीने के दौरान अशोकाष्टमी मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। इसके अलाव यहां जनवरी के महीने में एक और छोटे त्योहार का आयोजन किया जाता है।हर साल अप्रैल के महीने में लोग सीता कुंड नहाने आते हैं
पहाड़ों से गिरते हुए सुंदर सोते उनाकोटि के तल में एक कुंड को भरते हैं, जिसे 'सीता कुंड' कहते हैं। इसमें स्नान करना पवित्र माना जाता है।

👉यह स्थान अब एक प्रसिद्ध पर्यटन गंतव्य बन चुका है। यहां की अद्भुत मूर्तियों को देखने के लिए अब देश-विदेश के लोग आते हैं।

♦️कैसे पहुंचे:-
उनाकोटि त्रिपुरा के राजधानी शहर अगरतला से लगभग 125 किमी की दूरी पर स्थित है। आप उनाकोटि सड़क मार्ग के द्वारा पहुंच सकते हैं। त्रिपुरा के बड़े शहरों से यहां तक के लिए बस सेवा उपलब्ध है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा अगरतला/कमलपुर एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप कुमारघाट रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। कुमारघाट से आधे घंटे की दूरी पर यह मनोरम स्थान है। कैलाशहर से उनाकोटि की दूरी महज 8 किलोमीटर है। उत्तरी त्रिपुरा में स्थित इस जगह के लिए निजी टैक्सी की सेवा भी उपलब्ध है। उनाकोटी का अंतिम आठ किमी का रास्ता घने जंगलों के बीच से होकर जाता है।

#In_English
♦️Located 178 km from Agartala, the capital of Tripura, Unakoti is an archaeological site full of great mysteries and adventures!  Which literally means one less in crore.  There are ninety nine lakh ninety nine thousand nine hundred ninety nine statues present here.  Who made these idols and how?  It remains a mystery even today, after all, who made such beautiful idols in this forest and why?
 Wavy trails, dense forests and valleys and narrow rivers and panoramic views of sources, unique flora and wildlife to be around, and wilderness sanctuaries.  Such is the natural reserve of Unakoti, which invites tourists by the color, smell of history, archeology and religious features.  It is an average high altitude mountain range, situated in the lush green cool and cool environment of northern Tripura. Looking at these idols in the lush green and cool cool environment of Tripura has been in the middle of the forest for hundreds of years.  The craftsman has left the gods and goddesses to rest in such a beautiful environment after many years of hard work.  Wherever you go in this forest, you will see sculptures everywhere. Narrow footpaths, the 'Unakoti' of Tripura is situated amidst the far-flung jungle and uproar river sources.  Which is also counted among the biggest mysteries of Northeast India.  This place was present here in unknown form for many years, although many people do not even know the name of this place.  The collection of rock paintings and sculptures among the jungles has a more interesting history than 'Unakoti' is amazing.

 Unakoti's special thing

 The most special thing of Unakoti is the statues of innumerable Hindu deities present here.  Which makes the place the most different.  Unakoti is a mountainous region filled with dense forests and marshy areas.  Unakoti has been a big topic of research for a long time, because how was it possible to build such idols together in the middle of the forest where there is no habitation around.

 Creating unique sculptures

 There are two types of idols in Unakoti.  One is carved out of rocks and the other is stone sculptures.  The most beautiful among the images carved on the rocks here is this image of Shiva, which is known as Unakoti Kaal Bhairav.  There is a crown of 10 feet above this craft about 30 feet high.  Next to both of them are images of Goddess Durga riding on a lion and possibly on the other side, Goddess Ganga.  The Nandi bull at the lower end of the craft also has a half-sunken craft in the ground.  Apart from this, there are also beautiful crafts of Ganesh, Hanuman and Lord Surya.  Historians believe that the whole area filled with different statues was built between the 9th and 12th century under the reign of the Pala kings.  Apart from Shaivite art in this craft, it is also believed to be influenced by the art of Tantrik, Shakti and Hatha Yogis.
 There are idols associated with Hinduism, in which idols of Lord Shiva, Goddess Durga, Lord Vishnu, and Ganesha Lord etc. are located.  There is a huge statue of Lord Shiva in the center of this place, which is known as Unakoteshwar.
 There are countless sculptures and crafts carved on the rock of Hindu deities on the hill of Unakoti.  They look like huge carvings on big rocks, and these crafts are spread in small size and around here.

 There is also a rare carving of Ganesha with four arms.
 Just a few meters away from Shiva's craft are three magnificent idols of Lord Ganesha.  On one side of the rare carving of the four-armed Ganesha, there are three statues of four-armed Ganesha and two statues of Ashtabhuja Ganesha with four teeth.  The crafts and idols of Chaturmukh Shivling, Nandi, Narasimha, Shriram, Ravana, Hanuman, and many other deities are here.  There is a legend that there is still someone carving rocks there, that is why this Unakoti-Belkum hill is known as a shrine, you can go anywhere, from where you can see the idol carved on the rock of Shiva or any god.  Or craft will be found.
 This place creates quite a thrill due to these amazing murtis.

 According to the Archaeological Survey of India (ASI), the period of Unakoti dates to the 8th or 9th century.  However, there are many opinions about its craft, about its time period.  The history of this region is also associated with the reign of Ajatshatru.

 Legendary story of Unkoti:

 First story: It is said that once Lord Shiva was going to Kashi (or some people say that Mount Kailash) with his team and gods.  There were a total of one crore people in the whole group. On reaching the forest of Kotkoti, it was decided that the night should be rested there.  Lord Shiva ordered the rest of the deities and team members to wake up before sunrise in the morning so that further journey could be started at the appointed time.  The next day, when Lord Shiva woke up to sleep, he saw that all the others were sleeping.  Enraged by this, he cursed everyone to turn into the same stone and moved forward.  In this way 99,99,999 became deities of stone.

 Second story: Kalu the potter, a local craftsman, was a great devotee of Mata Parvati.  Once when Lord Shiva was passing by with his mother Parvati and his huge force, he stayed in the koti for rest of the night.  There were a total of ten million people in the whole group.  When the Kalu potter heard this, he ran to Lord Shiva and insisted on going to Kailash with him.  After consulting with Mata Parvati, Lord Shiva laid down the condition that if he would make different idols of all the accompanying people before he left in the morning, they would take him along with them.  The craftsman worked hard in his work, but he could make only 99,99,999 figures before Lord Shiva departed in the morning, so God left him there and left for the journey ahead.

 In another story it is also said that Lord Shiva ordered Kalu the potter to make figures of one crore deities on stone blocks of the koti.  After making 99,99,999 figures, the Kalu potter made a figure of his own.  Thus, only 99,99,999 deities remained there.

 Annual festival
 People from around here come and worship these idols as well.  The Ashokashtami fair is organized here every year during the month of April.  In which thousands of devotees come from far and wide to join.  Apart from this, another small festival is organized here in the month of January. Every year in the month of April people come to bathe Sita Kund.
 Beautiful springs falling from the mountains fill a pool at the bottom of Unakoti, which is called 'Sita Kund'.  Bathing in it is considered sacred.

 This place has now become a famous tourist destination.  People from all over the world come to see the amazing idols here.

 How to reach

 Unakoti is located about 125 km from Tripura's capital city, Agartala.  You can reach Unakoti by road.  Bus services are also available from major cities of Tripura.  The nearest airport is Agartala / Kamalpur Airport.  For the rail route you can resort to Kumarghat railway station.  This is a picturesque place half an hour away from Kumarghat.  The distance from Kailashahar to Unakoti is just 8 kilometers.  Private taxi services are also available for this place located in North Tripura.  The last eight km route to Unakoti goes through dense forests.

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